चंदासी: चंदासी कोयला मंडी की धूल महीनों, सालों और दिन के 24 घंटे उड़ती रहती है। कोयला मंडी की धूल-राख से रोजाना हजारों मजदूरों के साथ आसपास के कई गांवों के नागरिकों व बड़ी तादात में राहगीरों को भी परेशानी उठानी पड़ रही है। चंदौली जिले के मुगलसराय विधानसभा में स्थित एशिया की सबसे बड़ी कोयला मंडी चंदासी की धूल और राख, हजारों मजदूरों की जिंदगी में जहर घोल रही है। कोयला मंडी महीने में करोड़ों रुपए का राजस्व शासन-सरकार को चुकाती है, बावजूद इसके यहां जन सुविधाएं नदारत हैं और स्वास्थ्य मानकों की अनदेखी से मजदूर अपनी जान जोखिम में डालकर आजीविका कमाने को मजदूर हैं।

चांदसी कोयला मंडी एशिया की सबसे बड़ी फुटकर कोयला मंडी है लेकिन यहाँ पर मजदूरों को सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं मिलता है। फोटो: पवन कुमार मौर्या

मुगलसराय के चंदासी कोयला मंडी में पिछले शुक्रवार यानी 7 मार्च को दो ट्रक सटकर खड़े थे, जिनमें बिहार के गया जिले के मजदूर कारू एक ट्रक से कोयला उठाकर दूसरे ट्रक में लोड करने में जुटे हुए थे। उनके साथ उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के रामायन भी काम में जुटे हुए थे। दोनों मजदूर कोल्हू के बैल की तरह कोयला उतारने और लादने में जुटे हुए थे। पसीने में भींगे और कोयले की कालिख से सिर से लेकर पैर तक सने मजदूरों को जल्दी से जल्दी काम ख़त्म करने की चिंता है।

बिहार के गया जिले के कारू बिना सुरक्षा उपकरण के कई सालों से कोयला मंडी में मजदूरी करते हैं। फोटो: पवन कुमार मौर्य।

चंदासी कोयला मंडी से 250 किमी दूर गया (बिहार) के कारू में वर्ष 2015 से यहां काम करने वाले उन 2500 मजदूरों में से एक हैं। इंडियास्पेंड’ से वे कहते हैं, “मैं विगत दस सालों से यहां मजदूर के तौर पर काम करा रहा हूं। अक्सर काम खत्म करने के बाद थकान और बुखार की शिकायत रहती है। यहाँ उड़ने वाली कोयले वाली धूल हमलोगों के खाने के रसोई तक जाती है. मजबूरी है सहना करना पड़ता है और यह काम स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है यह जानते हुए भी करने की विवशता है। थकान और खांसी आने पर गुड़ और अजवाइन खा लेते हैं तो उससे राहत मिलती है, गर्दा काटता है। अधिक दिक्कत होती है तो मेडिकल से दवा ले लेते है।”

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के रामायन चंदासी कोयला मंडी में तकरीबन नौ सालों से काम कर रहे हैं। इनके परिवार में पत्नी, दो लड़के और एक लड़की है। बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते हैं। गांव में रोजगार का कोई का साधन नहीं होने से परिवार के भरण-पोषण के लिए रामायन कोयला मंडी में खटते है। फोटो: पवन कुमार मौर्य।

रामायण कहते हैं “यहां काम करने में स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले धूल-कण बहुत ज्यादा शरीर में जाता। इस जोखिम के सापेक्ष आमदनी बहुत कम. बड़ी मुश्किल से महीने में 7 से 8 हजार रुपए का काम हो पाता है. काम के दौरान नाक-मुंह से गर्दा-धूल शरीर के अंदर जा रहा रहा है. सुबह जब जागते हैं तो थूक भी कोयले सी काली निकलती है। जब मैं यहां पहली बार काम करने आया था तो थूक काली निकलने पर डर गया था, लेकिन अब तो आदत सी हो गई है। यहां कोई मजदूरों की समस्या जानने वाला नहीं है। खाना बनाने के दौरान रसोई तक धुंआ, कोयले की धूल पहुंचती है।"

चंदासी कोयला मंडी में ट्रक से कोयला उतारने में जुटे मजदूर। फोटो पवन कुमार मौर्य।

रामायन आगे कहते हैं काम ख़त्म करके हाथ-मुंह धोने पर भी कोयले की धूल पूरी तरह साफ़ नहीं हो पाती है। कुछ न कुछ कालिमा या कोयले की कालिख हमारे शरीर और कपड़ों से चिपके रहते हैं, जो मुंह-सांस के रास्ते हमारे शरीर में जाते रहते हैं। इतना ही नहीं कोयले की धूल गांव (सोनभद्र) जाने पर भी पिछा नहीं छोड़ती है, दो-चार दिन तक नहाने-खखारने (थूकने) पर शरीर से काला कोयला निकलता रहता है। मजदूरों के स्वास्थ्य के लिहाज से यहां कोई व्यवस्था नहीं है।”

काम के दौरान पानी पीते और सुस्ताते मजदूर। फोटो पवन कुमार मौर्य।

यहाँ पर कार्यरत सरकारी अधिकारियों के मुताबिक चंदासी कोयला मंडी में 600 से ज्यादा कोयला व्यापारी काम कर रहे हैं और रोजाना करीब 1300-1500 ट्रक कोयले की आपूर्ति करते हैं। एक ट्रक में करीब 30 टन से 40 टन कोयला होता है। मिडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मंडी में हर महीने तकरीबन 60 करोड़ रुपये के कोयले का कारोबार होता है। चंदासी कोयला मंडी में कई बार टैक्स चोरी, कोयले के अवैध भंडारण और कानून से खिलवाड़ करते हुए व्यापार को लेकर सीबीआई और चंदौली प्रशासन छापा मारकर कार्रवाई करती है।

इसी कोयला मंडी से पूर्वांचल सहित कानपुर, कन्नौज, उरई, जालौन, फतेहपुर, कौशांबी, प्रयागराज, बांदा, एटा, उन्नाव इत्यादि पश्चिम के जिलों में भी कोयले की आपूर्ति की जाती है। ईट भट्ठा से लेकर अन्य कल कारखानों के लिए चंदासी कोयला मंडी से कोयले की खेप भेजी जाती है। एक अन्य मज़दूर ने बताया यहां लगभग 1400 गाड़ियां कोयला लेकर आती हैं और हर ट्रक पर लगभग चार लाख रुपए का कोयला होता है, जिसमें सस्ती राख मिलाकर उसे बेचा जाता है।

कोयला मंडी में मजदूरों के स्वास्थ्य की सुरक्षा के इंतजाम की कोई व्यवस्था नहीं है। मजदूरों के पास कोई सुरक्षा उपकरण जैसे फेस मास्क, रोशनी, धूलरोधी चश्मा, दस्ताने, हेलमेट या यहां तक कि जूते भी नहीं थे, जब वे भारी काम कर रहे थे। कई बार चोट, कटने और फिसलने से श्रमिक घायल भी हो जाते हैं, किसी को परवाह नहीं रहती है। श्रमिकों के स्वास्थ्य और अधिकार के लिहाज से चंदासी कोयला मंडी बिल्कुल सुरक्षित नहीं है। कई बार जानलेवा हादसे में मजदूर की मौत तक हो जाती है.

कोयला मंडी से काम के बाद कुछ दिनों के लिए अपने घर-परिवार के पास गए मजदूरों के कपड़े। फोटो: पवन कुमार मौर्य।

चंदौली जिले में वर्ष 2022 में 2941 मरीज मिले थे। 2023 में जनवरी से दिसंबर तक 3778 मिले, लेकिन अक्टूबर तक लगभग 34,10 मरीज मिले, जिसमें जनवरी से दिसंबर तक 3574 ठीक हो चुके हैं। वहीं 2024 में जनवरी से अक्टूबर तक 3664 मरीज टीबी के पाए गए। जिले में सबसे ज्यादा नियामताबाद व मुगलसराय से एक हजार से अधिक मरीज मिले हैं।

मुगलसराय स्थित चंदासी कोयला मंडी एशिया की सबसे बड़ी में से एक है। फोटो: पवन कुमार मौर्य।

चंदौली जिला तपेदिक अधिकारी राजेश कुमार के अनुसार, जहां मंडी के अधिकांश कर्मचारी रहते हैं, वहां ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) का सबसे अधिक केस आते हैं। “यह समाज के सबसे गरीब वर्गों के प्रभुत्व वाला घनी आबादी वाला क्षेत्र है। मोटे तौर पर, मुगलसराय में टीबी का हर 10वां रोगी ठीक नहीं हो पाता है और उसकी मौत हो जाती है। रिकवरी दर लगभग 90 प्रतिशत है और मृत्यु दर छह प्रतिशत से आठ प्रतिशत है।”

उन्होंने कहा, “टीबी रोगियों को जो सरकार के साथ पंजीकृत हैं, उन्हें प्रति माह 500 रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है और मानसिक स्वास्थ्य सहायता, पोषण और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा उन्हें गोद लेने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।”

बिहार के सीमावर्ती जिलों और यूपी के पूर्वांचल से दलित, मुस्लिम, आदिवासी और वंचित समुदाय के लोग रोजी-रोटी की जुटाने के चलते कोयला मंडी में काम करने को मजबूर हैं। कोयला मंडी में रोजाना तकरीबन 1200 से अधिक कोयला लदे ट्रक आते हैं. जिनपर कोयले की लोडिंग-अन लोडिंग से ढाई हजार से अधिक मजदूर दिहाड़ी के बदले 250 से 300 रुपए (प्रति मजदूर) अर्जित करते हैं।

कोयला उद्योग मजदूर संघ चंदासी-मुगलसराय के अध्यक्ष केसर सिंह कुशवाहा बताते हैं “एशिया व देश की सबसे बड़ी चंदासी कोयला मंडी में ढाई हजार से अधिक मजदूर काम करके अपना व परिवार का पेट पालते हैं। पांच किलोमीटर में विस्तारित कोयला मंडी में झारखंड, बिहार के भभुआ, अधौरा पहाड़ी, चांद, गया, भागलपुर, औरंगाबाद, सासाराम व उत्तर प्रदेश के चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र समेत कई जिलों से मजदूर आकर काम करते है।”

“ये मजदूर दलित, आदिवासी, पसमांदा मुस्लिम और पिछड़े वर्ग के होते हैं। गत दो-तीन साल से मजदूरों को काम मिलना कम हो गया है, अब मुश्किल से उनका पेट भर पा रहा है। असौतान एक मजदूर एक दिन में 250 से 300 रुपए कमा लेता है।”

कोयला मजदूरों को होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर चिंतित मजदूर संघ के अध्यक्ष केसर सिंह कुशवाहा। फोटो: पवन कुमार मौर्य।

“स्थानीय पीडीडीयू नगर (मुगलसराय) पालिका द्वारा कोयला मंडी को कोई सुविधा नहीं दी जा रही है। साथ ही स्वास्थ्य और सुरक्षा की अनदेखी के चलते कई मजदूर सांस लेने में तकलीफ, दमा, टीबी, बुखार, चक्कर और आंखों की बीमारियों से ग्रसित हैं। जब मजदूर खांसते और थूकते हैं तो थूक में भी कोयले की राख होती है। परिवार पालने और पेट की आग बुझाने के लिए हजारों मजदूर व हमलोगों को जहर पीना पड़ रहा है।”

आसमान में सूरज चमक रहा है और हर ओर कोयले की राख और धूल उड़ रही है। दोपहर तक काम कर चुके मजदूरों के भोजन का समय हो गया है. आसपास खड़े सैकड़ों ट्रकों पर काम में जुटे मजदूर मटमैला पानी दे रहे हैंडपंप पर हाथ-पैर धोने के बाद खाना खाने पहुंचे। इनमें से भोजन कर चुके भभुआ (बिहार) के मजदूर मुखिया राम एक काली कोठरी में पांच-छह मजदूरों के साथ बातचित करते मिले।

कोठरी से लेकर बिस्तर पर बिखरी कोयले की धूल, रोजमर्रा की परेशानी बताते मजदूर मुखिया राम। फोटो: पवन कुमार मौर्य।

वह कहते हैं “मैं मंडी में कोयला ढोता हूं। इस काली तंग कोठरी में कुल 18 मजदूर रहते हैं। यहां सबकुछ कोयले से काला पड़ा हुआ है। खाने का बर्तन और सोने का बिस्तर भी कोयले की धूल से सना हुआ है। क्या करेंगे, हमलोग मजदूर आदमी है। काम करेंगे तभी चार पैसे मिलेंगे। मजदूरों की कोई सुनने वाला नहीं है।”

कोयला मंडी से लगी सड़क पर धूल के बीच गुजरते यात्री व कोयला मजदूर। फोटो: पवन कुमार मौर्य।

“ट्रक से ट्रक में लोडिंग-अनलोडिंग पर और जमीन से ट्रक पर लदाई करने प्रति टन 53 रुपया मिलता है। ट्रक से कोयला जमीन पर गिराने में प्रति टन 18 रुपए मिलते हैं। यह रेट विगत एक साल से बना हुआ है। इस रेट के तीन साल पूरा होने पर प्रति टन मजदूरी दो रुपए मजदूरी बढ़ेगी। औसत रूप से एक मजदूर एक दिन में पांच टन कोयला लादता है। वहीं, एक मजदूर 10 टन कोयले की उतराई कर पाता है। मसलन, औसत रूप से एक मजदूर की कमाई 250 से 300 रुपए के आसपास है।”

रमेश चंद्र यादव मुगलसराय के जिला महिला अस्पताल में सरकार के तपेदिक सहायता डेस्क और माइक्रोस्कोपी केंद्र के प्रभारी हैं। उनके अनुसार, आसपास के गाँवों के 350 से अधिक रोगी प्रतिदिन निदान के लिए केंद्र पर आते हैं। “यह टीबी निदान केंद्र मुगलसराय के 300,000 निवासियों की आबादी के लिए सरकार द्वारा स्थापित किया गया है। एक महीने में औसतन 50-52 मरीजों का टीबी का इलाज किया जाता है। हम चंदासी कोयला मंडी के कोयला श्रमिकों के लिए नियमित रूप से जागरूकता शिविर भी लगाते हैं।’ मरीज न केवल मजदूर समुदाय से हैं बल्कि कस्बे की महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग भी शामिल हैं। लेकिन, 45-50 आयु वर्ग के लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। अगर वे समय पर हमारे पास पहुंच जाते हैं, तो हम उनका इलाज कर सकते हैं, लेकिन कई लोग इसे बहुत देर तक छोड़ देते हैं और उनमें से कुछ की मौत हो जाती है।" उन्होंने बताया।

लालमुनी बिहार के भभुआ जिले के रहने वाले है और चंदासी कोयला मंडी में पिछले पांच सालों से काम कर रहे हैं। चेहरे से पांव तक कालिख पुता हुआ है। लालमुनी दिन का 250 या अधिकतम 300 रुपए जीतोड़ मजदूरी कर कमा लेते हैं। इनका काम है मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड आदि प्रदेशों से आ रहे ट्रकों से कोयले को उतारकर आगे जाने वाले ट्रकों में लादना।

कोयला मंडी परिसर में लगे हैंडपंप पर हाथ-मुंह धोने के बाद लालमुनी ने बताया कि “घर-परिवार के भरण-पोषण के लिए अकेला कमाने वाला व्यक्ति हूं। गांव में रोजाना काम नहीं मिलता है। यहां कोयला मंडी में रोजाना काम मिलता है, जिसका नगद भुगतान भी मिल जाता है। लेकिन ट्रकों पर कोयले की चढ़ाई-उतराई में उड़ने वाले धूल से तबियत पस्त रहती है। सांस लेने के दौरान कोयले की राख छाती और फेफड़े तक पहुंचती है। आंख में भी कोयले की धूल पड़कर गड़ती रहती है। कोयले की कालिख पसीना बनकर बहती है।"

मजदूर संघ के उपाध्यक्ष रामगहन बिन्द कहते हैं “मजदूरों को सरकारी सस्ते गल्ले से राशन मिलना चाहिए, मंडी में जहर पीकर मजदूर स्वयं की जोखिम पर काम करते आ रहे है। यहां अस्पताल और साफ पेयजल की तत्काल व्यवस्था करनी चाहिए। यहां रोजाना 1200-1400 की तादात में कोयला लदे ट्रक आते है। करोड़ों का टैक्स नगर पालिका और सरकार को देते हैं, लेकिन इनके द्वारा मजदूरों के जीवन में बदलाव लाने के लिए कोई ठोस प्रयास होता नहीं दिख रहा है।”

कोयला मंडी का कीचड़ ट्रकों के पहिये के साथ सड़क पर आकर बिखर जाता है। फोटो: पवन कुमार मौर्य।

पीडीडीयू नगर स्थित एक एनजीओ के ट्रस्टी चंद्रभूषण मिश्रा के अनुसार “आपकी नजर इस इलाके में जहां-जहां जाएगी, 15-20 किमी के दायरे में सिर्फ धूल का गुबार ही नजर आएगा। मंडी की ओर जाने वाली सड़क पर हमेशा ट्रक होते हैं, क्योंकि वे कोयला लाते और ले जाते हैं। आम लोग, छात्र और वाहन चालक भी परेशान होते हैं। दिहाड़ी मजदूर सबसे अधिक असुरक्षित हैं, अन्य लोगों को भी सांस की बीमारियों की शिकायत है।”

वाराणसी स्थित प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कार्यालय।

महमूरगंज-वाराणसी के कार्डियोलॉजिस्ट स्पेशलिस्ट डॉ. कुमार भाष्कर कहते हैं कि "कोयले की लोडिंग-अनलोडिंग से निकलने वाले डस्ट पार्टिकल्स श्रमिकों से साथ-साथ आसपास के नागरिकों के स्वास्थ्य को खतरा पैदा कर सकता है। कोयले की धूल सबसे पहले लोगों की आंखों को नुकसान पहुंचना शुरू करता है। इसमें मजदूर, नागरिकों और राहगीरों की आंखों में जलन, पानी आना, आंख लाल व नाक में एलर्जी हो जाती है।”

उत्तर प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी एससी शुक्ला के अनुसार “मंडी के आसपास के क्षेत्र का सर्वेक्षण किया गया था और एक विस्तृत रिपोर्ट पेश की गई है। हमने 23 जून, 2022 को चंदौली के जिला मजिस्ट्रेट के साथ-साथ मुगलसराय के उप-विभागीय मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट भेजी। हमने रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि प्रदूषण के स्तर को नियंत्रण में लाने के लिए मंडी को स्थानांतरित करना होगा। क्षेत्र। जिला प्रशासन इस पर कार्रवाई करेगा।”

“सबसे अधिक नुकसान फेफड़े (लंग्स) पर पड़ता है। फेफड़े में सीलिका (कोयले, धूल और पत्थर के महीन कण) का डिपोजिशन होने से सिलिकॉसिस जैसी लाइलाज बीमारी भी पकड़ लेती है। अस्थमा, क्षय रोग व दिल के रोगी आदि के स्वास्थ्य को बहुत खतरे रहते हैं, कभी-कभी तो दिल का दौरा भी पड़ जाता है।”

मुगलसराय के उप जिलाधिकारी आलोक कुमार ने इंडियास्पेंड को बताया कि “चंदासी कोयला मंडी के प्रदूषण और इसकी निगरानी से जुड़े कार्य उत्तर प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधीन है। कोयला मंडी से होने वाले वायु प्रदूषण या दिक्कत की शिकायत मुझसे कोई मजदूर और न ही स्थानीय नागरिकों ने की है। हमारे स्तर से जो समाधान होगा, उसे किया जाएगा।”