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बेंगलुरु: देश के समृद्ध शहरों में से एक है बेंगलुरु । लेकिन हाल ही के आंकड़ों के विश्लेषण में चौंकाने वाली बात सामने आई है। सूचना के अधिकार के तहत मिले वर्ष 2015 के पुलिस आंकड़ों पर 101reporters.com और इंडियास्पेंड द्वारा हाल ही में एक विश्लेषण किया गया। विश्लेषण में पता चला कि वर्ष 2015 में बेंगलुरु के समृद्ध इलाकों में सबसे ज्यादा अपराध हुआ। जबकि एक तिहाई शहर में साल भर में किसी भी प्रकार के अपराध की सूचना दर्ज नहीं हुई ।

विश्लेषण के मुताबिक, करीब 34 फीसदी ज्यादा अपराध दिन के उजाले में होने की सूचना दी गई । इनमें बच्चों के खिलाफ अपराध और बलात्कार शामिल हैं।

आबादी के अनुसार देश के तीसरे सबसे बड़े शहर के 95 पुलिस स्टेशनों (जहां के आंकड़े प्राप्त हुए हैं ) में प्रतिदिन औसतन अपराध के खिलाफ 145 शिकायतें दर्ज की गई हैं। इनमें महिलाओं के खिलाफ ‘घृणित’ अपराध की 10 शिकायतें शामिल थीं। (बेंगलुरु में 111 पुलिस स्टेशन हैं, जिनमें से 16 पुलिस स्टेशनों के आंकड़े पूर्ण नहीं थे और इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सका है।)

जयनगर में हर तरह के अपराधों की अधिकतम संख्या की सूचना दर्ज की गई है। यहां हर दिन औसतन छह शिकायत दर्ज की गई हैं। प्रतिदिन औसतन चार शिकायतों के साथ एचएसआर लेआउट दूसरे और तीन शिकायतों के साथ कोरमंगला तीसरे स्थान पर है।

बेंगलुरु स्थित पत्रकारों के एक नेटवर्क 101Reporters.com ने वर्ष 2015 के लिए अपराधों पर पुलिस डेटा तक पहुंचने के लिए आरटीआई का उपयोग किया है। डेटा के मानचित्र से पता चलता है कि अपराध कहां हुआ । इससे पुलिस को उच्च अपराध वाले क्षेत्रों और संसाधनों पर ध्यान केंद्रित करने में सहायता मिलेगी। साथ ही राज्य प्रशासन अपने सीमित संसाधनों को बेहतर तरीके से उपयोग कर पाएगी।

यह बेंगलुरु के वर्ष 2015 के अपराध आंकड़ों पर विश्लेषण और मानचित्रण करते हुए तीन लेखों की श्रृंखला का पहला भाग है। यह भाग अपराध की क्षेत्रवार घटनाओं और पुलिस के निपटने के प्रयासों पर केंद्रित है। दूसरे भाग में महिलाओं के खिलाफ अपराध और तीसरे भाग में साइबर अपराध पर चर्चा की जाएगी।

जहां कम पुलिस वहां अधिक अपराधों की सूचना

दक्षिण-पूर्व बेंगलुरु के मडिवाला पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में एचएसआर लेआउट आता है। वहां वर्ष 2015 में भारत भर में हुए कुल अपराधों में से सबसे ज्यादा घटना दर्ज की गई है।

इससे एक बात तो साफ है कि यह क्षेत्र देश में सबसे असुरक्षित है। पुलिस उपायुक्त (दक्षिण-पूर्व) बोरलिंगाय्या एम.बी. ने बताया कि दक्षिण-पूर्व बेंगलुरु के सभी 14 पुलिस स्टेशनों के बीच मडिवाला पुलिस थाने का इलाका सबसे बड़ा है।

उन्होंने कहा कि पुलिस के काम को बेहतर बनाने के लिए, जनवरी 2016 में क्षेत्र को चार न्यायालयों में विभाजित किया गया था। साथ ही उन्होंने दावा किया कि इसके परिणामस्वरुप अपराध की घटनाओं में कमी हुई है।

मडिवाला के बाद सबसे ज्यादा अपराधिक घटनाएं पेनीया औद्योगिक क्षेत्र पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई हैं । बोरलिंगाय्या कहते हैं कि ‘पुलिस – जनसंख्या’ अनुपात में सुधार के बाद अपराध की घटनाओं पर नियंत्रित की उम्मीद है।

शहर के जयनगर इलाके में 28 अपहरण की घटनाएं, महिलाओं के खिलाफ 120 अपराध और बच्चों के खिलाफ अपराध के 32 मामले दर्ज हुए हैं।

लेकिन इसी दौरान मध्यमवर्गीय लोगों के इलाके जैकुर एयरोड्रोम, बीईएल एरिया, कृष्णराजपुरम और कवल बैरसंदरा के विभिन्न क्षेत्रों में अपराधिक मामले बहुत कम या न के बराबर दर्ज हुए हैं। आंकड़ों के मुताबिक, 626 इलाकों में से 226 (36 फीसदी) इलाकों में अपराधिक मामलों की सूचना नहीं मिली है। जबकि पूरे वर्ष में 99 इलाकों में एक से पांच घटनाएं दर्ज हुई हैं।

बेंगलुरू के पुलिस आयुक्त प्रवीण सूद शहर के कुछ इलाकों में कम अपराध होने का कारण बेहतर गश्त और नागरिकों की सक्रियता को मानते हैं। सूद कहते हैं, "जब शहर में पंजीकृत अपराध बढ़ रहा है, तो इसका मतलब है कि लोग घटना की रिपोर्ट करने के लिए आगे आ रहे हैं और अधिक अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया जा रहा है।"

अपराध दर को कम करने पर उन्होंने कहा कि विभाग ‘पुलिस-आबादी’ के अनुपात में सुधार करने और गश्त बढ़ाने के लिए काम कर रहा है। सूद कहते हैं, " अभी हमारे पास 272 हॉसलेस हैं (पुलिस गश्ती वाहन हैं), जिनमें से 51 गुलाबी हॉसलेस (महिला गश्त वाहन) हैं। हमने एक ऐप, ‘सुरक्षा’ भी जारी की है, जिसके माध्यम से एक व्यक्ति 10 से 15 सेकंड के भीतर एक बटन को क्लिक कर पुलिस की मदद ले सकता है। "

दिन में बलात्कार और बच्चों के खिलाफ की अपराध की घटनाएं ज्यादा

101Reporters द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि रात के मुकाबले, दिन के उजाले में 34 फीसदी अपराधिक घटनाएं ज्यादा हुई हैं। आंकड़ों के अनुसार, दिन में अपहरण की 609 घटनाएं हुई हैं जबकि रात में अपहरण की 258 घटनाएं हुईं। बच्चों के खिलाफ अपराध और बलात्कार की घटनाएं भी दिन में ज्यादा हुईं।

हालांकि, हत्या, हत्या का प्रयास, बलात्कार, अपहरण और छेड़छाड़ जैसे ‘जघन्य’ अपराध के रूप में वर्गीकृत अपराध रात को ही ज्यादा अंजाम दिए गए हैं। दिन की तुलना में ऐसे अपराध रात को 9 फीसदी ज्यादा हुए हैं। इसी तरह, महिलाओं के खिलाफ अधिक अपराध जैसे कि बलात्कार, छेड़छाड़, दहेज उत्पीड़न और अपहरण दिन के मुकाबले रात में ज्यादा हुए हैं। दिन में ऐसे अपराधों की संख्या 1,448 दर्ज है और रात में 1,820।

अध्ययन के मुताबिक, 2015 में, भारत की सिलिकॉन घाटी कहे जाने वाले शहर बेंगलुरु में महिलाओं के खिलाफ 3,157 घटनाएं हुई हैं। इनमें बलात्कार भी शामिल हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) ने यह संख्या कम बताई है-3,079 । इसका मतलब है कि शहर में प्रतिदिन औसतन 10 महिलाएं छेड़छाड़, यौन उत्पीड़न या हिंसा का शिकार होती हैं।

एनसीआरबी आंकड़ों से पता चलता है कि, बेंगलुरु में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में वृद्धि हुई हैं। यह आंकड़े वर्ष 2012 में 2,263 थे, जो अगले साल बढ़ कर 2,608 तक पहुंचे और 2015 में 3,554 दर्ज किए गए हैं।

महिलाओं के खिलाफ अपराधों की सजा दर कम, छेड़छाड़ में 2 फीसदी

महिलाओं के खिलाफ अपराध, विशेष रूप से बलात्कार और छेड़छाड़ के मामले में दोषी ठहराने की दर में गिरावट हुई है, जैसा कि कर्नाटक के महानिदेशक और पुलिस महानिरीक्षक रुपक कुमार दत्ता ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए बताया है। दत्ता ने यह भी बताया कि इसकी प्रमुख वजह अदालत की कार्यवाही में देरी है।

दत्ता आगे बताते हैं कि वर्ष 2012 में कर्नाटक में 709 बलात्कार की शिकायतें दर्ज हुईं, जिसमें 46 लोगों को दोषी ठहराया गया । इसी वर्ष छेड़छाड़ के कुल 3,215 मामलों में से 2 फीसदी से भी कम लोगों को सजा हुई है। एक तिहाई मामलों यानी 1,099 केस में या तो आरोपी को बरी कर दिया गया या मामला बर्खास्त कर दिया गया।

वर्ष 2013 में, 841 बलात्कार की शिकायतें दर्ज की गईं और सलाखों के पीछे भेजे जाने वाले आरोपियों की संख्या 66 थी। दर्ज किए गए 4,213 छेड़छाड़ मामलों में से केवल 1 फीसदी को सजा मिली है। 1,200 मामलों में आरोपी को बरी कर दिया गया था या मामला बर्खास्त कर दिया गया था।

कई "झूठे" मामले होते हैं और सही मामले दर्ज नहीं होते

बेंगलुरू पुलिस ने वर्ष 2006 और वर्ष 2016 के बीच दर्ज सभी 385 छेड़छाड़ के मामले को "झूठे" के रूप में चिन्हित किया है। लेकिन ऐसे कई मामले हैं जहां वास्तविक अपराधों को रिपोर्ट नहीं किया गया है । अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कार्य समिति के कर्नाटक अध्याय के अध्यक्ष जयंती जेके ने इंडियास्पेंड को बताया कि महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के मामलों में बेंगलुरु में काफी वृद्धि हुई है, लेकिन कई पीड़ितों के परिवारों ने बाद में होने वाले उत्पीड़न के डर से मामले की सूचना पुलिस में नहीं दी। जयंती जेके दो दशक से महिलाओं और बच्चों के लिए काम कर रही हैं। वह कई ऐसे पीड़ितों से मिली हैं, जिन्होंने पुलिस से उपहास और अत्याचार का सामना किया है।

जयंती ने पिछले साल के दो उदाहरण दिए: एक मामले में, सहायक उपनिरीक्षक ने कथित रूप से आरोपी से रिश्वत लेकर सामुहिक बलात्कार पीड़ित की सहमति के बिना ही मामला बंद कर दिया। एक और घटना में वर्ष 2015 में डीजे हल्ली में रहने वाले एक 35 वर्षीय ऑटो रिक्शा चालक सय्यद रिजवान को एक अज्ञात बलात्कार की शिकायत के बाद एक दिन के लिए कब्बन पार्क पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया था। जांच के बाद पुलिस ने उसे निर्दोष पाया और उसे रिहा कर दिया।

महिला अधिकार कार्यकर्ता और एनजीओ स्ट्री जगत समिति के सचिव गीता मेनन ने पुलिस के असहयोग के अपने व्यक्तिगत अनुभवों को साझा किया। उन्होंने दावा किया कि एक मामले में पुलिस ने न केवल शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया, बल्कि पीड़ित को कुछ भी कर लेने की चुनौती भी दी। उन्होंने आरोप लगाया कि जब एनजीओ ऐसे मुद्दों के बारे में वरिष्ठ अधिकारी से संपर्क करते हैं, तो उन्हें अदालत में जाने के लिए कहा जाता है। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस अधिकारी शिकायतों के खिलाफ अपने कनिष्ठों की रक्षा करते हैं- “पुलिस विभाग के भीतर एक अत्यधिक सक्रिय सुरक्षा तंत्र है। ”

दत्ता ने स्वीकार किया कि ऐसे मामलों को संभालने के लिए पुलिस कर्मियों को संवेदनशील होना होगा।

दत्ता ने यह भी कहा कि, इस उद्देश्य के लिए नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

तत्कालीन पुलिस उपायुक्त (दक्षिण-पूर्व) रोहिणी काटोच सेपत बताते हैं-“ एक पुलिस अधिकारी ने एक संज्ञेय अपराध के लिए शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया था। उसे इस मामले में दोषी पाये जाने पर पर कुछ दिनों के भीतर ही निलंबित कर दिया गया।”

सूद बताते हैं कि भारत में कहीं भी एक प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है, खासकर महिलाओं से संबंधित मामलों में। वह कहते हैं- "हमें इस पर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन हम इस मुद्दे को खत्म करने के लिए भी कड़ी मेहनत कर रहे हैं। बेंगलुरु में आपराधिक शिकायतों की उच्च संख्या का मतलब है कि पुलिस लगातार मामले दर्ज कर रही है। यह बेंगलुरू पुलिस के लिए अच्छी खबर है क्योंकि अपराध के आंकड़े नीचे रखने का एक आसान तरीका मामले दर्ज नहीं करना है।"

बेंगलुरु को अधिक पुलिस की जरूरत

बेंगलुरु की आबादी वर्ष 2013 में 1 करोड़ से ऊपर पहुंच चुकी है। दूसरी ओर कर्नाटक पुलिस में पुलिसकर्मियों की कमी रही है। एनसीआरबी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2013 में सर्वश्रेष्ठ पुलिस कवरेज वाले राज्यों की सूची में कर्नाटक निचले 10 राज्यों में था। हर 100 वर्ग किमी के लिए, राष्ट्रीय औसत 55 के मुकाबले राज्य में औसतन 40 पुलिसकर्मी थे। इसके विपरीत, चंडीगढ़ और दिल्ली टॉप स्थान पर थे और 100 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में 5,000 से अधिक पुलिस थे।

वर्ष 2008 में कर्नाटक ने पुलिस कर्मचारियों की कमी को देखते हुए बेंगलुरू की नाइटलाइफ़ पर 11.30 बजे की समय सीमा लागू की थी। निवासियों द्वारा लगातार अनुरोध और पुलिस के अवलोकन के बाद, आठ सालों के बाद ये सीमा समाप्त की गई।

जैसे-जैसे शहर बढ़ता है और उसकी आबादी बढ़ती है, पुलिस विभाग पर दबाव बढ़ता है जो पहले से ही कम स्टाफ की समस्या से जूझ रहा है। एक साल पहले, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 24,000 खाली पदों को भरने के लिए राज्य पुलिस को निर्देश दिया था। इसके चार महीने बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारम्माया ने घोषणा की थी कि अगले दो वर्षों में 15,000 पुरुष और महिलाएं भर्ती की जाएंगी। बैंगलोर के पुलिस उपायुक्त एच.डी. आनंद कहते हैं- “ अभी तक बड़े पैमाने पर भर्ती नहीं हुई है।”

(देशपांडे और मल्लिकार्जुनन ने इस लेख में योगदान दिया है। दोनों 101Reporters.com के सदस्य हैं। 101Reporters.com जमीनी स्तर पर काम करने वाले पत्रकारों का राष्ट्रीय नेटवर्क है। 101Reporters.com के प्रमुख सॉफ्टवेयर इंजीनियर अमोल ढेकेने ने रिपोर्ट के लिए मैप तैयार किया है।)

नोट: कुछ क्षेत्रों, जैसे किेंगेरी, तुराहल्ली, बनशंकरी के कुछ हिस्सों, परप्पन अग्रहारा, बायल और इलेक्ट्रॉनिक सिटी के लिए अपर्याप्त सूचना के कारण उनके मैप नहीं तैयार किए जा सकते हैं। शहर में 111 पुलिस स्टेशनों में से 95 के लिए पूर्ण डेटा उपलब्ध था

वर्ष 2015 में बेंगलुरु में होने वाले अपराध आंकड़ों के विश्लेषण पर तीन लेखों की श्रृंखला का यह पहला भाग है। दूसरा भाग सोमवार को प्रकाशित होगा।

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 20 जून 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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