पटना: नीतीश कुमार के नेतृत्व में 'जंगलराज' से 'सुशासन' के अपने दावे के साथ बिहार निवेशकों को आकर्षित करने में जुटा है। नियमित अंतराल पर कभी NRI मीट तो कभी इन्वेस्टर मीट इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। अक्टूबर 2024 में ही बेंगलुरु, लुधियाना और दिल्ली में ऐसे कई आयोजन किए गए। इन प्रयासों का ही नतीजा है कि ब्रिटानिया, पेप्सिको, टाटा समूह और मेदांता जैसी दिग्गज कंपनियों ने बिहार में अपने कदम बढ़ाए और यहां निवेश किया। स्थानीय युवा भी स्टार्टअप के जरिये उद्यमिता की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि मजदूर राज्य के तौर पर पहचानी जाने वाली बिहार की धरती पर सरकार के इन तमाम दावों का असर धरातल पर कितना है? आइये, इसकी पड़ताल करते हैं।

बिहार सरकार के उद्योग विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 30 सितंबर 2023 तक 4713 करोड़ रुपये की लागत से 524 नई कंपनियां स्थापित हुई हैं। रोजगार सृजन में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है; 2021-22 में 8675 और 2022-23 में 24,745 लोगों को रोजगार मिला। तो वहीं, बिहार स्टार्टअप नीति 2022 के तहत राज्य सरकार ने 2022-23 में स्टार्टअप पर 9.75 करोड़ खर्च किए हैं। वहीं 2023-24 में 62 स्टार्टअप को आरंभिक कोष की पहली किश्त के बतौर 2.78 करोड़ रूपए दिए हैं। बिहार सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 से 2024 के बीच 12,000 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। उद्योगों के लिए उपलब्ध 9438 एकड़ भूमि में से लगभग आधी भूमि आवंटित की जा चुकी है। बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण के आंकड़ों के अनुसार, पिछले दो वर्षों में लगभग 7,592.39 एकड़ भूमि निवेशकों को पट्टे पर दी गई है। जबकि, 2016 से 2022 के बीच यह आंकड़ा लगभग 1,550 एकड़ था।

सरकार के इन तमाम प्रयासों का असर जमीन पर भी देखने को मिल रहा है। बिहार के वैशाली जिला स्थित हाजीपुर शहर में औद्योगिक क्षेत्र में छह ‘जीविका’ दीदी मिलकर केले के तने से धागा बनाकर, बैग, सैनिटरी पैड, कागज और सजावटी सामान तैयार कर रही हैं। इस समूह में शामिल आशा देवी ने बताया, “पहले के मुकाबले हमारी कमाई बढ़ी है। सरकार ने हमें 10 लाख रुपए की मदद भी की है।”

टेक्सटाइल हब बनने की राह पर

2024 के लोकसभा चुनाव के बाद, बिहार के हाजीपुर लोकसभा सीट से सांसद चिराग पासवान के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री और बेगूसराय लोकसभा के सांसद श्री गिरिराज सिंह के कपड़ा मंत्री बनने के बाद से ही बिहार में उद्योगों के विस्तार को लेकर काफी चर्चा होने लगी थी। हाल ही में केन्द्रीय वस्त्र मंत्रालय ने भागलपुर जिले में रेशम उद्योग के विकास के लिए एक परियोजना, टेकारी-बेलागंज (गया) और मीराचक (भागलपुर) में स्मॉल क्लस्टर विकास कार्यक्रम के अंतर्गत परियोजना और राज्य हथकरघा एक्सपो, पटना और राज्य हथकरघा एक्सपो, गया के आयोजन को मंजूरी दी है।

बिहार सरकार की टेक्सटाइल और लेदर पॉलिसी से राज्य में कपड़े, बैग और जूते बनाने का कारोबार तेजी से फल-फूल रहा है। पश्चिम चंपारण के ‘जीविका’ से जुड़े अभिषेक गुप्ता ने बताया कि कैसे कई जीविका दीदियां इस टेक्सटाइल बिजनेस से जुड़ी हुईं हैं। उन्होंने कहा, ''सरकार टेक्सटाइल इंडस्ट्री को बिना ब्याज के 10 करोड़ रुपये तक का लोन दे रही है। साथ ही सरकार, कर्मचारियों की सैलरी का एक बड़ा हिस्सा, 3500 से 5000 रुपये के बीच, लेबर सब्सिडी के तौर पर देती है।''

गोपालगंज जिले के नटवा गांव के तेज नारायण सिंह ने दिल्ली और पंजाब में कपड़ा उद्योग में काम करने के बाद, 2022 में अपने ही गांव में एक छोटी सी टेक्सटाइल इंडस्ट्री खड़ी की थी। आज उनके यहां लगभग 25 लोग काम कर रहे हैं। तेज नारायण बताते हैं, "कपड़ा उद्योग और भी बेहतर हो सकता है अगर बाजार मिल जाए। बाहर अधिकतर बिहारी ही इसी तरह का काम करते हैं।"

बिहार और उद्योग पर पीएचडी कर रहे शुभम कुमार ने भी बिहार को संभावनाओं वाला राज्य बताया। उन्होंने कहा, “बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति को देखते हुए बिहार में टेक्सटाइल कंपनियों को शिफ्ट करने की कोशिश की जा रही है। बिहार में लेबर कॉस्ट भी बहुत कम है साथ ही यहां से भारत की 40 फीसद आबादी यानी पूरे पूर्वी भारत और नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।” बिहार निर्यात प्रोत्साहन नीति 2024 में भी कपड़ा और टेक्सटाइल व्यवसाय को महत्वपूर्ण भूमिका में रखा गया है।

लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं

बिहार में टेक्सटाइल और लेदर उद्योगों में निवेश की अपार संभावनाएं हैं। युवा स्टार्टअप में भी खासी दिलचस्पी दिखा रहे हैं और कई देश-विदेशी कंपनियों ने भी अपनी रुचि जाहिर की है। लेकिन, सरकारी व्यवस्था में कमियां, माफियागिरी और बुनियादी ढांचे का अभाव निवेशकों के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। बिहार उद्योग विभाग में कार्यरत एक अस्थायी कर्मचारी ने नाम बताने की शर्त पर कहा, "इन्वेस्टर मीट बिहार के लिए कोई नई बात नहीं है। जितना खर्च इन आयोजनों पर होता है, उस हिसाब से धरातल पर ज्यादा कुछ दिखाई नहीं देता है।"

सरकार की खामियों को उजागर करते कुछ किस्से हमें गाहे-बगाहे सोशल मीडिया पर भी सुनने को मिल जाते हैं। अक्टूबर 2024 में, चंदन राज ने बिहार के मुजफ्फरपुर में देश की पहली सेमीकंडक्टर कंपनी ‘सुरेश चिप्स एंड सेमीकंडक्टर प्राइवेट लिमिटेड’ की स्थापना की थी। लेकिन कुछ दिनों बाद ही उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा “बिहार में सेमीकंडक्टर प्लांट चलाना मेरे लिए बेहद मुश्किल हो रहा है। कंपनी शुरू करना मेरे जीवन का सबसे बुरा फैसला था।” हालांकि, बाद में यह ट्वीट हटा दिया गया। इस ट्वीट को उन्होंने क्यों हटाया, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।

मुजफ्फरपुर के ही एल.एन. मिश्रा इंस्टीट्यूट से बिजनेस की पढ़ाई कर चुके विक्की मिश्रा इसकी वजह बताते हुए कहते हैं, “जब क्लाइंट और अन्य कंपनियों के लोग वहां आने लगे, तो चंदन राज ने बिहार सरकार से कंपनी तक पहुंचने के लिए सड़क बनवाने का आग्रह किया”। विक्की के अनुसार, कई राजनेताओं और ब्यूरोक्रेट्स से संपर्क करने के बाद भी कोई सुनवाई नहीं हुई। उनका कहना है, "बिहार सरकार को अपनी छवि की कोई चिंता नहीं है। बिहार इलेक्ट्रॉनिक युग नहीं, बल्कि पाषाण युग में जी रहा है।" विक्की पुणे में नौकरी कर रहे हैं।

बेंगलुरु में काम कर रहे बिहार के गौरव का अनुभव भी कुछ ऐसा ही रहा है। उनके मुताबिक, बिहार में एक प्रमाणपत्र या लाइसेंस बनाने के लिए अधिकारी खुलेआम रिश्वत मांगते हैं। उन्होंने कहा, “एक ड्रग मैन्यूफ़ैक्चरिंग लाइसेंस के लिए मुझसे पांच लाख रुपये की मांग की गई। विरोध करने पर बिना किसी कारण बताए मेरा आवेदन अस्वीकार कर दिया गया, जबकि बिहार स्टार्टअप में मेरा प्रोजेक्ट अप्रूव्ड था।"

पुणे में कार्यरत मिहिर आनंद के अनुसार, पुणे में लगभग 1000 से अधिक विदेशी बीमा कंपनियां काम करती हैं, जो मुख्य रूप से सस्ते श्रम और जमीन की तलाश में हैं। ये कंपनियां न तो यहां कोई उत्पाद बेचती हैं और न ही सेवाएं प्रदान करती हैं। वह आगे कहते हैं, बिहार में इससे भी सस्ता श्रम और जमीन उपलब्ध है, फिर भी विदेशी कंपनियां यहां निवेश करने से हिचकिचाती हैं। अपराध, राजनीतिक अस्थिरता और बिहार की नकारात्मक छवि निवेशकों के लिए बड़ी बाधाएं हैं

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में होने वाली हत्याओं का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। 2020 में 3150 हत्या, 2021 में 2799 और 2022 में 2930 हत्या हुई हैं।

बिहार में ही निजी कंपनी के एक कर्मचारी ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा कि यहां भूमि आवंटन में काफी दिक्कते हैं। उन्होंने बुनियादी ढांचे में सुधार, 'सिंगल विंडो सिस्टम' को और अधिक मजबूत बनाने और अफसरशाही को कम करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

सफलता की कहानियां और सामने आने वाली बाधाएं

बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में उद्योग स्थापित करने की चुनौतियों को समझने के लिए हमने कई उद्यमियों से बात की। मधुबनी में मिथिला नेचुरल्स (मखाना व्यवसाय) के मालिक मनीष आनंद बताते हैं, "नोएडा का विकास होंडा जैसी कंपनियों के आने के बाद ही हुआ था। इसी तरह, बिहार सरकार उत्तरी बिहार में मखाना उद्योग को बढ़ावा देकर विकास कर सकती है। बिहार में 90% मखाना उत्पादित होता है, फिर भी इसकी पैकिंग मुंबई और दिल्ली में होती है। सरकार के प्रयास से मखाना बिहार का एक बड़ा उद्योग बन सकता है। हालांकि, पहले के मुकाबले बिहार में इस उद्योग में काफी विकास हुआ है।"

भागलपुर के रमन कुमार की 'एग्रीफीडर' कंपनी बिहार सरकार की स्टार्टअप नीतियों की सफलता का एक उदाहरण है। 2017 में लेमनग्रास हर्बल टी के उत्पादन के साथ शुरू हुई इस कंपनी को बिहार स्टार्टअप नीति के तहत 10 लाख रुपये की सहायता मिली। रमन कुमार बताते हैं कि सरकार द्वारा स्थापित इन्क्यूबेशन सेंटरों ने व्यापारियों को पटना आने-जाने की परेशानी से बचाया है। हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि पहले ये केंद्र ठीक से काम नहीं करते थे जिससे व्यापारियों को नुकसान उठाना पड़ा था। आज स्थिति बेहतर है और अब स्टार्टअप और बाहरी कंपनियों दोनों को ही सरकारी मदद मिल रही है। उन्होेंने कहा, मेरे कंपनी के उत्पाद पूरे देश में बिकते हैं। 2023 में मेरी कंपनी का टर्नओवर 25 लाख रुपये रहा।" राज्य सरकार, मुख्यमंत्री उद्यमी योजना और लघु उद्यम योजना के तहत युवाओं को व्यापार शुरू करने के लिए आर्थिक सहायता दे रही है।

भागलपुर के रेशम उद्योग में कच्चे माल की कमी और बाजार की अनुपस्थिति के कारण बुनकरों का पलायन हो रहा है, हालांकि सरकार ने अन्य क्षेत्रों में मदद की है। मिर्ज़ाफ़ारी हैंडलूम प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के मालिक रंजीत कुमार बताते हैं कि वैसे तो, सरकार ने उद्योगों को कई तरह से मदद की है, लेकिन बड़ी समस्याओं को अनदेखा किया जा रहा है। वह आगे कहते हैं “कच्चा माल (रेशम का धागा) बाहर से आ रहा है, जिसके उत्पादन में सरकार कोई मदद नहीं करती है। उत्पादन के बाद बाजार की व्यवस्था भी ठीक नहीं है। इस स्थिति के कारण अधिकांश बुनकर दिल्ली और पंजाब पलायन कर चुके हैं।”

बिहार सरकार द्वारा चुने गए शीर्ष पांच स्टार्टअप में शामिल Rodbez के मालिक दिलखुश कुमार सरकार के प्रयासों की सराहना करते हैं। लेकिन साथ ही बिहार में उद्योग और स्टार्टअप की नई अवधारणा के कारण आने वाली चुनौतियों को भी स्वीकार करते हैं। उनके मुताबिक, बिहार को उद्योगों का केंद्र बनाने के सरकार के प्रयास काबिले तारीफ हैं, लेकिन बिहार अन्य राज्यों से अलग है, यहां उद्योग और स्टार्टअप का कॉन्सेप्ट अभी नया है, जिसके चलते कुछ दिक्कतें आ रही हैं।

बिहार के जाने-माने लेखक (दालान के लेखक) और पूर्व प्रोफेसर रंजन ऋतुराज, बिहार के औद्योगिक विकास पर विस्तृत लेखन कर चुके हैं। उनका मानना है कि बिहार में सूक्ष्म, लघु और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना बेहद जरूरी है और "हर घर एक उद्योग" का मॉडल ही बिहार को जल्दी विकसित राज्यों के बराबर ला सकता है। उन्होंने 90 के दशक में बैंगलोर और 2010 के आसपास दिल्ली-एनसीआर में छोटे उद्योगों के विकास के उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे इन उद्योगों ने इन शहरों को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाया और गुरुग्राम व नोएडा जैसे शहरों को विकसित किया। ऋतुराज का मानना है कि प्रवासी बिहारी बिहार के विकास में योगदान देने को तैयार हैं, लेकिन सरकार को इसके लिए एक स्पष्ट रणनीति और नीतियां बनानी होंगी।

वे बिहार सरकार की नई आईटी नीति पर भी सवाल उठाते हैं। वह कहते हैं, "बिहार सरकार अपनी नई आईटी नीति का खूब प्रचार कर रही है, लेकिन यह काम 1990 या 2006 में ही हो जाना चाहिए था। आईटी या किसी भी उद्योग के विकास के लिए बेहतरीन बुनियादी ढांचा और माहौल जरूरी है। क्या बिहार के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों के छात्रों में वो क्षमता है? आर्यभट्ट विश्वविद्यालय ने कुछ साल पहले ही सभी छात्रों को फेल कर दिया था। बिहार में एक आईआईटी, एक आईआईएम, एक ट्रिपल आईटी और एक एनआईटी है। सरकार को इन संस्थानों के सहयोग से आईटी उद्योग को बढ़ावा देने पर ध्यान देना चाहिए।"