पटना/सुपौल: बिहार के सहरसा जिले की महिषी पंचायत के 55 वर्षीय धनंजय पौद्दार सालों से शराब पीते आ रहे थे। साल 2016 में नितीश कुमार सरकार के द्वारा की गई शराबबंदी के बाद धनंजय को जब शराब मिलना बंद हुई तो उन्होंने ताड़ी और गांजे का सहारा लिया। "लेकिन हमें गांजा का ऐसा नशा लग चुका है कि अगर किसी दिन गांजा नहीं मिले तो शरीर में अजीब सा होने लगता है। कितनी बार कोशिश कर चुका हूं लेकिन अब संभव नहीं है," धनंजय बताते हैं।

धनंजय की ही तरह जहानाबाद के 35 वर्षीय लक्ष्मण चौधरी इंडियास्पेंड को बताते हैं, "लगभग 20 साल की उम्र से ही दारू पी रहा हूं। अचानक दारू बंद होने के बाद भांग और गांजे का सेवन करने लगा। क्योंकि गांजा और भांग आसानी से और कम कीमत पर मिल जाता है, साथ ही पुलिस से भी खतरा नहीं रहता है। पुलिस पकड़ेगी तो चिलम फेंक देंगे। पुलिस इससे ज्यादा क्या करेगी?"

बिहार में 2016 में की गयी शराबबंदी के लगभग छः साल बाद भी राज्य में शराब के सेवन में कोई ख़ास गिरावट नहीं देखी गयी है। इस ही के साथ प्रदेश में कच्ची शराब से मरने वाले लोगों, शराब की तस्करी और अन्य नशीले पदार्थ जैसे चरस, गांजा और भांग की तस्करी के मामलों में भी वृद्धि हुई है।

शराबबंदी के कारण बढ़ी गांजे की खपत

बिहार में 1 अप्रैल 2016 से शराबबंदी लागू होने के बाद बिहार में शराब के अलावा मादक पदार्थों में सबसे अधिक गांजा, अफीम व चरस की तस्करी हो रही है। राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) की भारत में तस्करी पर साल 2020-21 की रिपोर्ट के मुताबिक गांजे की जब्ती के मामले में बिहार पहले नंबर पर है। इस साल में बिहार में 12 मामलों में कुल 13,446 किलोग्राम गांजा जब्त किया गया है। इस रिपोर्ट में गांजे की जब्ती के मामले में नागालैंड दूसरे स्थान पर रहा जहां 10 मामलों में 9,001 किलोग्राम गांजा बरामद किया गया। बिहार का पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश (8,386 किलोग्राम) इस लिस्ट में तीसरे स्थान पर है।

सुपौल शहर के जगरनाथ मिश्रा कॉलेज में बारहवीं में पढ़ रहा 17 साल का एक युवक नाम न बताने के शर्त पर बताता है, "इस छोटे से शहर में कफ सीरप,गांजा और अफ़ीम लोग भारी मात्रा में पीते हैं। शराब पर रोज ₹300 से ₹400 खर्च करने से बेहतर है ₹50 का गांजा पी लीजिए। नशा शराब जैसा ही होता है। शहर के कितने लड़के तो गांजा बेचकर मोटरसाइकिल और कार खरीद चुके हैं। बाकी प्रशासन को सब पता है।"

भारत सरकार के नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की साल 2018 की सालाना रिपोर्ट के अनुसार साल 2016 के बाद राज्य के विभिन्न जगहों से गांजे और मादक पदार्थों की बड़ी मात्रा में जब्ती की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 13897.09 किलो गांजा, 251.43 किलो चरस, 3.2 किलो हेरोइन और 5.5 किलो अफीम बरामद किया गया था। साल 2014 में बिहार में 6 मामलों में 333 किलोग्राम गांजा जब्त किया गया और 8 की गिरफ़्तारी हुई। इस साल अफीम और चरस के कोई मामले दर्ज नहीं हुए।


इस ही तरह अगर नारकोटिक्स के मामलों और उनसे जुडी गिरफ्तारियों की बात की जाये तो शराबबंदी के पहले के दो सालों यानी 2014 और 2015 में क्रमशः 6 और 7 मामलों में 8 और 9 गिरफ्तारियां हुईं थी लेकिन उसके बाद ये आंकड़े लगातार बढ़ते गए।


इंडियास्पेंड ने इस बारे में जानने के लिए बिहार के एक्साइज डिपार्टमेंट के लगभग 10 से 12 अधिकारियों से बात करने की कोशिश की। लेकिन कोई भी अधिकारी शराबबंदी के मुद्दे पर बात करने के लिए तैयार नहीं हुआ। राजधानी पटना से 130 किलोमीटर दूर बक्सर में कार्यरत एक अधिकारी नाम न बताने के शर्त पर बताया कि अधिकतर मामलों में 'उपभोक्ता' या फिर छोटे सप्लायर (पेडलर) की ही गिरफ्तारी होती है और इसके पीछे के माफिया को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।

"यह सच है कि हम लोग शराब, गांजा और अफीम बेचने वालों को पकड़ रहे हैं। लेकिन जिसे पकड़ रहे हैं वह कौन हैं? अधिकतर लोग शराब पीने वाले हैं। आज तक किसी बड़ी मछली को क्यों नहीं पकड़ा जा सका है? जहरीली शराब से जो इतने लोग मरे हैं। कितने लोगों को गिरफ्तार किया गया है? सब खानापूर्ति के लिए होता है," उन्होंने कहा।

सौरभ गुप्ता सुपौल जिले के कुनौली गांव में कपडे का व्यापार करते हैं। उनका गाँव नेपाल बॉर्डर से करीब 5 किलोमीटर दूर है और वह नेपाल से ही कपड़ा खरीद कर अपने गांव में बेचते हैं। शराबबंदी के बाद बढ़ती तस्करी के बारे बात करते हुए वो बताते हैं, "शराबबंदी की शुरुआत में देसी और विदेशी दोनों शराब नेपाल से मंगाई जाती थी। जिसे ₹300-₹400 ज्यादा करके बेचा जाता था। लेकिन अब गांजा और अफीम ज्यादा मंगाया जा रहा है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस काम के लिए महिलाओं का एक वर्ग भी तैयार हो गया है।"

"जहरीला शराब का मामला आने के बाद पुलिस व्यवस्था थोड़ा चौकस हो गई है। इसलिए युवा वर्ग गांजा, भांग, चरस, व्हाइटनर और कफ़ सिरप आदि को शराब का विकल्प बना रहे हैं। वैसे भी शराब की कीमत बढ़ने और प्रशासन के चौकस होने पर इस सब की बिक्री बढ़ जाती है," सौरभ बताते हैं।

सुपौल जिले के वीणा बभनगामा गांव के दवाई व्यवसाई राजू मंडल बताते हैं, "पहले यहां सिर्फ कॉरेक्स और बेनाड्रिल कंपनी की कफ सिरप चलती थी। लेकिन अब डोरेक्स और रेकोडेक्स जैसी 7-8 कंपनी की कफ सिरप आ चुकी है। और लगभग सभी कंपनियों की कफ सिरप की बिक्री हो जाती हैं।"

"गांव के बहुत लोग इसे रेगुलर तौर पर उपयोग करते हैं। कभी मेरी दुकान से तो कभी उसकी तो कभी शहर से खरीदकर, क्योंकि गांव में एक दुकानदार रोज-रोज कफ सीरप अब नहीं देता है। ₹70 से ₹80 में उपलब्ध हो जाता हैं। शराब जैसा असर के लिए कई बार नशेड़ी कफ सिरप पीने के बाद चाय या मिठाई भी खाते हैं" राजू बताते हैं।

शराबबंदी के बाद अप्रैल 2016 में सुपौल के सदर अस्पताल में नशा मुक्ति केंद्र की स्थापना की गई। लेकिन पिछले छः सालों में सिर्फ 236 मरीज को ही इस केंद्र का लाभ मिला है। छोटे शहर के लगभग सभी नशा मुक्ति केंद्रों का यही हाल है।

सुपौल के नशा मुक्ति केंद्र के व्यवस्थापक राजकुमार जी बताते हैं, "236 मरीजों में लगभग 200 मरीज कफ सिरप और गांजा का सेवन ज्यादातर करते थे। क्योंकि कफ सिरप आसानी से उपलब्ध हो जाता है। साथ ही अधिकतर मरीज गरीब परिवारों से ताल्लुक रखते थे।"

जहानाबाद के लक्ष्मण भी पटना मेडिकल कॉलेज में स्थित नशा मुक्ति केंद्र पर अपना इलाज करवाने गए थे। लेकिन उन्हें वहां का गेट बंद मिला।

पटना मेडिकल कॉलेज स्थित नशा मुक्ति केंद्र जो बंद पड़ा है। फोटो: राहुल कुमार गौरव

शराबबंदी के बाद फलता-फूलता अवैध कारोबार

बिहार के दानापुर के अक्षय* और प्रशांत* (बदले हुए नाम) को साल 2020 में 100 लीटर देशी शराब, गांजा, अफीम और एक मोटरसाइकिल के साथ गिरफ्तार किया गया था। दोनों का केस अभी चल रहा है लेकिन दोनों जमानत पर बाहर हैं। अक्षय देश की राजधानी दिल्ली में मजदूरी किया करते थे लेकिन साल 2018 में वो अपने शहर दानापुर आए और अपने से 10 साल छोटे प्रशांत के साथ दानापुर और आसपास के इलाकों में अवैध शराब का व्यवसाय शुरू कर दिया। अक्षय और प्रशांत के मुताबिक उन्होंने इस दौरान बहुत कमाई की और पिछले साल ही अगस्त में अक्षय ने एक नयी मोटर-साइकिल भी खरीदी थी। जमानत मिलने के बाद अभी ये दोनों क्या काम कर रहे हैं, इस सवाल पर दोनों खामोश रहते हैं।

बिहार में ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने अवैध शराब के धंधे में काफी पैसा कमाया। इस बारे में हमने 2021 में हुए बिहार चुनावों के दौरान भी रिपोर्ट किया था।

अंतरराष्ट्रीय स्वयंसेवी संस्था लायंस क्लब बिहार के सिवान शहर में नशे के खिलाफ लोगों को जागरूक करता है। लायंस क्लब के प्रेसिडेंट अरविंद पाठक कहते हैं, "अभी बिहार के लगभग सभी गांव में दो-तीन व्यक्ति ऐसे मिलेंगे जो शराबबंदी के बाद अचानक अमीर हो गए हैं। यह व्यक्ति ना प्रशासन से जुड़ा हैं और ना ही किसी आधिकारिक पद से। यह लोग कफ सिरप और शराब बेचकर अमीर हुए हैं।"

"साल 2020 में बिहार में जहरीले शराब की वजह से 70 से भी ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। मृत्यु का सिलसिला अभी भी नहीं रुका है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जनवरी तक 21 लोगों की मृत्यु जहरीली शराब के पीने से हुई है। इसके साथ ही नीतीश कुमार समाज सुधार अभियान की रैली के जरिए शराबबंदी को और भी मजबूत कर रहे हैं। पता नहीं और कितना मजबूत करेंगे? शराबबंदी के अलावा गांजा, अफीम और चरस की तस्करी पर कब करवाई शुरू करेंगे?" अरविंद पाठक आगे कहते हैं।

नाकामयाब होती नशा मुक्ति की कोशिशें

पटना के रहने वाले डॉ एमके झा एक न्यूरो सर्जन हैं नशा मुक्ति सम्बंधित मरीजों का भी इलाज करते हैं। वह बताते हैं, "नशा अचानक बंद नहीं किया जा सकता है। एक नशा छोड़ने के बाद शरीर कुछ डिमांड करता है। उसकी डिमांड को वक़्त पर पूरा करना पड़ता है। इसी वजह से बिहार के अधिकतर लोग गांजा, अफीम, कफ सिरप और उससे ज्यादा खतरनाक नशा करने लगे है। यह और भी ज्यादा खतरनाक हो रहा है। क्योंकि इस नशे को करने के बाद मानसिक परेशानियों के साथ आपके हाथ पैर की गतिशीलता कम होगी, साथ ही लोग सिजोफ्रेनिया के शिकार होंगे।"

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 15.5% पुरुष (15 वर्ष और उससे अधिक) शराब का सेवन करते हैं। गांवों में यह संख्या 15.8% और शहरों में 14% है। वहीं महाराष्ट्र के शहरी इलाकों में 14.7% पुरुष शराब का सेवन करते हैं। वहीं महाराष्ट्र, जो जनसंख्या के मामले में लगभग बराबर है, में शराब का सेवन करने वाले पुरुषों की संख्या 13.9% है, जबकि बिहार में ये आंकड़ा 15.5% है। जबकि महाराष्ट्र में बिहार में शराबबंदी होने के बावजूद यहां पर शराब पीने वालों के आंकड़े दुसरे राज्यों से अधिक हैं जो कि ये दर्शाते यहीं की प्रदेश में शराब अवैध रूप से मुहैय्या भी करवाई जा रही है और साथ ही मुख्यमंत्री नितीश कुमार की शराबबंदी की नीति कहीं न कहीं कमजोर हो रही है।

बिहार में छात्र राजनीतिक संगठन एमएसयू के आदित्य मोहन नीति आयोग के हेल्थ इंडेक्स के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहते हैं, "स्वास्थ्य मामले में बिहार 100 के इंडेक्स में 31 अंकों के साथ नीचे से दूसरे स्थान पर है। जबकि, खुले में शराब बेच रहा केरल 82.20 अंकों के साथ टॉप पर है। इसके तो दो ही मतलब निकले जा सकते हैं कि शराब का बेहतर स्वास्थ्य से कोई संबंध नहीं है या बिहार में ना शराबबंदी है और ना ही नशाबंदी।"