लखनऊ : “जब मंडी बन रही थी तब हम छोटे थे। लेकिन पापा, चाचा और बाबा बात क‍िया करते थे क‍ि मंडी बन जाने के बाद हमारी फसल को बहुत अच्‍छी कीमत म‍िलेगी, हम अपनी फसल सीधे सरकार को बेच पाएंगे। लेकिन अफसोस क‍ि मंडी में कभी खरीद हो ही नहीं सकी।”

“न मंडी शुरू हुई, न हमारे क्षेत्र की स्‍थ‍ित‍ि बदली। काम तो बहुत हुए। लेकिन उसका असर कुछ नहीं हुआ।” उत्तर प्रदेश के ज‍िला हमीरपुर के राठ में रहने वाले 30 साल वर्षीय प्रेम कुमार अब द‍िल्‍ली में एक न‍िजी कंपनी में नौकरी करते हैं और आजकल छुट्टी लेकर अपने गांव आये हैं। वे यह भी कहते हैं क‍ि पूरे बुंदेलखंड में स्पेशल पैकेज से जो भी मंड‍ियां बनीं, उनमें ज्‍यादातर का हाल यही है। हमारे ज‍िले की स्‍थ‍ित‍ि भी यही है।

उत्तर प्रदेश और मध्‍य प्रदेश में फैले बुंदेलखंड क्षेत्र में कुल 13 ज‍िले आते हैं। पानी की कमी वाले इस क्षेत्र की समस्याओं की समाधान के लिए साल 2009 में योजना आयोग (अब नीति आयोग) ने बुंदेलखंड पैकेज की घोषणा की। इसके तहत जल, वन, सिंचाई, पशुपालन, ग्रामीण विकास, कृषि और कृषि बाजार के क्षेत्र में काम, सुधार होना था। आयोग का मानना था क‍ि मंडी बनने से क‍िसानों को उनकी उपज की सही कीमत म‍िलेगी ज‍िससे उनकी स्‍थ‍ित‍ि में सुधार हो सकेगा। इसके लिए विशिष्ट मंडी स्थल और ग्रामीण अवस्थापना केंद्र बनाने का प्रस्ताव रखा गया।

वर्ष 2019 तक उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड के सात जिलों में 625.33 करोड़ रुपये खर्च कर 138 मंडियां बनाई गईं। इनमें जिला स्तर पर 6 और तहसील एवं ब्लॉक स्तर पर 132 ग्रामीण अवस्थापना केंद्र बनाए गए। बांदा में 20, महोबा में 11, चित्रकूट में 16, हमीरपुर में 24, जालौन में 20, ललितपुर में 24 और झांसी में ऐसी 25 मंडियां बनाई गईं। इंडियास्पेंड हिंदी की टीम हमीरपुर, बांदा और महोबा में बनी कुछ मंड‍ियों का मौजूदा स्‍थित‍ि जानने की कोश‍िश की।

ज‍िला हमीरपुर के बिवांर थाना क्षेत्र के धनपुरा गांव में 100 करोड़ रुपये की लागत से व‍िश‍िष्‍ट मंडी का न‍िर्माण वर्ष 2017 में पूरा हुआ था। लेक‍िन अब यह खंडहर जैसा हो गया है। इमारत से खिड़की तक चोरी हो चुकी है। इसके 40-50 क‍िमी के दायरे में दो-दो करोड़ की लागत से उप मंडियां भी बनाई गईं थीं। उनकी स्‍थ‍ित‍ि भी लगभग ऐसी ही है।

बांदा की विशिष्ट मंडी ।

हमीरपुर में सरीला तहसील मुख्यालय से करीब पांच किलोमीटर दूर सरीला-बिवांर रोड पर स्थित ममना गांव में वर्ष 2012 में ग्रामीण अवस्थापना केंद्र बनाने की आधारशिला रखी गई थी। मार्च 2014 में इसका निर्माण भी पूरा हो गया, ज‍िसकी लागत दो करोड़ रुपए से अधिक थी। ज‍िले में ऐसी और 23 मंडियां बनाई गई थीं। पौथ‍िया और छानी मंडी का न‍िर्माण भी इसी समय इतनी लागत में हुई। लेकिन अब इन मंड‍ियों में जंगल-झाड़‍ियां द‍िखती हैं।

पौथ‍िया गांव के किसान संतोष कुमार (56) धान की खेती करते हैं। लेकिन वे आज तक अपनी उपज मंडी में नहीं बेच पाये हैं। वजह पूछने पर बताते हैं, “करोड़ों रुपए खर्च कर हमारे यहां मंडी तो बनी। लेकिन वहां कभी कांटा (उपज की तौल) हो ही नहीं सका। मंडी जाने का रास्ता भी इतना खराब है कि वहां गाड़ी नहीं जा पाती। काश क‍ि मंडी की जगह क‍िसानों के लिए और कोई योजना आयी होती तो शायद उससे कुछ फायदा भी होता।”

बदहाल मंडियां, खाली हाथ क‍िसान

बुंदेलखंड पैकेज से बांदा के पैलानी में दो करोड़ रुपए की लागत से बनी मंडी अब एक दम सूनसान है। मंडी तक पहुंचने वाली सड़क भी खस्‍ताहाल है। प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री अख‍िलेश यादव ने वर्ष 2015 में इस मंडी का उद्घाटन क‍िया था।

2 फरवरी 2015 को पूर्व मुख्‍यमंत्री अख‍िलेश यादव ने पैलानी मंडी का उद्घाटन क‍िया था।

इस मंडी से लगभग 12 क‍िमी दूर कमसिन गांव के ज्ञान सिंह यादव (40) बताते हैं क‍ि मंडी बहुत दूर बना द‍िया गया। वहां पहुंचने का रास्‍ता भी ठीक नहीं है। “मंडी तो बनी इसील‍िए थी क‍ि उससे बुंदलेखंड के क‍िसानों की आय बढ़ेगी। लेकिन मंडी में आज तक खरीदी हुई ही नहीं। शुरू में तो यहां कुछ कर्मचारी भी रखे गये थे। लेकिन अब कोई नहीं रहता।”

“मेरे पास 14 बीघा जमीन है। गेहूं और चना लगाता हूं। मंडी ना होने की वजह से मजबूरी में फसल स्‍थानीय मार्केट के व्‍यापारी या क‍िसी दुकानदार को बेचना पड़ता है। अब उनसे दाम कम म‍िले या ज्‍यादा, हमारे पास दूसरा कोई व‍िकल्‍प है ही नहीं।” ज्ञान आगे कहते हैं।

बांदा स्थि‍त पैलानी मंडी की मौजूदा स्‍थ‍ित‍ि।

महोबा-बांदा रोड पर बांदा ज‍िले में स्‍थ‍ित व‍िश‍िष्ट मंडी स्‍थल की शुरुआत 2015 में हुई थी। लगभग 64 करोड़ की लागत से बनी इस मंडी के आसपास लगभग 35 गांव हैं। लेकिन मंडी में खरीद न के बराबर होती है। मंडी में चारों ओर गोबर का ढेर है। बीच में इसे अस्थायी गोशाला भी बना द‍िया गया था। हालांक‍ि मंडी में एक बैनर लगा है, ज‍िसके अनुसान यहां ज्‍वार, धान की खरीद होती है। फ‍िर यहां क‍िसान क्‍यों नहीं पहुंच रहे हैं?

इस बारे में हमें मंडी के पास ही म‍िले लगभग 55 वर्षीय क‍िसान रामनरेश यादव बताते हैं, “हमारे क्षेत्र में ज्‍यादातर मटर और चने की खेती होती है। कुछ लोग धान, गेहूं लगाते भी हैं तो वह उनके खाने के लिए ही होता है। अब खरीद वाली उपज होगी ही नहीं तो क‍िसान उसे मंडी में बेचेगा कैसे। यही वजह है क‍ि ये मंडी हमारे क‍िसी काम की नहीं है।”

बांदा ज‍िले में स्‍थ‍ित व‍िश‍िष्ट मंडी की तस्‍वीर।

इस समस्‍या को लेकर मंडी के प्रभारी प्रीतम सिंह कुछ भी बोलने से इनकार कर देते हैं। अस्‍थायी गोशाला और खरीद को लेकर वे बताते हैं, “क‍िसानों के न आने की वजह यह है क‍ि यहां आढ़ती नहीं हैं। उनके दुकानें तो हैं। लेक‍िन उनके आवंटन के लिए कोई अब तक आया ही नहीं। इसके लिए हम कई बार प्रयास कर चुके हैं। ऐसे में यहां बहुत खरीद नहीं हो पाती। रही बात गोशाला क‍ि तो अब वह यहां से श‍िफ्ट हो चुकी है।”

महोबा के च‍िचार गांव में बने अवस्‍थापना केंद्र की कहानी में भी कुछ नया नहीं है। इसका बजट भी दो करोड़ रुपए था। चिचार गांव में रहने वाले क‍िसान व‍िजय कुमार (57) बताते हैं क‍ि मंडी में लगे लोहे के दरवाजों और उनमें लगे तालों में जंग लग चुकी है। मंडी बनी। लेकिन कोई क‍िसान यहां अपनी फसल नहीं बेच सका।

करोड़ों रुपये की लागत से बनी इन मंडियों का अब क्‍या होगा, क्‍या ये शुरू हो सकते हैं? इस बारे इंड‍ियास्‍पेंड ने उत्तर प्रदेश कृषि विपणन एवं कृषि विदेश व्यापार निदेशालय के उपनिदेशक डॉ. सुग्रीव शुक्‍ल से बात की।

“तहसील और ब्‍लॉक स्‍तर पर अवस्‍थापना केंद्र बनाने का उद्देश्य ये था कि क‍िसान को उनके गांव के पास ही मंडी म‍िल जाये ताकि उन्‍हें ज्‍यादा मुनाफा हो सके। लेकिन ब‍िना व्‍यापारी मंडी तो चलेगी नहीं। मंडी के व्‍यापारी दूर-दराज के इलाकों में जाना ही नहीं चाहते। इसलिए अवस्‍थापना केंद्र की दुकानों का आवंटन नहीं हो स‍का। जब नया कृष‍ि ब‍िल आया था, तब इस पर बात हुई थी क‍ि इन मंडियों में अनाज की खरीद के लिए प्राइवेट कंपन‍ियों को लाइसेंस द‍िया जाये। लेकिन कानून रद्द होने के बाद ये बात आगे नहीं बढ़ पाई।”

बांदा ज‍िले की व‍िश‍िष्ट मंडी में ज्‍वार खरीद का बैनर।

“रही बात इन मंड‍ियों के भव‍िष्‍य को लेकर तो ये कहना मुश्‍क‍िल है क‍ि ये कब शुरू होंगे। हालांक‍ि कुछ मंड‍ियों का प्रयोग हम दूसरे कामों के लिए कर रहे हैं। यहां अनाज की खरीदी होगी क‍ि नहीं, ये कहना अभी मुश्‍क‍िल है।” डॉ. सुग्रीव बताते हैं।

बांदा किसान नेता राजा मनीष तिवारी मंडी की दूसरी समस्‍याओं की ओर ध्‍यान द‍िलाते हैं। वे कहते हैं, “जो मंड‍ियों चल रही हैं, वे मूलभूत‍ समस्‍याओं से जूझ रहे हैं। बार‍िश के समय मंडी में रखी फसल खराब हो जाती है। बुंदेलखंड पैकेज के तहत बनी मंड‍ियों आधुनिक सुव‍िधाएं हैं। अगर वे चल रही होती तो क‍िसानों को और ज्‍यादा फायदा होता। लेकिन अफसोस क‍ि उन्‍हें शुरू नहीं क‍िया जा सकेगा और आगे शुरू होने की उम्‍मीद भी नहीं है।” शायद इन मंड‍ियों को लेकर राजनीत‍ि भी हुई। राजा अपनी बात खत्‍म करते हैं।

“सच तो यह है क‍ि मंड‍ियों को बनाने से पहले क्षेत्र इस पर ढंग से व‍िचार ही नहीं किया गया। ज‍िस क्षेत्र में मटर की खेती होती है, वहां की बनी मंडी में गेहूं की खरीद होती है। कई जगह तो मंडी ऐसी जगह बना दी गई है ज‍िसके आसपास गांव हैं ही नहीं। मंडी बहुत दूर बना दी गई जबकि इसे गांव के पास बनना था। बजट आया, पानी की तरह पैसा बहा द‍िया गया। लेकिन उसका पर‍िणाम कुछ नहीं आया।” महोबा में रहने वाले क‍िसान और सामाजिक कार्यकर्ता राम बाबू त‍िवारी (35) नाराजगी के लहजे में योजना की क्रियान्वयन पर सवाल उठाते हैं।

अतिरिक्त योगदान- बांदा से मनोज कुमार धूर‍िया