लखनऊ: उत्तर प्रदेश में गन्ना किसान बरसों से एक कुचक्र में फंसे हैं। पहले वह कड़ी मेहनत से फसल उगाते हैं और फिर उसका वाजिब दाम पाने के लिए संघर्ष करते हैं, और उसके बाद बेची हुई फसल के पैसे का महीनों तक इंतज़ार करते हैं। हर साल की तरह इस साल भी गन्ना किसानों के भुगतान का हजारों करोड़ रुपये बकाया है, इस ही के साथ इन किसानों को देर से किये गए भुगतान का ब्याज भी करीब 10 सालों से नहीं मिला है।

उत्तर प्रदेश सरकार के आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि राज्य के किसानों ने इस साल चीनी मिलों को 980.87 लाख टन गन्ना बेचा। रुपये 325 प्रति क्विंटल के हिसाब से बेचे हुए गन्ने की कीमत रुपये 31,878.2 करोड़ होती है। अधिकारियों का कहना है कि इसमें से रुपये 24,582.7 करोड़ का भुगतान 17 जुलाई तक हो चुका है। यानी किसानों की रुपये 7,295.5 करोड़ राशि अभी भी बकाया है।

गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966, के अनुसार, किसानों से गन्ना खरीदे जाने के 14 दिन के भीतर उसका भुगतान हो जाना चाहिए, और अगर भुगतान में देरी होती है तो भुगतान राशि पर लगने वाला ब्याज भी किसानों को अदा किया जाए। 14 दिनों के अंदर भुगतान ना होने की दशा में बकाया राशि पर 15% प्रतिवर्ष की दर से भुगतान में की गयी देरी की अवधि पर किसान को ब्याज देने का प्रावधान है। हालांकि, किसान चीनी मिलों को गन्ना बेचने के महीनों बाद भी भुगतान के लिए तरस रहे हैं।

किसानों की मांग

गन्ना किसान बकाया राशि के तुरंत भुगतान की मांग के साथ 15 जुलाई से लखनऊ में राज्य गन्ना आयुक्त के कार्यालय के बाहर धरना दे रहे हैं। इससे पहले उन्होंने राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के आह्वान पर जिला मुख्यालयों पर धरने दिए। जब किसानों की मांगें पूरी नहीं हुईं, तो उन्होंने लखनऊ कूच किया।


राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष सरदार वीएम सिंह ने इंडियास्पेंड से हुई बातचीत में कहा, "योगी जी ने चुनाव से पहले किसानों की हालत देखते हुए कहा था, 'वह किसानों की सभी समस्याएं दूर करेंगे, किसानों के गन्ने का भुगतान 14 दिनों के अंदर होगा और अगर भुगतान में 14 दिन से अधिक समय लगता है, तो ब्याज के साथ भुगतान किया जाएगा,' लेकिन योगी सरकार को साढ़े चार साल हो चुके हैं। ब्याज तो बहुत दूर की बात है, 14 दिनों के अंदर भुगतान नहीं हो पा रहा है।"

ऑल इंडिया किसान सभा, उत्तर प्रदेश (एआईकेएस) के सचिव मुकुट का कहना है कि बकाया गन्ना भुगतान के जो आंकड़े उत्तर प्रदेश सरकार बता रही है, हकीकत में यह रकम उससे कहीं ज्यादा है, यह वास्तव में लगभग रुपये 20 हजार करोड़ है।

एआईकेएस भी भुगतान में हो रही देरी के लिए राज्य में विरोध प्रदर्शन कर रही है और राज्य सरकार से मांग कर रही है कि जल्द से जल्द भुगतान हो और लेट पेमेंट पर जो ब्याज बनता है, वह भी किसानों को तुरंत दिया जाए।

कोरोना महामारी का असर

उत्तर प्रदेश में गन्ना किसान हमेशा भुगतान में देरी झेलते आए हैं। किसान संगठनों का कहना है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद ना तो भुगतान समय पर होता है और ना ही बीते दस साल में भुगतान में देरी होने पर उन्हें ब्याज दिया गया है।

गन्ना उत्पादन के लिहाज से उत्तर प्रदेश भारत में पहले स्थान पर आता है और राज्य के बहुत से किसानों के लिए गन्ना ही आमदनी का मुख्य जरिया है। लेकिन जब फसल का भुगतान समय पर नहीं हो पाता है तो कई किसान कर्ज के जाल में फंस जाते हैं।

बच्चों की पढ़ाई लिखाई, परिवार के सदस्यों के इलाज या फिर बच्चों की शादी के लिए वे साहूकारों से कर्ज लेने को मजबूर हो जाते हैं। यही नहीं, कई बार तो उन्हें फसल लगाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ता है।

दो साल पहले केन कमिश्नर ने कोर्ट में एफिडेविट दिया, "हम किसानों का ब्याज दिला देंगे," लेकिन अभी तक किसानों को कोई ब्याज नहीं मिला। कारण पूछने पर बताया गया है कि कोरोना के कारण ऐसा संभव नहीं है।

सरदार वीएम सिंह कहते हैं कि कोरोना की मार किसानों पर भी पड़ी है और उन्हें भी पैसे की बहुत जरूरत है। उन्होंने बताया, "इस साल का किसानों का लगभग रुपये 10 से 11 हजार करोड़ बकाया है और पिछले 10 सालों का ब्याज लगभग रुपये 8 हजार करोड़ है।"

उन्होंने सरकार को सुझाव दिया कि केंद्र सरकार किसानों का पैसा दे दे और जब मिल मालिकों के पास चीनी बेच कर पैसा आ जाए, तो वे सरकार को वापस कर दें।

गन्ने की राजनीति

उत्तर प्रदेश के एक बड़े हिस्से में गन्ने की खेती ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार है। इसलिए फसल के दाम और समय पर उसका भुगतान चुनावों में राजनीतिक मुद्दा भी बनते हैं। बावजूद इसके बीते चार साल में गन्ने के दाम प्रति क्विंटल रुपये 10 बढ़े हैं।

बीते दो दशकों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के छह साल के अलग अलग कार्यकालों में गन्ने के दाम रुपये 20 बढ़े, वहीं समाजवादी पार्टी ने आठ साल के कार्यकाल में रुपये 95 की वृद्धि की और बहुजन समाज पार्टी ने सात साल के कार्यकाल में दामों में रुपये 120 का इजाफा किया।

उत्तर प्रदेश में मौजूदा योगी सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था, लेकिन किसान नेता बीते चार साल में गन्ने के दामों में सिर्फ रुपये 10 की वृद्धि का हवाला देते हुए इस वादे पर सवाल उठाते हैं।

काफी समय से किसान और किसान संगठन गन्ने की खेती में लागत बढ़ने के कारण खरीद मूल्य को रुपये 450 करने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि बीते कुछ सालों में डीजल, बिजली, मजदूरी और खाद के दामों में काफी बढ़ोतरी हुई है।

पिराई सत्र 2020-21 में केंद्रीय कृषि मंत्रालय के कृषि लागत और मूल्य आयोग के आंकड़ों में उत्तर प्रदेश के अनुसार गन्ने में आने वाली समूची यानी सी2 लागत आंकड़ों रुपये 304 प्रति क्विंटल आंकी गई। सी2 में लागत की 50% की वृद्धि जोड़कर रुपये 456 प्रति क्विंटल मूल्य होता है लेकिन राज्य सरकार की ओर से सामान्य वर्ग के गन्ने का मूल्य इस साल प्रति क्विंटल रुपये 325 तय किया गया था।

"खोखले वादे"

एआईकेएस के सचिव मुकुट उत्तर प्रदेश सरकार को किसान विरोधी बताते हैं। वह कहते हैं, "2017 के विधानसभा चुनाव से पहले जो भी वादे किए गए, वे सभी जुमले साबित हुए हैं, चाहे वह किसानों की कर्ज माफी हो, या फिर किसानों की आय दोगुनी करने का वायदा हो। कर्ज की सिर्फ मूल रकम को माफ किया गया जबकि उस पर लगने वाला ब्याज मूल राशि से भी ज्यादा था, उसे किसानों को चुकाना पड़ा."

लखनऊ में गन्ना आयुक्त पर धरना दे रहे किसानों का कहना है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, उनका प्रदर्शन जारी रहेगा। अगले साल फिर राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसलिए योगी सरकार को गन्ना किसानों की समस्या का समाधान खोजना होगा।

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