लखनऊ। “प‍िछले साल तलवारबाजी सीखना शुरू क‍िया था। बड़ी मुश्‍किल से अम्‍मी राजी हुईं थीं। ऐसा इसलिए भी था क्योंकि अब्‍बू बाहर रहते हैं। लेकिन स्‍टेडियम घर के पास था तो वह मान गईं। लेकिन प‍िछले साल द‍िसंबर से स्‍टेडियम जाना बंद कर द‍िया क्‍योंक‍ि कोच सर अब आते ही नहीं।”

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के गोमती नगर में रहने वाले अली रहमान अब इंतजार कर रहे हैं क‍ि उनके घर के पास वाले म‍िनी स्‍टेडियम में फेंसिंग (तलवारबाजी) का कोई नया कोच आए तो वे दोबारा से सीखना शुरू करेंगे।

“दूसरा स्‍टेडियम मेरे घर से दूर है और मैं वहां तक अकेले आ, जा नहीं सकता। छोटा हूं ना,” अली (उम्र 13) बताते है।

अली भारतीय फेंसिंग खिलाडी भवानी देवी को अपना रोल मॉडल मानते हैं और वे उनकी ही तरह देश के लिए फेंसिंग व‍िश्‍वकप और ओलंपिक खेलना चाहते हैं।

मिर्जापुर की सोनम पटेल (17 वर्ष) की कहानी भी अली ही तरह ही है। खो-खो प्लेयर सोनम बताती हैं,”कई बार तो टूर्नामेंट से पहले ही कोच चले जाते हैं या बदल जाते हैं। फ‍िर हम ब‍िना कोच महीनों प्रैक्टिस करते हैं। ऐसा किसलिए होता है, हमें नहीं पता। लेकिन हमें इसका बहुत नुकसान होता है।” मिर्जापुर में इस समय खो-खो का कोई कोच है ही नहीं।

ऐसा क्‍यों हो रहा? क्‍या देश के सबसे बड़े राज्‍य उत्तर प्रदेश के खेल मैदानों में खेल प्रश‍िक्षकों की कमी है? प्रश‍िक्षक ख‍िलाड़‍ियों को बराबर कोचिंग क्‍यों नहीं दे पा रहे?

इंड‍ियास्‍पेंड हिंदी ने उत्तर प्रदेश के खेल न‍िदेशालय से फोन पर जब यह सब जानकारी मांगी तो उन्‍होंने देने से मना कर द‍िया। इसके बाद सूचना के अध‍िकारी (RTI) के तहत जो जानकारी सामने आई, वह प्रदेश के खेल व्‍यवस्‍था की असल तस्‍वीर पेश कर रही है।

प्रदेश के खेल मैदानों में स्‍थाई कोच के लगभग 50% पद खाली

आरटीआई (सूचना का अधिकार अधिनियम) के तहत मांगी गई सूचना के जवाब में खेल न‍िदेशालय उत्तर प्रदेश ने बताया कि प्रदेश के कुल 71 ज‍िलों में 84 स्‍टेड‍ियम ऐसे हैं ज‍िनका निर्माण हो चुका है जबकि 4 का काम चल रहा। इनका संचालन व‍िभाग द्वारा क‍िया जा रहा है। इन मैदानों के लिए कुल 209 व‍िभागीय प्रश‍िक्षकों (स्‍थाई खेल प्रश‍िक्षक) के पद स्‍वीकृत हैं, इनमें क्रीड़ाध‍िकारी, उप क्रीड़ाध‍िकारी, सहायक प्रश‍िक्षक पद हैं। लेकिन कुल स्‍वीकृत पदों में से 97 पद खाली हैं। इनमें क्रीड़ाध‍िकारी के 12, उपक्रीड़ाध‍िकारी के 41, सहायक प्रश‍िक्षक के 44 पद रिक्‍त हैं। मतलब प्रदेश के खेल मैदानों में व‍िभागीय खेल प्रश‍िक्षकों के 46% से ज्‍यादा पद खाली हैं।


गौर करने वाली एक बात यह भी है क‍ि प‍िछले कुछ वर्षों के दौरान साल दर साल व‍िभागीय खेल प्रश‍िक्षकों की संख्‍या कम हुई है। जबकि इसके उलट अंशकालिक प्रश‍िक्षकों की संख्‍या साल दर साल बढ़ी है। वर्ष 2017-18 में व‍िभागीय प्रश‍िक्षकों की संख्‍या 131 थी। 2018-19 में ये संख्‍या थोड़ी बढ़ी और संख्‍या 141 पर पहुंची। 2019-20 में भी यही संख्‍या रही। लेकिन कोविड वर्ष 2020-21 में ये संख्‍या घटकर 139, 2021-22 में 130, 2022-23 में 116 और 2023-24 में 112 पर पहुंच गई।

वहीं अंशकालिक यानी संविदा पर खेल प्रश‍िक्षकों के कुल 450 पद स्‍वीकृत हैं। लेकिन इसमें से भी 45 पद खाली हैं।


पद क्‍यों खाली हैं? इनकी निुयक्‍ति क्‍यों नहीं हो रही? इस बारे में उत्तर प्रदेश के खेल निदेशक डॉ. आरपी सिंह बताते हैं, “स्‍थायी कोच की न‍ियुक्‍ति तो उप्र लोक सेवा आयोग से होती है। इस मामले में हम कुछ कर ही नहीं सकते। हालांकि सरकार कोश‍िश कर रही है कि खाली पद जल्‍द से जल्‍द भरे जाएं।”

10 साल से बजट ही खर्च नहीं कर पा रहा खेल व‍िभाग

सूचना के अध‍िकारी के तहत म‍िली जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश का खेल व‍िभाग 2014-15 से 2022-23 के बीच प्रदेश सरकार से आवंटित बजट को पूरा खर्च ही नहीं कर पा रहा जबकि बजट में साल दर साल बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2022-23 में 44498.68 लाख रुपए का बजट पास हुआ। लेकिन व‍िभाग इसमें से लगभग 17% फंड ही खर्च पाया। चालू व‍ित्‍त वर्ष 2023-24 के लिए 101119.41 लाख रुपए का प्रावधान किया गया है।

बजट क्‍यों नहीं खर्च हो पा रहा, इस बारे में आरपी सिंह कुछ स्पष्ट नहीं बताते। हां, यह जरूर कहते हैं क‍ि हर मदद का पैसा अलग-अलग होता है और उन्‍हें उसी ह‍िसाब से खर्च किया जाता है। हो सकता है क‍ि क‍िसी मद का बजट खर्च ना हो पाया। बीच में कोविड की वजह से भी कई कार्यक्रम नहीं हो पाये थे। इसलिए उस वर्ष का बजट खर्च नहीं हो पाया होगा।


पूरे प्रदेश में तीरंदाजी और कराटे के महज एक-एक कोच

उत्तर प्रदेश के खेल न‍िदेशालय द्वारा संचालित प्रदेश के 84 खेल मैदानों में तीरंदाजी और कराटे के महज एक-एक कोच हैं और ये तैनाती मेरठ और प्रयागराज में हैं। वहीं दूसरे खेलों की स्‍थ‍ित‍ि बहुत अच्‍छी नहीं है। लॉन टेनिस, सॉफ्ट टेनिस, स्‍क्‍वैश, तैराकी के दो-दो कोच ही अपनी सेवाएं दे रहे हैं और ये सभी संविदाकर्मी हैं।

लखनऊ के बाद गोरखपुर, वाराणसी में सबसे ज्‍यादा कोच

राजधानी लखनऊ में खेल न‍िदेशालय द्वारा संचालित खेल मैदानों की संख्‍या 4 है जो प्रदेश में ज‍िलेवार सबसे ज्‍यादा है और इन मैदानों में कुल 25 खेल प्रश‍िक्षक न‍ियुक्‍त हैं। इसके बाद गोरखपुर में 13 और वाराणसी में 12 प्रश‍िक्षक हैं। हालांकि गोरखपुर और वाराणसी में दो-दो खेल मैदान ही हैं।

“प्रश‍िक्षकों की न‍ियुक्‍ति खेल मैदानों की संख्‍या, वहां खेल की लोकप्र‍ियता और कई अन्‍य दूसरे मानकों के ह‍िसाब से होती है। लखनऊ में ज्‍यादा कोच इसलिए हैं क्‍योंक‍ि यहां खेल मैदानों की संख्‍या ज्‍यादा है। गोरखपुर में स्‍पोर्ट्स हॉस्‍टल भी है और खेलों की संख्‍या भी ज्‍यादा है। ऐसे में स्‍वभाविक है कि वहां ज्‍यादा कोच होंगे।” आरपी सिंह बताते हैं।

समय पर भुगतान नहीं, 10 महीने का ही म‍िलता है पैसा

लखनऊ के गोमती नगर स्‍थ‍ित एक खेल मैदान में टेनिस की कोच न‍िशा शर्मा जनवरी 2024 से खाली बैठी हैं। “जनवरी में ही कॉन्‍ट्रैक्‍ट खत्‍म हो गया था। एजेंसी से पूछा तो उन्‍होंने बताया क‍ि अभी सरकार की ओर से अभी एग्रीमेंट नहीं बन पाया है। जून आ गया है। लेकिन हमारे पास अभी तक कोई सूचना नहीं है।”

“हमें तो पूरे साल का पैसा भी नहीं म‍िलता नहीं। 9 से 10 महीने का ही पैसा म‍िलता है। इस पर एजेंसी कहती है क‍ि उन्‍हें सरकार सालभर का पैसा देती ही नहीं।” न‍िशा आगे बताती हैं।

मिर्जापुर और वाराणसी में न‍ियुक्‍त कई प्रश‍िक्षक श‍िकायत करते हैं क‍ि उन्‍हें समय पर वेतन नहीं मिलता और जो म‍िलता भी है तो वह पूरे साल का नहीं होता।

प्रदेश में इन प्रश‍िक्षकों की नियुक्‍ति एक निजी एजेंसी टेक्‍निकल मैनपॉवर आउटसोर्सिंग सर्विस के माध्‍यम से हुई है। एजेंसी में अस‍िस्‍टेंट एचआर शमशेद कहते हैं क‍ि वेतन का भुगतान देर से क्‍यों होता है पूरे साल का भुगतान क्‍यों नहीं होता, इसके लिए हम ज‍िम्‍मेदार नहीं हैं।

वे कहते हैं, “हमें ये प्रदेश सरकार की तरफ से ही कहा गया है क‍ि न‍ियम के तहत 10 महीने का ही भुगतान होगा। इसके बाद उनकी न‍ियुक्‍ति र‍िन्‍यू होगी। हमारा तीन साल का कॉन्‍ट्रैक्‍ट था तो जनवरी 2024 में खत्‍म हो गया थ। वह अप्रैल से फ‍िर से र‍िन्‍यू हुआ है। जब पैसा हमें म‍िलेगा ही नहीं तो हम क्‍या करेंगे। रही बात देरी की तो अटेंडेंस र‍िपोर्ट देर से आती है। तो वेतन में देर हो जाती है। इसके लिए हम व‍िभाग से बात कर रहे हैं कि महीने में दो बार भुगतान करने की व्‍यवस्‍था बने। इससे इस परेशानी की समस्‍या का समाधान हो जाएगा।” शमशेद कहते हैं।

वे आगे बताते हैं कि इस साल 31 जनवरी 2024 तक हमारा अनुबंध था। दो महीने बाद अप्रैल में अनुबंध होना था। लेकिन लोकसभा चुनाव की वजह से आचार संह‍िता थी, इस वजह से एक महीने की देरी हुई।

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खनऊ के व‍िराम खंड-2 स्‍थ‍ित अटल क्रीड़ा खेल मैदान में प्रैक्‍ट‍िस करते बच्‍चे। फोटो- म‍िथ‍िलेश धर दुबे

खनऊ के व‍िराम खंड-2 स्‍थ‍ित अटल क्रीड़ा खेल मैदान में प्रैक्‍ट‍िस करते बच्‍चे। फोटो- म‍िथ‍िलेश धर दुबे

खेल न‍िदेशक डॉक्‍टर आरपी सिंह कहते हैं क‍ि संविदा पर रखे गये प्रश‍िक्षकों का कार्यकाल 31 जनवरी तक ही था। इसके बाद ये एक अप्रैल से फ‍िर से शुरू होता है। ये न‍ियम बहुत पहले से चला आ रहा है। इसलिए व‍िभाग 10 महीने का ही भुगतान करता है।

लगभग तीन दशक से खेल पत्रकार‍िता में सक्र‍िय लखनऊ के वर‍िष्‍ठ पत्रकार शरद दीप इस पूरी व्‍यवस्था पर ही सवाल उठाते हुए कहते हैं, “ख‍िलाड़ी बनने में सालों लग जाते हैं। 10-11 महीने में एक ख‍िलाड़ी कैसे ट्रेंड हो सकता है। जब तक ख‍िलाड़ी उसे और वह ख‍िलाड़ी को समझता है, तब तक या तो उसकी संविदा खत्‍म हो जाती है या उसे कहीं और भेज द‍िया जाता है। दोबारा उसकी न‍ियुक्‍ति कहां होगी, यह किसी को नहीं पता। ऐसे में हमारा राज्‍य खेलों में कैसे आगे बढ़ेगा?”

“किसी थर्ड पार्टी के माध्‍यम से प्रश‍िक्षकों की न‍ियुक्‍ति संविदा पर करने का कोई मतलब ही नहीं है। इससे कोई फायदा नहीं होने वाले। ऐसे में सरकार को चाह‍िए कि खेल प्रश‍िक्षकों की न‍ियुक्‍ति परमानेंट हो। सुधार तभी संभव है।” शरद आगे कहते हैं।

‘नींव कमजोरी होगी तो ख‍िलाड़ी आगे कैसे बढ़ेंगे’?

लखनऊ के एक उप क्रीड़ाध‍िकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हमारे यहां मेडल जीतकर आने वाले ख‍िलाड़‍ियों को प्रदेश सरकार सम्मानित करती है। जबकि देखा जाये तो ये खिलाड़ी कहीं ना कहीं अपने दम पर आगे बढ़ते हैं।”

“शुरुआती स्‍तर पर जब बच्‍चों को ठीक से कोचिंग नहीं मिलेगी तो खेल में बेहतर कैसे हो सकते हैं। इसके लिए उन्‍हें नियमित कोचिंग की जरूरत पड़ेगी, जिसकी हमारे यहां सबसे ज्‍यादा कमी है। यही वजह है कि खेल के सबसे बड़े आयोजन ओलंपिक में हमारे प्रदेश के बहुत कम ख‍िलाड़ी क्‍वालीफाई कर पाते हैं।” वे आगे कहते हैं।

हालांकि उत्तर प्रदेश ओलंपिक संघ के चीफ ओएसडी मनीष कक्‍कड़ का मानना है कि खेल के स्‍तर पर प्रदेश में काफी काम हो रहा और स्‍थ‍ित‍ि तेजी से बदल रही है। “पहले की तुलना में काफी बदलावा आया है। राज्‍य में नये स्‍टेड‍ियम बन रहे हैं। प्रश‍िक्षकों की संख्‍या में काफी सुधार आया है। जो भी काम हो रहा, उसका र‍िजल्‍ट कुछ समय बाद सबके सामने आएगा।”

कोविड की वजह से वर्ष 2020 में होने वाला ओलपिंक 2021 में खेला गया। खेलों के इस महाकुंभ में आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्‍य उत्तर प्रदेश से महज 8 ख‍िलाड़ी ही पहुंच पाये।


वर्ष 2023 में चीन के हांगझोऊ में हुए एश‍ियन गेम्‍स में पहली बार उत्तर प्रदेश के 36 ख‍िलाड़‍ियों ने भाग लिया और कुल 23 पदक अपने नाम किये। यह पहला मौका था जब यूपी के खि‍लाड़ियों की झोली में इतने सारे पदक आए हों। इससे पहले 2018 के जकार्ता और 2014 के इंचियॉन (दक्ष‍ि‍ण कोरिया) में उत्तर प्रदेश के खि‍लाड़ियों ने 11-11 पदक ही जीते थे। बावजूद इसके पदकों के मामले में उत्तर प्रदेश हर‍ियाणा, पंजाब और महाराष्‍ट्र के बाद चौथे नंबर पर रहा।


“फुटबॉल मैदान तो है। लेकिन स‍िखाने वाला कोई है ही नहीं। मैं अपने दोस्‍तों के साथ यहां अकेले प्रैक्टिस करता हूं। मेरे जैसे कई लड़के सीखना चाहते हैं। लेकिन कई साल हो गये, यहां कोई कोच ही नहीं।” लखनऊ, गोमती नगर के एक खेल मैदान में सुबह के समय फुटबॉल खेलने आये 16 साल के न‍िशांत नाराज होते हुए कहते हैं।

नोट- क‍िसी भी तरह की असुव‍िधा से बचाने के लिए ख‍िलाड़ी और कोच का बदला हुआ नाम ल‍िखा गया है।