बैंक जमा अब भी सबसे भरोसेमंद लेकिन बचत के और भी तरीकों में रुझान बढ़ा
हमारे एक विश्लेषण से पता चला है कि भारतीय परिवारों की बचत में अभी भी सबसे ज्यादा हिस्सेदारी बैंक में डिपोजिट की है, लेकिन बाकी तरह के निवेश भी बढ़ रहे हैं।

पुणे: 2023-24 तक के एक दशक में, भारतीय परिवारों की बचत करने का तरीका बदल गया है। भले ही सबसे ज्यादा पैसा अभी भी बैंक में जमा होता है, लेकिन शेयर बाजार, छोटी बचत योजनाएं, सरकारी बॉन्ड, और प्रॉविडेंट फंड व पेंशन फंड जैसे विकल्पों में भी लोगों का रुझान बढ़ा है।
इसी तरह, पहले जहां भारतीय परिवारों को सबसे ज्यादा कर्ज बैंकों से मिलता था, वहीं अब गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) से लोन में वृद्धि देखी गई है।
कुल मिलाकर, मार्च 2024 तक, भारतीय परिवारों के पास करीब 320 लाख करोड़ रुपये की वित्तीय संपत्ति थी और 121 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था।
2022 में, इंडियास्पेंड ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि कैसे भारत के सबसे गरीब परिवार रोजमर्रा के खर्चों को पूरा करने के लिए, खासकर कोविड-19 महामारी के दौरान और उसके बाद, कर्ज पर ज्यादा निर्भर हो रहे हैं। रिपोर्ट में उधार लेने के तरीकों में बदलाव भी दर्ज किया गया था - शहरी गरीब संस्थागत ऋण की ओर मुड़ रहे थे, जबकि ग्रामीण गरीब अभी भी साहूकारों पर निर्भर थे।
इस रिपोर्ट में, हम छह ग्राफ में देखेंगे कि भारतीय परिवार कैसे बचत करते हैं और कर्ज लेते हैं। ये चार्ट सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के डेटा पर आधारित हैं।
2022-23 में, MoSPI द्वारा प्रकाशित नवीनतम वर्ष के डेटा के मुताबिक, भारतीय परिवारों ने 29.7 ट्रिलियन रुपये ($ 340 बिलियन) की वित्तीय संपत्ति और 15.6 ट्रिलियन रुपये ($ 180 बिलियन) की देनदारियां जोड़ीं। मान लें कि अगर भारत में 29.4 करोड़ परिवार हैं, तो इसका मतलब हुआ, औसतन, एक परिवार ने उस वर्ष 1 लाख की वित्तिय संपत्ति जोड़ी और 53,000 रुपये का कर्ज लिया।
MoSPI डेटा में कुल वित्तीय संपत्ति को सकल वित्तीय बचत के रूप में रिपोर्ट किया गया है और इसमें घरेलू नकदी, जमा और अन्य वित्तीय निवेश शामिल हैं। देनदारियों का मतलब बैंकों और गैर-बैंक लोनदाताओं से उधार लेना है। इन दोनों आंकड़ों के बीच का अंतर उस वर्ष की शुद्ध वित्तीय बचत है।
2022-23 में, भारतीय परिवारों ने 180 बिलियन डॉलर का कर्ज लिया
भारतीय रिजर्व बैंक। घरेलू क्षेत्र की वित्तीय संपत्तियों और देनदारियों में साल-दर-साल बदलाव [डेटा सेट], डेटाफुल।आंकड़े करोड़ रुपये में
भारतीय रिजर्व बैंक के वर्ष 2023-24 के प्रारंभिक अनुमानों से पता चलता है कि वित्तीय संपत्ति यानी बचत बढ़कर 34.3 ट्रिलियन रुपये हो गई, जबकि देनदारियां यानी कर्ज 18.8 ट्रिलियन रुपये रहा। यानी, देनदारियां परिसंपत्तियों का लगभग 55% था, जो कम से कम 1970-71 के बाद से सबसे उच्च स्तर पर है। 2021-22 तक, यह आंकड़ा 34% था।
2020-21 और 2022-23 के बीच, कुल वित्तीय परिसंपत्तियां 3% घटकर 30.7 ट्रिलियन रुपये से 29.7 ट्रिलियन रुपये हो गईं, जबकि देनदारियां दोगुनी से भी अधिक होकर 15.6 ट्रिलियन रुपये हो गईं। सीधे शब्दों में कहें तो भारतीय कम बचत कर रहे हैं और ज्यादा उधार ले रहे हैं।
भारतीयों के बचत करने का तरीका
जैसा कि हमने पहले बताया, भारतीय परिवारों के लिए बचत करने का सबसे आम तरीका अभी भी बैंक में पैसे जमा करना ही है। लेकिन पिछले दस सालों में, बैंकों में जमा होने वाले पैसे का हिस्सा कम हुआ है। हमारे विश्लेषण के अनुसार, 2013-14 में यह 56% था, जो 2023-24 में घटकर 41% रह गया है।
इस दौरान, शेयर और डिबेंचर में निवेश 2% से बढ़कर 9% हो गया। इसी तरह "सरकारी संस्थाओं में निवेश" - यानी छोटी बचत योजनाओं और सरकारी बॉन्ड में भी लोगों ने ज्यादा निवेश किया। इसी तरह, पेंशन और प्रॉविडेंट फंड की हिस्सेदारी 15% से बढ़कर 21% हो गई।
डिपोजिट अभी भी सबसे आगे, लेकिन म्यूचुअल फंड और पेंशन बचत बढ़ी
स्रोत: सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, भारतीय रिजर्व बैंक. आंकड़े करोड़ रुपये में
मार्च में, सरकार ने लोकसभा में बताया कि आने वाले बजट (2025-26) में जो नया टैक्स सिस्टम लाने का प्रस्ताव है, उसमें 12 लाख रुपये तक की आय पर कोई टैक्स नहीं देना होगा। सरकार का कहना था कि इससे मध्यम वर्ग पर टैक्स का बोझ कम होगा और उनके पास अधिक पैसा बचेगा, जिससे उनकी बचत बढ़ेगी। रोजगार के अवसर बढ़ाना, लोगों को नए कौशल सिखाना और व्यापार करना आसान बनाना जैसे अन्य उपायों को भी घरेलू वित्त को मजबूत करने के प्रयासों के रूप में उद्धृत किया गया था।
हालांकि, इन साधनों तक पहुंच सभी आय समूहों के लिए एक समान नहीं है। जैसा कि इंडियास्पेंड ने सितंबर 2021 में रिपोर्ट किया था कि कई गरीब परिवारों को कोविड-19 के दौरान और उसके बाद नौकरी छूटने, उच्च स्वास्थ्य सेवा खर्च और बढ़ती कीमतों से निपटने के लिए अपनी बचत में से पैसे निकालने पड़े थे।
गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों से बढ़ता कर्ज
आंकड़ों से पता चलता है कि वित्तीय निगमों और गैर-बैंकिंग कंपनियों द्वारा दिए जाने वाले कर्ज बढ़ रहे हैं, भले ही सबसे ज्यादा कर्ज अभी भी बैंक से लिया जाता है। 2022-23 तक के दशक में, बैंक से लिए गए कर्ज का हिस्सा 92% से घटकर 76% हो गया, जबकि इसी अवधि के दौरान NBFC से लिए गए लोन 2% से बढ़कर 21% हो गया।
NBFC लोन में वृद्धि
स्रोत: सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, भारतीय रिजर्व बैंक. आंकड़े करोड़ रुपये में
भारतीय रिजर्व बैंक की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भारत में घरेलू कर्ज पिछले तीन वर्षों में बढ़ा है और जून 2024 तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 42.9% था, जो अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अपेक्षाकृत कम है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह वृद्धि औसत कर्ज के बढ़ने की तुलना में उधारकर्ताओं की बढ़ती संख्या के कारण अधिक हुई है।
अक्टूबर 2024 में, इंडियास्पेंड के संस्थापक-संपादक गोविंदराज एथिराज ने लिखा, “निस्संदेह, पिछले चार वर्षों में उपभोक्ता ऋणों में बेरोकटोक वृद्धि देखी गई है, जो संभवतः समग्र आर्थिक विकास से प्रेरित है।” वह आगे लिखते हैं “हालांकि, भारत में उधार लेने और बाजार में अटकलों का स्तर भी देखा जा रहा है, जो अन्य आर्थिक संकेतकों की तुलना में असमान प्रतीत होता है।”
पांच दशकों में सबसे कम बचत
जैसा हमने पहले बताया है, भारतीय परिवारों ने अपनी संपत्ति से ज्यादा कर्ज लिया है, इसलिए शुद्ध बचत (यानी कर्ज चुकाने के बाद परिवारों के पास जो पैसा बचता है) घटकर 15.5 ट्रिलियन रुपये रह गई, जो कि कोविड-19 महामारी के पहले साल में 23.3 ट्रिलियन रुपये थी। यानी, बचत में 33% की गिरावट आई है।
CRISIL की मई 2024 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के बाद से परिवारों ने जितनी बचत की है, उससे ज्यादा कर्ज लिया है।
महामारी के चरम से शुद्ध वित्तीय बचत में 33% की गिरावट
स्रोत: सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, भारतीय रिजर्व बैंक. आंकड़े करोड़ रुपये में
भारत के सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में लिया जाए, तो 2023-24 तक के दशक में देनदारियां दोगुनी हो गई हैं, जो 2013-14 में जीडीपी का 3.2% से बढ़कर 2023-24 में 6.4% हो गईं। इसी अवधि के दौरान, कुल परिसंपत्तियां जीडीपी का 10.6% से बढ़कर 11.7% हो गईं। इसलिए, शुद्ध वित्तीय बचत 5.3% पर पांच दशकों में सबसे कम थी।
भारतीय परिवारों की शुद्ध वित्तीय बचत 5 दशकों में सबसे कम
स्रोत: सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, भारतीय रिजर्व बैंक
भारतीय रिजर्व बैंक ने इस साल जनवरी में कहा कि घरेलू कर्ज का एक "बड़ा हिस्सा" रियल एस्टेट के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, "कुल घरेलू बचत में वित्तीय बचत से भौतिक बचत की ओर एक संरचनात्मक बदलाव हुआ है।"
MoSPI के आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय परिवारों की भौतिक संपत्तियों में बचत 2012-13 में 1.5 ट्रिलियन रुपये से बढ़कर 2022-23 में 3.5 ट्रिलियन रुपये हो गई।
सोने और चांदी की चमक बरकरार
सोना और चांदी भारतीय परिवारों के लिए लगातार बचत का एक विकल्प बने हुए हैं। 2022-23 में, भारतीय परिवारों ने सोने और चांदी के गहनों में 63,397 करोड़ रुपये का निवेश किया, जो एक दशक पहले की तुलना में 73% अधिक था।
इसका मतलब यह नहीं है कि परिवार अधिक सोना और चांदी खरीद रहे हैं। डेटाफुल द्वारा इकट्ठा किए गए आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि इस अवधि के दौरान, चांदी की कीमतें 21% बढ़ीं, जबकि सोने की कीमतें 95% की वृद्धि हुई है।
सोना और चांदी एक दशक से बचत का एक स्थिर विकल्प बने हुए हैं
स्रोत: सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय. आंकड़े करोड़ रुपये में
दवारा रिसर्च की मई 2020 की एक रिसर्च ब्रीफ में उद्धृत ‘राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के अखिल भारतीय ऋण और निवेश सर्वेक्षण’ 2012 के अनुसार, एक औसत भारतीय परिवार अपनी संपत्ति का 84% भौतिक संपत्तियों में, 11% सोने में और बाकी 5% वित्तीय संपत्तियों में रखता है।
गरीब परिवार अमीर परिवारों की तुलना में सोने में अपनी संपत्ति का अधिक हिस्सा रखते हैं: 1.79 लाख रुपये से कम संपत्ति वाले परिवार अपनी संपत्ति का 24% सोना रखते हैं, जबकि 14.8 लाख रुपये से अधिक संपत्ति वाले सबसे अमीर वर्ग अपनी कुल संपत्ति का केवल 2% सोना रखते हैं।