पहले कोरोना और अब बर्ड फ्लू से बर्बादी के कगार पर छोटे पोल्ट्री कारोबारी
कोरोना महामारी के बीच अफवाहों और देशव्यापी लॉकडाउन से उभर रहे छोटे पोल्ट्री फार्मर्स पर अब बर्ड फ्लू की भी मार पड़ रही है। इन दो बड़े झटकों से संभालना कई फार्मर्स के लिए काफी कठिन हो रहा है और छोटे स्तर के फार्मर्स अब या तो ये धंधा छोड़ रहे हैं और या फिर लाखों रुपये के क़र्ज़ में दबते जा रहे हैं
लखनऊ।: लखनऊ के मंडावली गांव के रहने वाले अब्दुल फरीद (45) ने 2014 मे बाग़बानी का काम छोड़ कर अच्छी कमाई के लिये पोल्ट्री फार्म खोला लेकिन फरीद को ये नहीं पता था की ये कदम उनको कुछ ही सालों में लाखों रुपये का कर्ज़दार बना देगा । फरीद को कोरोना वायरस से जुडी अफ़वाहों और लॉकडाउन ने काम बंद करने को मजबूर कर दिया ।
कोरोना के भारत मे फैलने से ठीक पहले फरीद के पास 2 हजार मुर्गियों की क्षमता वाला एक पोल्ट्री फार्म था, लेकिन आज वह दूसरे के पोल्ट्री फार्म में मासिक 8 हजार रुपए की नौकरी कर रहे हैं। इसके अलावा उन पर पोल्ट्री फार्म से जुड़ा करीब 5 लाख रुपए का कर्ज भी है।
"कोरोना से पहले मेरे पक्षी (मुर्गियां ) तैयार हो चुके थे, लेकिन तभी अफ़वाह फैली कि चिकन खाने से कोरोना हो जाएगा। मार्केट में कोई ख़रीदार नहीं था। मेरे पास मुर्गियों को खिलाने के लिए दाना भी नहीं था। ऐसे में मुझे औने-पौने दाम पर मुर्गियां बेचनी पड़ी। उस वक्त मैंने 100 रुपए में 7 मुर्गियां बेची थी। एक-एक मुर्गी का वजन 2 किलो से ज्यादा था," फरीद कहते हैं।
फरीद अपने परिवार के कमाने वाले अकेले व्यक्ति हैं। उनकी कमाई पर चार लोगों का गुजर-बसर होता है, फरीद, उनकी पत्नी और दो बच्चे। फरीद 2014 से ही मुर्गी पालन का काम कर रहे थे। कभी फायदा और कभी घाटा सहते हुए हर दो महीने पर उनके पास करीब 30 हजार रुपए बच जाते थे। उन्हें इस कारोबार में कई बार नुकसान झेलना पड़ा, लेकिन कभी ऐसा घाटा नहीं हुआ जैसा कोरोना के वक्त उन्हें झेलना पड़ा। उन्होंने पोल्ट्री फार्म के लिए बाजार से कर्ज ले रखा था। अब उनपर कर्ज तो लदा हुआ है, लेकिन फार्म नहीं बचा है।
"पहले बागों में मजूदरी करता था, पैसे जोड़कर पोल्टी फार्म खोला था। कोरोना में यह भी बर्बाद हो गया, कर्ज अलग लद चुका है। अब धीरे-धीरे कर्ज चुकाएंगे। क्या कर सकते हैं," फरीद कहते हैं ।
यह कहानी केवल फरीद की नहीं है। फरीद की तरह पोल्ट्री कारोबार से जुड़े बहुत से छोटे किसान कोरोना से प्रभावित हुए और अब बर्ड फ्लू के चलते काम बंद करने पर मजबूर हैं ।
"कोरोना के बीच फैली अफ़वाह से कारोबार जमींदोज हो गया था। धीरे-धीरे हालात सही हुए और करीब 40% कारोबार खड़ा हो पाया। अब फिर से चिकन और अंडा खाने से बर्ड फ्लू होने की अफ़वाह फैल गई है और चिकन, अंडे के दाम कम हो गए हैं," पोल्ट्री फार्मर्स के राष्ट्रीय संगठन 'पोल्ट्री फार्मर्स ब्रॉयलर्स फेडरेशन' के अध्यक्ष एफ.एम शेख ने बताया
पोल्ट्री फार्मर्स ब्रॉयलर्स फेडरेशन के मुताबिक, पोल्ट्री कारोबार से गांव, कस्बों और शहरों के किसान और व्यवसायी जुड़े हैं। इस कारोबार का सालाना टर्न ओवर 1.5 लाख करोड़ रुपए से अधिक का है। देश में पोल्ट्री कारोबार से सीधे तौर पर 10 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलता है। वहीं, देश में पैदा होने वाला मक्का, बाजरा का करीब 70% और सोयाबीन, सरसों, मूंगफली, सूरजमुखी की खलियों का करीब 90% खपत पोल्ट्री बर्ड्स के खाने के तौर पर होता है। इस तरह इन फसलों की खेती से जुड़े करीब 2 करोड़ किसानों की आय का ज़रिया भी पोल्ट्री कारोबार है।
बर्ड फ्लू से कैसे प्रभावति हुआ पोल्ट्री कोरोबार?
इस साल जनवरी के पहले हफ्ते से बर्ड फ्लू के मामले सामने आने लगे। हर बार की तरह इसका सीधा असर पोल्ट्री कारोबार पर पड़ना था। इसकी वजह से चिकन और अंडे के दामों में अप्रत्याशित कमी देखने को मिली।
दामों के घटने और मांग में कमी होने के कारण मुर्गी पालकों को दोहरी मार झेलनी पड़ती है ।
पोल्ट्री फार्म में मुर्गी के बच्चे को तैयार होने में 35 दिन लगते हैं। 35 दिन में इनका वजन करीब 2 किलो का होता है। अगर 35 दिन में मुर्गियां नहीं बिकती हैं तो पोल्ट्री फार्मर ज्यादा से ज्यादा 10 दिन और इन मुर्गियों को रख सकता है। हालांकि, 10 दिन रखने पर मुर्गियों की लागत तेजी से बढ़ती है, क्योंकि बड़ी मुर्गियां ज्यादा दाना खाती हैं और हर दिन के हिसाब से उनका खाना बढ़ता जाता है।
लखनऊ के काकोरी के रहने वाले मो. आबिद (40) भी पोल्ट्री कारोबार से जुड़े हैं। उनके पोल्ट्री फार्म की क्षमता करीब 5 हजार मुर्गियों की है। मो. आबिद ने बर्ड फ्लू के बाद हुए नुकसान को एक मुर्गी के हिसाब से समझाया -
एक मुर्गी के बच्चे का दाम: 45 रुपए
एक मुर्गी ने दाना खाया (35 दिन): 105 रुपए
फार्म रेंट, लेबर, बिजली, वैक्सीन खर्च: 10 रुपए
35 दिन में मुर्गी की लागत (2 किलो की मुर्गी): 160 रुपए
बर्ड फ्लू के बाद मार्केट रेट: 60 रुपए किलो
हर मुर्गी पर नुकसान: 40 रुपए
2 हजार मुर्ग़ियों की क्षमता वाले किसान का नुकसान: 80 हजार रुपए
लखनऊ के दुबग्गा के रहने वाले मो. दानिश ने भी पिछले साल लॉकडाउन से पहले मुर्गियों को 35 दिन पर नहीं बेचा था। होली के वक्त उनके पास 2,500 मुर्गियां तैयार थीं, लेकिन कोरोना की वजह से दाम सही नहीं थे। दानिश ने सोचा कुछ दिन में दाम सही होंगे तो मुर्गियां बेच दी जाएंगी, लेकिन दाम उठे नहीं। वहीं, 35 दिन से ऊपर की यह मुर्गियां हर दिन 7 से 8 बैग फीड खा रही थीं। एक बैग की कीमत तब 1600 रुपए थी। आखिर में फीड देने वाली कंपनी ने भी उधार देने से मना कर दिया और दानिश को 100 रुपए में 4 मुर्गियां बेचनी पड़ी। इस घाटे के बाद दानिश यह कारोबार छोड़ चुके हैं।
बर्ड फ्लू का असर चिकन की तरह ही अंडे के दाम पर भी पड़ा है। नेशनल एग कोऑर्डिनेशन कमेटी (NECC) के मुताबिक, यूपी के लखनऊ में एक जनवरी को अंडे की कीमत 633 रुपए सैकड़ा थी। वहीं, 24 जनवरी को अंड़े की कीमत 473 रुपए सैकड़ा थी। यानी एक अंडे के दाम में करीब 1.5 रुपए के कमी हो गई।
बर्ड फ्लू के वजह से अंडे के घटते दाम पर उत्तर प्रदेश पोल्ट्री फार्मर एसोसिएशन के अध्यक्ष अली अकबर कहते हैं, "इस सीजन में अंडे के दाम बढ़ते हैं, लेकिन बर्ड फ्लू ने मार्केट खराब कर दिया है। जनवरी की शुरुआत में 570 रुपए के 100 अंडे बिक रहे थे, लेकिन आज कोई 400 रुपए सैकडे में भी अंडे लेने को तैयार नहीं हो रहा। सिर्फ अफवाह की वजह से हर अंडे पर 1.5 रुपए का नुकसान हो रहा है।" अली अकबर ने अंडे के फार्म के खर्च और एक अंडे की लागत के बारे में जानकारी दी है-
30 हजार मुर्गियों का फार्म
- हर दिन मुर्गियों के दाने पर करीब 65 हजार का खर्च
- इसके अलावा मजदूरी, बिजली और अन्य खर्चे भी शामिल
- करीब 28 हजार अंडे रोज
- एक अंडे की लागत करीब 3 रुपए
- बर्ड फ्लू से पहले 210 अंडे के एक बॉक्स का दाम 1200 रुपए (5.7 रुपए का एक अंडा)
- बर्ड फ्लू के बाद 210 अंडे के एक बॉक्स का दाम 800 रुपए (3.8 रुपए का एक अंडा)
बर्ड फ्लू को लेकर पशुपालन विभाग क्या कर रहा है?
अंडे और चिकन से बर्ड फ्लू होने की अफवाह के मद्देनज़र पशुपालन विभाग भी बार-बार कह रहा है कि भारत में पक्षियों से इंसानों में बर्ड फ्लू फैलने का एक भी मामला सामने नहीं आया है। चिकन और अंडे को अच्छे से पकाकर खाना पूरी तरह सुरक्षित है।
यूपी सहित कई राज्यों ने दूसरे राज्यों से चिकन और अंडे के ट्रांसपोर्ट पर रोक लगाई थी। इसे लेकर पशुपालन एवं डेयरी मंत्री गिरिराज सिंह ने 11 जनवरी को अलग-अलग राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक पत्र लिखा था। इस पत्र में बताया गया कि बर्ड फ्लू पहली बार भारत में 2006 में पाया गया। इसके बाद से हर साल सर्दियों के महीने में इस बीमारी का संक्रमण पक्षियों में हो जाता है। 2006 से लेकर अभी तक बर्ड फ्लू का पोल्ट्री से मनुष्य में फैलने का एक भी मामला सामने नहीं आया है। विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन ने भी बताया है कि अच्छी तरह पकाकर अंडे और पोल्ट्री मीट को खाना सुरक्षित है।
इस पत्र के बाद से राज्यों ने चिकन की बिक्री और ट्रांसपोर्ट से संबंधित अपने आदेश वापस लिए थे। इसी कड़ी में यूपी में भी ट्रांसपोर्ट पर लगी रोक को हटा लिया गया। यूपी के पशुपालन विभाग के निदेशक रोग नियंत्रण, "डॉ. रामपाल सिंह ने इंडियास्पेंड को बताया, भारत सरकार के दिशा निर्देश पर बाहर से आने वाले पोल्ट्री चिकन पर रोक हटा ली गई है। यूपी के 6 जिलों सीतापुर, लखीमपुर, पीलीभीत, मुजफ्फरनगर, उन्नाव और कानपुर में बर्ड फ्लू पाया गया है। इसमें से पीलीभीत में पोल्ट्री फार्म में बर्ड फ्लू पाया गया। बर्ड फ्लू को लेकर प्रदेश अलर्ट मोड पर है।"
यूपी पशुपालन विभाग की ओर से लगातार सर्विलांस का काम हो रहा है। अगर कहीं बर्ड फ्लू का मामला मिलता है तो उसके एक किलोमीटर के दायरे में सभी पालतू पक्षियों को मार दिया जा रहा है। मारे गए पक्षियों को तीन मीटर गहरे गड्ढे में चूना और ब्लीचिंग पाउडर डालकर दफना दिया जाता है। साथ ही यह प्रचारित भी किया जा रहा कि चिकन और अंडे को अच्छे से पकाकर खाना पूरी तरह सुरक्षित है।
भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा जारी किये गए दिशा निर्देशों में भी अंडे और चिकन का सेवन ना करने का कोई निर्देश नहीं दिया गया है और कहा गया है की चिकन और अंडे का सेवन पूरी तरह से पकने के बाद करना चाहिए । कच्चे अंडे या कच्चे मांस के सेवन से बर्ड फ्लू के मनुष्यों में संक्रमण की सम्भावना होती है लेकिन मनुष्य से मनुष्य में इस वायरस के फैलने की संभावना काफी कम है ।
हालांकि इन प्रयासों के बाद भी लोगों में बर्ड फ्लू का डर है और इसकी वजह से चिकन और अंडा खाने से बच रहे हैं। "मेरे घर में हफ्ते में 2 दिन चिकन या मटन बनता ही है। जबसे बर्ड फ्लू चला है हमने चिकन खाना बंद कर दिया है। जब तक बर्ड फ्लू खत्म नहीं होता, चिकन खाने से बचेंगे," बलिया जिले के नारायणपुर गांव के रहने वाले रविन्द्र सिंह (52) कहते हैं।
बर्बाद होते कारोबार के लिए क्या कदम उठाए जा रहे?
सरकार बर्ड फ्लू की रोकथाम के लिए तमाम कदम उठा रही है, लेकिन अफवाहों से पोल्ट्री कारोबार को हो रहे नुकसान पर कुछ खास नहीं किया जा रहा है। इससे पहले कोरोना से तबाह हुए छोटे मुर्गी पालकों के लिए भी कुछ नहीं किया गया। यही वजह रही कि फरीद को दूसरे के पोल्ट्री फार्म में काम करना पड़ रहा है और दानिश पोल्ट्री फार्म बंद करके सिलाई का काम कर रहे हैं। यह दोनों ही छोटे किसान थे। लखनऊ के मंडावली गांव में ही करीब 10 छोटे किसानों ने अपने फार्म बंद कर दिए हैं।
"सरकार की ओर से पोल्ट्री फार्मिंग को लेकर कोई ध्यान नहीं रहता। यह अनऑर्गनाइज्ड प्राइवेट सेक्टर है। पशु पालन विभाग को यह पता ही नहीं होता कि इस करोबार से कितने परिवार जुड़े हैं। यूपी सरकार 2013 में एक योजना लाई थी। यही एक योजना अभी चल रही है। यह दो से तीन करोड़ की योजना है, जिसका फायदा छोटे किसान नहीं उठा सकते," पोल्ट्री फार्मर्स ब्रॉयलर्स फेडरेशन के अध्यक्ष एफ.एम शेख ने कहा।
शेख यूपी सरकार की जिस योजना की बात कर रहे हैं उसका नाम 'उत्तर प्रदेश कुक्कुट विकास नीति - 2013' है। यह योजना पहले 2018 तक के लिए थी, जिसे बढ़ाकर 2022 तक कर दिया गया है। इसके तहत कॉमर्शियल लेयर फार्म और ब्रायलर पैरेंट फार्म लगवाने के लिए बैंक लोन के ब्याज पर सरकार सब्सिडी देती है। कॉमर्शियल लेयर फार्म का मतलब जहां अंडे वाली मुर्गियां रखी जाएंगी और ब्रायलर पैरेंट फार्म का मतलब जहां चूजे पैदा होंगे।
'उत्तर प्रदेश कुक्कुट विकास नीति - 2013' के बारे में बताते हुए यूपी कुक्कुट विभाग के उपनिदेशक डॉ. हरदेव सिंह यादव कहते हैं, "सरकार की यह योजना बड़े पोल्ट्री फार्मर के लिए है। यह 70 लाख से लेकर 1.5 करोड़ तक की योजना है। इसके अलावा हम जिलों में अनुसूचित जाति के 100 किसान चुनते हैं, जिन्हें 50 चूजे देते हैं।"
इस योजना के अलावा यूपी सरकार की कोई ऐसी योजना नहीं जो छोटे पोल्ट्री फार्मर के लिए हो। कुक्कुट विभाग के पास यह आंकड़ा भी नहीं कि कितने किसान पोल्ट्री कारोबार से जुड़े हैं। हालांकि बर्ड फ्लू की वजह से अलग-अलग जिलों में 9,329 पोल्ट्री फार्म चिन्हित हुए हैं। वहीं, 'उत्तर प्रदेश कुक्कुट विकास नीति - 2013' के तहत 30 हजार की क्षमता वाले कॉमर्शियल लेयर फार्म की संख्या 355 है और 10 हजार की क्षमता वाले फार्म की संख्या 312 है। ब्रायलर पैरेंट फार्म की संख्या 38 है।
"जब विभागों के पास कारोबार से जुड़े किसानों का आंकड़ा ही नहीं है तो किसी किसान की बर्बादी का आंकलन कहां से होगा। कोरोना से पहले यूपी में करीब 75 हजार परिवार पोल्ट्री कारोबार से जुड़े थे। अब यह संख्या आधी हो गई होगी। हर साल अफवाहें उड़ती हैं और हमारा कारोबार बर्बाद होता जा रहा है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर एक खबर चलती है कि 'मुर्गा खाने से होगा बर्ड फ्लू,' इसके बाद व्यापार ठप हो जाता है। इन अफवाहों को रोकने की जरूरत है। हम इसे लेकर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को खत लिखेंगे," शेख ने कहा।
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