चेन्नई: कहानी उत्तर-मध्य तमिलनाडु की है जहां बिजली की अघोषित कटौती और आए दिन वोल्टेज के उतार-चढ़ाव से परेशान होकर सेलम जिले के किसान पी. भास्करन ने संस्थागत ऋण लिया और 2013 में सौर ऊर्जा से चलने वाला पंप स्थापित किया। इस सोलर पम्प ने उनकी सिंचाई संबंधी जरूरतों को बड़े आराम से पूरा कर दिया। इंडियास्पेंड से बातचीत में भास्करन बताते हैं, बावजूद इसके मुझे लोन चुकाने में 8 साल लग गए। वजह दो फसल बर्बाद हो गईं और लोन अत्यधिक ब्याज दर पर था। इससे मैंने सोलर पम्प की लागत से करीब दोगुना भुगतान किया।

भास्करन की तरह अन्य किसान भी खेती की सिंचाई में डीजल संचालित पम्प का इस्तेमाल करते हैं। ऐसा वह सुचारू बिजली आपूर्ति न होने की वजह से करते हैं। भास्करन की तरह उन्हें भी सोलर पम्प की लालसा है जिसका संचालन और रखरखाव इन पम्पों की अपेक्षा बेहद कम है और वो ये भी जानते हैं कि ये डीजल की अपेक्षा ज्यादा स्वच्छ और अक्षय ऊर्जा के स्त्रोत हैं। वो बताते हैं कि इसमें सबसे बड़ी बाधा इसकी कीमत है। जब एक कृषक परिवार की मासिक आय 10,218 रुपए हो और उस पर औसतन 74,121 रुपए का कर्ज हो तो वह कैसे क्षमता अनुरूप 2.42 लाख से 4.59 लाख रुपए के बीच का पम्प खरीद सकता है।

राज्य और केंद्र दोनों सरकारें कृषि के लिए सोलर पंप स्थापित करने के लिए न्यूनतम 30% की सब्सिडी प्रदान करती है। बाकी का भुगतान किसानों को करना होता है। कुछ राज्य सरकारें, जैसे तमिलनाडु, 30% से अधिक की सब्सिडी प्रदान करती हैं। फिर भी, भास्करन के साथी किसान कहते हैं कि अगर उन्हें सब्सिडी वाला पंप मिल भी जाता है, तो उनके लिए अपना हिस्सा लगाना मुश्किल होगा। तमिलनाडु में लगभग 92% किसान सीमांत या छोटे हैं, यानी उनके पास 2 हेक्टेयर (लगभग 5 एकड़) से कम भूमि है। पूरे भारत की बात करें तो 88% किसान सीमांत या छोटे हैं। किसान कहते हैं चूंकि आवंटन की तुलना में मांग काफी अधिक है सो सब्सिडी वाले सोलर पंप के लिए इंतजार सालों तक बढ़ सकता है।

कई किसानों ने हमें बताया, एकमुश्त कीमत देकर सोलर पंप खरीदना मुश्किल है, क्योंकि न तो बैंक और न ही माइक्रो फाइनेंस संस्थान सोलर पंप जैसी संपत्ति के लिए लोन देते हैं। जबकि कृषि लोन के साथ सोलर पंप खरीदना एक विकल्प है, इसके लिए गारंटी की जरूरत होती है, जो कि अधिकांश किसानों के लिए नामुमकिन है क्योंकि वो पहले से ही कर्ज में डूबे होते हैं। कृषि इनपुट फाइनेंसिंग ऑपरेटरों ने इंडियास्पेंड को बताया कि पीयर-टू-पीयर प्लेटफॉर्म (पी2पी) के माध्यम से क्राउड फाइनेंस लोन जैसे वैकल्पिक फंडिंग मॉडल वित्तपोषण के अंतर को भर सकते हैं। क्राउड फाइनेंसिंग मॉडल यूरोप में पहले ही सफल हो चुका है और दिल्ली में रूफटॉप सोलर प्रोजेक्ट के साथ भारतीय रिजर्व बैंक इसे और सुगम बनाने में जुटा है। कई लोग और निवेशक किसानों के कल्याण के लिए तत्पर हैं, ऐसे में लोन के लिए क्राउड फंडिंग मॉडल बेहतरीन साबित हो सकता है। इससे किसानों को दोहरा लाभ मिल सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि एक तो किसानों को अपने सोलर पम्प खरीदने के लिए वित्त संबंधी दिक्कतों से जूझना नहीं पड़ेगा और दूसरा सरकार पर सोलर पंप और कृषि शक्ति की निर्भरता खत्म हो जाएगी।

डीजल के मुकाबले प्रदूषण रहित विकल्प है सोलर सिंचाई पम्प

भास्करन ने ये भी बताया कि भारत में खेती के लिए प्रयोग में लाए जा रहे ज्यादातर पम्प सेट बिजली संचालित हैं, लेकिन ये भी सच है कि ज्यादातर राज्यों में किसान अनियमित बिजली आपूर्ति की समस्या झेलते हैं, दिन के मुकाबले बिजली आपूर्ति रात को ज़्यादा अनियमित हो जाती है। इस सच्चाई की तस्दीक गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी ने जनवरी 2021 में अपने एक बयान में की थी। उन्होंने कहा था कि किसान दिन में सुचारू बिजली आपूर्ति चाहते हैं क्योंकि वह रात के वक्त सिंचाई को जोखिम भरा मानते हैं।

दक्षिणी तमिलनाडु के मदुरै जिले के किसान सुरेश बाबू ने इंडियास्पेंड को बताया - ऐसे बहुत से किसान हैं जो इस तरह की बिजली आपूर्ति संबंधी समस्या से निपटने के लिए डीजल पम्प लगवाते हैं। जो किसान डीजल पंप का खर्चा नहीं उठा सकते वो वर्षा आधारित एकल फसल ही उपजाते हैं। डीजल की बढ़ती खुदरा कीमतों ने किसानों की इनपुट कॉस्ट में जबरदस्त वृद्धि कर दी है, जिससे कृषि आय प्रभावित हुई है। इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी हो रहे हैं जैसा कि इंडियास्पेंड ने जुलाई 2021 की रिपोर्ट में बताया भी था। तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में डीजल की कीमतों में 21 मार्च, 2022 से 4% तक की बढ़ोतरी हुई है।

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) द्वारा जारी एक पुस्तिका, पीएम कुसुम - एक नई हरित क्रांति, के अनुसार, भारत में 3 करोड़ कृषि पंपों में से लगभग 80 लाख (26.5%) डीजल पंप हैं। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के आंकड़ों के अनुसार, 2014 के बाद से भारत में ये देखा गया कि सोलर पम्प का सिंचाई के लिए अन्य पम्पों के मुकाबले ज्यादा इस्तेमाल होने लगा है और इसके साथ ही इलेक्ट्रिक पंपों के उपयोग में आनुपातिक कमी आई है, जबकि डीजल पंपों की हिस्सेदारी 2010 से स्थिर बनी हुई है। एमएनआरई पीएम-कुसुम पुस्तिका के अनुसार, इन डीजल पंपों से सालाना 15.4 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।


कृषि की बढ़ती बिजली सब्सिडी

हमने जिन किसानों से बात की, उनका आरोप है कि उन्हें अनियमित बिजली आपूर्ति इसलिए मिलती है क्योंकि या तो ये नि:शुल्क होती है या फिर इस पर सब्सिडी मिलती है। नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर तमिलनाडु बिजली बोर्ड (टीएनईबी) के एक अधिकारी ने इंडियास्पेंड को बताया, "ऐसा नहीं है...लेकिन एक सच्चाई ये भी है कि दिन के समय बिजली की प्राथमिकता घरेलू और वाणिज्यिक उपभोक्ताओं के लिए आपूर्ति की होती है।"

तमिलनाडु में किसानों को 22 लाख कृषि पंपसेट के लिए मुफ्त बिजली प्रदान की जाती है। हालांकि, कृषि जनगणना, 2015-16 के अनुसार, राज्य में लगभग 79 लाख परिचालन भूमि जोत हैं। आंध्र प्रदेश सरकार प्रतिदिन 18.4 लाख कृषि पंपों को 9 घंटे मुफ्त बिजली की आपूर्ति करती है, लेकिन राज्य में 85.2 लाख परिचालन होल्डिंग्स हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि कुछ ही किसानों को मुफ्त बिजली मिलती है। इस प्रकार, भले ही किसान दिन के समय बिजली के बिना संघर्ष करते हैं, सरकारें कृषि बिजली सब्सिडी पर हजारों करोड़ खर्च करती हैं। तमिलनाडु ने 2021-22 में टीएनईबी (TNEB) के लिए कृषि बिजली सब्सिडी के रूप में 4,508.23 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। हरियाणा सरकार ने 2019-20 में कृषि बिजली सब्सिडी पर 6,878.40 करोड़ रुपये और पिछले वर्ष पंजाब ने 4,740.14 करोड़ रुपये खर्च किए। एमएनआरई पीएम-कुसुम बुकलेट के अनुसार, देश भर में कृषि बिजली सब्सिडी 2018-19 तक सालाना एक लाख करोड़ रुपये थी। यह 2022-23 के लिए एमएनआरई के लिए केंद्रीय बजट आवंटन का 3.5 गुना है।

सरकारी सब्सिडी योजना के तहत आवंटित सोलर पंप मांग से कोसों दूर

अनियमित बिजली आपूर्ति और डीजल उत्सर्जन दोनों मुद्दों को हल करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण के अपने प्रयासों से केन्द्र सरकार विभिन्न योजनाओं के माध्यम से सौर ऊर्जा को बढ़ावा दे रही है। इनमें सबसे नवीनतम, किसानों की ऊर्जा सुरक्षा के लिए एक सब्सिडी कार्यक्रम है जो मार्च 2019 में प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान पीएम-कुसुम नाम से शुरू किया गया था।

केंद्र सरकार की तीन-घटकों में से एक पीएम-कुसुम योजना के घटक-बी (आमतौर पर कुसुम-बी के रूप में संदर्भित) के तहत 31 दिसंबर, 2022 तक 20 लाख व्यक्तिगत, स्टैंड-अलोन सोलर पंप स्थापित करने की योजना है। कुसुम बी का लक्ष्य कृषि क्षेत्र को डीजल मुक्त करना है और किसानों या किसानों के संघों को केंद्रीय वित्तीय सहायता (सीएफए) के साथ नए सोलर पंप स्थापित करने या सोलर पंपों के साथ 7.5 अश्वशक्ति (एचपी) क्षमता के पुराने डीजल पंपों को बदलने की अनुमति देता है। इसमें अधिकांश राज्यों के लिए 30%, कुछ छोटे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 50% और राज्य सरकारों के योगदान का 30% (कुछ राज्यों में अधिक) शामिल है। कुसुम-बी के लिए, 2020-21 में सरकार ने 15,912 करोड़ रुपये का सीएफए आवंटित किया था।

सीएफए और राज्य सरकार की सब्सिडी की सीमा के आधार पर किसान को लागत का 40% तक का खर्चा खुद उठाना पड़ता है। साल 2019 में ग्रामीण भारत एसएएस सर्वेक्षण किया गया। ये कृषि परिवारों और भूमि और पशुधन की स्थिति के आंकलन के निष्कर्षों के आधार पर हुआ था। इसमें बताया गया कि 2018-19 में 10,218 रुपये की औसत मासिक आय के साथ, ऐसे कुछ ही कृषक परिवारों के पास अतिरिक्त आय है जिसे वो व्यय कर सकते हैं। इंडियास्पेंड ने सितंबर 2021 की रिपोर्ट में बताया है कि भारत के आधे कृषि परिवार (50.2%) औसत बकाया ऋण के साथ लगभग 74,000 रुपये के कर्ज में डूबा हुआ था। यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए कोविड-19 महामारी के आर्थिक झटके से पहले का है।

यदि सोलर पंपों के प्रतिस्थापन के लिए सिर्फ डीजल पंपों पर विचार किया जाता है तो कुसुम-बी के तहत आवंटित 20 लाख पम्प असल जरूरत का केवल एक-चौथाई है। मार्च 2019 में पीएम-कुसुम योजना की शुरुआत हुई और इसके लक्ष्य की तिथि 31 दिसंबर, 2022 में करीब नौ महीने का ही समय बचा है लेकिन अब तक निर्धारित 20 लाख पंपों में से केवल 18% को ही मंजूरी दी गई है, इनमें से एक चौथाई से भी कम स्थापित किए गए हैं।


डीजल या बिजली पर बचत से सोलर पंप लागत की भरपाई

सोलर पंपों को और बढ़ावा देने के लिए कुछ राज्यों ने सब्सिडी में अपना हिस्सा बढ़ाया है। तमिलनाडु सरकार ने अपने कुसुम-बी सब्सिडी योगदान को बढ़ाकर 40% कर दिया, जिससे किसान की हिस्सेदारी 40% से 30% तक कम हो गई। अपने 2021-22 के बजट में, हरियाणा सरकार ने घोषणा की थी कि 50,000 ऑफ-ग्रिड सोलर पंप 75% सब्सिडी के साथ स्थापित किए जाएंगे, इसमें राज्य का योगदान 45% होगा।

तमिलनाडु में, कुसुम-बी सोलर पंप के लिए, पंप क्षमता और उसके प्रकार के आधार पर एक किसान का योगदान 70,000 रुपये से 1.5 लाख रुपये तक होता है। तटीय तमिलनाडु के नागपट्टिनम जिले के एक किसान बी. सरवनन के लिए अपने हिस्से का भुगतान आसान नहीं था। उन्होंने 2018 में तमिलनाडु की पूर्व-कुसुम 90% सब्सिडी योजना के तहत 7.5 एचपी का सोलर पंप स्थापित कराया। उन्होंने कहा, "उस सब्सिडी के बिना, या यहां तक कि वर्तमान सब्सिडी के साथ, जहां मेरा योगदान 1 लाख रुपये से अधिक होगा, मैं सोलर पंप स्थापित नहीं कर सकता था।"

सरवनन जैसे कई छोटे और सीमांत किसानों के लिए, सब्सिडी योजना में उनका योगदान भी एक वित्तीय बोझ है। लेकिन उनमें से कई किसानों का कहना है कि वे सोलर पंपों के साथ अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर होना चाहते हैं। वे डीजल पंपों से होने वाले प्रदूषण से भी बचना चाहते हैं। किसान बिजली की आपूर्ति और डीजल पर न होने वाले खर्च को सोलर पंपों लगाने के फायदों के रूप में देखते हैं।

चेन्नई स्थित सौर ऊर्जा कंपनी सनएडिसन में पॉलिसी एंड एकवोकेसी हेड सेलना साजी ने इंडियास्पेंड को बताया, "यदि पीएम-कुसुम सब्सिडी 60% पर उपलब्ध है और अगर डीजल पंप के उपयोग को लगभग 150 घंटे या उससे अधिक समय तक टाला जाता है तो किसानों को लाभ होगा।" एमएनआरई पीएम कुसुम बुकलेट के अनुसार, मौजूदा डीजल पंपों को सोलर पंपों में बदलने से 5 एचपी पंप के लिए सिंचाई की लागत लगभग 50,000 रुपये प्रति वर्ष कम हो जाएगी। साजी ने कहा, "जितना अधिक डीजल के उपयोग से बचा जाता है, उतना ही अधिक लाभ होता है। 5 एचपी सोलर पंप के लिए यदि डीजल पंप के उपयोग को 300 घंटे के लिए टाला जाता है, तो शुरुआती निवेश का भुगतान 2-3 साल में हो जाएगा। इसमें 30% से अधिक का रिटर्न (Internal rate of return) होगा।''

दक्षिण तमिलनाडु में विरुधुनगर जिले के के. सोमू ने कृषि बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन किया। उन्हें पता चला कि बिजली का शुल्क 3.5 रुपये प्रति यूनिट होगा क्योंकि कई किसानों के नि:शुल्क बिजली के लिए आवेदन कई वर्षों से लंबित हैं। सोमू को पता चला कि अपने खेत तक बिजली लाइन लाने पर उसे लगभग 1 लाख रुपये की अतिरिक्त कीमत चुकानी होगी। फिर सोमू ने एक सोलर पंप स्थापित कर लिया।

साजी ने कहा, "सोमू जैसे किसानों को 3.5 रुपये प्रति यूनिट बिजली का भुगतान करना आसान नहीं था। इसके अलावा इस मद में उसे अतिरिक्त भुगतान भी करना होता। ऐसे में वो अगर इलेक्ट्रिक पम्प के बजाए सोलर पंप का प्रयोग करेगा तो उसे अतिरिक्त बचत भी तो होगी। यह फिर से बिजली पंप के उपयोग से बचने के घंटों पर निर्भर करेगा।"

वित्तीय अंतर को भरना होगा

जिन किसानों से हमने बात की, उनमें से अधिकांश ने कहा कि वे बिना सब्सिडी वाले पंप नहीं खरीद सकते हैं। इन पम्पों की लागत 1 एचपी पंप के लिए लगभग 1.20 लाख रुपये से अधिक है, जिसमें इनका इंस्टॉलेशन भी शामिल है। उन्होंने यह भी कहा कि बैंक लोन की ब्याज दरें अधिक हैं और अगर कुछ बैंक ब्याज दरों को कम करते भी हैं तो अन्य शुल्क बढ़ा देते हैं और वो चुकाने के लिए हमें संघर्ष करना पड़ता है।

नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर नाबार्ड के एक अधिकारी ने इंडियास्पेंड को बताया कि नाबार्ड पीएम कुसुम योजना केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा नियंत्रित होती है। चूंकि इसमें सार्वजनिक क्षेत्र का राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक शामिल नहीं है, सो ये बैंक सोलर पंपों के मद में फंड भी नहीं जारी करता है। तमिलनाडु ग्राम बैंक के अधिकारियों ने भी इंडियास्पेंड को बताया कि उन्होंने कुछ साल पहले राज्य सरकार के पीएम-कुसुम से पहले की योजनाओं के सब्सिडी कार्यक्रम के दौरान ही सोलर पंपों के लिए ऋण दिया था।

तमिलनाडु में सौर समाधान प्रदाता वेणुगोपाल ने इंडियास्पेंड को बताया, "फसल ऋण के अलावा एक किसान को बिना जमानत के ऋण नहीं मिल सकता है। इसलिए, कुछ किसानों ने अपने फसल ऋण का उपयोग सोलर पंप खरीदने के लिए किया है।" तमिलनाडु ग्राम बैंक के एक अधिकारी इस बात से सहमति जताते हुए कहते हैं कि फसल ऋण की सीमा 1.6 लाख रुपये है। सोमू ने अपनी 1 एकड़ जमीन पर 2 लाख रुपये खर्च कर 2 हॉर्स पावर का सोलर पंप लगाया। एक इंजीनियर से किसान बना सोमू इसका भुगतान कर सकता था, लेकिन बड़ी भूमि वाले किसानों के लिए फसल ऋण पर्याप्त नहीं होगा।

कृषि ग्रामीण ऋण और माइक्रोफाइनेंस सेक्टर में व्यापक अनुभव के साथ हैदराबाद के एक सलाहकार इमैनुएल मरे ने इंडियास्पेंड को बताया, "गैर-बैंकिंग वित्तपोषण कंपनियां किसानों को ऋण की पेशकश कर सकती हैं।" लेकिन जिन माइक्रोफाइनेंस संस्थानों से हमने संपर्क किया, उन्होंने कहा कि उन्होंने केवल महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को ही माइक्रो क्रेडिट दिया है। कुछ पीयर-टू-पीयर (पी2पी) ऋणदाता जो एक को छोड़कर, उधारदाताओं और उधारकर्ताओं को एक साथ लाने के लिए वेब-आधारित प्लेटफॉर्म प्रदान करते हैं, ने कहा कि वे केवल शहरी क्षेत्रों में काम करते हैं।

तमिलनाडु के नागपट्टिनम जिले के एक किसान धनपाल ने इंडियास्पेंड को बताया, "किसानों की ऋण योग्यता को हमेशा कम माना जाता है। शायद इसीलिए पी2पी ऋणदाता ग्रामीणों को उधार नहीं देते हैं।"

वैकल्पिक फंडिंग मॉडल

हार्वेस्टिंग फार्मर नेटवर्क के संस्थापक सीईओ रुचित गर्ग ने इंडियास्पेंड को बताया कि एक सहकारी मॉडल जो गुजरात के खेड़ा जिले में धुंडी सोलर कोऑपरेटिव के समान ही काम करेगा। वहां किसानों का एक समूह पम्प का मालिक है और उन्हें संचालित करता है। (धुंडी मॉडल की व्याख्या करते हुए हमारी जून 2017 और जून 2021 की कहानियां पढ़ें) हालांकि, कई किसानों ने हमें बताया कि वे व्यावहारिकता के अलावा विभिन्न कारणों से अपने स्वयं के पंपों को पसंद करते हैं।

एक मॉडल के तहत जहां एक एजेंसी किसानों को निवेशकों से जोड़ती है, वह 2016 से चेन्नई में काम कर रही है। चेन्नई स्थित कंपनी आई सपोर्ट फार्मिंग कृषि में रुचि रखने वाले शहरी लोगों से एडवांस के रूप में धन एकत्र करती है। आईएसएफ के सह-संस्थापक वसंत कुमार ने इंडियास्पेंड को बताया, "आईएसएफ उन किसानों के लिए जिनके पास इन इनपुट को खरीदने के लिए वित्तीय संसाधनों की कमी है के लिए कृषि इनपुट खरीदने के लिए एडवांस का उपयोग करता है और फसल के बाद के विपणन में भी मदद करता है। इन किसानों को व्यापक परिश्रम के बाद चुना जाता है। मुनाफे को आईएसएफ, शहरी निवेशकों और किसानों के बीच विभाजित किया जाता है।"

हालांकि आई सपोर्ट फार्मिंग केवल एक अग्रिम राशि लेता है और ऋण नहीं, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के नियमों के तहत आई सपोर्ट फार्मिंग P2P उधार पर केवल अग्रिम राशि लेता है, कोई लोन नहीं लेता। आईएसएफ P2P प्लेटफ़ॉर्म 'रंग दे' के माध्यम से दोनों पक्षों उधारदाताओं और उधारकर्ताओं के बीच बातचीत करने के बाद किसानों के लिए वित्तीय सहायता की व्यवस्था करता है. वसंत कुमार ने कहा, "ऐसा इसलिए है क्योंकि आरबीआई के दिशा निर्देशों में निर्दिष्ट पी2पी ऋणदाता के साथ, निवेशकों को अपना पैसा वापस न मिलने के जोखिम को अच्छी तरह से जानता है।" हालांकि, रंग दे जैसे पी2पी प्लेटफॉर्म सीधे व्यक्तियों को उधार नहीं देते हैं। नाम न बताने की शर्त पर रंग दे के एक कार्यकारी ने कहा, "हम केवल एक एसएचजी या गैर-सरकारी संगठन के माध्यम से उधार देते हैं।" हालांकि, उन्होंने किसानों के लिए एक ब्याज मुक्त ऋण अभियान का हवाला दिया, जो उन्होंने निवेशकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया के कारण 18 महीने तक चलाया, ताकि कृषि में निवेशकों की रुचि को इंगित किया जा सके। रंग दे एक्जीक्यूटिव ने कहा, "हमारा लक्ष्य क्रेडिट-अस्वीकृत समुदाय है और इसलिए हमारा ब्याज न्यूनतम 4% और अधिकतम 10% है, जबकि स्थानीय ऋणदाता 20% से 60% तक चार्ज करते हैं।"

धनपाल ने बताया कि सभी किसानों को ऋण से वंचित नहीं किया जा सकता है। हममें से अधिकांश ने पहले ही खेती के लिए अपनी संपत्ति गिरवी रख दी है और इसलिए हमारे पास जमानत के रूप में दिखाने के लिए कुछ भी नहीं होता है और ऋण प्राप्त करना आसान नहीं होता है। हां, रंग दे के माध्यम से आईएसएफ जरूर सोलर पंप ऋण की व्यवस्था कर सकता है, लेकिन ये मंच 1.5 लाख रुपये पर ही ऋण देता है, वह भी दुर्लभ मामलों में। वसंत कुमार ने कहा, रिज़र्व बैंक ने एक उधारकर्ता की सीमा 10 लाख रुपये रखी है, इसलिए P2P प्लेटफॉर्म पर काम किया जा सकता है।"

क्राउड फाइनेंसिंग लोन के रास्ते सब्सिडी बोझ को कम कर सकता है किसान

दिल्ली स्थित थिंक टैंक शक्ति सस्टेनेबल एनर्जी फाउंडेशन द्वारा 2014 के व्यवहारिक विश्लेषण में कहा गया है कि उच्च पूंजी लागत को देखते हुए किसानों द्वारा अल्प अवधि के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाले पंपों को स्थापित करने में तो सब्सिडी महत्वपूर्ण है, लेकिन लंबी अवधि के लिए यह टिकाऊ नहीं है।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह वह जगह है जहां क्राउडफंडिंग या क्राउडफाइनेंस से फर्क पड़ सकता है। साल 2020 में प्रकाशित एशियन ब्यूरो ऑफ फाइनेंस एंड रिसर्च पेपर के अनुसार, यूरोप और अमेरिका में बुनियादी ढांचे और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं का क्राउड फाइनेंसिंग वैकल्पिक वित्तपोषण का एक लोकप्रिय तरीका बनता जा रहा है, लेकिन एशिया में इसका उपयोग सीमित तौर पर ही हो रहा है। क्राउडफंडिंग बड़ी संख्या में व्यक्तियों से छोटी राशि, चाहे वह दान के रूप में हो या ऋण के रूप में, धन जुटाने का एक तरीका है।

क्राउडफंडिंग भारत में तेजी से आगे बढ़ता एक मॉडल है। सामुदायिक सोलर पंप स्थापित करने वाली कंपनी ऊर्जा ने 2019 में असम में एक परियोजना के लिए क्राउडफंडिंग से धन जुटाया था। अक्टूबर 2021 में, दिल्ली स्थित कंपनी ओकरिज एनर्जी ने रूफटॉप सोलर प्रोजेक्ट के लिए जर्मन क्राउड फाइनेंसर्स से धन जुटाया था। निर्वाण फाउंडेशन जैसे अन्य प्लेटफॉर्म सोलर क्राउडफंडिंग में कंपनियों और निवेशकों के मकसद को पूरा करने के लिए मौजूद हैं।

क्या इसी तरह के क्राउडफंडेड लोन व्यक्तिगत तौर पर उधारकर्ताओं को देने के उद्देश्य से किसानों को सोलर पंप स्थापित करने में मदद कर सकते हैं? मरे ने कहा, किसी व्यक्ति को सीधे पैसा देना और पैसे वापस लाना एक चुनौती भरा काम है। लेकिन वसंत कुमार कहते हैं कि आईएसएफ, रंग दे और ऐसे अन्य प्लेटफार्मों में सभी की जांच करने के लिए एक उचित प्रक्रिया है। हमारे मौजूदा मॉडल में आईएसएफ एडवांस के तौर पर धन एकत्र नहीं कर सकता क्योंकि सोलर पंप को एक इनपुट नहीं बल्कि एक निश्चित संपत्ति माना जाता है। लेकिन किसानों की मांग के आधार पर आईएसएफ थोड़ा नरम रुख अपनाकर ऐसा कर सकता है। क्राउडफंडिंग संभव हो सकता है।

निर्यात उद्योग में किसानों से मूल्य संवर्धित जैविक उत्पाद प्राप्त करने वाले चेन्नई के एक व्यापारी एस. कुमार ने इंडियास्पेंड से बाचतीत में बताया कि क्राउडफंडेड दान की कोई सीमा नहीं होती है। हमें दान नहीं करनी चाहिए। मुफ्त में दी गई कोई भी चीज अपना मूल्य खो देती है। इसलिए हम कम या बिना ब्याज वाला क्राउडफंडेड लोन दे सकते हैं। कुमार कहते हैं, आखिर क्यों न क्राउड फाइनेंसिंग को आसान बनाया जाए ताकि इच्छुक लोग पैसे उधार दे सकें और किसानों को सोलर पंप लगाने में मदद कर सकें। आखिरकार, इतने सारे लोग किसानों के कल्याण में रुचि जो रखते हैं।

चेन्नई स्थित एक एडवोकेसी संगठन, सिटीजन कंज्यूमर एंड सिविक एक्शन ग्रुप (CAG) के वरिष्ठ शोधकर्ता विष्णु मोहन राव ने सुझाव दिया कि सोलर पंपों को एक कृषि इनपुट भी माना जाता है लिहाजा प्रोपर्टी के एवज में लोन को आसान बनाया जा सकता है।

क्राउडफंडिंग एक व्यवहारिक समाधान है। राव ने कहा, "आरबीआई को सामाजिक समानता के दृष्टिकोण को ध्यान में रखना चाहिए और क्षेत्रीय ऋण देने की सुविधा प्रदान करना चाहिए क्योंकि खेती में जोखिम बहुत ज्यादा है। अगर हम कृषि जोखिमों को कम कर सकते हैं या दूर कर सकते हैं तो क्राउडफंडेड लोन एक बेहतर रास्ता हो सकता है। इससे हम कार्बन मुक्त, टिकाऊ खेती की सुविधा भी प्रदान कर सकते हैं। सौलर पंप ग्रिड से स्वतंत्र होंगे, और इस प्रकार सरकार भी कृषि बिजली सब्सिडी के तौर पर दिए जाने वाले बहुत सारे पैसे बचा सकती है।