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  • कम से कम ग्रामीण भारत की 86 फीसदी एवं शहरी भारत की 82 फीसदी आबादी के पास स्वास्थ्य व्यय समर्थन नहीं है।
  • किसी बिमारी के इलाज के लिए, अस्पताल में भर्ती कराए बगैर, ग्रामीण भारत में चिकित्सा व्यय औसतन 509 रुपए एवं शहरी भारत में 639 रुपए दर्ज किया गया है।
  • ग्रामीण भारत की लगभग 58 फीसदी चिकित्सा सेवा निजी अस्पतालों में की जाती है जबकि शहरी भारत में यह आकंड़े 68 फीसदी हैं।

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालयद्वरा किए गए ताजा स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक शहरी और ग्रामीण, दोनों क्षेत्रों में बिमारी का इलाज अधिकतर एलोपैथी माध्यम से किया जाता है।साथही भारत में उपचार का सबसे महत्वपूर्ण श्रोत निजी डॉक्टर हैं।

15 दिनों के सर्वेक्षण में शहरी इलाकों के करीब 12 फीसदी लोगों के बिमार होने के आकंड़े दर्ज किए गए हैं। इन आकंड़ों में साल 2004 में किए गए सर्वेक्षण की तुलना में 2 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। जबकि इस अवधि में ग्रामीण इलाकों में 9 फीसदी के बीमार होने के आकंड़े दर्ज किए गए हैं। ग्रामीण इलाकों में मामूली वृद्धि दर्ज की गई है।

ग्रामीण क्षेत्र में दर्ज की गई बीमारों की संख्या, 2014

अनुपात – प्रति 1,000 व्यक्ति

शहरी क्षेत्र में दर्ज की गई बीमारों की संख्या, 2014

अनुपात – प्रति 1,000 व्यक्ति

यदि उम्र के लिहाज़ से देखा जाए तो ग्रामीण और शहरी इलाकों के बीच की खाई और स्पष्ट रुप से दिखाई देती है।

आयुवर्ग अनुसार बीमारों की संख्या, 2014

ग्रामीण और शहरी इलाकों के बीच की खाई खास कर 45 से 59 वर्ष की आयु में स्पष्ट रुप से देखा गया है। ग्रामीण भारत में केवल 13 फीसदी लोगों में बीमारी दर्ज की गई जबकि शहरी इलाकों में 21 फीसदी लोग बीमार पाए गए, दोनों के बीच का अंतर 8 फीसदी पाया गया है।

70 वर्ष की आयु से अधिक वर्ग के बीच भी यह खाई स्पष्ट रुप से दिखाई देती है। ग्रामीण इलाकों में 70 और अधिक वर्ष के करीब 31 फीसदी लोग बीमार देखे गए जबकि शहरी इलाकों में यह आकंड़े 37 फीसदी देखे गए हैं।

इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी खास रिपोर्ट में बताया है कि किस प्रकार भारत, खास कर शहरी क्षेत्रों, में बदलती जीवन शैली से गैर संचारी रोग की वृद्धि हो रही और हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो रहा है।

यह सूचक जनवरी 2014 से जून 2014 के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों के 4,577 गांवों में एवं 3,720 शहरी ब्लॉकों में किए गए सर्वेक्षण पर आधारित है। सर्वेक्षण के दौरान ग्रामीण इलाकों के 36,480 परिवार एवं शहर के 29,452 परिवारों से संपर्क किया गया है।

निजी अस्पतालों का खर्च सरकारी अस्पलात की तुलना में चार गुना अधिक

किए गए सर्वेक्षण से पहले एक साल में शहरी इलाकों के 4 फीसदी लोग अस्ताल में भर्ती किए गए थे जबकि ग्रामीण इलाके के केवल 3.5 फीसदी लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

ग्रामीण इलाकों में अस्पताल में भर्ती हुए लोगों में से 42 फीसदी लोगों ने निजी अस्पताल में इलाज कराना पसंद किया जबकि शहरी इलाकों में यह आकंड़े 32 फीसदी रहे। यानि कि ग्रामीण इलाकों के 58 फीसदी लोग और शहरी इलाके के 62 फीसदी लोगों ने बीमारी का इलाज निजी अस्पतालों मे कराया।

निजी अस्पतालों का खर्च सरकारी अस्पतालों की तुलना में चार गुना अधिक दर्ज किया गया है। सरकारी अस्पतालों का खर्च जहां 6,120 रुपए देखा गया वहीं निजी अस्पतालों में यह खर्च बढ़ कर 25,850 रुपए दर्ज किया गया।

रिपोर्ट के अनुसार शहरी भारत के 12 फीसदी एवं ग्रामीण भारत के 13 फीसदी लोगों का राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना या इसी प्रकार की किसी और योजना के तहत स्वास्थ्य बीमा कराया गया है।

केरल में बीमारों की संख्या अधिक

केरल में, ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में 31 फीसदी की विसामान्यता दर्ज की गई है। जबकि भारत में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में औसत बीमार हुए लोगों के आकंड़े 12 फीसदी एवं 9 फीसदी दर्ज किए गए हैं।

इसका मतलब कि केरल जोकि एक समृद्ध राज्य है और जिसके पास देश की बेहतर स्वास्थ्य प्रणालियों में से एक है, जीवन शैली बीमारियों के मामले में अतिसंवेदनशील है। इंडियास्पेंड इस मुद्दे पर भी विस्तार से चर्चा कर चुका है।

शहरी क्षेत्रों में बीमारों की संख्या, 2014

अनुपात प्रति 1,000 व्यक्ति

आयु अनुसार बीमारों की संख्या, 2014

अनुपात प्रति 1,000 व्यक्ति

बचत पर भरोसा

शहरी भारत के 75 फीसदी लोग अस्पताल के खर्च का भुगतान करने के लिए आय या बचत पर भरोसा करते हैं जबकिग्रामीण परिवारों में से केवल 68 फीसदी ही ऐसे लोगों की संख्या देखी गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में 25 फीसदी लोगों को अस्पताल के खर्च के लिए बाहर से उधार लेना पड़ता है।

राज्यवर ग्रामीण क्षेत्रों में बीमारों की संख्या, 2014

यह लेख मूलत:अंग्रेज़ी में 17 जुलाई 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

Image Credit: Flickr/Direct Relief


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