नई दिल्ली: अब से कुछ दिन में साल 2024 का अंत होगा और पूरी दुनिया एक नए साल का स्वागत करेगी। यूं तो 2024 भारत में चुनावी साल जैसा रहा जिसमें लोकसभा के साथ साथ विधानसभा चुनाव संपन्न हुए। इसके साथ साथ यह पूरा साल प्राकृतिक और जलवायु परिवर्तन के गंभीर बदलावों के नाम भी रहा। जीवन और जीविका को प्रभावित करने वाली ऐसी घटनाएं दुनिया भर में देखने को मिलीं लेकिन भारत में इन एक्सट्रीम वेदर कंडीशन का सिलसिला पूरे वर्ष दर्ज किया गया। जंगलों खासतौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में आग, द​क्षिणी राज्यों में ​अत्य​धिक गर्म हवाएं (लू) और उत्तर क्षेत्र में तेज बारिश व बाढ़ ने लाखों जिंदगियों पर बुरा असर डाला।

हाल ही में जारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने साल 2024 में बड़ी संख्या में एक्सट्रीम वेदर कंडीशन की घटनाओं का अनुभव किया, जिसमें वर्ष के पहले नौ महीनों में 93% दिन खराब मौसम जैसे लू, शीत लहर, चक्रवात, भारी बारिश, बाढ़, बिजली और भूस्खलन देखने को मिले। इसके चलते देश भर में 3,238 लोगों की मौत हुई जबकि 235,862 परिवारों को जान के साथ साथ माल का भी नुकसान सहना पड़ा। इतना ही नहीं, देश भर में 32 लाख से भी ज्यादा हेक्टेयर फसलें प्रभावित हुई हैं। यही कारण है कि इन आंकड़ों को साल 2024 में भारत में जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा प्रभाव माना जा रहा है।

एक्सट्रीम वेदर कंडीशन का मतलब ये है कि या तो तेज गर्मी पड़ी या शीतलहर चली या भारी बारिश हुई या भयंकर सूखा पड़ा या कोई आंधी-तूफान आया।

उत्तराखंड के पौड़ी जिले में आग और उसके बीच से निकला स्थानीय निवासी। स्त्रोत : परी​क्षित निर्भय

केंद्र सरकार ने शीत सत्र के दौरान संसद में यह बताया कि साल 2024 में जंगलों में आग की कुल घटनाएं 2.03 लाख दर्ज की गईं। इनमें सर्वा​धिक 11256 घटनाएं उत्तराखंड में हुईं जहां 13 में से 11 जिलों में लंबे समय तक आग का सामना करना पड़ा। जबकि 2023 में इस राज्य में कुल 5,351 घटनाएं दर्ज हुई। इसी तरह हिमाचल प्रदेश में साल 2023 में कुल आग की घटनाएं 687 हुई जिनमें 110 गर्मी के मौसम में दर्ज की गईं लेकिन साल 2024 में कुल मामले बढ़कर 2458 तक पहुंच गए जिनमें 2413 घटनाएं गर्मी के मौसम में रहीं। रामपुर, चंबा, मंडी, धर्मशाला, नाहन, कुल्लू, बिलासपुर, ​शिमला, हमीरपुर और सोलन जैसे चर्चित पर्यटन स्थलों के जंगल सबसे ज्यादा प्रभावित रहे।

हिमाचल में 1339%, जम्मू कश्मीर में 2822% की वृद्धि

हिमाचल प्रदेश के मंडी क्षेत्र ऊपर पहाड़ी पर घने जंगल में आग का यह दृश्य। स्त्रोत : परी​क्षित निर्भय

राज्य वन रिपोर्ट 2023 के अनुसार, हिमाचल प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में जंगल की आग की घटनाओं की संख्या में 1,339 फीसदी की वृद्धि हुई है जबकि जम्मू और कश्मीर में पिछले आग के मौसम में 2,822 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पर्यावरण मंत्रालय द्वारा उपयोग किए जाने वाले विजिबल इन्फ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर सूट (VIIRS) डेटा के अनुसार, उत्तराखंड में जंगल की आग की घटनाओं में 293 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।

विशेषज्ञ इन घटनाओं के लिए पर्यावरणीय कारकों को जिम्मेदार बताते हैं। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि इस साल अनियमित बारिश और बर्फबारी का एक कारण सक्रिय अल नीनो है। नई दिल्ली ​स्थित केंद्रीय पृथ्वी मंत्रालय के प्रो. अवनीश ने इंडिया स्पेंड से बातचीत में कहा कि अल नीनो एक समुद्री घटना है जो उष्णकटिबंधीय प्रशांत के भूमध्यरेखीय क्षेत्र में समुद्र के तापमान और वायुमंडलीय स्थितियों में परिवर्तन के लिए जिम्मेदार है। इस परिवर्तन के कारण समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से बहुत अधिक हो जाता है। चूंकि ऊपरी वन क्षेत्रों में नमी की कमी भी है इसलिए जंगल की आग के मामलों में वृद्धि के लिए इसका योगदान है।


हिमाचल वन विभाग का यह ग्राफ, 2024 में आग की घटनाएं बताता हुआ। स्त्रोत : हिमाचल प्रदेश वन विभाग

उन्होंने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में भारत के हिमालय क्षेत्र लगातार इन घटनाओं की वृद्धि दर्ज कर रहे हैं। आमतौर पर आग का सीजन अप्रैल से शुरू होकर करीब 10 सप्ताह तक चलता था लेकिन अब यह नवंबर यानी ठंड के मौसम से शुरू हो रहा है। इससे वन जैव विविधता को नुकसान के साथ साथ जंगली जानवरों और कीड़ों की आबादी कम होना, देशी वनस्पतियों का क्षेत्र सिकुड़ना, अवांछित और आक्रामक पौधों का प्रसार बढ़ने के साथ साथ प्राकृतिक जल संसाधनों और वन संसाधनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

राज्यों की संख्या बढ़ी, द​क्षिण में भी लू

जून 2024 के दौरान गर्मी के समय दिल्ली के वसंतकुंज इलाके की यह तस्वीर। स्त्रोत : परी​क्षित निर्भय

हाल ही में जारी सीएसई की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 के पहले नौ महीनों के विश्लेषण से पता चला कि भारत ने 274 दिनों में से 255 दिनों में चरम मौसम की घटनाओं का अनुभव किया। इसी अवधि के लिए मिलान 2023 में 235 दिन और 2022 में 241 दिन था। इन घटनाओं में 3,238 लोगों की मृत्यु हुई। भारत के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 35 में अत्यधिक मौसम का अनुभव हुआ। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान विशेष रूप से बुरी तरह प्रभावित हुए। रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने पाया कि एक जनवरी से 30 सितंबर 2024 तक 93% ज्यादा दिनों तक एक्सट्रीम वेदर कंडीशन की घटनाएं दर्ज की गईं।

नई दिल्ली ​स्थित राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के राष्ट्रीय वन हेल्थ स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनओएचपी-पीसीजेड) ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी है जिसमें कहा है कि 2024 में एक मार्च से 18 जून के बीच 40272 लोग गर्मी की चपेट में आने के बाद अस्पताल पहुंचे जिन्हें संदिग्ध मामला माना गया है। इनमें से 110 मरीजों की मौत हुई है। 18 जून को एक दिन में छह मरीजों की मौत गर्मी की वजह से हुई। बिहार, राजस्थान और ओडिशा के बाद उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 36 लोगों की मौत हुई। उत्तर प्रदेश के 47 फीसदी अस्पतालों ने 3590 संदिग्ध मामले और 36 मौतें बताई हैं। इसी तरह मध्य प्रदेश में 20, पंजाब 21, हरियाणा 26, जम्मू कश्मीर 41, उत्तराखंड 43, चंडीगढ़ 64 और हिमाचल प्रदेश के 74 फीसदी अस्पतालों से ही गर्मी से प्रभावित होने वाले मरीजों की जानकारी पता चल पाई।

अत्य​धिक गर्मी की वजह से साल 2024 में पहली बार सरकार ने दिल्ली के आरएमएल अस्पताल में यह सेंटर शुरू किया। स्त्रोत : परी​क्षित निर्भय

भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी), राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) और राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, 2015 से 2023 के बीच देश में अत्यधिक गर्मी प्रभावित राज्यों की संख्या 17 से बढ़कर 23 पहुंच गई है जबकि 2024 में इनकी संख्या 30 का आंकड़ा छू गई है। राज्यों की इस सूची में अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल भी शामिल है जहां लू की संभावना कम रहती थी। तमिलनाडु और केरल जैसे तटीय और हिमाचल व अरुणाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यों में गर्म लहरें यानी लू का असर नहीं था लेकिन यहां काफी तेजी से मौसम में बदलाव आया है।

साल 2024 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने हीटस्ट्रोक से 360 लोगों की मृत्यु की सूचना दी, लेकिन एक गैर-लाभकारी रिपोर्ट में 733 मौतें और 40,000 से अधिक हीटस्ट्रोक के मामले सामने आए। वहीं कुछ मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है कि साल 2024 में भीषण गर्मी के कारण 219 लोगों की मौत हो गई, जिनमें 33 चुनाव ड्यूटी पर तैनात कर्मचारी भी शामिल थे।

मध्य में बारिश, उत्तर में बाढ़

चैन्ने के उत्तर क्षेत्र में अत्य​धिक बारिश के बाद बाढ़ का यह दृश्य, स्त्रोत : परी​क्षित निर्भय

भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, 2024 के मानसून सीजन में खराब मौसम की घटनाओं के दौरान भारत में कुल 1,492 लोगों की मौत हुई। आंकड़ों से पता चला कि बाढ़ और बारिश से संबंधित घटनाओं के कारण 895 लोगों की जान चली गई, जबकि मानसून के मौसम के दौरान तूफान और बिजली गिरने से 597 लोगों की मौत हो गई। आईएमडी ने बताया कि देश में 525 भारी वर्षा की घटनाएं (115.6 मिमी और 204.5 मिमी के बीच वर्षा) हुई (जो पिछले पांच वर्षों में सबसे अधिक है) और 2024 मानसून के दौरान 96 अत्यधिक भारी वर्षा की घटनाएं (204.5 मिमी से ऊपर) हुईं।

9 से 10 जुलाई 2024 को भारी वर्षा, तूफान और बिजली गिरने से उत्तर-पश्चिमी भारत, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश राज्य प्रभावित हुआ, जिससे गंभीर मौसम संबंधी घटनाएं हुईं। 13 जुलाई तक आकाशीय बिजली गिरने से 38 लोगों की मौत हो गई, जिनमें से 11 की मौत प्रतापगढ़ में, सात की सुल्तानपुर, छह की चंदौली, पांच की मौत हुई। दक्षिण-पूर्वी उत्तर प्रदेश में सिद्धार्थनगर जिले। इसके अलावा 20 लोग घायल हुए। इसी तरह 14 से 16 अक्टूबर 2024 के बीच तेज बारिश के चलते गुजरात में 20 लोगों की मौत हुई। यहां 1,681 परिवारों को विस्थापित होना पड़ा। बाढ़ से घरों, सड़कों और फसलों सहित बुनियादी ढांचे को व्यापक नुकसान पहुंचा। इनके अलावा असम और मध्य प्रदेश में बाढ़ और भारी बारिश के कारण क्रमश: 102 और 100 मौतें दर्ज की गईं। इसी तरह केरल में 397 मौत दर्ज की गईं।



बारिश की वजह से देश के अलग अलग क्षेत्रों की यह तस्वीर, एनडीएमए की टीम लोगों को सुर​क्षित​ स्थान की ओर ले जाते हुए। स्त्रोत : परी​क्षित निर्भय

मध्य भारत में क्षेत्र के लिए लंबी अवधि के औसत से 19 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई, दक्षिणी प्रायद्वीप में सामान्य से 14 प्रतिशत अधिक और उत्तर-पश्चिम भारत में सामान्य से 7 प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज की गई। जबकि पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में सामान्य से 14 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई। हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर जून माह में 11 प्रतिशत वर्षा की कमी का अनुभव हुआ, इसके बाद जुलाई में 9 प्रतिशत से अधिक, अगस्त में 15.3 प्रतिशत और सितंबर में 11.6 प्रतिशत की कमी हुई।

फसलें बर्बाद, किसानों को नुकसान



ओलावृ​ष्टि के चलते महाराष्ट्र के जलगांव इलाके का यह दृश्य, यहां 2024 में बड़े आकार के ओला ने खेती को नुकसान पहुंचाया। स्त्रोत : परी​क्षित निर्भय

अत्यधिक वर्षा के कारण कई जिलों में भयंकर बाढ़ और भूस्खलन हुआ, जिसका सबसे ज्यादा खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ता है। स्फीयर इंडिया की हालिया रिपोर्ट में बताया है कि त्रिपुरा में लगभग 160,000 हेक्टेयर फसल भूमि पूरी तरह से जलमग्न हो गई है। धान के खेत और सब्जियों की खेती विशेष रूप से प्रभावित हुई। वहीं गुजरात में भी बारिश से खड़ी फसलों को भारी नुकसान हुआ। कपास, मूंगफली, सोयाबीन और दालों सहित खरीफ सीजन की फसलों को काफी नुकसान हुआ जिसका आकलन अब तक नहीं हो पाया है। भारत के इंटरैक्टिव एटलस पर उपलब्ध अनुमान के अनुसार, भारी बारिश और बाढ़ के कारण कम से कम 1.19 लाख हेक्टेयर फसल क्षेत्र क्षतिग्रस्त हुआ। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में सितंबर माह के दौरान चार लाख हेक्टेयर से अधिक फसल भूमि को नुकसान हुआ। वहीं मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, भारी बारिश के कारण महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में 18 लाख हेक्टेयर से अधिक खरीफ फसलें और बागवानी प्रभावित हुई।

उत्तराखंड की हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल युनिवर्सिटी के प्रो. एमपीएस बिष्ट ने इंडिया स्पेंड को बताया, "आम तौर पर मानसून जून के महीने में शुरू होकर करीब 17 सितंबर तक उत्तर-पश्चिमी हिस्सों से पीछे हटने लगता है। अक्टूबर के मध्य तक यह पूरे देश में समाप्त हो जाता है। हमारे देश की लगभग 3.5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था की सबसे मजबूत जीवनधारा यानी कृ​षि के लिए यह मानसून खेतों को पानी देने, जलाशयों व जलभृतों को फिर से भरने के लिए जरूरी लगभग 70% बारिश लाता है। हालांकि मौसम चक्र में बदलावों के चलते पिछले कुछ वर्षों से अत्य​धिक बारिश बड़ा नुकसान का कारण बन रही है। इसके पीछे कई कारण हैं जिनमें से एक हिंद महासागर के गर्म होने से फ्लाइंग रिवर्स का बनना भी है। जलवायु परिवर्तन चुनौतियों में इजाफा कर रहा है और जैसे-जैसे वातावरण गर्म होता है, इसका बारिश पर पड़ता है। लगातार बारिश की लंबी अवधि, अब भारी बारिश के छोटे विस्फोट में बदल रही है।"

इनपुट- अलका बरबेले