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एक नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, देश के ऊर्जा की कमी से जूझ रहे छह राज्यों ( बिहार, झारखंड , मध्य प्रदेश , उड़ीसा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल ) के ग्रामीण इलाकों में कम से कम 95 फीसदी घरों में अब भी खाना पकाने के लिए पारंपरिक ईंधन, जैसे लकड़ियां एवं उपलों का प्रयोग करते हैं।

‘द एक्‍सेस ऑफ क्‍लीन कूकिंग एनर्जी एंड इलेक्ट्रिसिटी – सर्वे ऑफ स्‍टेटस’ (एक्‍सेस) नामक एक रिपोर्ट के अनुसार इन छह राज्यों के ग्रामीण इलाकों में केवल 14 फीसदी घरों में खाना पकाने के लिए, बायोगैस, एलपीजी ( तरलीकृत पेट्रोलियम गैस ) , बिजली या प्राकृतिक गैस का प्रयोग किया जाता है।

इस श्रृंखला के पहले भाग में हमने आधिकारिक " विद्युतीकरण " और घरों में हुए बिजली के कनेक्शन के बीच के फासले पर चर्चा की है।

इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारत के ग्रामीण इलाकों के 67 फीसदी घरों में अब भी खाना बनाने के लिए लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है। हमने यह भी बताया कि किसी प्रकार खाना पकाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा की कमी एवं घर के भीतर फैलते वायु प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में एलपीजी का उपयोग सबसे अधिक

भारत के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य, उत्तर प्रदेश में करीब 33 फीसदी घरों में एलपीजी का इस्तेमाल की जाती है – 15 फीसदी घरों में इसे खाना पकाने के लिए मुख्य श्रोत के रुप में उपयोग की जाती हलेकिन 5 फीसदी ही गैस पर निर्भर हैं।

खाना पकाने की ऊर्जा सूचकांक बनाने के लिए अध्ययन में पांच कारकों का इस्तेमाल किया गया है - स्वास्थ्य और सुरक्षा, उपलब्धता, गुणवत्ता , सामर्थ्य और सुविधा।

इन छह राज्यों के तीन-चौथाई से अधिक घरों मे समग्र तौर पर, 99% से अधिक पारंपरिक ईंधन पर पूरी तरह से निर्भर होने के साथ इसे स्तरीय 0 में वर्गीकृत किया गया है।

ढांचे के आधार पर खाना पकाने की ऊर्जा सूचकांक का मूल्यांकन 0 से 100 के पैमाने पर किया जाता है एवं सभी राज्य स्पेक्ट्रम के निचले सिरे की ओर आते हैं।

खाना पकाने की ऊर्जा सूचकांक

14 की रेटिंग के साथ उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन इस संबंध में सबसे बेहतर है। उत्तर प्रदेश के बाद 11.1 की रेटिंग के साथ पश्चिम बंगाल, 8.7 की रेटिंग के साथ बिहार, 8.2 के साथ मध्य प्रदेश, 4.2 के साथ ओडिसा एवं 3.4 के साथ झारखंड का स्थान है।

छह राज्यों के घरों में एलपीजी कनेक्शन

झारखंड के केवल 6 फीसदी घरों में एलपीजी का कनेक्शन है। इनमें से 5 फीसली लोग इसे खाना पकाने के लिए मुख्य श्रोत के रुप में इस्तेमाल की जाती है एवं 1 फीसदी पूरी तरह से एलपीजी पर निर्भर हैं।

इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 1993-94 से 2011-12 की अवधि के दौरान भारत के ग्रामीण इलाकों में खाना पकाने के लिए एलपीजी के उपयोग में 7.5 गुना वृद्धि हुई है। वर्ष 1993-94 में जहां एलपीजी इस्तेमाल करने के आंकड़े 2 फीसदी दर्ज की गई थी, वहीं 2011-12 में आंकड़े बढ़ कर 15 फीसदी दर्ज की गई है।

एलपीजी की महंगी कीमत है बाधा

अध्ययन के मुताबिक एलपीजी की महंगी कीमत के कारण ही लोग इसके इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। करीब 95 फीसदी परिवार ने कहा कि एलपीजी की महंगी कीमत के कारण ही वे कनेक्शन लेने में सक्षम नहीं हैं।

इंडियास्पेंड की विश्लेषण के अनुसार बिहार में एलपीजी ( प्रति वर्ष 9 सिलेंडर ) इस्तेमाल करने की लागत वार्षिक आय का 19 फीसदी ( प्रति व्यक्ति ) है।

वहीं उत्तर प्रदेश में प्रति वर्ष एलपीजी इस्तेमाल करने की लागत 15 फीसदी आती है जबकि झारखंड में इसकी कीमत 12 फीसदी, मध्यप्रदेश में 10 फीसदी, ओडिसा में 10 फीसदी एवं पश्चिम बंगाल में 8 फीसदी आती है।

एलपीजी इस्तेमाल न करने के परिवार ने अन्य कारणों का भी उल्लेक किया है – मासिक खर्च ( 88 फीसदी ), आस-पास के क्षेत्रों में एलपीजी का वितरण न होना ( 72 फीसदी ) एवं एलपीजी के संबंध में जागरुकता की कमी ( 42 फीसदी )।

झारखंड एवं ओडिसा के करीब 85 फीसदी परिवार ने उनके क्षेत्र के आस-पास किसी एलपीजी वितरक के न होने की बात कही है।

एलपीजी कनेक्शन में कमी क्यों ?

इन छह राज्यों में रहने वाले लोगों के एलपीजी का सिलेंडर लेने के लिए लंबा सफर तय करना पड़ता है।

उद्हारण के तौर पर बिहार में सिलेंडर लेने के लिए एक तरफ कम से कम छह किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। वहीं मध्यप्रदेश में करीब 11 किलोमीटर चलना पड़ता है, ओडिसा में 9 किलेमीटर, झारखंड में 7 किलोमीटर, उत्तर प्रदेश में 7 किलोमीटर एवं पश्चिम बंगाल में 3 किलोमीटर में 3 किलोटर चलना पड़ता है।

इन छह राज्यों के केवल 66 फीसदी परिवार खाना पकाने के लिए मुफ्त बायोमास ( जलाऊ लकड़ी , गोबर के उपलों , कृषि अवशेषों ) पर निर्भर है।

मुफ्त बायोमास पर निर्भर ग्रामीण परिवार

ओडिसा के करीब 69 फीसदी परिवार ( छह राज्यों में सबसे अधिक ) खाना पकाने के लिए मुफ्त बायोमास पर निर्भर हैं। करीब 90 फीसदी परिवार खाना पकाने के लिए पारंपरिक चूल्हे का इस्तेमाल करते हैं जिसमें खाना बनाने में अधिक समय लगने के साथ-साथ खाना बनाने की पूरी प्रक्रिया में असुविधा भी होती है।

पारंपरिक चूल्हे से खाना पकाने में असुविधा

एक-तिहाई से अधिक परिवार इस बात से अनजान हैं या इस बात पर विश्वास नहीं करते कि पारंपरिक चूल्हे के मुकाबले एलपीजी के इस्तेमाल से स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। अध्ययन के मुताबिक यह जागरुकता की कमी ही स्वच्छ खाना पकाने की ऊर्जा की मांग में बड़ी बाधा है।

खाना पकाने की व्यवस्था से उत्सर्जन के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के संबंध में जागरुकता

उत्तर प्रदेश के करीब 80 फीसदी परिवार का मानना है कि चूल्हे से निकलने वाला धुआं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। करीब 68 फीसदी परिवार का मानना है कि पारंपरिक चूल्हे का जगह एलपीजी का इस्तेमाल स्वास्थ्य के लिए बेहतर है।

( लेख का पहला भाग यहां पढ़ सकते हैं। )

मल्लापुर इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक हैं।

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 2 अक्टूबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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