33 रुपए रोज पर जीती है 670 मिलियन जनता
- ग्रामीण भारत की कम से कम 75 फीसदी परिवार की मासिक आय 5,000 रुपए ( 79 डॉलर ) से कम है।
- कम से कम 51 फीसदी परिवार शारीरिक श्रम द्वारा जीवन यापन करता हैं।
- कम से कम 28 फीसदी परिवार के पास मोबाईल फोन या संचार का कोई अन्य माध्यम नहीं है।
पिछले हफ्ते सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना ( एसईसीसी ) सर्वेक्षण द्वारा जारी किए गए ताज़ा आकंड़ों के मुताबिक ग्रामीण भारत की 70 फीसदी से अधिक परिवार या तो संपत्ति या सामाजिक- आर्थिक लाभ से वंचित है। गौरतलब है कि देश की 69 फीसदी आबादी ( 833 मिलियन ) ग्रामीण इलाकों में रहती है।
एसईसीसी रिपोर्ट ऐसे समय में जारी की गई है जब वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां, जैसे कि मूडीज ने ग्रामीण भारत में होने वाले विकास की धीमी गतिसे समग्र अर्थव्यवस्था बिगड़ने की चेतावनी दी है। रेटिंग एजेंसियों ने ग्रामीण सुधारों में तेजी पर ज़ोर दिया है। इंडियास्पेंड ने पहले ही देश की ग्रामीण इलाकों में प्रशासन एवं कृषि सुधार पर विस्तार से चर्चा किया है।
ग्रामीण गरीब एवं आय के श्रोत
ग्रामीण भारत में रह रहे आधे से अधिक परिवार शारीरिक श्रम द्वारा रोज़ी-रोटी कमाते है। वहीं कम से कम 75 फीसदी ( 133.5 मिलियन ) ग्रामीण आबादी की मासिक आय 5,000 रुपए से कम है।
घरेलू ( ग्रामीण ) आय का मुख्य स्रोत
Source: Social Economic and Caste Census, 2011
अर्जुन सेनगुप्ता समिति, 2007 के निष्कर्षों का हवाला देते हुए, हिमांशु, दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के साथ एक कृषि अर्थशास्त्री, ने मिंट अखबार में लिखा कि “एक प्रारंभिक विश्लेषण से ग्रामीण इलाकों की विकट तस्वीर नज़र आती है। विश्लेषण के अनुसार ग्रामीण इलाकों के चार में से तीन परिवार की मासिक आय 5,000 रुपए से भी कम है। जबकि ग्रामीण इलाकों में रहने वाले 90 फीसदी परिवार की मासिक आय 10,000 रुपए से भी कम पायी गई है। ” गौरतलब है कि अर्जुन सेनगुप्ता समिति ने देश की 77 फीसदी जनता की पहचान गरीब श्रेणी में की है।
हिमांशु के अनुसार “ यह संख्या गरीब और कमज़ोर तबके के उन अनुमानों के बेहद करीब हैं जो नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के खपत सर्वे के आधार पर अन्य अनुमानों से हासिल हुए हैं, जिसे मिडिया ने नज़रअंदाज़ किया है। एकग्रामीण परिवार की मासिक आय 5,000 रुपए एवं परिवार में औसतन पांच लोग। यानि हर दिन प्रत्येक व्यक्ति की आय 33 रुपए है।”
हालांकि यह गरीबी के अनुमानों की तुलना के लिए नहीं बनाया गया लेकिन एसईसीसी के आकंड़ों के आकलन से पता चलता है कि भारत के ग्रामीण इलाकों में रहने वाली 670 मिलियन जनता 33 रुपए प्रतिदिन से जीवन निर्वाह करती है (75 फीसदी ग्रामीण परिवारों का मतलब है 134,373,569 परिवार, हर परिवार में पांच सदस्य मिलकर हमें कुल संख्या देते हैं 671,867,845 लोग )।
एक विशिष्ट मासिक आय सीमा के साथ उच्चतम वेतन पाने वाले के साथ घरों की %
Source: Social Economic and Caste Census, 2011
मकानों की खराब गुणवत्ता
देश के ग्रामीण इलाकों में ज़्यादातर कच्चे मकान बने हैं।
कच्चे मकानों की संख्या
पक्के मकानों की संख्या
Source: Social Economic and Caste Census, 2011
ग्रामीण इलाकों में पक्का यानि स्थायी मकान होना उच्च स्तर के जीवन का संकेत है।
संपत्ति के स्वामित्व
Source: Social Economic and Caste Census, 2011
संपत्ति के स्वामित्व से गरीबी एवं निम्न स्तर का जीवन झलकता है। हालांकि ग्रामीण इलाकों के 71 फीसदी परिवारों के पास मोबाईल फोन देखा गया है लेकिन फ्रिज एंव मोटर कार की कमी देखी गई है।
शिक्षा स्तर
हाल ही में इंडियास्पेंड ने अपनी खास रिपोर्ट में बताया था कि इंडोनेशिया की जनसंख्या से अधिक भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में निरक्षर लोगों की संख्या है। जहां 74 फीसदी जनता 33 रुपए प्रतिदिन पर अपना जीवन निर्वाह करती है, वहां परिवर्तन जल्द होने की संभावना कम ही है। हमने पहले भी रिपोर्ट में बताया है कि इसका असर देश की आर्थिक गतिविधियों पर भी पड़ेगा।
ग्रामीण भारत में शिक्षा के स्तर (%)
Source: Socio Economic and Caste Census, 2011
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम ( मनरेगा ), राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ( एनआरएलएम ), प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) और स्वच्छ भारत मिशन कुछ ऐसी परियोजनाए हैं जो सरकार द्वारा ग्रामीण विकास के लिए चलाई गई हैं।
ग्रामीण भारत गरीबी के दुष्चक्र में फंसा हुआ है। इस दुष्चक्र से बाहर निकलने का पहला कदम है ‘ग्रैजुएश्न मॉडल’, एक वैश्विक प्रयोग जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक गरीबी विरोधी गाइड बन सकता है।
( तिवारी इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक हैं। अतिरिक्त रिसर्च: अभित सिंघ सेठी )
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 13 जुलाई 15 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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