70% पर्यावरणीय ‘अपराध’ में धूम्रपान या तंबाकू उत्पाद शामिल
नई दिल्ली: हाल ही में जारी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2016 और 2017 के बीच पर्यावरणीय अपराधों में आठ गुना की वृद्धि हुई है। हालांकि, दर्ज किए गए अपराधों में से 70% सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम, 2003 के तहत हैं, जैसे कि सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करना और तंबाकू उत्पादों के लिए पैकेजिंग में प्लास्टिक का इस्तेमाल आदि। विशेषज्ञों के अनुसार इन अपराधों का पर्यावरण पर केवल मामूली रुप से ही प्रभाव पड़ता है।
पर्यावरण मामलों के वकील और भारत की पहली पर्यावरण कानून फर्म, एनवायरो लीगल डिफेंस फर्म (ईएलडीएफ) के संस्थापक, संजय उपाध्याय को ये आंकड़े भ्रामक लगते हैं। वह कहते हैं, "आंकड़ों से तो पता चलता है कि पर्यावरणीय अपराधों की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई है, लेकिन पर्यावरण पर इसका कोई वास्तविक प्रभाव नहीं दिखाया गया है।"
एनसीआरबी की ओर से एक साल की देरी के बाद, 21 अक्टूबर, 2019 को आपराधिक आंकड़े जारी किए गए हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक, 2016 में पुलिस ने 4,732 पर्यावरणीय अपराध दर्ज किए थे, जबकि 2017 में ऐसे अपराधों की संख्या में 790% की वृद्धि हुई और आंकड़े बढ़कर 42,143 हो गए। तंबाकू कानून के तहत 29,659 मामले दर्ज हुए हैं।
अगर तुलनात्मक रुप से देखा जाए तो पुलिस ने वायु और जल प्रदूषण के कानूनों के तहत होने वाले अपराधों के केवल 36 मामले दर्ज किए हैं। हालांकि, दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 शहर भारत में ही हैं।
पुलिस ने पर्यावरणीय अपराधों की एक और नई श्रेणी: ध्वनि प्रदूषण के तहत लगभग 8,400 मामले (सभी मामलों का 20%) दर्ज किए हैं। इन अपराधों में से कुछ पर्यावरण को प्रभावित कर सकते हैं, जैसे कि एक वन आरक्षित क्षेत्रों के पास शोर, लेकिन ये शहर के भीतर अपराधों से भी संबंधित हो सकते हैं। अपराधों के विवरण पर आंकड़े सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं।
Environment-Related Offences In India | ||
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2016 | 2017 | |
The Cigarette and Other Tobacco Products Act, 2003 | NA | 29659 |
Noise Pollution Acts (State/ Central) | NA | 8423 |
The Forest Act & The Forest Conservation Act, 1927 | 3715 | 3016 |
The Wildlife Protection Act, 1972 | 859 | 826 |
The Environmental (Protection) Act, 1986 | 122 | 171 |
The Air (1981) & The Water (Prevention & Control of Pollution) Act, 1974 | 36 | 36 |
The National Green Tribunal Act, 2010 | NA | 12 |
Environment & Pollution – Related Acts (Total) | 4732 | 42143 |
Source: National Crime Record Bureau, 2017
तंबाकू कानून के तहत अपराध
सिगरेट एंड अदर टोबैको प्रोडक्ट्स एक्ट- 2003, सार्वजनिक धूम्रपान और तंबाकू उत्पादों के विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाता है, और अन्य चीजों के साथ ऐसे उत्पादों के व्यापार की शर्तों को नियंत्रित करता है।
कानून के तहत 29,659 मामलों में से, तमिलनाडु में सबसे अधिक, 20,640 मामले यानी करीब 70% दर्ज किए गए हैं। दूसरे सबसे ज्यादा मामले केरल में थे। कुल मामलों का लगभग 23% (6,743) केरल में दर्ज हुए। (राज्यवार पर्यावरणीय अपराधों की संख्या को देखने के लिए यहां क्लिक करें।)
उपाध्याय कहते हैं, आंकड़ों से पता नहीं चलता कि ये अपराध तंबाकू उत्पादों की पैकेजिंग में प्लास्टिक का इस्तेमाल, सार्वजनिक धूम्रपान या तंबाकू या तेंदू पत्तों की अवैध बिक्री (तेंदू पत्ते का इस्तेमाल बीड़ी बनाने में होता है ) से संबंधित हैं। उन्होंने कहा कि पर्यावरण पर इसका प्रभाव देखने के लिए इन आंकड़ों को अलग-अलग दिखाने की जरूरत है।
वायु और जल प्रदूषण से सम्बंधित अपराध
वायु और जल प्रदूषण के दर्ज किए गए 36 अपराध के मामलों को विशेषज्ञों ने भ्रामक पाया है।
उपाध्याय ने कहा, "यह संख्या पूरी तरह से विवादित है। एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) में 5,000 मामले हैं, जिनमें से 80% वायु और जल अधिनियम से जुड़े होंगे।"
एनजीटी की स्थापना 2010 में पर्यावरण, वनों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित नागरिक मामलों के त्वरित निपटारे के लिए एक विशेष न्यायाधिकरण के रूप में की गई थी, जिसमें पर्यावरण से संबंधित कानूनी अधिकारों को लागू करना भी शामिल था।
उपाध्याय ने बताया कि एनसीआरबी की रिपोर्ट में पर्यावरणीय अपराधों की इतनी कम संख्या का एक कारण यह है कि यह केवल पर्यावरण से संबंधित आपराधिक मामलों को दर्ज करता है, जबकि अधिकांश पर्यावरणीय मामले नागरिक प्रकृति के हैं। पर्यावरण अपराधों पर आंकड़े इकट्ठा करने वाली किसी भी एजेंसी को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और सभी पर्यावरण विनियामक एजेंसियों के आंकड़ों को भी शामिल चाहिए।
कानून के निशाने पर जनजातियां
पुलिस ने वनों को नियंत्रित करने वाले तीन क़ानूनों (भारतीय वन अधिनियम, वन (संरक्षण) अधिनियम और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम) के तहत 3,842 पर्यावरणीय अपराध दर्ज किए हैं। यह संख्या 2017 में दर्ज कुल पर्यावरणीय अपराधों का 9% है।
तीनों कानून संसाधनों को नियंत्रित करतेे हैं, जिनमें अक्सर जंगल में रहने वाले लोगों को शामिल नहीं किया जाता है और राष्ट्रीय उद्यानों और बाघों के लिए संरक्षित क्षेत्रों में मानवीय गतिविधि पर रोक लगाई जाती है। लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ये कानून गलत तरीके से वंचित समुदायों, खासकर आदिवासियों को दंडित करते हैं।
मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में एसोसिएट प्रोफेसर गीतनजॉय साहू ने जनवरी 2018 में स्क्रॉल.इन के लिए लिखे एक लेख में कहा है, “प्रदूषण नियंत्रण क़ानूनों को लागू करने का काम जिन राज्य अधिकारियों को सौंपा गया है, वे अक्सर उन्हें पूरी तरह से समझ में नहीं पाते है।”
साहू ने इस पर आगे लिखा है, "हालांकि वे शायद ही कभी औद्योगिक प्रदूषण फैलाने वालों और अवैध खनन करने वालों को दंडित करते हैं। लेकिन प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी उन समुदायों के खिलाफ कानून को पूरी ताकत से लागू करते हैं, जो समुदाय (आदिवासी लोग) आजीविका के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर होते हैं।"
साहू इस बात की वकालत करते हैं कि आदिवासियों को पर्यावरण नियमों और विनियमों से अवगत कराने में वन प्रशासन को आगे आना चाहिए।
(त्रिपाठी एक इंडियास्पेंड रिपोर्टिंग फेलो हैं।)
यह आलेख मूलत: 28 अक्टूबर 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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