झारखंड 'डायन' हत्या: अंधविश्वास के साथ वजह और भी
झारखंड में 5 साल (2015 से 2020) में 207 डायन हत्या की गई। वहीं, इन 5 साल में डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम के तहत 4,560 मामले दर्ज किए गए;
रांची। "मेरी भाभी डायन है," नशे में धुत्त एक आदमी चीखते हुए भीड़ से कहता है। इतना कहना भर था कि तमतमाई भीड़ उसकी भाभी जसीता टोप्पो को घर से खींच लाई और पत्थर से कुचलकर हत्या कर दी।
यह घटना साल 2015 के अगस्त महीने की है। झारखंड की राजधानी रांची से सिर्फ 25 किमी. दूर कंजिया मरईटोली गांव है। दो अगस्त 2015 को गांव के सुभाष खलखो (14) की बीमारी से मौत हो गई। सुभाष को डॉक्टर से न दिखाकर ओझा से दिखाया जा रहा था। यहां से जादू टोना की बात गांव वालों तक पहुंची। सुभाष की मौत के पांच दिन बाद यानी सात अगस्त की रात गांव वाले जुटे, छक कर शराब पी और फिर डायन बताकर पांच औरतों को मार दिया गया, जिसमें जसीता टोप्पो (55) भी शामिल थी। इसके बाद भीड़ इन पांच लाशों के आस-पास रात भर नाच गाना करती रही।
इस घटना के बारे में और जानकारी के लिए इंडियास्पेंड की टीम झारखंड में जसीता टोप्पो के पति मतियस खलखो से मिली। मतियस इंडियास्पेंड से कहते हैं, "मेरे सगे भाई ने मेरी पत्नी को डायन बता दिया। मेरे सामने गांव वाले मेरी पत्नी को खींच ले गए। पत्थर से उसका चेहरा कूच दिया। रात भर सब नाचते गाते रहे। पूरा गांव इसमें शामिल था। सुबह पुलिस आई तो सब कहने लगे कि हमने मारा है, हंसते-हंसते जेल गए। अब जेल से लौटे हैं तो कहते हैं, बाबा गलती हो गई।" इस मामले में पुलिस ने 50 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था, इनमें से ज्यादातर जेल से जमानत पर छूटकर गांव आ गए हैं।
झारखंड में 5 साल में 207 'डायन' हत्या, 4,560 मामले दर्ज हुए
डायन बताकर जान ने मारने के मामले खासतौर से आदिवासी इलाकों में देखने को मिलते हैं। झारखंड के ग्रामीण इलाकों में यह बड़ी समस्या है। डायन या बिसाही (बुरी नजर वाला व्यक्ति) बताकर किसी को मारने के पीछे मुख्य तौर पर कुछ वजहें सामने आती हैं, जैसे- जलन, कोई स्वार्थ, जमीन हड़पने की साजिश या तांत्रिक-ओझा (अंधविश्वास) का चक्कर।
इन तमाम वजहों से झारखंड में 5 साल (2015 से 2020) में 207 डायन हत्या की गई। वहीं, इन 5 साल में डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम के तहत 4,560 मामले दर्ज किए गए, यानी इन मामलों में किसी को जान से मारा गया, किसी को मारने की कोशिश हुई तो किसी को डायन के नाम पर प्रताड़ित किया गया। यह आंकड़े झारखंड के अपराध अनुसंधान विभाग (CID) द्वारा इंडियास्पेंड को उपलब्ध कराए गए हैं।हालांकि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) में डायन हत्या के आंकड़े काफी कम नजर आते हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 में झारखंड में 15 डायन हत्या हुई, जो कि CID द्वारा दिए गए आंकड़ों से लगभग आधे हैं। वहीं, मध्यप्रदेश में 17, छत्तीसगढ में 16 और ओडिशा में 14 मामले दर्ज हुए। एनसीआरबी के मुताबिक, डायन हत्या के मामलों में झारखंड तीसरे नंबर पर और मध्यप्रदेश पहले नंबर पर है।
'जमीन हथियाने की साजिश और अंधविश्वास मुख्य वजह'
झारखंड के अपराध अनुसंधान विभाग (CID) के अपर महानिदेशक प्रशांत सिंह मामलों के बढ़ने के पीछे बेहतर पुलिसिंग को एक वजह बताते हैं। वहीं, डायन हत्या के मामले कम होने के लिए झारखंड सरकार द्वारा चलाए जा रहे जागरूकता कार्यक्रम को श्रेय देते हैं।
प्रशांत सिंह इंडियास्पेंड से कहते हैं, "यह बात सच है कि झारखंड में ऐसी घटनाएं होती हैं। हालांकि आंकड़े यह बता रहे हैं कि साल दर साल हत्याओं के मामलों में कमी आई है। पुलिस इन घटनाओं को लेकर संवेदनशील है। हर थाने में महिला हेल्प डेस्क की स्थापना की गई है। महिलाओं की हर स्तर से मदद करने की कोशिश की जाती है। झारखंड इन मामलों के प्रति सजग है और हमें बेहतर परिणाम देखने को मिल रहे हैं।"2011 की जनगणना के मुताबिक, झारखंड की साक्षरता दर 66.41% है, जो कि 35 में से 32वें नंबर पर है। वहीं, भारत की साक्षरता दर 74.04% है। झारखंड में पुरुष साक्षरता दर 76.84% और महिला साक्षरता दर 55.42% है।
लोगों पर अंधविश्वास हावी
झारखंड के गांव में भगत और ओझा का चलन बहुत देखने को मिलता है। लोग छोटी से लेकर बड़ी बीमरियों तक के लिए इनसे सलाह लेते हैं और पूजा पाठ करवाते हैं। यहीं से आम जन में डायन-बिसाही जैसी बातें और प्रबल होती हैं। इंडियास्पेंड की टीम झारखंड के गुमला जिले के गम्हरिया गांव के एक ओझा से पीड़ित बनकर मिली।
हमने ओझा से कहा कि हमारा पैसा दवाइयों में बहुत खर्च हो रहा है। इसपर ओझा ने अक्षत (चावल के कुछ दाने) की मांग की और कहा कि वो इसे देखकर बताएगा कि समस्या कहां है। वहीं, उसने यह आश्वासन भी दिया कि पूजा पाठ करने के बाद पढ़ाई, रोजगार, घर, पैसा हर स्तर से चीजें बेहतर होंगी। उसकी बातों पर विश्वास दिलाने के लिए ओझा ने बताया कि दुमका जिले के एक सरकारी अफसर बीमारी से बहुत परेशान थे। करीब 30-40 लाख रुपए बीमारी पर लगा दिया लेकिन ठीक नहीं हुए। इसके बाद ओझा के पास आए और अब पूरी तरह ठीक हैं।गम्हरिया गांव में ही इस साल नवंबर में एक महिला को डायन बताकर पीटा गया और उसका बचाव करने आई एक दूसरी महिला का होंठ काट लिए गया। गांव की रहने वाली तेम्बो उरांव (45) के पति की मौत हो गई और कुछ साल पहले बेटा भी मर गया। गांव के लोग तेम्बो को डायन कहकर पुकारते हैं। दिवाली के अगले रोज गांव में पूजा हो रही थी, तेम्बो को बताया गया कि पूजा में मत आना नहीं तो डायन बताकर मारा जाएगा। इस बात का विरोध करने पर तेम्बो के साथ मारपीट हुई और उसके घर की दूसरी महिला के होंठ काट लिए गए। गुमला जिले के घाघरा थाने में यह मामला दर्ज किया गया है।
तेम्बो बताती हैं कि "मेरे बेटे की मौत के बाद से लोग मुझे डायन कहने लगे। कुछ ओझा ने भी इस बात पर जोर दिया। करीब एक साल से मुझे डायन पुकार रहे हैं।"
गम्हरिया गांव की रहने वाली सामाजिक कार्यकर्ता पुष्पलता दुबे डायन बिसाही के मामलों के कई कारण बताती हैं। उनके मुताबिक, "पिछड़े क्षेत्रों में बीमारी और अन्य दिक्कतों की वजह से लोग परेशान हैं और वहीं से उनके मन में डायन बिसाही की बात बैठ जाती है। ऐसे में इन क्षेत्रों में डॉक्टर से ज्यादा ओझा का काम बढ़ जाता है। लोगों को दवा की जगह ओझा आराम से मिल जाते हैं। इसलिए उनकी प्रैक्टिस बढ़ जाती है।"
झारखण्ड की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था ओझाओं को और ज़्यादा बढ़ावा देती है। प्रदेश के कुल खर्च का सिर्फ 4.82% ही स्वास्थ्य पर खर्च किया जाता है, जो कि देश में काफी कम है।
सरकारी अस्पतालों में बिस्तर की उपलब्धता भी झारखण्ड में काफी कम है। देश में औसतन 1,844 लोगों के लिए एक बिस्तर उपलब्ध है तो वहीं झारखण्ड के लिए ये औसत 3,079 लोगों का है।
स्वास्थ्य सम्बन्धी इन्ही कारणों से लोगों को झोलाछाप डॉक्टरों या ओझाओं की ओर रुख करना पड़ता है।
"इसके अलावा जमीन हड़पने के लिए भी डायन बिसाही की बात का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं, कुछ घटनाएं जलन की वजह से भी होती हैं कि कोई आगे बढ़ रहा है तो अफवाह फैला दो कि तंत्र मंत्र का सहारा ले रहा है," पुष्पलता दुबे ने बताया।
पुष्पलता दुबे इस बात पर भी जोर देती हैं कि लोगों को सरकार की सुविधाएं ठीक से नहीं मिल पातीं। ऐसे में दिक्कतों से जूझते लोग अंधविश्वास के चंगुल में फंस जाते हैं।
सरकार जागरूकता अभियान चला रही
झारखंड सरकार डायन बिसाही के मामलों पर अंकुश लगाने के लिए जागरूकता अभियान चलाती है। 'डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 2001' के तहत पूरे राज्य में इस कुप्रथा के खिलाफ प्रचार प्रसार किया जा रहा है। इसके लिए नुक्कड़ नाटक और अन्य प्रचार के तरीके अपनाए जा रहे हैं। सरकार ने इसके लिए इस साल के बजट में 1 करोड़ 20 लाख रुपए का फंड भी रखा है।
हालांकि डायन बिसाही के मामलों पर काम करने वाले लोग सरकार के जागरूकरता अभियान को ज्यादा सफल नहीं मानते। एसोसिएशन फॉर सोशल एंड ह्यूमन अवेयरनेस (आशा) संस्था इन मामलों पर लंबे वक्त से काम कर रही है। इसके संस्थापक अजय जायसवाल कहते हैं, "जागरूकता अभियान का उस कदर का असर नहीं हो रहा जितना सोचा गया था। मामलों में कुछ खास कमी नहीं दिख रही। जब तक लोगों की जिम्मेदारी तय नहीं होगी तब तक यह मामले रुकेंगे नहीं। जैसे अगर किसी गांव में यह घटना होती है तो वहां के सरपंच की जिम्मेदारी तय की जाए, यही इसका उपाय है।"