लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 92 द‍िनों तक परेशान करने के बाद आख‍िरकार बाघ पांच मार्च को पकड़ में आ गया। इसे पकड़ने के लिए लगभग 100 लोगों की टीम बनाई गई। लखनऊ और सीतापुर के डीएफओ, दो एसडीओ, आधा दर्जन रेंज आफिसर, पीलीभीत, कानपुर जू के डॉक्टर, स्टाफ सहित 32 कैमरा ट्रैप, 7 सीसीटीवी लाइव कैमरा, 5 सीसीटीवी एआई कैमरा, 2 थर्मल ड्रोन व 6 जगह पिंजड़े लगाए गये। लेकिन अंत में सबसे पुरानी तकनीकी के सहारे ही बाघ को पकड़ा जा सका।

केंद्रीय उपोष्णकटिबंधीय बागवानी संस्थान (CISH) रहमान खेड़ा के इर्द-गिर्द 22 किलोमीटर के दायरे में एक बाघ लगभग 92 द‍िनों तक घूमता रहा। इससे स्‍थानीय लोगों के बीच डर का माहौल था। सुरक्षा की दृष्टि से 11 गांव के स्कूल बंद कर द‍िये गये। लेकिन टाइगर को पकड़ने में कामयाबी नहीं मिल पा रही थी। तब वन विभाग के डॉक्टरों ने एक नई तकनीक अपनाई जिसमे सफलता मिली और बुधवार पांच मार्च की शाम को टाइगर को बेहोशकर रेंज कार्यालय लाया गया जहां डॉक्टरों ने उसका सवास्थ्य परीक्षण किया। तथा 20 घण्टे निगरानी में रखने के बाद उसे उसके प्राकृतिक आवास दुधवा टाइगर रिजर्व के करिंगाकोट रेंज में छोड़ दिया गया।

बाघ को बेहोश करने वाले कानपूर जू के वन्‍यजीव डॉक्टर मोहम्मद नासिर ने इंडियास्‍पेंड को बताया, “वह पहली बार जब रहमान खेड़ा पहुंचे तो 17 दिन तक डॉट (ट्रेंकुलाइजर गन से मारने को डाट करना कहते हैं) करने की कोशिश की गई लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। कई विशेषज्ञों ने अपनी-अपनी राय दी। किसी ने कहा कि भैंस के बच्‍चे के ऊपर जाल बांध दो और जब वह शिकार के लिए उसे को खींचेगा तो जाल गिरेगा और वह उसमें फंस जायेगा।”

“किसी ने कहा कि ऑटोमेटिक डोर बना दो, जिसमें भैंस के बच्‍चे को बांध देंगे वह बाघ उसके पास जाएगा और डोर बंद हो जायेगा। लेकिन यह सारे तरीके अपनाने के बावजूद फेल हो रहे थे क्योंकि बाघ बहुत शर्मीला था और मानव से काफी दूरी बना कर चल रहा था। फिर हेड ऑफ दी फॉरेस्ट फोर्स डॉक्टर सुनील कुमार चौधरी ने निर्देश दिया कि यह टाइगर जिस 9 किलोमीटर की परिधि में घूम रहा है उसे तीन जोन में बांटकर यह रिपोर्ट ली जाए कि यह ज्‍यादा कहां रहता है। उन्हीं के निर्देश पर प्रथम, द्वितीय और तृतीय जोन में पूरे प्रभावित इलाके को बांट कर लोगों की ड्यूटी लगा दी गई। जोन को इलाके में बांटने के बाद टाइगर की गतिविधियों की जानकारी तो मिलने लगी। लेकिन टाइगर फिर भी मानव से दूरी बनाए हुए था और जिधर भी भी वन विभाग कर्मचारियों की चहलकदमी ज्यादा होती उधर से वह नहीं निकल जा रहा था।” नासिर बताते हैं।

ट्रेंकुलाइजर गन एक विशेष प्रकार की गन होती है, जो जानवरों को अस्थायी रूप से बेहोश करने के लिए उपयोग की जाती है।

टाइगर को पकड़ने के पूरे अभियान के नोडल अधिकारी उप प्रभागीय वनाधिकारी चंदन चौधरी ने बताया कि चीफ कंजरवेटर मध्‍य जोन रेनू सिंह की देखरेख में लगभग 100 लोंगों का अमला टाइगर को पकड़ने में लगा हुआ था। इसमें लखनऊ और सीतापुर के डीएफओ (प्रभागीय वन अधिकारी), दो एसडीओ (उप वन अधिकारी), आधा दर्जन रेंज ऑफिसर, पीलीभीत, कानपुर जू के डॉक्टर और स्टाफ सहित 32 कैमरा ट्रैप, 7 सीसीटीवी लाइव कैमरा, 5 सीसीटीवी एआई कैमरा, 2 थर्मल ड्रोन व 6 जगह पिंजड़े लगाए गये थे। इसके अलावा दुधवा टाइगर रिजर्व से दो हाथी सुलोचना और डायना को बुलवाया गया था। अभियान की गंभीरता को देखते हुए डिप्टी रेंजर दिवेश प्रांजय और अभिषेक सिंह दो माह से अपने घर तक नहीं गये थे।

इतने पर भी जब सफलता नहीं मिली तो फिर अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की गाइड लाइन पर ध्यान दिया गया। डॉक्टर नास‍िर बताते हैं कि इसके अनुसार रेस्क्यू के दौरान कोई भी सुगंध लगाकर प्रभावित इलाके में न जाया जाये क्योंकि वन्यजीव मानव सुगंध आसानी से पहचान लेता है।

“टाइगर के ऊपरी जबड़े में “जैकब सन आर्गन” होता है जिससे वह अपनी जबान को ऊपर करके मानव गंध 400 मीटर से सूंघ लेता है। इसीलिए मैंने ने 22 फरवरी से कपड़े बदलना और नहाना छोड़ दिया और जब प्रभावित इलाके में निकलता तो थोड़ी धूल मिट्टी, गोबर भी कपड़ों पर लगा लेता। सुनिश्चित किया गया कि बाघ को ट्रेंकुलाइजर किया जा सकता है। पांच मार्च को दिन में कई बार टाइगर का सामना हुआ और उस पर ट्रेंकुलाइजर का फायर किया गया लेकिन झाड़ियों की वजह से वह बच न‍िकला।”

“फिर धीरे-धीरे शाम होने लगी तो हमें लगा कि अब यह नहीं मिलेगा क्योंकि यह दिन से बेहतर रात में देखते हैं। लेकिन जैसे ही शाम का थोड़ा अंधेरा हुआ तो टाइगर ने झाड़ियों से निकल कर हथनी डायना पर हमला कर दिया तो उसके बचाव में सुलोचना भी दौड़ी। तब वह एक झाड़ी में घुस गया। जहां से सिर्फ इसका सिर दिख रहा था। ट्रेंकुलाइजर गन में 10 पाउंड का प्रेशर डाल कर एक डॉट मारी गई जो जाके उसकी कमर पर लगी। डॉट लगने के बाद भी वह उठ कर चल दिया और 700 से 800 मीटर धीरे-धीरे चला गया। फिर इसको दोबारा टॉप-अप दिया गया तब यह बेहोश हुआ और इसे पिंजरे में डालकर रेंज कार्यालय लाया गया। जहां डॉक्टरी परीक्षण हुआ और फिर लगभग 20 घण्टे के बाद इसके प्राकृतिक आवास दुधवा टाइगर रिजर्व में इसे छोड़ दिया गया।” डॉक्‍टर नास‍िर हमें पूरी कहानी बताते हैं।