66A का पुनः अवतार, क्या भारत टर्की, रूस की राह जा रहा?
टर्की की राजधानी इस्तांबुल में प्रदर्शन कारी सरकार की इन्टरनेट के ऊपर सेंसरशिप लगाने की नीति के विरोध में प्रदर्शन 2011 में |
नई दिल्ली : जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अम्बिकेश महापात्र आज भी बेचैन हो उठतें हैं , जब उन्हें मात्र एक ई-मेल, जिसको उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री मंत्री ममता बनर्जी का मज़ाक उड़ाते हुए कार्टून बना कर भेजा था – जबकि विवादास्पद कानून 66A को भारत के सर्वोच न्यायालय ने रद्द कर असंवैधानिक कर दिया है ,इसी तत्कालीन भारतीय साइबर कानून 66A के तहेत प्रोफेसर अम्बिकेश महापात्र को जेल जाना पड़ा था |
प्रोफेसर महापात्र के ऊपर लगी चार्जशीट जो कि उनके खिलाफ़ भारतीय अधिनियम 66A (आईटी एक्ट 66A) के तहेत लगाई गयी | इस साइबर कानून के अनुसार भारत का कोई भी व्यक्ति कंप्यूटर / फेसबुक या किसी सोशल साईट पर कोई ऐसा कमेंट नहीं पोस्ट या ईमेल नहीं कर सकता जो किसी व्यक्ति ( कृपया पढ़ें किसी राजनितिक , बड़ी कम्पनी या राजनीत मिश्रित माफ़िया), को बहुत आक्रामक , धमकी से भरा जिसके कारण उस वादी या शिकायत करता को बहुत परेंशान और अत्यंत असुविधाजनक स्थितियों का सामना करना पड़ा हो|
प्रोफेसर महापात्र के वकील अभी 27 अप्रैल 2014 को कोलकाता के अलीपुर न्यायालय में प्रोफेसर के खिलाफ उक्त लम्बित केस में उपस्थित होकर 66 A (आईटी एक्ट इंडिया ) सुप्रीमकोर्ट द्वारा निरस्त किये जाने के प्रकाश में न्यायालय मे दरख्वास्त करनी होगी कि उन्के क्लाइंट प्रोफेसर महापात्र के ऊपर लगायी गयी चार्जशीट को निरस्त कर उन्हें तथाकथित जुर्म के आरोप से बरी करने का आदेश न्यायालय दे |
भारत में हाल के वर्षों में उपरोक्त महापात्र जैसी तथाकथित रूप से अपराधिक घटनाएँ पूरे भारतीय प्रायद्वीप में घटित हुई है | ऐसी ही एक और घटना शिपिंग क्षत्र में कार्यरत एक गोवा निवासी देवू चोदंकर के साथ तब हुई और उनको जेल की हवा खानी पड़ी जब उन्होने मात्र एक महीने पहिले बने भारत के प्रधान मंत्री के खिलाफ मोदी के फेसबुक पेज पर एक ई -मेल पोस्ट लिखने के कारन जेल जाना पड़ा | गोवा निवासी देवू चोदंकर ने अपनी पोस्ट में लिखा था कि अगर मोदी प्रधान मंत्री बन गये तो दक्षिणी गोवा में क्रिश्चियन अपनी पहचान को खो देंगे |
उक्त गोवा निवासी के खिलाफ गोवा पुलिस ने आज तक कोई चार्ज शीट नहीं दाखिल किया है , जबकि उनको भारतीय सूचना अधिनियम 66A और कुछ अन्य भारतीय दण्ड सहिंता (आई.पी.सी) के तहत आरोपित किया गया है |
भारत में अभियक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर विद्वानों, लेखकों, मुखरित नागरिकों एवं पत्रकारों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश जिसमें उसने सूचना अधिनियम 66A, को पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया है,को खुले दिल से स्वागत किया है| उक्त स्वतंत्र अभियक्ति के पक्षधरों ने 66A का इसलिये विरोध किया क्योंकि कोई भारतीय यदि किसी सोशल साईट पर जाकर ऐसा सन्देश पोस्ट करता है जो कि मोटे तौर पर आक्रामक या धमकी भरें हों या उस लिखे के कारण किसी व्यक्ति या संस्था जिसके खिलाफ लिखा गया हो को अत्यंत परेशानियों को झेलना पड़ा हो |
66A के खिलाफ मोर्चा लिए लोंगों ने एक स्वर में कहा कि उकता कानून के बहुत से अर्थ निकाले जा सकतें है और इस कानून के चलते प्रशासन किसी भी व्यक्ति को जिसने ऑनलाइन कुछ भी नकारात्मक किसी के प्रति लिख भर दिया हो तो उसको कानूनन अभियोजित कर मुकदमों में फंसाकर जेल में डाला जा सकता है | यह गंभीर तथ्य है कि उक्त ई-मेल या एसमस या फेसबुक, ट्विटर पर पोस्ट्स जिनके खिलाफ लिखे गये वो ज्यादातर सत्तासीन राजनेता थे और कुछ कंपनियों के खिलाफ उनके उत्पादों और सेवाओं के खिलाफ लिखी गई |
उक्त सूचना अधिनियम के बारे में द इकनोमिक टाइम्स ने रिपोर्ट किया कि केन्द्रीय सरकार पुनः एक ज्यादा स्पष्ट सूचना का अधिनियम संसंद में पेश करने की गंभीरता से सोच रही है जो कि ऐसी ऑनलाइन पोस्ट्स के सन्दर्भ में इस्तमाल किया जायेगा - जो कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा साबित हो सकती हैं, और समाज को साम्प्रदायिक रूप से भड़काने का कार्य करने मैं सक्षम हो सकती हों |
कब ऑनलाइन विरोध अभिव्यक्ति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बनती है ?
बहुत सी सरकारें ऐसे कानून को बना चुकी / रहीं हैं, जो कि ऑनलाइन विरोध और आतंकवाद के बीच स्पष्ट रेखा सयोंजित करती नही प्रतीत होती | सोशल मीडिया की ताकत का राजनितिक आन्दोलनों को “ और बढानें - शक्तिकृत करने मैं सक्रिय योगदान जैसा कि अरब स्प्रिंग और भारत में अन्ना हजारे द्वारा लोकपाल विषयक धरने में स्पष्ट देखा जा चुका है | इसी कारण से ऑनलाइन विरोध अभिव्यक्ति को सरकारें अपने वजूद को कायम रखने में खतरा समझते हुए टेढ़ी नज़र|
विश्व की कुछ सरकारें जो कि संवैधानिक रूप से अपने को प्रजातंत्रात्मक मानती हैं , कैसे अपने तानाशाही कानूनों से अपने को अधिकारित कर ऑनलाइन विरोध को कुचलने का प्रयास करती हैं ,यह रूस और टर्की मैं स्पष्ट नजर आता है | रूस में हाल में ऑनलाइन विरोध को कुचलने के प्रयास में एक ब्लॉगर जिसने भ्रष्टाचार के बारे में लिखा था , को दण्डित किया और एक रॉक बैंड पुसी रायट को जेल में डाल दिया क्योंकि उसने विरोध स्वरुप एक ऑनलाइन विडियो रील बनाई थी | रूस में ब्लॉग को रजिस्टर करने के सख्त नियम हैं और विरोधी राजनितिक दलों के वेबसाइट पर प्रतिबंध है |
वर्ष 2013 में जब टर्की की राजधानी इस्ताम्बुल में प्रदर्शन कारी समूह ने जबरदस्त विरोध प्रकट किया तो उस समय टर्की के प्रधानमंत्री रेसेप तय्यिप एरडोगन (अब राष्ट्रपति) , ने गुस्से में सोशल मीडिया ट्विटर के खिलाफ कहा “ मैं समझता हूँ कि सोशल मीडिया समाज के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है’’|
फ्रांस की राजधानी पेरिस स्थित एक स्वायत्त शासी संस्था रिपोर्टर्स विदोउट बॉर्डर्स ने अपने घोषित 2015 के प्रेस फ्रीडम इंडेक्स की सूची में इंडिया का नंबर 136th रखा है , जो की टर्की के 149th और रशिया के 152nd से थोडा ही ऊपर है |
रिपोर्टर्स विदोउट बॉर्डर्स ने कहा कि प्रजातंत्रात्मक देश स्वंत्रता के अमूल्य धन को छीन लेतें हैं , राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर |उक्त रिपोर्ट ने आगे कहा कि विभिन्न सरकारें नित्य किसी न किसी तरह के जनरोधी कानूनों को पास किये रहतीं हैं , जिसे कि स्वतंत्र अभिव्यक्ति को बलात दबायाजा सके |
एक ऐसा कानून जो आतंकवाद के खिलाफ कभी इस्तमाल नहीं किया गया |
वर्तमान में जब सरकार उक्त 66A अधिनयम को दोबारा और स्पष्ट रूप से नए अधिनयम के रूप में लाने का विचार कर रही है – दो बातें स्पष्ट रूप से भुला दी गयी है | पहिली कि उक्त सूचना अधिनयम (निरस्त) 66A कभी भी आतंकवाद के खिलाफ इस्तमाल नहीं हुआ और दूसरा 66A का पार्ट - सी , जो की मूल अधिनियम का सबसे खतरनाक कानूनी हिस्सा था उसका कार्य यह था कि स्पैम को पूरी तरह से, यह वक्तव्य प्रनेश प्रकाश जो कि बैंगलोर स्थित सेण्टर फॉर इन्टरनेट एंड सोसाइटी में नीति निदेशक हैं |
इंडियास्पेंड ने कुल 20 मुख्य 66A के आधीन आरोपित केसों का अध्यन किया जिसमें सबसे प्रमुख प्रोफेसर महापात्र (पश्चिम बंगाल ) चोदनकर (गोवा) और दो किशोर बच्चे (महाराष्ट्र ) जिनको फेसबुक में पहले से लिखित पोस्ट जो कि शिव सेना प्रमुख श्री बाल ठाकरे की मृत्यु पर पूरी मुंबई को बन्द करने के विरोध में पोस्ट थी , इस पोस्ट को दो किशोर बच्चों ने सिर्फ लिखे लाइक पर क्लिक किया था और उनको 66A का इस्तमाल करके गिरफ्तार कर लिया गया था |
उपरोक्त किसी भी आरोपित व्यक्ति या किशोर बच्चे में कोई भी आतंकवाद में आरोपित नहीं था | ऐसे 66A के नियम के अधीन बहुत से अप्रचारित मामले हैं –द हिन्दू ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि केवल केरल राज्य में 500 केसेस हैं जिनको बन्द किया जाना है |
बहुत तरह के क्षेत्रों में सक्रिय अधिवक्ताओं और सोशल एक्टिविस्टों का स्पष्ट अभिमत है कि 66A का भारत में इस्तेमाल केवल सामान्य जनता के खिलाफ किया गया |
66A सूचना अधिनियम का सेक्शन 66F, को विशेष रूप से साइबर आतंकवाद से निपटने के लिए अधिनियमित किया गया है , जबकि 155 वर्ष पुराना इंडियन पेनल कोड या भारतीय दंड विधान साम्प्रदायिकता को भड़काने वाले वक्तव्यों और कार्यों के खिलाफ और ऐसे सन्देशों जिनके फैलने से हिंसा हो या बढ सकती है जैसे देवी देवताओं की नंगी तस्वीरें या उनके विकृत कर दिए गए चेहरे आदि |
भारतीय दण्ड सहिंता (आईपीसी ) का 295A एक बहुत सख्त कानून है , जो कि धार्मिक और साम्प्रदायिकता के खिलाफ सीधे कारावास की व्यवस्था करता है | जैसा की प्रसिद्ध बुक प्रकाशक पेंगुइन द्वारा अमेरिकी भारत विज्ञानी वेंडी डोनिगेर द्वारा लिखित किताब द हिन्दुस् के ऊपर बैन लगाकर किया गया|
इस किताब के पब्लिशर पेंगुइन ने उसके द्वारा प्रकाशित किताब पर भारत सरकार द्वारा बैन लगाने पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि “ भारतीय दण्ड सहिंता के अधिनियम विशेष 295A वस्तुतः किसी भी भारतीय प्रकाशक के लिए ऐसी मुश्किलें पैदा कर देगा कि वे सब अंतर्राष्ट्रीय अभिव्यक्ति के उच्च मानदण्डों को व्यव्हार में तभी ला सकेंगे जब वह भारतीय कानूनों की अवहेलना शुरू कर दें | इस प्रकार के वक्तव्य पेंगुइन ने उस समय दिए जब वह भारतीय बाज़ार से अपनी पुस्तक द हिन्दू को हटा रहा था |
Source: National Crime Records Bureau
66A अधिनियम केवल अपने में ही खतरनाक नहीं था बल्कि वह गुलाम भारत के समय लागू हुए भारतीय दण्ड विधान के उपनिवेशवादी स्वरुप की याद दिलाता है जैसे कि हमारे क्रांतिकारी के खिलाफ (राजद्रोह) के मुकदमें जो देश कि इन्ही अदालतों में 15 अगस्त 1947 से पहले चले थे |
वकील एन.एस .नाप्पिनै ने कहा कि 66A का सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निरस्त किये जाने का मतलब यह नहीं है कि साइबर दुनिया में किये जाने वाले अपराधों के खिलाफ़ हमारे यहाँ अधिनियमों की कमी है |
नाप्पिनै ने आगे कहा कि अगर सरकार 66A का दूसरा अवतार लाती है तो उसको कानूनी नियम को बहुत ही स्पष्ट रूप से अधिनियमित करना पड़ेगा | मुझे समझ नही आता की आखिर सरकार चाहती क्या है ? वकील ने आगे बताया की उनको लगता है कि केवल साइबर गुंडा गिरी और नकली कॉल्स की वर्तमान कानूनों के दायरे से बाहर लगते हैं |
साइबर सुरक्षा कानून : अपरियाप्त आकड़े , अदृश्य जटिलताओं का जाल
साइबर अपराध और साइबर सुरक्षायें अत्यंत जटिल कानूनी संभावनाएँ / आवश्यकताएं हैं , जो कि दह्शत और आंतक से भरी ई-मेल जैसी कि हाल में भारत के रिज़र्व बैंक गवर्नर रघु राम राजन को भेजी गई या सरकारी वेबसाइट को हैकर द्वारा ध्वस्त करना या किसी प्राइवेट कंपनी की वेबसाइट पर आक्रमण करना जैसे कि अमेरिका में स्थित सोनी पर उस देश के बहार से किसी ने उसकी वेबसाइट पर आक्रमण किया |
Source: Fifty-Second Report of Standing Committee on Information Technology, 2013-14
ऊपर के वक्तव्यों पर अमेरिकी सरकार का कथन है , इस तरह के हैकिंग के कार्यों से निपटने के लिए हमें बहेतर साइबर सुरक्षा के नियम बनाने होंगे , जबकि आलोचकों ने कहा कि उपरोक्त हैकिंग के कारण इन कंपनियों के पास सही योग्यता और उचित ऑपरेशन की कमी है |
आईटी एक्ट के तहत 4,356 केसेस साइबर अपराधों की श्रेणी में दर्ज हैं ,और 1,337 अन्य भारतीय दंड सहिंता के अंतर्गत , ऐसा वर्ष एन.सी.आर.बी वर्ष 2013 की रिपोर्ट में बताया गया | एन.सी.र.बी के एक अधिकारी ने अपने नाम को गुप्त रखने की शर्त पर , क्योंकि उनको मीडिया से बात करने का अधिकार नहीं है , बहुत बड़ा रहस्य उजागिर किया कि नए साइबर अपराध के आकडें यह सिद्ध करते हैं कि साइबर अपराध , साइबर अधिनियमों के द्वारा किये जातें हैं | इन आकड़ों को देखने परखने के बाद सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि क्या वह अब भी किसी नए 66A के अवतार की जरूरत समझ रही है |
जैसा कि हमने देखा की वर्तमान कानून किसी भी तरह के अपराध से निपटने के लिए काफी हैं | उदाहरण के लिए साइबर पीछा करना जो 66A के आने के पहले सम्मिलित नही था , अब बलात्कार कानून (क्रिमिनल अमेंडमेंट एक्ट 2013) के आने के बाद से सम्मिलित हो गया है |
अधिकतर देशों में साइबर सुरक्षा कानूनों के क्षेत्र में काम चल रहा है और इस तरह के नए साइबर सुरक्षा नियमों को बनाने की आड़ में वह सामान्य जनता कि ही ख़ुफ़िया गिरी कर उसके व्यक्तिगत स्वंत्रता के हक को मार देतें हैं , अमेरिका में व्यक्तिगत स्वंत्रता के पक्षधरों नें साइबर कानूनों की अति – व्यापकता के विरोध में संघर्ष किया और इन कानूनों को बनाने में अति सावधानी की मांग किया | उदाहरण स्वरुप एक कंप्यूटर हैकर जिसने गलती से किसी फ्री ऑनलाइन दस्तावेजों को एक्सेस हो गया, फलस्वरूप कड़े दण्ड मिलने के भय से उसने आत्मघात कर लिया |
(कालरा दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स की अलुम्नुस हैं , रायटर्स , मिंट और बिज़नस स्टैण्डर्ड की रिपोर्टर भी हैं|)
इमेज क्रेडिट: फ्लिक्कर/केविन एंडरसन
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