अरगोरा और सुखचंद्रपुर वार्ड 1, पश्चिम बंगाल: "घाटल में बाढ़ आना एक शाप है।"

पश्चिम बंगाल के अरगोरा निवासी पचराम बेरा ये बातें कहकर अपना दर्द बयां करते हैं।

कोलकाता से 66 किमी पश्चिम की ओर शिलई नदी के निचले जलग्रहण क्षेत्र में घाटल बसा हुआ है। प्रशासनिक रूप से यह पश्चिम बंगाल के पश्चिमी मेदिनीपुर जिले के घाटल उप-मंडल में स्थित है।

घाटल के निवासी गणेश मैती कहते हैं, "अगर आप पिछले साल अगस्त में यहां आए होते तो देखते कि पानी मेरे दुमंजिला घर के सबसे ऊपर तक पहुंच गया है।"

साल 2021 में घाटल में शिलाबाती और बुरिगंग नदियों ने जमकर तबाही मचाई थी। लगातार बारिश के कारण आई बाढ़ से कम से कम 10 तटबंध टूट गए थे। घाटल नगरपालिका के सभी वार्डों में बाढ़ आ गई थी । इसके अलावा बाढ़ का पानी पश्चिम मेदिनीपुर जिले में घाटल उप-मंडलों के सभी चार ब्लॉकों (दासपुर -1, घाटल, चंद्रकोना -1, और चंद्रकोना -2) तक पहुंच गया था।

अरगोरा निवासी नारायण गोस्वामी कहते हैं, "घाटल एक कटोरे की तरह है जो पड़ोसी क्षेत्रों से पानी इकट्ठा करता है।"

घाटल क्षेत्र और उसमें फैली हुई नदियां

इस क्षेत्र के बेसिन आकार के कारण पश्चिमी मेदिनीपुर, पूर्वी मेदिनीपुर, हावड़ा और हुगली जिलों के निचले हिस्से में भी अक्सर बाढ़ आती है।

घाटल ब्लॉक में इसलिए भी नियमित बाढ़ आती है क्योंकि यह क्षेत्र शिलाबाती, द्वारकेश्वर और रूपनारायण सहित पूरब की ओर बहने वाली कई नदियों के घने नेटवर्क के भीतर आता है।

'शहीद मतंगिनी हाजरा गवर्नमेंट कॉलेज फॉर वीमेन' में भूगोल के सहायक प्रोफेसर नबेंदु शेखर कर ने घाटल क्षेत्र में आने वाले बाढ़ पर बहुत शोध किया है और 'फ्लड-प्रोन घाटल रीजन, इंडिया: ए स्टडी ऑन पोस्ट-फालिन, 2013' नाम का एक शोधपत्र लिखा है।

वह कहते हैं, "यहां पर मानसून के दौरान भारी मात्रा में बारिश होती है। इसके अलावा शिलाबाती और उसकी सहायक नदियां भी अपने साथ काफी मात्रा में बारिश का पानी लाती हैं। बेसिन लैग टाइम की कमी के कारण शिलाबाती नदी अपने साथ लाई हुई पानी को आगे नहीं ले जा पाती है, इसके कारण घाटल ब्लॉक में नदी उफना जाती है।"

खराब प्रबंधन और योजनाएं भी बाढ़ को बढ़ावा देती हैं। रख-रखाव में कमी के कारण घाटल क्षेत्र में बने कई बांध खतरनाक स्थिति में हैं। जब तटबंध टूट जाते हैं तो घाटल क्षेत्र बाढ़ की चपेट में आ जाता है। इसके अलावा समुद्र के ज्वार के साथ आने वाली गाद भी नदी में जमा होती है। इसके कारण नदी की जलग्रहण क्षमता लगातार कम हो रही है और परिणामस्वरूप बाढ़ आने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।

पश्चिम बंगाल के पश्चिम मेदिनीपुर के घाटल प्रखंड के निवासी गणेश मैती। मैती क्षेत्र के सभी निवासियों की तरह वह भी लगातार आने वाली बाढ़ से परेशान हो चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों में बाढ़ की संख्‍या और भी बढ़ गई है।

मौसम के पूर्वानुमान संबंधी सेवाएं प्रदान करने वाली एक निजी भारतीय कंपनी 'स्काईमेट' के अध्यक्ष जीपी शर्मा कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा तापमान में बदलाव बाढ़ का एक महत्वपूर्ण कारक है। "ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान जितना अधिक होगा, नमी को धारण करने के लिए हवा की क्षमता भी उतनी ही अधिक होगी और फिर उन क्षेत्रों में मूसलाधार या भारी बारिश की संभावना भी अधिक होगी," वह कहते हैं।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा 1989 और 2018 के बीच दैनिक वर्षा के आंकड़ों का उपयोग करके किए गए एक विश्लेषण के अनुसार पश्चिम मेदिनीपुर जिले में हाल के सालों में वार्षिक वर्षा थोड़ी कम ही हुई है। हालांकि जिले के तीन मौसम स्टेशनों- मोहनपुर, कलाईकुंडा और डीपी घाट में बिना वर्षा वाले शुष्क मौसम के दिनों की संख्या में वृद्धि हुई है, जिसका अर्थ है कि बारिश वाले दिन अब कम हो रहे हैं। वहीं आईएमडी के एक वैज्ञानिक पुलक गुहाठाकुरता ने बताया कि भारतीय वायु सेना द्वारा प्रबंधित मौसम स्टेशन क्षेत्र कलाईकुंडा में अधिक बारिश होने वाले दिनों की संख्या में वृद्धि हुई है।

गुहाठाकुरता ने कहा कि उन्होंने घाटल मौसम केंद्र के लिए डेटा का विश्लेषण नहीं किया क्योंकि वे केवल 5-6 वर्षों के लिए डेटा एकत्र कर सकते थे, जो कि किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए बहुत कम है।

गुहाठाकुरता ने कहा, "धीमी या मध्यम वर्षा का मतलब है कि मिट्टी पानी को अवशोषित करने में सक्षम होगी। इससे मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार भी होता है। यदि कम दिनों में अधिक बारिश होती है तो मिट्टी संतृप्त हो जाएगा और अधिकांश पानी अपवाह के रूप में बह जाएगा, जिसके कारण भी बाढ़ आती है। यह बहुत चिंता की बात है कि क्षेत्र में हल्की से मध्यम बारिश के दिन कम हो रहे हैं।"

विश्व बैंक की 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, "वैश्विक तापमान बढ़ने से वातावरण में नमी बढ़ सकती है, जिसके परिणामस्वरूप तूफान और भारी बारिश के दिनों की संख्या भी बढ़ सकती है। हालांकि विरोधाभासी रूप से अधिक तीव्र शुष्क मौसम भी होंगे क्योंकि भूमि से अधिक पानी वाष्पित होगा। हाइड्रोलॉजिकल चक्र में ये परिवर्तन लंबे समय तक सूखा और बाढ़ लाने में सक्षम हैं। ये खतरे दुनिया के उन हिस्सों में भी फैल सकते हैं, जहां पर बाढ़ आना सामान्य नहीं है।"

भले ही पश्चिमी मेदिनीपुर में 1989 और 2018 के बीच कोलकाता की तुलना में मानसून के दौरान कम बारिश हुई, लेकिन इसके भूगोल और पर्याप्त उपायों की कमी के कारण यह क्षेत्र जलवायु आपदाओं का शिकार हो जाता है।

हर घर में नाव

नारायण गोस्वामी (फ़ोटो में बायें तरफ) अरगोरा के निवासी हैं। उनके साथ घाटल क्षेत्र के एक और निवासी पचराम बेरा भी हैं। गोस्वामी के अनुसार घाटल क्षेत्र एक कटोरे की तरह है, जो पड़ोसी क्षेत्रों से पानी इकट्ठा करता है।

घाटल के लोग इस वार्षिक बाढ़ के अभ्यस्त हो गए हैं। इस क्षेत्र के लगभग हर घर में एक लकड़ी की नाव होती है, जो बाढ़ के समय काम आता है। उस समय घाटल और चंद्रकोना को जोड़ने वाला महत्वपूर्ण राजमार्ग बाढ़ के कारण कट जाता है और लोगों के लिए परिवहन का एकमात्र साधन नाव होता है। बेरा मुस्कुराते हुए कहते हैं, ''जैसे आप मोटरसाइकिल का रख-रखाव करते हैं, वैसे ही हम अपने घर में नाव का रख-रखाव करते हैं।''

घाटल के निवासी मैती के अनुसार, "बाढ़ के दौरान घाटल ब्लॉक के विभिन्न जगहों पर तेज गति के जल प्रवाह से सड़कें बह जाती हैं और बिजली के साथ-साथ फोन कनेक्शन भी कुछ दिनों या सप्ताह भर के लिए बंद हो जाता है।" यदि बाढ़ क्षेत्र में लोगों को ऊंचे स्थान पर जाने के लिए नाव की आवश्यकता होती है तो सरकार निःशुल्क नाव मुहैया कराती है। मैती ने बताया, "लेकिन यदि आप अपने परिवार के लिए भोजन और पानी एकत्र करना चाहते हैं, तो आपको अपना नाव उपयोग करना होगा।"

घाटल नगर पालिका का एक प्रमुख बाजार प्रत्येक मानसून के मौसम में कुछ दिनों के लिए बाढ़ग्रस्त हो जाता है। गोस्वामी कहते हैं, "राजमार्ग ही एकमात्र ऐसी जगह है, जहां हाट या बाजार हैं क्योंकि घाटल का बाकी इलाका पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है। हम सभी बाढ़ के दौरान अपनी जरूरतों के लिए इसी बाजार पर निर्भर हैं।" घाटल ही नहीं बल्कि पड़ोसी दासपुर-1, दासपुर-2, चंद्रकोना-1 और चंद्रकोना-2 ब्लॉक के हजारों स्थानीय लोग भी इसी बाजार पर निर्भर हैं।

बाढ़ के कारण डूबा हुआ घर, 26 सितंबर 2022

बाढ़ के कारण मिट्टी से बने घर और अन्य इमारतें पूरी तरह बर्बाद हो जाती हैं, वहीं कंक्रीट के घर पानी के नीचे चले जाते हैं। यही कारण है कि आपको इस क्षेत्र में ऊंचे खंभों पर बने घर दिखाई देंगे।

घाटल के सुखचंद्रपुर वार्ड-1 में रहने वाली जमुना डोलुई कहती हैं, "यह उन कुछ तरीकों में से एक है, जिन्हें हम बाढ़ से बचाव के उपाय के रूप में जानते हैं। हमने भी अपने घर के खंभे के ऊपर बनाए हैं।" दोलुई का पहले का घर जमीन पर बना था। कई वर्षों तक बाढ़ का सामना करने के बाद उनके परिवार ने आखिरकार इतने पैसे बचा लिए कि ऊंचे खंभों पर एक नया घर बनाया जा सके।

गणेश मैती और क्षेत्र के अन्य निवासियों के अनुसार यह एक नई परंपरा है। मैती ने बताया, "लोगों ने करीब 8 से 10 साल पहले इस तकनीक की शुरुआत की थी। इसलिए आप नींव के नीचे खंभों वाले इलाके में जितने भी घर देखते हैं, वे सभी नए बने हुए लगते हैं। लेकिन इससे भी बाढ़ के दौरान कोई मदद नहीं मिलती है। एक रात पानी का बहाव तेज होने पर हमने अपने घर को हिलते हुए महसूस किया। जब हम अगली सुबह उठे तो एक खंभे और सीमेंट से बने सीढ़ियों में दरारें थी।"

इसके बाद उनके परिवार को अपने पड़ोसी के दो मंजिला घर की छत पर शरण लेनी पड़ी। बाद में उन्होंने एक सीढ़ी की व्यवस्था की, जिसे उन्होंने घर के प्रवेश द्वार की ओर जाने वाली टूटी हुई सीढ़ियों पर रख दिया।

बाढ़ क्या लाती है: गंदा पानी, बीमारियां और पलायन

बाढ़ अपने रास्ते में आने वाली सभी चीज़ों को तबाह कर देती है। कई परिवारों ने खुद को सुरक्षित रखने के लिए ऊंचे खंभों पर घर बना लिए हैं। लेकिन अक्सर बाढ़ खंभों को भी नुकसान पहुंचाता है। चित्र में डोलुई का घर (26 सितंबर, 2022)

बाढ़ के दौरान साफ पानी तक पहुंच एक बहुत बड़ी समस्या है। इस क्षेत्र में कुछ ही घरों में पानी की आपूर्ति होती है। अधिकांश निवासी स्थानीय सरकार द्वारा निर्मित नलकूपों के पानी पर निर्भर हैं। द्वारकेश्वर नदी के पानी का उपयोग लगभग हर घरेलू ज़रूरत के लिए किया जाता है, जिसमें कपड़े धोना, शौचालय को फ्लश करना, बगीचों में पानी देना और बर्तन धोना शामिल है।

घाटल नगर पालिका अक्सर मानसून के दौरान जल जमाव का अनुभव करती है। जून से सितंबर तक भारी बारिश के दौरान पानी की निकासी की गति विभिन्न कारकों द्वारा धीमी हो जाती है। इनमें बारिश की अधिकता, क्षेत्र की तराई प्रकृति, नदी का गाद और अपर्याप्त जल निकासी व्यवस्था शामिल है।

जल-जमाव के कारण भूतल को नुकसान, घर का गिरना, सब्जियों और फूलों के बगीचों का विनाश, कृषि फसलों का नष्ट होना आदि की आवृत्ति में वृद्धि हो जाती है।

नतीजतन, जब भी बाढ़ लंबे समय तक रहती है तो स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। डायरिया, बाढ़ से होने वाली सबसे प्रचलित बीमारी है। इसके अतिरिक्त हैजा, भोजन की विषाक्तता, विभिन्न जल जनित रोग और यहां तक कि सांप का काटना भी आम है।

भारी बारिश और बाढ़ के दौरान मलेरिया और डेंगू सबसे बड़े खतरे हैं। हालांकि चिकित्सा व स्वास्थ्य टीमों, आशा कार्यकर्ताओं के समन्वित प्रयासों के कारण ऐसी बीमारियों का प्रसार कुछ हद तक कम हो गया है, जो लगातार बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करते हैं और लोगों को दवा देते हैं।

घाटल के जिला अस्पताल में काम करने वाली अनिंदिता मंडल कहती हैं कि बाढ़ के बाद वह और उनके सहयोगी बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के में घरों में जाते हैं और नलकूपों व घरों के आसपास ब्लीचिंग पाउडर फैलाते हैं, ताकि पानी से होने वाली बीमारियों को फैलने से रोका जा सके। मच्छरों की आबादी से निपटने के लिए सफाई कर्मचारी कीचड़ को साफ करते हैं, फिर ब्लीचिंग पाउडर और तेल के गोलों का भी इस्तेमाल करते हैं।

अनिंदिता मंडल घाटल के जिला अस्पताल में काम करती हैं और बाढ़ पीड़ितों की सहायता करती हैं

तेल के गोलों को बनाने के लिए घास को जूट के कपड़े में लपेटा जाता है और फिर पुराने तेल में एक सप्ताह या उससे अधिक समय तक डुबोया जाता है। इसके बाद इसे पानी में डाल दिया जाता है। ये तेल के गोले ऑक्सीजन के नीचे लार्वा को पनपने नहीं देते हैं। इसके अलावा ये मच्छरों को नाली में अंडे देने से रोकते हैं, जिससे मच्छरों की आबादी खत्म होती है।

मंडल कहते हैं, "चूंकि खुले में शौच अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में काफी प्रचलित है। महिलाओं के लिए [बाढ़ में] शौच करने के लिए एक सुरक्षित स्थान का पता लगाना कठिन हो जाता है, जिससे कई स्वास्थ्य जटिलताएं होती हैं।"

पलायन

वार्षिक बाढ़ और अनिश्चितता के कारण घाटल उप-मंडल के पुरुषों को काम की तलाश में पलायन करना पड़ा है। जमुना डोलुई का बेटा दक्षिण भारत के स्वर्ण उद्योग में एक कर्मचारी है। डोलुई कहती हैं, "घाटल के कई युवा अपने घरों को छोड़कर शहरी इलाकों में चले गए हैं क्योंकि यहां कृषि और मछली पालन के अलावा रोजगार के सीमित अवसर हैं। मैं उन्हें दोष नहीं दे सकती।"

पुरुषों के पलायन का मतलब है कि महिलाएं क्षेत्र में बार-बार आने वाली बाढ़ के प्रति और भी अधिक संवेदनशील होती जा रही हैं। ग्रामीण भारत में अन्य जगहों की तरह यहां भी महिलाएं कृषि कार्य में असमान रूप से लगी हुई हैं, जिससे वे बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अधिक संवेदनशील हो चुकी हैं। इसके अलावा सामाजिक परंपराएं महिलाओं को अन्य क्षेत्रों में करियर बनाने से रोकती हैं क्योंकि उनसे घर पर रहने और अपने बच्चों की देखभाल करने की अपेक्षा की जाती है।

मानसून के दौरान घाटल में खेती ना के बराबर हो पाती है। लंबे समय तक होने वाले बाढ़ के कारण अधिकांश किसान मानसून के मौसम में बुवाई से बचते हैं। इस प्रकार खरीफ या सर्दियों की फसल पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बाढ़ उनके खेतों को बर्बाद कर देती है और वार्षिक उत्पादन गिर जाता है। यद्यपि इस क्षेत्र में कृषि भूमि उपजाऊ है और विभिन्न प्रकार की फसलों को उगाने के लिए उपयुक्त है, लेकिन मानसून के दौरान यहां खेती लगभग असंभव है। यहां पर खेतों का उपयोग अक्सर केवल एक या अधिक से अधिक सालभर में दो फसलों के लिए किया जाता है।

जमीन पर हमने जिन लोगों से बात की, उन्होंने बताया कि वे जलीय खेती (जलीय जानवरों और पौधों का प्रजनन) पर अधिक निर्भर हुए हैं और इस क्षेत्र में लगातार बाढ़ के कारण इसके व्यापार में कुछ वृद्धि भी हुई है। हालांकि इस प्रवृत्ति पर अभी कोई निर्णायक डेटा नहीं है।

घाटल मास्टर प्लान

1976 में पहली बार पश्चिम बंगाल सरकार ने घाटल क्षेत्र में बाढ़ से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिए 'घाटल मास्टर प्लान' (जीएमपी) का प्रस्ताव रखा था। हालांकि आने वाले दशकों में इस प्रस्ताव पर कभी अमल नहीं हो सका।

जून 2022 में केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल सरकार के 1,500 करोड़ रुपये के जीएमपी को मंजूरी दी। इस परियोजना का उद्देश्य राज्य में कम से कम 10 महत्वपूर्ण नदियों के गाद को साफ और उन पर बने तटबंधों को मजबूत करना है। इस योजना में शिलाबाती, रूपनारायण और कंसाबती नदियां और पश्चिम व पुर्वी मेदिनीपुर जिलों की कई नहरें व तटबंध शामिल हैं।

घाटल क्षेत्र की नदियां भारी मात्रा में गाद लाती हैं, जो निचले इलाकों की ओर नदी के तल में जमा हो जाती हैं और नदी के पानी ले जाने की क्षमता को कम कर देती हैं। यही मानसून के दौरान बाढ़ का कारण बनता है। नदी की नियमित सफाई इसकी वहन क्षमता को बढ़ा सकता है, जिससे मानसून के दौरान भी अधिक पानी प्रवाहित हो सकता है।

पश्चिम मेदिनीपुर में जिला आपदा प्रबंधन टीम के साथ काम करने वाले समीम मिड्या ने कहा कि प्रस्तावित घाटल मास्टर प्लान को अभी तक राज्य सरकार के सभी विभागों द्वारा अनुमोदन नहीं मिला है और इस योजना की बातें जनता के लिए भी सार्वजनिक नहीं है।

अनिंदिता मंडल घाटल के जिला अस्पताल में काम करती हैं और बाढ़ पीड़ितों की सहायता करती हैं

स्काईमेट के अध्यक्ष शर्मा का कहना है कि चरम (एक्स्ट्रीम) मौसम की घटनाओं को ना तो रोका जा सकता है और ना ही नियंत्रित किया जा सकता है, हां इसका समाधान जरूर तैयार किया जा सकता है। वह कहते हैं, ''राज्य की एजेंसियों को कम समय में भी किसी आपदा प्रबंधन के लिए तैयार रहने की स्थिति में होना चाहिए। आपदाएं कभी भी आ सकती हैं और ये आपको अधिक चेतावनी भी नहीं देती हैं, इसलिए आपको पहले से तैयारी की आवश्यकता होती है।"

शर्मा कहते हैं कि अल्पकालिक आपदा प्रबंधन का अर्थ है कि सभी राज्य और केंद्रीय एजेंसियों को अपने बुनियादी ढांचे का उन्नयन करते रहना चाहिए, उनकी योजनाएं पहले से ही बनी होनी चाहिए और ये योजनाएं अल्प सूचना पर लागू भी हो जानी चाहिए।

मिड्या का कहना है कि इस क्षेत्र में पश्चिम बंगाल सरकार की प्राथमिकता जागरूकता, चेतावनी प्रणाली को लागू करना और तैयारी योजनाओं को बनाना है। मिड्या कहते हैं, ''नाले की निकासी, बांधों की मजबूती और तटबंधों की देखभाल जैसी सामान्य तैयारियां हमारे मुख्य काम हैं।''

केंद्रीय योजना 'आपदा मित्र' के तहत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) मई 2016 से हर साल बाढ़-प्रवण जिलों में बाढ़ से बचाव के लिए स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित करता है। यह योजना भारत के 25 सबसे बाढ़-प्रवण जिलों सहित कुल 30 जिलों में लागू है, जिसमें प्रति जिला 200 स्वयंसेवक के तहत लगभग 6,000 सामुदायिक स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित करने की योजना है। मिड्या ने बताया कि इन जिलों में पश्चिम मेदिनीपुर भी शामिल है।

इस कार्यक्रम का उद्देश्य सामुदायिक स्वयंसेवकों को आपदा के दौरान अपने समुदाय की तत्काल जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक जानकारी और क्षमताएं प्रदान करना है, जिससे उन्हें बाढ़, फ्लैश फ्लड और शहरी बाढ़ जैसी आपात स्थितियों में बुनियादी राहत और बचाव कार्य करने के लिए सशक्त बनाया जा सके। यह योजना साल 2022 में घाटल में लागू की गई थी और यह बाढ़ के खिलाफ लड़ाई में बहुत मददगार रही है।

इंडियास्पेंड ने पश्चिम बंगाल आपदा प्रबंधन व नागरिक सुरक्षा विभाग और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्यों से संपर्क किया, लेकिन उनमें से किसी ने भी घाटल मास्टर प्लान के बारे में कॉल या ईमेल का जवाब नहीं दिया। उनके जवाब आने पर हम कहानी को अपडेट करेंगे।

बाढ़ नियंत्रण के एक सामान्य समाधान के रूप में तटबंधों को देखा जाता है। हालांकि तटबंधों के साथ समस्या यह है कि इसके कारण नदी की तलछट में गाद, रेत, बजरी और पत्थर जमा हो जाते हैं। जैसे-जैसे जल स्तर बढ़ता है, तटबंधों के टूटने का डर भी बढ़ता जाता है।

विशेषज्ञों के अनुसार तटबंध लोगों को सुरक्षा का झूठा एहसास दिलाते हैं, जबकि वास्तव में तटबंध बाढ़ से होने वाले नुकसान को बढ़ा भी सकते हैं। कर कहते हैं, "तटबंध प्राकृतिक जलप्रवाह और नदियों के मार्ग को रोकते हैं। तटबंधों को मजबूत करना एक अल्पकालिक समाधान है क्योंकि यह बस समय की बात है कि कब वे टूट जाएं।"

कर कहते है कि तटंबधों का टूटना ही खतरनाक नहीं है, बल्कि वास्तविक खतरा मानसून के दौरान नदी के जल स्तर का बढ़ना है। बिना बांधी गई नदी में बढ़ता पानी अपने स्तर और रास्ते की तलाश कर लेता है, लेकिन जब इसे तटबंधों से बांधा जाता है तो जल स्तर क्षैतिज की बजाय उर्ध्वाधर रूप से बढ़ता है और तटबंध टूट जाते हैं। नदियां अब मैदान में बहने की बजाय झरने की तरह नीचे गिरती हैं।"

विशेषज्ञ कहते हैं कि घाटल के निवासी भाग्यशाली हैं कि उनके लिए कोई मास्टर प्लान है। वहीं स्थानीय बेरा कहते हैं, ''हम इस मास्टर प्लान के बारे में दशकों से सिर्फ सुन रहे हैं। नेता चुनाव के दौरान बस वादे करते हैं और हमने इस बारे में कोई समाधान होने की उम्मीद छोड़ दी है।"