यूपी की 'रिकॉर्ड' गेहूं खरीद के बावजूद भी क्यों परेशान हैं किसान
उत्तर प्रदेश सरकार गेहूं के अनुमानित उत्पादन की मात्र 14.4% खरीद ही कर पाई है और किसानों का रुपये 461 करोड़ भुगतान भी अभी बाकि है।
बिजनौर:कोरोना की दूसरी लहर और उसके चलते उत्तर प्रदेश में लगाए गए लॉकडाउन से राज्य की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है। इसकी सबसे गहरी चोट प्रदेश के किसानों पर पड़ी है। इसका सबसे ताजा उदाहरण हाल ही में समाप्त हुई गेहूं खरीद है। जब इंडियास्पेंड ने गेहूं खरीद के सरकारी आंकड़ों और ग्राउंड की स्थिति का विश्लेषण किया तो पता चला कि राज्य में किसानों को लॉकडाउन के चलते अपनी फसल को बेचने में काफी दिक्कतों जैसे रजिस्ट्रेशन की जटिल प्रक्रिया, क्रय-केंद्रों का बंद होना और भुगतान में लम्बी देरी का सामना करना पड़ा है।
जून के पहले हफ्ते में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के किसानों को आश्वस्त करते हुए ये ऐलान किया था कि जब तक उनकी सरकार किसानों से गेहूं का हर दाना खरीदेगी। लेकिन प्रदेश में गेहूं की खरीद की प्रक्रिया के ख़तम होने के बाद भी कई किसान ऐसे हैं जो खुले बाज़ार में अपनी फसल को बेचने पर मजबूर हैं।
लॉकडाउन और पंजीकरण की जटिल प्रक्रिया के कारण अधिकांश किसान क्रय-केन्द्रों तक ही नहीं पहुंच पाये।ताजा आंकड़ों की बात करें तो गेहूं क्रय-केंद्रों पर पंजीकरण के लिए कुल 16.09 लाख किसानों ने आवेदन किये जिसमें से कुल 12.98 लाख किसानों से 56.41 लाख मेट्रिक टन गेहूं की खरीद हुई है और 3.11 लाख किसान आवेदन करने के बावजूद भी खरीद की प्रक्रिया से अछूते रह गये हैं यदि इन किसानो से भी खरीद होती तो खरीद का आंकड़ा कहीं अधिक होता।
इस वर्ष उत्तर प्रदेश में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अनुमानित उत्पादन 391.5 लाख मेट्रिक टन है, जिसमे से दिनांक 5 जुलाई 2021 तक 56.41 लाख मेट्रिक टन गेहूं की खरीद ही हो पायी है।
राज्य सरकार की ओर से यह दावा किया जा रहा है कि यह अभी तक की सबसे ज़्यादा खरीद है परन्तु कुल सरकारी खरीद राज्य के कुल उत्पादन का महज़ 14.40% है, यानि कि किसान बड़ी संख्या में सरकारी खरीद से बाहर हैं जिसके कारण कई किसान कम दामों पर अपनी फसल बेचने को मजबूर हैं।
किसानों का कहना है कि पंजीकरण की प्रक्रिया पहले ही बहुत जटिल है ऊपर से लॉकडाउन ने इसको और भी मुश्किल बना दिया। अधिकतर किसान स्वयं ऑनलाइन पंजीकरण नहीं कर सकते हैं, इसके लिए उनको नजदीकी जनसेवा केंद्रों पर जाना पड़ता है लेकिन लॉकडाउन के चलते ये जनसेवा केंद्र या तो बंद होते थे या फिर बहुत कम समय के लिए खुलते थे। इसके अलावा भी पंजीकरण की प्रक्रिया में आवश्यक डॉक्यूमेंट के लिए भी किसानो को तहसील जाना पड़ रहा था यहाँ पर भी कोरोना के कारण कर्मचारियों की संख्या कम ही होती थी जिस कारण यहाँ पर भी किसानों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था, किसान इन सब परेशानियों का सामना करते हुए पंजीकरण करा भी लेता है उसके बावजूद पंजीकरण अस्वीकार हुए हैं।
इन सभी समस्याओं को देखते हुए छोटे किसान तो पंजीकरण कराना ही नहीं चाहते, और अपनी फसल को खुले बाजार में सस्ते दामों पर बेचने को मजबूर हैं, इन किसानों का कहना है कि पंजीकरण की प्रक्रिया बहुत मुश्किल है और इसमें समय भी बहुत लगता है।
बिजनौर के किसान कुलदीप चिकारा का कहना है, "पंजीकरण की इस प्रक्रिया को सोच समझ कर इतना जटिल बनाया गया है ताकि कम से कम किसान पंजीकरण करा पाये और सरकार को कम से कम किसानों को MSP का लाभ देना पड़े और सरकार को कोई दोष भी न दे सके।"
पंजीकरण की प्रक्रिया पर भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक कहते हैं, "ऑनलाइन पंजीकरण सुनने में तो अच्छा लगता है लेकिन अभी ये किसान की समझ से बाहर है, वो कैसे कंप्यूटर पर रजिस्ट्रेशन करवाएं? वास्तव में यदि इस खरीद की प्रक्रिया को सरल बनाया जाए तो उत्पादन के सापेक्ष और कहीं अधिक खरीद होगी।"
इसके साथ ही वो सुझाव देते है कि सरकार के पास सब चीजें हैं तो होना ऐसा चाहिए कि एसडीएम अपने स्तर पर वेरीफाई करवा ले और किसानों को रजिस्ट्रेशन की जटिलता से दूर करके उसकी फसल को खरीद लें।
बारदाने की कमी और बंद गेहूं क्रय-केंद्र
26 अप्रैल 2021 के एक शासनादेश में सरकार ने खुद माना है कि कोविड-19 बीमारी के कारण पर्याप्त रूप से क्रय-केंद्र नहीं खुल पा रहे हैं जिससे किसानों को गेहूं के विक्रय में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
बिजनौर जिले के हल्दौर कस्बे में स्थित उ०प्र० राज्य खाद्य एवं आवश्यक वस्तु निगम (SFC) क्रय एजेंसी के गेहूं क्रय-केंद्र पर बोरों के अभाव के कारण कई दिनों तक गेहूं की खरीद ही नहीं हो पायी। गेहूं क्रय-केन्द्र हल्दौर में सहायक जगदीश बताते हैं कि इस साल पिछले साल से ज्यादा गेहूं खरीद हुई है लेकिन बारदाना नहीं होने के कारण कई दिनों तक खरीद बंद रही। आये दिन बारदाने की कमी होती रहती है जिस कारण गेहूं खरीद बंद करनी पड़ती है। जब बारदाना उपलब्ध होता है तभी खरीद शुरू हो पाती है।
इसके साथ ही बिजनौर के गंज में उत्तर प्रदेश सहकारी संघ (PCF) क्रय एजेंसी के केंद्र पर किसानों को कई दिनों तक अपने ट्रैक्टर ट्राली में गेहूं लादे खरीद का इंतजार करना पड़ा, समस्या पूछने पर किसानों ने कहा कि अधिकारी ने बताया कि बारदाने की कमी के कारण हम गेहूं नहीं खरीद सकते।
यही हालत राज्य में अधिकतर क्रय-केन्द्रों पर देखी गयी। इटावा जिले की बरोली खुर्द सेफी के क्रय-केंद्र जो कि सहकारी समिति का हैं इसके प्रबंधक रमेश चंद्र यादव बताते हैं, "केंद्र पर पिछले साल की तुलना में इस साल गेहूं की खरीद कम हुई है, कोरोना काल में भी किसान केंद्र पर पहुँच रहे हैं परन्तु केंद्रों पर बारदाना केवल 400 से 500 क्विंटल के लिए ही आता है जो जल्द ही समाप्त भी हो जाता है और खरीद रुक जाती है|"
बंद क्रय-केंद्र खुलवाने के प्रयास
इसी के विरोध में बलिया जिले के बैरिया क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) विधायक सुरेंद्र सिंह ने 27 मई को क्रय-केंद्र कई दिनों से बंद होने के कारण, 8 घंटे केंद्र पर ही धरना दिया। सिंह ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरफ से संचालन आदेश के बाद भी उनके विधानसभा क्षेत्र में गेहूं क्रय-केंद्र लगभग चार दिनों से बंद है। सिंह ने बताया कि उन्होंने कई बार जिलाधिकारी से कहा, लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि जब तक क्रय-केंद्र का संचालन शुरू नहीं होता तब तक वो क्रय-केंद्र पर ही बैठे रहेंगे। धरने की जानकारी उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट पर भी जारी की है।
नियम है कि फ़सल खरीदने के 72 घंटो के अंदर भुगतान हो जाना चाहिए पर इसके विपरीत किसानों को भुगतान मिलने में हफ़्तों लग जा रहे हैं। खाद्य एवं रसद विभाग के एडिशनल कमिश्नर ए.के. सिंह ने हमें बताया कि गेहूं क्रय-केन्द्रो पर 22 जून 2021 को ख़रीद बंद हो चुकी है, लेकिन अभी भी किसानों का रुपये 461 करोड़ का भुगतान बाकि है। आप को बता दें कि किसानो को कुल रुपये 11,141 करोड़ भुगतान किया जाना था लेकिन अभी रुपये 10,680 करोड़ का भुगतान ही हो पाया है। भुगतान में होने वाली देरी का कारण किसानो का नाम मिसमैच होना बतया। कोविड के कारण पहले से बेहाल किसानों को समय पर उन का हक़ न मिल पाने के कारण उनकी समस्याऐ और भी बढ़ गई हैं।
पेमेंट का भुगतान देर से होने पर अपर आयुक्त अरुण कुमार सिंह कहते हैं कि पेमेंट का भुगतान पी.ऍफ़.एम.एस. (Public Financial Management System) के माध्यम से हो रहा है, पी.ऍफ़.एम.एस. में कुछ देरी हो रही हैं लेकिन पेमेंट लगातार हो रहा है। उन्होंने बताया कि पी.ऍफ़.एम.एस. में आजकल वर्क लोड ज्यादा है क्योंकि किसान सम्मान निधि का भुगतान भी हो रहा है, कभी-कभी टेक्निकल कारणों से भी विलंब होता है। भुगतान में देरी का कारण चाहे कोई भी रहे जिसको परेशानी का सामना करना पड़ता है वह एक मात्र, उस फसल का मालिक किसान है।
किसानों को C2 लागत के अनुसार सही दाम नहीं मिल पा रहा
इस वर्ष राज्य सरकार ने गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) रुपये 1,975 प्रति क्विंटल तय किया है जो कि पिछले वर्ष से महज रुपये 50 अधिक है और पिछले साल से वृद्धि बहुत ही मामूली 2.6% है। परन्तु वहीं दूसरी और किसानों का कहना है कि पिछले साल की तुलना में लागत काफी बढ़ी है क्योंकि बिजली और डीजल के दामों में काफी बढ़ोतरी हुई है।
राज्य सरकार द्वारा निर्धारित MSP, C2 लागत पर तय नहीं किया गया, C2 लागत में फसल उपजाने से जुड़े जरूरी कामों की कुल लागत जैसे बीज, खाद, मजदूरी, पानी पर किया गया नकद खर्चा शामिल किया जाता हैं।
C2 लागत में शामिल किये जाने वाले खर्च
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वर्तमान MSP फसल की वास्तविक लागत के आधार पर न्यूनतम मूल्य से रुपये 365 प्रति क्विंटल कम है, जो यह दर्शाता है कि सरकार किसान से कम मूल्य पर उसकी फसल को खरीद रही है, राज्य सरकार किसानों की, स्वामीनाथन कमेटी के अनुसार C2 लागत पर MSP निर्धारण की लम्बे समय से की जा रही मांग को दरकिनार कर रही है, जिसके कारण किसान अपनी फसल को घाटे में बेच रहे हैं क्योंकि निर्धारित MSP और C2 लागत के अनुसार होने वाले न्यूनतम मूल्य में काफी अंतर है।
गेहूं के खरीद के मसले पर वर्तमान विधायक और उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कहते है कि राज्य में गेहूं की खरीद ना के बराबर हो रही है, उन्नाव, बाराबंकी, लखीमपुर, सीतापुर, कुशीनगर, गोरखपुर जैसे कई जिलों के उदाहरण हैं जहाँ के क्रय केंद्रों पर किसान अपना गेहूं लेकर जा रहा है लेकिन उसके गेहूं की खरीद नहीं हो पा रही हैं। खाद्य रसद विभाग की 11 एजेंसियां है जिसमें से केवल 7 का ही क्रय संचालित है, और किसान MSP से भी कम पर बेचने को मजबूर है, रुपये 1975 सरकार ने तय किये है पर किसान बाजार में अपने गेहूं को मात्र रुपये 1100-1200 में बेचने को मजबूर हैं।
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