Explainer: मध्य प्रदेश में सोयाबीन उत्पादन में गिरावट क्यों, क्या Climate change है बड़ी वजह?
रायसेन/देवास/उज्जैन। सोयाबीन उत्पादन के मामले में मध्य प्रदेश भले ही देश में पहले पायदान पर है। लेकिन आंकड़ें बता रहे हैं कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान प्रदेश में सोयाबीन की खेती का रकबा और उत्पादन दोनों अस्थिर रहे हैं। राज्य का मालवा क्षेत्र (भोपाल, गुना, रायसेन, सागर, विदिशा, देवास, सीहोर, उज्जैन, शाजापुर, इंदौर, रतलाम, धार, झाबुआ, मंदसौर, राजगढ़, नीमच) सोयाबीन की खेती के लिए जाना जाता है। इंडियास्पेंड की विशेष सीरीज क्लाइमेट हॉटस्पॉट के तहत हमने मालवा के ही तीन जिलों, उज्जैन, देवास और रायसेन के किसानों से बात की और सोयाबीन पर जलवायु परिवर्तन के असर को समझने की कोशिश की।
देवास, रायसेन और उज्जैन के किसानें ने बताया कि सोयाबीन की खेती बदलते मौसम की वजह से सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। कभी कम अंतराल पर ज्यादा बारिश तो कभी बहुत कम। ऐसे में किसान दूसरी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं। कुछ किसानों ने जहां सब्जी की खेती शुरू कर दी है तो वहीं कुछ किसानों ने धान बोना शुरू कर दिया है। आंकड़े भी बता रहे हैं कि इन तीनों जिलों में रकबा और बुवाई, दोनों प्रभावित हुए हैं।
उज्जैन में 1997-98 की अपेक्षा 2021 में सोयाबीन का रकबा तो 24% बढ़ा है। लेकिन इस दौरान उत्पादन में 44% से ज्यादा की गिरावट आई है। इसी तरह देवास में 1997-98 की अपेक्षा 2019-20 में बुवाई का रकबा तो बढ़ा। लेकिन उत्पादन में लगभग 26% की गिरावट आई। रायसेन में अब चारों ओर धान के खेत दिखते हैं। मध्य प्रदेश सरकार के अनुसार सोयाबीन पहले यहां के किसानों की पसंदीदा उपज हुआ करती थी। लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से अब किसान दूसरी खेती कर रहे हैं।
वर्ष 1997-98 में रायसेन में कुल 132,400 हेक्टेयर में सोयाबीन की बोवनी हुई थी। 2019-20 आते-आते ये क्षेत्र सिकुड़कर 97,491 हेक्टेयर पर आ गया। इस दौरान उत्पादन में 75% से ज्यादा तो वहीं प्रति हेक्टेयर उत्पादन में 67% से की गिरावट देखी गई।
हालांकि कुछ किसान अभी भी मजबूरी में सोयाबीन की ही खेती कर रहे हैं। पैदावार घटने से राज्य में सोयाबीन प्रोसेस की कंपनियां भी प्रभावित हुई हैं। सोयाबीन किसान और व्यवसाइयों के संगठन सोपा का दावा है कि हाल के वर्षों में पैदावार घटने की वजह से कई कंपनियां बंद हो चुकी हैं। वहीं भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान ने बताया कि वे ऐसी किस्मों पर काम कर रहे हैं जो प्रतिकूल मौसम में भी अच्छी पैदावार देगा।