चार साल में कम हुए 1.64 करोड़ बच्चे, कहां गये 37 हजार स्कूल?
दो साल के अंतराल के बाद केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग ने यूडीआईएसई प्लस 2022-2023, 2023-24 की रिपोर्ट जारी कर दी है। इन दो वर्षों में ही नामांकित छात्रों की संख्या 37 लाख से ज्यादा कम हो गई है। रिपोर्ट को लेकर विशेषज्ञ कई सवाल खड़े कर रहे हैं।
लखनऊ। वर्ष 2020-21 में देश के प्री-प्राइमरी से 12वीं तक स्कूलों में नामांकित छात्रों की कुल संख्या 26.4 करोड़ थी जो 2023-24 में 6% गिरावट के साथ 24.8 करोड़ हो गई। मतलब इन चार वर्षों में नामांकित छात्रों की संख्या 1.64 करोड़ कम हो गई। इस दौरान स्कूलों की संख्या 37 हजार की कमी के साथ 1,509,136 से घटकर 1,471,891 हो गई। नई रिपोर्ट के अनुसार 2023-24 में 2022-23 की तुलना में देश भर के स्कूलों में नामांकन में 37.45 लाख की गिरावट आई है। दो साल बाद 30 दिसंबर 2024 को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग ने यूडीआईएसई प्लस 2022-2023 और 2023-24 की रिपोट के ये आंकड़े कई सवाल खड़े करती हैं।
वर्ष 2012-13 से जब केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने यूडीआईएसई डेटा को बनाए रखना शुरू किया, तब से यह माना जाता था कि भारत में पढ़ने वाले छात्रों की कुल संख्या 25 करोड़ से ज्यादा थी। वर्ष 2018-19 में स्कूलों में नामांकित छात्रों की कुल संख्या 26.02 करोड़ थी, 2019-20 में यह संख्या 1.6% बढ़कर 26.45 करोड़ को पार कर गई जो लगभग 42 लाख छात्रों की वृद्धि दर्शाती है। 2022 में जब 2020-21 के आंकड़े जारी हुए गए तब तक यह संख्या 26.4 करोड़ से ज्यादा थी। दिसंबर 2024 में जब 2022-23 के आंकड़े सामने आये तो इसमें कुल नामांकन 25.18 करोड़ बताया गया और 2023-24 में ये संख्या 6% या 1.22 करोड़ छात्रों की गिरावट के साथ 24.8 करोड़ हो गई।
इतनी गिरावट क्यों और कैसे?
वर्ष 2022-23 में नामांकित छात्रों की संख्या 25.17 करोड़ थी, 2023-24 के लिए यह संख्या 24.80 करोड़ थी। इसमें छात्राओं की संख्या में 16 लाख की गिरावट आई, जबकि छात्रों की संख्या में 21 लाख की गिरावट आई। कुल नामांकन में अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व लगभग 20 प्रतिशत रहा। अल्पसंख्यकों में 79.6 प्रतिशत मुस्लिम, 10 प्रतिशत ईसाई, 6.9 प्रतिशत सिख, 2.2 प्रतिशत बौद्ध, 1.3 प्रतिशत जैन और 0.1 प्रतिशत पारसी थे।
यूडीआईएसई की रिपोर्ट में शिक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने एक डिस्क्लेमर दिया है कि 2022-23 और 2023-24 की रिपोर्ट के लिए आंकड़ों को जुटाने की पद्धति में बदलाव किया गया है। ऐसे में इसकी तुलना पिछले वर्षों के आंकड़ों से नहीं की जा सकती।
“छात्रों के घटते नामांकन और स्कूलों की कम होती संख्या पर यूडीआईएसई चुप है। डिस्क्लेमर में बहुत ज्यादा दम नहीं है। इस पर ठोस जवाब दिये जाने चाहिए। गिरावट की वजहों पर बात ही नहीं की गई है।” दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन प्लानिंग ऐंड एडमिनिस्ट्रेशन (एनआईईपीए) के पूर्व हेड ऑफ डिपार्टमेंट और यूडीआईएसई रिपोर्ट पर 15 वर्षों से काम कर रहे प्रोफेसर अरुण मेहता सवाल करते हैं।
वे आगे कहते हैं कि बीते एक दशक से पहली से बारहवीं कक्षा तक हर स्तर पर स्कूल जाने वालों की तादाद लगातार कम हो रही है। नामांकन में गिरावट बाल आबादी में गिरावट से कहीं ज्यादा है। लेकिन केंद्र सरकार इस गिरावट की वजह का पता लगा कर उनको दूर करने के बजाय वर्ष 2018-19 के आंकड़ों का हवाला देते हुए स्थिति में सुधार के दावे कर रही है। उसी साल नामांकन में सबसे कम गिरावट दर्ज की गई थी।
वर्ष 2021-22-2023-24 से 1.4 करोड़ या 11.62% की सबसे महत्वपूर्ण पूर्ण गिरावट प्राथमिक स्तर, कक्षा 1 से 5 तक है। यह इसी अवधि के दौरान नामांकन में कुल गिरावट का लगभग 67% है। प्राथमिक शिक्षा में उनकी अधिक हिस्सेदारी के कारण सरकारी स्कूल संभवतः सबसे अधिक प्रभावित हैं। उच्च प्राथमिक स्तर, कक्षा 6-8 में नामांकन में 27.28 लाख छात्रों (4.14%) की गिरावट आई है। माध्यमिक स्तर पर नामांकन में 21.42 लाख छात्रों (5.49%) की गिरावट आई है।
“पिछले यूडीआईएसई डेटा प्रकाशन की तारीखों में भी बदलाव आया है जो पहले ऐतिहासिक रूप से 30 सितंबर हुआ करता था। लेकिन पहली बार वर्ष 2022-23 और 2023-24 दोनों के डेटा मार्च के साथ रिपोर्ट किए गए हैं। 31, 2024 कट-ऑफ तारीख है। दोनों रिपोर्ट की कट-ऑफ तारीख एक जैसी कैसे हो सकती है?” प्रोफेसर मेहता सवाल करते हैं।
वे आगे कहते हैं, “रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि मंत्रालय दस्तावेज में रिपोर्ट किए गए डेटा में किसी भी त्रुटि या चूक के लिए कोई जिम्मेदारी या दायित्व नहीं लेता है, क्योंकि रिपोर्ट सक्रिय यूडीआईएसई + कोड वाले स्कूलों की अपलोडिंग पर आधारित है। वर्ष 2022-23 से 2024-25 के लिए यूडीआईएसई+ डेटा एक बार में उपलब्ध कराने के बजाय विभाग को डेटा को चरणबद्ध तरीके से प्रसारित करना चाहिए था, जैसा कि पहले किया गया था। यूडीआईएसई प्लस पोर्टल को ब्लॉक और जिले जैसे अलग-अलग स्तरों पर नामांकन सूचकांक भी प्रकाशित करते चाहिए ताकि आंकड़ों को लेकर कोई गलतफहमी ना रहे।”
आंकड़ों में अंतर और कार्यप्रणाली में बदलाव
“UDISE+ 2022-23 और 2023-24 की रिपोर्ट के किसी भी टेबल में टाइम सीरीज की जानकारी नहीं है। UDISE+ 2023-24 डेटा की राष्ट्रीय झलकियां दिखाने वाली कम से कम तालिका 1 में 2021-22 और 2022-23 डेटा भी शामिल होना चाहिए जिससे समय के साथ हुई प्रगति की तुरंत तुलना की जा सके। रिपोर्ट में उन मुद्दों को चिह्नित नहीं किया गया जिन पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। हालांकि शैक्षिक सुविधाओं और अन्य संकेतकों को दर्शाने वाले कुछ मानचित्रों को रिपोर्ट में जगह मिली।”
“यूडीआईएसईप्लस 2022-23 और 2023-24 रिपोर्ट में कुछ नए चीजें जोड़ी गई हैं, जैसे प्रति स्कूल शिक्षकों की औसत संख्या (राष्ट्रीय स्तर, सात शिक्षक), एक स्कूल में औसत नामांकन (169 छात्र), बिना नामांकन वाले स्कूल (12,954, 0.88) प्रतिशत), शून्य नामांकन वाले स्कूलों में शिक्षक (31,981 शिक्षक), एकल-शिक्षक स्कूल (1,10,971 स्कूल, 7.54 प्रतिशत), नामांकन एकल-शिक्षक स्कूलों में (39,94,097 छात्र, कुल 235 मिलियन छात्रों का 1.70 प्रतिशत), नामांकन स्लैब में स्कूलों का प्रतिशत आदि। यह एक स्वागत योग्य कदम है। यदि अलग-अलग स्तरों इनका पर विश्लेषण किया जाए तो विश्वव्यापी स्कूली शिक्षा पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाले कई दिलचस्प तथ्य उजागर होंगे।” प्रोफेसर मेहता बताते हैं।
यूडीआईएसईप्लस रिपोर्ट के नामांकन स्लैब में स्कूलों का प्रतिशत बताता है कि 2023-24 में 14,71,891 स्कूलों में से लगभग 56.7 प्रतिशत (8,34,562 स्कूलों) में 100 से कम छात्र हैं और 6.6 प्रतिशत में 500 या अधिक छात्र हैं। इसके अलावा डेटा से पता चलता है कि कुल स्कूलों में से 4.6 प्रतिशत (67,707 स्कूल) में 10 से कम छात्र हैं, जबकि 7.2 प्रतिशत स्कूलों (1,05,976 स्कूल) में 11 से 20 छात्र हैं। 8.8 प्रतिशत स्कूलों (1,29,526 स्कूल) में 10 से कम छात्र हैं।
21 से 30 छात्रों के बीच के नामांकन से पता चलता है कि भारत के हर पांचवें स्कूल में 30 छात्रों (20.6 प्रतिशत) तक नामांकन है। "इस प्रकार बड़ी संख्या में मौजूद छोटे स्कूलों के लिए अलग योजना पद्धति की आवश्यकता का संकेत मिलता है। UDISE+ 2024-25 रिपोर्ट में प्रवेश/प्रवेश दर को कक्षा 1 में नामांकन के बारे में व्यापक जानकारी के रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। प्रवेश दर (लड़के और लड़कियों, और एससी और एसटी) का विश्लेषण किए बिना सार्थक योजना की उम्मीद नहीं की जा सकती, जैसा कि एनईपी 2020 में परिकल्पना की गई है। विश्वव्यापी स्कूली शिक्षा की ओर बढ़ने के लिए छह साल की उम्र के सभी बच्चों को शिक्षा के दायरे में लाना आवश्यक है।" मेहता सरकार से मांग करते हैं।
शिक्षा मंत्रालय का दावा है कि प्रत्येक छात्र से व्यक्तिगत डेटा संग्रह की प्रक्रिया, जिसमें उनका आधार नंबर भी शामिल है जो 2022-23 से लागू की गई थी। प्रोफेसर मेहता ने कहा कि इसी तरह की प्रक्रिया 2016-17 में शुरू की गई थी और एक साल तक चली थी।
"हमने तब भी अनुमान लगाया था कि स्कूलों द्वारा उनके परिसर में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या के बारे में भेजे गए डेटा को सत्यापित करने का कोई तरीका नहीं था और इसलिए एक साल के लिए एनआईईपीए ने शिक्षा मंत्रालय की सहमति से व्यक्तिगत छात्र डेटा एकत्र करने का प्रयास किया था। हालांकि बाद के वर्षों में यह प्रक्रिया बंद कर दी गई और 2022-23 में ही फिर से शुरू की गई।"
स्कूलों की संख्या में 5% की गिरावट
वर्ष 2020-21 और 2023-24 के दौरान स्कूलों की कुल संख्या में 37,317 स्कूलों (2.46 प्रतिशत) की गिरावट आई है। हालांकि इस दौरान स्कूलों की संख्या में पांच हजार की बढ़ोतरी हुई है। यूडीआईएसईप्लस 2021-22 की तरह नई रिपोर्ट में समय के साथ यूडीआईएसईप्लस के तहत कवर किए गए स्कूलों की संख्या में इस गिरावट का कोई विश्लेषण नहीं है। रिपोर्ट में यूडीआईएसईप्लस के तहत स्कूलों के कवरेज में गिरावट के कारणों पर कोई स्पष्टीकरण नहीं है।
क्या यह गिरावट स्कूलों के बंद होने या स्कूलों के विलय के कारण है, इसकी भी कोई जानकारी सार्वजनिक डोमेन में नहीं है। वहीं मान्यता प्राप्त निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल धीरे-धीरे 2023-24 में बढ़कर 3,31,108 हो गए हैं जो 2021-22 में 323,430 थे। हालांकि 2020-21 और 2021-22 में ये संख्या क्रमश: 343,314 और 335,844 थी।
प्रो. मेहता ने कहा, "शिक्षा मंत्रालय को स्कूलों की संख्या में गिरावट के कारण बताने चाहिए। क्या यह स्कूलों के बंद होने और विलय के कारण था? और स्कूलों को बंद करते समय, क्या एक किलोमीटर के भीतर एक प्राथमिक स्कूल होने के शिक्षा के अधिकार के मानदंडों का पालन किया गया?"
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विभिन्न राज्यों में स्कूलों, शिक्षकों और नामांकित छात्रों की उपलब्धता अलग-अलग है। उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, असम, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान जैसे राज्यों में उपलब्ध स्कूलों का प्रतिशत नामांकित छात्रों के प्रतिशत से अधिक है, जिसका अर्थ है कि उपलब्ध स्कूलों का कम उपयोग हो रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जबकि तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पंजाब, दिल्ली और बिहार जैसे राज्यों में उपलब्ध स्कूलों का प्रतिशत नामांकित छात्रों की तुलना में काफी कम है, जो बुनियादी ढांचे के बेहतर उपयोग को दर्शाता है।
जीएमएस लखनऊ से जुड़े और लगभग 20 वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे लखनऊ के डॉक्टर धीरज मेहरोत्रा कहते हैं, "2023-24 के लिए यूडीआईएसई-प्लस डेटा ने भारतीय शिक्षा प्रणाली के लिए एक गंभीर चिंता की तरफ ध्यान दिलाया है। स्कूलों की संख्या में वृद्धि के बावजूद स्कूल नामांकन में गिरावट चिंताजनक है।"
इस समस्या का समाधान क्या है? "प्रवेश प्रक्रिया को सरल बनाना होगा। इससे हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए चुनौतियां कम होंगी। स्कूल भी छात्रों और परिवारों को छात्रवृत्ति प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं। मिड-डे-मील जैसी योजनाओं को और प्रभावी बनाना होगा। इससे बड़ी मदद मिलेगी। इसके अलावा स्कूलों को अभिभावकों के साथ मिलकर काम करना चाहिए, खासकर लड़कियों और माध्यमिक स्तर के छात्रों के लिए। सामुदायिक कार्यक्रम भी इसमें मदद कर सकते हैं। स्कूलों को छात्रों की सहभागिता और सीखने के परिणामों को बढ़ाने के लिए प्रभावी ढंग से काम करना होगा।" धीरज आगे कहते हैं।
आखिर नामांकन में गिरावट की वजह क्या है? शिक्षाशास्त्रियों का कहना है कि प्राइवेट स्कूलों में फीस बहुत तेजी से बढ़ रही है। बावजूद इसके मध्यवर्ग उसकी ओर ही जा रहा है। इसका सीधा मतलब है कि सरकारी स्कूलों में आधारभूत ढांचे और शिक्षकों की कमी से छात्रों में पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी खत्म हो रही है।
शिक्षाविद और पूर्वांचल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर डॉक्टर मोनज मिश्रा कहते हैं, "कई छात्र तो मिड-डे-मील और दूसरी सरकारी योजनाओं के लालच में स्कूल पहुंचते हैं। लेकिन अब ये बहुत प्रभावी नहीं रहा। सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है। साथ ही कमेटी बनाकर शिक्षा के स्तर पर कई बदलाव की जरूरत है।”
वाराणसी के माध्यमिक स्कूल में प्रिंसिपल (नाम न लिखने की शर्त पर) कहते हैं कि सरकारी स्कूला में बहुत वैकेंसी है। लेकिन सरकार इनको भरना नहीं चाहती। हर साल भारी तादाद में स्कूलों से बच्चों के नाम कट रहे है। लेकिन नया दाखिला हो नहीं रहा। संख्या में गिरावट की ये सबसे बड़ी वजह है।