पटना:"13 दिसंबर को दोपहर तीन बजे चन्द्रमा भाई की मौत हो गई। उनका दाह संस्कार करके लौटे तो रात 12 बजे हरेंद्र भाई गुजर गए। उनका दाह संस्कार भी बिना पोस्टमार्टम के ही हुआ। क्योंकि प्रशासन ने स्थानीय चौकीदार से कहवाया था कि लाश जल्दी जलवा दें। फिर गांव वालों ने भी कहा कि शराब का केस हो जाएगा तो हम जैसे गरीब आदमी कहां तक लड़ेंगे?" छठ्ठू राम बताते हैं।

उस दिन सदर अस्पताल गोपालगंज जहरीली शराब से हुई मौतों में एक अकेले भरत राम ही ऐसे थे जिनका पोस्टमार्टम हुआ था।

बिहार के जिला सारण के मशरक तखत में रहने वाले छट्ठू राम (53) के परिवार के चार पुरुष 13 दिसंबर 2022 को हुई जहरीली शराब कांड की चपेट में आ गये। छठ्ठू के बड़े भाई 56 साल के चन्द्रमा राम, चचेरे भाई हरेंद्र और भरत राम की मौत हो गई जबकि उनके सगे भाई सग्गू राम पटना के एक निजी अस्पताल में इलाज करा रहे हैं।

बिहार सरकार में उत्पाद एवं मद्य निषेध मंत्री सुनील कुमार के मुताबिक अभी तक 38 लोगों की मौत हुई जिनका पोस्टमार्टम हुआ। यदि और मौतों की जानकारी मिलेगी तो आंकड़ा बढ़ भी सकता है। इंडिया स्पेंड के रिपोर्टर के और प्रश्नों का उत्तर उत्पाद एवं मद्य निषेध मंत्री ने दिया ही नहीं। वहीं बिहार सरकार में आबकारी विभाग के जॉइंट कमिश्नर कृष्णा पासवान ने इंडिया स्पेंड को फोन पर बताया कि सारण जिले में हुई जहरीली शराब काण्ड में अब तक कम से कम 70 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है। जबकि बिहार पुलिस ने 116 लोगों को गिरफ्तार किया था।

छठ्ठू राम के बिना पोस्टमार्टम दाह संस्कार वाले दावे पर प्रशासन इंडिया स्पेंड को कोई जवाब नहीं दिया।

आंकड़ों का खेल

बिहार राज्य में वर्ष 2016 से शराबबंदी लागू है। राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की मानें तो राज्य में 2016 से 2021 के बीच जहरीली शराब की वजह से महज 23 मौतें ही हुई हैं, लेकिन अगर अखबारों की सुर्खियों को देखें तो जहरीली शराब से हुई मौतों के आंकड़े कहीं ज्यादा लगते हैं।

अकेले गोपालगंज के खजूरबन्नी में ही अगस्त 2016 में जहरीली शराब की वजह से 19 लोगों की मौत हो गई थी।

पटना हाईकोर्ट ने 13 जुलाई 2022 को इसी खजूरबन्नी केस ('नगीना पासी वर्सेज बिहार सरकार') में नौ अभियुक्तों को फांसी की सजा से मुक्त कर दिया था। हाईकोर्ट के फैसले में इस बात का जिक्र है कि एडीशनल पब्लिक प्रोसीक्यूटर सत्य नारायण प्रसाद ने इस बात को स्वीकारा कि 19 लोगों कीमौत हुई और कुछ लोग किसी हानिकारक पदार्थ (Noxious Substance) के सेवन जो शराब में मिला दी गई थी, उसकी वजह से दिव्यांग हो गये।

स्रोतः
लोक सभा अतारांकित प्रश्न संख्या 458, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों पर आधारित। डेटा एनसीआरबी की एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड रिपोर्ट, 2021 से

मीडिया ने मार्च 2022 में जहरीली शराब से राज्य के तीन जिलों में 25 मौतों का दावा किया, लेकिन इंडिया स्पेंड इसकी प्रशासनिक पुष्टि नहीं कर सका। अगस्त 2022 में सारण में ही तीन लोगों की मौत जहरीली शराब से हुई थी और इंडिया स्पेंड से बातचीत में सारण के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक संतोष कुमार ने माना कि नागपंचमी के उत्सव में स्थानीय ग्रामीणों ने शराब पी थी।

छपरा के सिविल सर्जन सागर दुलाल सिन्हा के मुताबिक, "सारण जिले में इस दिसंबर 2022 में हुई जहरीली शराब कांड में कुल 42 मौतें हुईं। इनमें 34 मौतें सदर अस्पताल में जबकि 8 पटना के मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हुईं। मौत की वजह पूरी जांच होने के बाद ही पता चलेगी।" हालांकि स्थानीय मीडिया ने दावा किया कि जहरीली शराब से हुई मौतों का आंकड़ा 70 से ज्यादा है।

मालती देवी ने अपने परिवार में जहरीली शराब से मौत देखी है, उनके परिवार को सरकार की तरफ से 4 लाख रुपए का मुआवजा भी मिला है.

पोस्टमॉर्टेम से पहले दाह संस्कार क्यों?

पचास वर्षीय सग्गू राम की मौत भी सारण के दिसंबर 2022 में हुई जहरीली शराब काण्ड में हुई थी। उनके बेटे राहुल रंजन बताते हैं,"मेरे पिता ने दारू के दो पाउच पिए थे जिसके बाद वे बेचैनी की शिकायत करने लगे। हम लोगों ने पहले उन्हें सारण के निजी अस्पताल में भर्ती कराया। लेकिन वहां उन्हें आंखों से दिखना बंद हो गया। जिसके बाद उन्हें पटना ले आए। इससे पहले बड़े पापा की मौत भी 13 दिसंबर को शराब पीने से हो गई थी तो घर पर मौजूद लोगों ने उनका अंतिम संस्कार कर दिया। पुलिस के पचड़े में कौन पड़ेगा। पुलिस का काम तो ये देखना था कि वहां दारू न बिके।"

बिहार के ही गोपालगंज जिले के मुन्ना साह महज 17 साल के थे। उनकी मौत भी जहरीली शराब पीने की वजह से हो गई। मुन्ना मिठाई की दुकान पर काम करते थे और उन्हें शराब पीने की आदत थी।

मुन्ना का नाम गोपालगंज के अगस्त 2016 में हुई खजूरबन्नी शराबकांड में जान गंवाने वाले 19 लोगों में से एक है। वे अपनी मौसी मालती देवी के साथ गोपालगंज शहर के पुरानी चौक में रहते थे। मालती बताती हैं,"उसने उस दिन दिनभर मिठाई बेची और शाम को अपने दोस्तों के साथ बैठकर दारू पी। घर लौटा तो बीमार पड़ गया। उसे हम पहले 10 मिनट की दूरी पर गोपालगंज के सदर अस्पताल ले गए। लेकिन फिर हालत बिगड़ी तो गोरखपुर रेफर कर दिया। जहां एक सुई (इंजेक्शन) देने के बाद ही उसकी मौत हो गई। सरकार ने बाद में परिवार को चार लाख रुपए का मुआवजा दिया था। उस दिन जितने लोगों ने खजूरबन्नी में शराब पी थी, सब मर गए।"

मालती के पास मुन्ना की कोई तस्वीर,कोई निशानी नहीं बची है। उनके पास सिर्फ मुन्ना के पिता सुखलाल साह की पासबुक है जिसमें मुआवजे के तौर पर आए चार लाख रुपए दर्ज हैं।मालती देवी बताती हैं,"इसी अकाउंट में पैसे आए थे, लेकिन हमें पैसा नहीं अपना जवान बेटा चाहिए था"

प्राथमिक विद्यालय में मिड डे मील बनाने वालीं जीतन देवी ने भी अपने पति परनाम महतो (43) को खजूरबन्नी कांड में ही हमेशा के लिए खो दिया । दो बच्चों की मां जीतन हर महीने सरकारी स्कूल में बच्चों का खाना बनाकर 1,600 रुपए कमाती हैं यानी 54 रुपए रोज। पति परनाम महतो ठेला मजदूर थे। ठेले पर सामान रखकर बेचते थे। उस दिन को याद करते हुए जीतनबताती हैं,"वह दारू पीकर आए थे। उन्हें जब आंखों से दिखना बंद होने लगा तो सदर अस्पताल में भर्ती कराया जहां उनकी मौत हो गई।" जीतन आगे बताती हैं कि उन्हें भी सरकार की तरफ से चार लाख रुपए का मुआवजा मिला था।

साल 2018 में एस पी (पुलिस अधीक्षक) सह-सहायक नागरिक सुरक्षा आयुक्त के पद से रिटायर हुए आईपीएस अमिताभ दास कहते हैं,"ज्यादातर मौतें गरीब परिवार में होती हैं। पुलिस इन परिवारों को परेशान करती है क्योंकि पूरी स्टेट मशीनरी के ऊपर आंकड़ों को मैनेज करने या कम दिखाने का दबाव होता है। इसलिए लोग मौत होने पर आनन-फानन में दाह संस्कार कर देते हैं। इससे शराब से मौतों का सही आंकड़ा रिपोर्ट ही नहीं हो पाता। राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो से हमको वहीं आंकड़े मिलते हैं जो स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो देती है। इसीलिए जो आंकड़े जारी हो रहे हैं और जो हम घटते हुए देख रहे हैं, उनमें इतना अंतर है।"

रोहतास जिले की रहने वालीं सविता डे वर्ष 2010 से ही शराब के खिलाफ अभियान चला रही हैं। लेकिन शराबबंदी के नतीजों से वे निराश हैं। वे कहती हैं,"एनसीआरबी जो 23 मौतों का डाटा दे रही है वह तो सरासर गलत है। प्रशासन के संरक्षण में अभी भी शराब का जबरदस्त कारोबार चल रहा है और मौतें हो रही हैं। ये अलग बात है कि सरकार उनको अपने आंकड़ों में दर्ज नहीं करती।"

बिहार में 5 अप्रैल 2016 को पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी गई थी। जहरीली शराब के बढ़ते मामलों से निपटने के लिए बिहार सरकार ने दिसंबर 2021 में एंटी लिकर टॉस्क फोर्स (एएलटीएफ)का गठन करने का ऐलान किया जिसमें 233 टीम है। बिहार पुलिस ने अपने ट्विटर अकाउंट पर जो जानकारी दी हैं उसके अनुसार वर्ष 2021 में राज्य के बाहर के 34 शराब तस्कर अभियुक्तों की गिरफ्तारी हुई। 2022 में नवंबर महीने तक ये संख्या 83 थी जिनमें सबसे ज्यादा लोग पड़ोसी राज्य झारखंड के (28), हरियाणा के (16) और उत्तर प्रदेश के (16) थे। वहीं वर्ष 2022 के सितंबर महीने में ऑपरेशन प्रहार के तहत बिहार पुलिस ने 9,010 लोगों को गिरफ्तार किया। तकरीबन 1,189 शराब भठ्ठी को ध्वस्त किया गया और 1 लाख 55 हजार लीटर से ज्यादा देसी व विदेशी शराब जब्त की गयी।

बिहार सरकार के चलाए जा रहे समाज सुधार अभियान की यात्रा के दौरान मधेपुरा में मार्च 2022 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मीडियाकर्मियों से कहा था, "हमने 2018 में एक सर्वे कराया था जिसमें बिहार में एक करोड़ 64 लाख लोग शराब छोड़ चुके हैं। अब हम लोग फिर नया सर्वे कराएंगे।"

उनके इस दावे को एनएफएचएस -5 (2019-2021) के आंकड़ों में देखें तो अभी भी बिहार में 15 वर्ष से अधिक आयु वाले 15.5% पुरुष, 0.4% महिलाएं शराब पीती हैं। अगर एनएफएचएस – 4 (2015-16) की बात करें तो बिहार में 15 से 49 वर्ष की आयु वाले 28.9% पुरुष और 0.2% महिलाएं शराब का सेवन करते थे। हम एनएफएचएस – 4 और एनएफएचएस -5 की तुलना नहीं कर सकते क्योंकि दोनों सर्वे में उम्र के अलग-अलग पैमाने थे।

राजधानी पटना के सचिवालय से दूर मालती देवी जिन्होंने अपने 17 साल के भांजे को जहरीली शराब की वजह से खो दिया, बस इतना कहती हैं, "अगर नीतीश कुमार ने शराबबंदी की है तो तो अपना सिस्टम भी ठीक करें। शराब आने का रास्ता बंद करें तब ना बात बने।"