जलवायु हॉटस्पॉट: तापमान बढ़ने से कश्मीर में बढ़ रही आक्रामक जंगली सूअरों की संख्या
आईएमडी के डेटा से पता चलता है कि फरवरी और मार्च में तापमान बढ़ रहा है और रातें गर्म हो रही हैं। इसकी वजह से पर्यावरण जंगली सूअरों के लिए अधिक अनुकूल हो गया है। लेकिन दूसरी ओर ये पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को भी बिगाड़ रहा है।
श्रीनगर: भारत के मौसम विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि श्रीनगर, कुपवाड़ा और गुलमर्ग में फरवरी और मार्च में औसत अधिकतम और न्यूनतम तापमान बढ़ रहा है। इस गर्म मौसम की वजह से जंगली सूअर कश्मीर घाटी में लौट रहे हैं जिसका असर क्षेत्र की स्थानीय प्रजातियों के साथ-साथ उन किसानों पर भी पड़ रहा है जिनकी फसलें जंगली सूअरों की वजह से नष्ट हो जाती हैं।
कश्मीर के वन्यजीव विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी इंतिसार सुहैल ने कहा, "ग्लोबल वार्मिंग कश्मीर में जानवरों के पुनरुद्धार का मुख्य कारण हो सकता है।"
वर्ष 1984 और 2013 के बीच घाटी में जंगली सूअरों की कोई आधिकारिक मौजूदगी नहीं थी। इन्हें पहली बार 1846 और 1857 के बीच जम्मू और कश्मीर के पूर्व शासक महाराजा गुलाब सिंह शिकार के लिए लाये थे। जर्नल ऑफ थ्रेटेंड टैक्सा में 2017 के एक अध्ययन में बताया गया है कि डोगरा राजा के शासन के बाद जंगली सूअरों को कश्मीर में आक्रामक के रूप में मान्यता दी गई थी जिससे संरक्षण के प्रयासों में कमी आई। 2013 में वन्यजीव वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने अप्रत्याशित रूप से एक राष्ट्रीय उद्यान दाचीगाम में एक जंगली सूअर देखा।
हमारी जलवायु हॉटस्पॉट सीरीज की नई स्टोरी में हम उत्तरी कश्मीर के तीन क्षेत्रों में बदलते जलवायु, राज्य की जंगली सूअर आबादी पर इसके प्रभाव और अन्य पारिस्थितिक प्रभावों पर बात कर रहे हैं।
बदलता जलवायु
इंडियास्पेंड को कश्मीर के तीन मौसम केंद्रों से जो आंकड़े मिले उसके अनुसार फरवरी और मार्च में बढ़ते तापमान का पैटर्न दिखाता है। इस प्रकार कश्मीर में हाल के दिनों में सर्दियां कम रही हैं।
वन उत्पाद और उपयोग प्रभाग के रिसर्च स्कॉलर मीर मुस्कान उन निसा और श्रीनगर में शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एसकेयूएएसटी) में प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन प्रभाग के रिसर्च स्कॉलर तालिब बशीर भट के ईमेल के माध्यम से दिये अपने जवाब में बताया कि इस क्षेत्र में पिछली शताब्दी में तापमान में 1.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है जो वैश्विक औसत 0.8 से 0.9 डिग्री सेल्सियस से अधिक है।
उच्च तापमान का मतलब अधिक सूअर क्यों हैं?
जंगली सूअर हालांकि भारत के कई हिस्सों में आम हैं। लेकिन ये कश्मीर के मूल निवासी नहीं हैं। 1840 के दशक में राजा द्वारा उन्हें दाचीगाम के जंगलों सहित शिकार के लिए लाया गया था। जंगली सूअर की उपस्थिति के खिलाफ स्थानीय आंदोलन के कारण, कश्मीर के जंगलों से ये विदेशी प्रजाति समाप्त हो गई। सन 1984 से लगभग 30 साल बाद 2013 में एक वन्यजीव वन रक्षक ने निचले दाचीगाम में इस जानवर की तस्वीर खींची।
“फिर 2015 में उत्तरी कश्मीर में एक मृत नमूने का मिलना और दक्षिण कश्मीर में एक जंगली सूअर को सफलतापूवर्क बचा लेना, ये इनके पुनरुत्थान के संकेत थे", कश्मीर के वन्यजीव विभाग के वरिष्ठ अधिकारी सुहैल ने कहा।
वन्यजीव अधिकारियों का कहना है कि तब से जंगली सूअर को उत्तरी कश्मीर के उरी, लिम्बर, लाचीपोरा, हंदवाड़ा, बांदीपोरा, हाजिन और बलवार जैसे विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ मध्य कश्मीर के दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान में स्थानीय लोगों द्वारा देखा गया है।
जबकि आधिकारिक जनगणना अभी भी नहीं हुई है। वन्यजीव अधिकारियों ने क्षेत्रीय वन्यजीव कर्मचारियों और अन्य वन्यजीव विशेषज्ञों के सहयोग से जंगली सूअर के हमलों की दृष्टि और घटना रिपोर्ट सहित कई स्रोतों के आधार पर कश्मीर में 250 जंगली सूअरों की उपस्थिति का अनुमान लगाया है।
जंगली सूअर की जनगणना की संभावना के बारे में पूछे जाने पर उत्तरी कश्मीर के वन्यजीव वार्डन मोहम्मद मकबूल बाबा ने जवाब दिया, "मैं इस समय जनगणना के संबंध में किसी विशेष योजना से अनजान हूं।"
पर्यावरण के बारे में जागरूकता पैदा करने और इसके संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए 2018 में बने श्रीनगर स्थित गैर सरकारी संगठन, वाइल्डलाइफ रिसर्च एंड कंजर्वेशन फाउंडेशन के संस्थापक महरीन खलील ने कहा, "ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के साथ हमने 10-15 साल पहले की तुलना में सर्दियों की अवधि कम देखी है।"
जंगली सूअर की गर्भधारण अवधि लगभग चार महीने की होती है और वे एक समय में पांच से छह बच्चों को जन्म दे सकते हैं, जिससे जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होती है, बांदीपुरा के जिला वन्यजीव प्रभारी फिदा हुसैन ने कहा।
खलील कहते हैं, "जब उनके पास पूरे वर्ष प्रचुर मात्रा में खाद्य संसाधनों तक पहुंच होती है तो वे सालाना चार बार तक प्रजनन कर सकते हैं जिसके परिणामस्वरूप प्रति वर्ष कम से कम 16-24 बच्चों का जन्म होता है।"
सुहैल ने कहा, "जलवायु परिवर्तन का पारिस्थितिकी और प्रजातियों के व्यवहार पर वैश्विक प्रभाव पड़ रहा है और कश्मीर भी इन प्रभावों का अनुभव कर रहा है।" “पिछले कुछ वर्षों से हमने भीषण सर्दी का अनुभव नहीं किया है। कश्मीर में जंगली सूअर की आबादी में गिरावट देखने के लिए आम तौर पर लगातार दो से तीन कठोर सर्दियां लगती हैं। उनके पुनरुद्धार में योगदान देने वाला एक कारक जलवायु परिवर्तन हो सकता है विशेष रूप से गर्मियों की अवधि और वृद्धि।
उन्होंने कहा कि जंगली सूअर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से सीमावर्ती इलाकों में चले गए होंगे। लेकिन मध्य और दक्षिण कश्मीर में उनकी "आबादी पुनर्जीवित हुई लगती है"। उन्होंने कहा, "कश्मीर में जंगली सूअर पर बढ़ते तापमान और लंबी गर्मी के सटीक प्रभाव को समझने के लिए और शोध आवश्यक हैं।"
जंगली सूअर दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान को प्रभावित कर रहे
141 वर्ग किमी के क्षेत्र को कवर करते हुए दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान जम्मू और कश्मीर के राज्य पशु हंगुल या कश्मीर लाल हिरण या बारहसिंगा का घर है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज (आईयूसीएन) रेड लिस्ट के अनुसार हंगुल को गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है और इसे भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत उस प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है जो शिकार और पशु उत्पादों के व्यापार के लिए प्रतिबंधित है।
20वीं सदी की शुरुआत से हंगुल की आबादी में गिरावट आई है। वन्यजीव संरक्षण विभाग का अनुमान है कि 1900 में उनकी आबादी 3,000 से 5,000 तक थी। 2008 तक अनुमान लगाया गया था कि उनकी संख्या घटकर 127 हो गई। 2023 का नवीनतम अनुमान उनकी संख्या 289 बताता है।
हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि हंगुल की आबादी में कमी के कई कारण हैं, जैसे उनके निवास स्थान का विखंडन, मादा हंगुल के गर्भधारण की कम संभावना, पार्क में बकरवाल प्रवास जैसी मानवीय गतिविधियां और हाल के कारणों में से एक जंगली सूअर की बढ़ती आबादी है।
"हंगुल और सूअर एक ही निवास स्थान में रहते हैं और समान खाद्य स्रोत साझा करते हैं," अध्ययन में शामिल एक परियोजना सहयोगी आकिब हुसैन पॉल ने बताया कि क्यों जंगली सूअर की आबादी हंगुल को खतरे में डाल सकती है।
वन्यजीव अनुसंधान और संरक्षण फाउंडेशन के खलील ने कहा, "वर्तमान में वन्यजीव विभाग हंगुल आवास पर जंगली सूअर के प्रभाव का आकलन कर रहा है। एक आक्रामक प्रजाति के रूप में जंगली सूअर देशी वन्यजीवों के लिए संभावित खतरा पैदा करते हैं।"
जंगली सूअरों द्वारा उत्पन्न सबसे बड़ा खतरा वनस्पति को उखाड़ने और नष्ट करने की उनकी क्षमता में निहित है जो क्षेत्र में कई पशु प्रजातियों के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है। सर्वाहारी होने के कारण जंगली सूअर पौधों की जड़ों और कंदों से लेकर कीड़े-मकोड़ों और छोटे जानवरों तक लगभग किसी भी चीज को खा जाते हैं।
दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान के वन्यजीव वार्डन अल्ताफ हुसैन के अनुसार 2022-23 में जम्मू-कश्मीर के वन्यजीव विभाग ने दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान में जंगली सूअर की आबादी का छह महीने का व्यापक मूल्यांकन किया जिसके परिणाम अभी तक प्रकाशित नहीं हुए हैं। उन्होंने कहा, अध्ययन में जंगली सूअर और हंगुल की आहार प्राथमिकताओं की तुलना की गई और पाया गया कि जंगली सूअर की बढ़ती आबादी दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान और घाटी के अन्य हिस्सों की पारिस्थितिकी पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है।
रिसर्च स्कॉलर मीर मुस्कान उन निसा कहती हैं कि चूंकि जंगली सूअर सर्वाहारी होते हैं, वे छोटे जानवरों, पौधों की जड़ों और कंदों सहित कई प्रकार के खाद्य स्रोतों का उपभोग करते हैं। वह कहती हैं, "इस प्रचंड भूख से क्षेत्र में कई पौधों की प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा है जिससे जंगली सूअर दुनिया की शीर्ष 100 आक्रामक प्रजातियों में से एक बन गया है।"
खलील ने कहा, "आक्रामक या प्रचलित प्रजातियों के लिए प्राकृतिक शिकारियों की अनुपस्थिति में वे पनपते हैं और स्थानीय खाद्य श्रृंखला में एकीकृत हो जाते हैं। अध्ययनों ने ऑस्ट्रेलिया में आक्रामक जंगली सूअर के प्रभाव को भी उजागर किया है जहां मिट्टी की जुताई सहित उनकी चारागाह गतिविधियों से मिट्टी से ग्रीनहाउस गैसें निकलती पाई गई हैं। मौजूदा जलवायु संकट को देखते हुए यह चिंता का कारण है।"
साथ ही जंगली सूअर पारिस्थितिकी तंत्र को भी लाभ पहुंचा सकते हैं। SKUAST के वानिकी संकाय में वन्यजीव विज्ञान प्रभाग के प्रमुख खुर्शीद अहमद ने कहा, वे तेंदुए जैसे बड़े मांसाहारी जानवरों के शिकार हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि जंगली सूअर के प्रभाव को समझने के लिए और शोध की जरूरत है। दाचीगाम में जंगली सूअरों पर छह महीने के अध्ययन का हिस्सा रहे पॉल ने कहा, "हमें अपने क्षेत्र के अवलोकन और प्रयोगशाला निष्कर्षों के बीच एक व्यापक संबंध स्थापित करने के लिए अतिरिक्त समय की आवश्यकता है।"
जम्मू-कश्मीर में वन्यजीव संरक्षण कोष के कार्यकारी निदेशक नदीम कादरी ने कहा, "जंगली सूअरों पर गहन अध्ययन करना महत्वपूर्ण है।" "वन्यजीव विशेषज्ञों की विशेषज्ञता का लाभ उठाकर और इस अध्ययन के परिणामों का अनुमान लगाकर, अधिकारी जंगली सूअर से जुड़ी चुनौतियों के प्रबंधन और उन्हें कम करने के लिए प्रभावी रणनीति विकसित कर सकते हैं।
कृषि पर प्रभाव
दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान में जंगली सूअर के अध्ययन पर अनुसंधान सहयोगी पॉल ने कहा कि यदि जंगली सूअर पार्क के बाहर जाते हैं तो वे अपने रास्ते में व्यापक नुकसान पहुंचा सकते हैं। "सेब के बगीचों में वे पेड़ों को उखाड़ सकते हैं और खुले इलाकों में वे केसर के बीज सहित कई प्रकार की वस्तुएं खा सकते हैं। यदि ये जानवर श्रीनगर की सड़कों पर पहुंचते हैं तो वे कहर बरपा सकते हैं क्योंकि शहर की सड़कों पर प्रचुर मात्रा में भोजन की बर्बादी होती है।"
उरी के 36 वर्षीय किसान इरफान राजा ने कहा, "इस साल जंगली सूअरों ने मेरे बगीचों पर इतना कहर बरपाया है जितना पहले कभी नहीं बरपाया। उन्होंने अधिकांश सेब के पेड़ों को नष्ट कर दिया और सभी फलों को खा गए।"
उत्तरी कश्मीर के वन्यजीव वार्डन मकबूल बाबा ने कहा, "जंगली सूअर की आबादी में वृद्धि हुई है। इसका प्रमाण है उनका जंगलों से बाहर दिखना। जंगली सूअर की आबादी के कारण मानव-वन्यजीव संघर्ष भी होता है।”
बारामूला जिले के उरी में धान किसान 58 वर्षीय अब्दुल सलाम ने कहा कि जब वह बच्चे थे तो जंगली सूअर दुर्लभ थे। लेकिन इस साल मई में उनकी धान फसल को जंगली सूअरों ने पूरी तरह से उखड़कर नष्ट कर दिया। "शुरुआत में हम अपराधी के बारे में अनिश्चित थे। लेकिन अब हम जंगली सूअर को प्रत्यक्ष रूप से देख रहे हैं।"
बांदीपोरा के किसानों ने कहा कि जंगली सूअरों की वजह मई और जून 2022 के बीच उनकी काफी फसल बबार्द हो गई।
उत्तरी कश्मीर के बारामूला के सीमावर्ती गांव उरी के 39 वर्षीय एक अन्य किसान फारूक भट ने कहा कि दो अलग-अलग मौकों पर जंगली सूअरों ने उनके खेतों में बोए गए बीजों को नष्ट कर दिया। “यह अधिकतर रात के समय होता है। अब हमने इस साल धान की बुआई न करने का फैसला किया है क्योंकि धान की बुआई के लिए देर हो चुकी है।”
जंगली सूअर सेम और आलू को भी नुकसान पहुंचाते हैं।
बांदीपोरा के गुंडजहंगेर गांव के 33 वर्षीय किसान अल्ताफ अहमद कहते हैं, "मैंने अपने गांव में पहले कभी जंगली सूअर नहीं देखे थे। पहले हम अपनी जमीन पर लगभग 20 क्विंटल आलू और फलियाँ उगाते थे। लेकिन पिछले साल जंगली सूअरों से व्यापक क्षति के कारण हमारे परिवार ने केवल पांच क्विंटल आलू और फलियाँ उगाईं।"
35 वर्षीय फारूक अहमद ने कहा, "मैं दशकों से सब्जियों की खेती से जुड़ा हुआ हूं। मैंने अपने बच्चों को सेम, गोभी, गाजर, लीक, सलाद, प्याज, अजमोद, मटर, काली मिर्च, मूली, पालक और टमाटर की खेती से कमाए पैसे पर पाला है।"
“बांदीपोरा जिले और कश्मीर के अन्य हिस्सों में जंगली सूअर द्वारा बागवानी क्षेत्रों पर हमला करने की हालिया घटनाएं एक बड़ी चिंता का विषय हैं। हालांकि घटनाओं की संख्या वर्तमान में सीमित है। जैसे-जैसे सूअर की आबादी बढ़ेगी, उनके क्षेत्र मानव बस्तियों पर अतिक्रमण कर सकते हैं,” मेहरीन ने कहा। "जंगली सूअर अपने आक्रामक व्यवहार के लिए जाने जाते हैं।"
बांदीपोरा में वन्यजीव विभाग के चौकीदार नजीर अहमद, जिन्होंने ऐसी कई घटनाओं की सूचना दी है, उन्होंने कहा, "ये जानवर आक्रामकता प्रदर्शित कर सकते हैं और मनुष्यों पर हमला करने के लिए जाने जाते हैं, खासकर जब उन्हें खतरा महसूस होता है या उन्हें घेर लिया जाता है।"
जंगली सूअर के हमलों को रोकना
किसानों का कहना है कि उन्होंने सूअर के हमलों को रोकने के लिए बाड़ लगाने और फ्लड लाइट लगाने की कोशिश की है। इन उपायों से हमलों में कुछ हद तक कमी आई है।
कश्मीर के कृषि विभाग के निदेशक चौधरी मोहम्मद इकबाल ने कहा कि उन्होंने जंगली सूअर प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया है और स्थिति का आकलन किया है। उन्होंने कहा, “प्रभावित किसानों को कृषि विभाग द्वारा प्रबंधित नर्सरी से नए पौधे उपलब्ध कराए गए। हमने किसानों को कोई आर्थिक मुआवजा नहीं दिया है।”
समस्या को अस्थायी रूप से कम करने के प्रयास में वन्यजीव विभाग के हुसैन ने कहा कि उन्होंने सूअरों को तितर-बितर करने के लिए पटाखों का उपयोग करने की कोशिश की।
उत्तरी कश्मीर के वन्यजीव वार्डन मकबूल बाबा ने कहा, "जब हमें जंगली सूअर देखे जाने की रिपोर्ट मिलती है तो हमारे दृष्टिकोण में जंगली सूअर की मां की पहचान करना और उसे शांत करना, पटाखों का उपयोग करना, क्षेत्र में कुत्तों को शामिल करना, प्रदूषण कम करने के उपायों को लागू करना और डराने वाली रणनीति अपनाना शामिल होता है।"
खलील ने कहा कि बांदीपोरा के जिला प्रशासन ने जंगली सूअरों द्वारा फसल पर हमले से निपटने के लिए वन्यजीव बचाव और संरक्षण फाउंडेशन से जानकारी भी मांगी है।
मीर मुस्कान उन निसा और तालिब बशीर भट इस बात पर जोर देते हैं कि लंबी अवधि में जंगली सूअर की आबादी को नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है। उन्होंने मॉडलिंग प्रजनन नियंत्रण जैसी रणनीतियों को लागू करने का सुझाव दिया जो विभिन्न प्रजनन नियंत्रण उपायों के जवाब में जंगली सूअर की आबादी की भविष्यवाणी करने के लिए गणितीय तकनीकों का उपयोग करता है। उन्होंने कहा कि उपायों में से एक पृथक समूहों में जनसंख्या को कम करना हो सकता है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि संघर्ष से बचने के लिए जंगली सूअर के आवासों की वहन क्षमता को उनके घनत्व के अनुरूप बढ़ाने की आवश्यकता होगी।
क्षेत्र में जंगली सूअरों की गैर-देशी स्थिति को ध्यान में रखते हुए SKUAST-K में वानिकी संकाय के खुर्शीद अहमद, प्रभावी प्रजातियों के प्रबंधन और उनके प्रभाव को कम करने की सुविधा के लिए उन्हें वर्मिन घोषित करने का सुझाव देते हैं। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम केंद्र सरकार को उन जंगली जानवरों को उपद्रवी घोषित करने की शक्ति देता है जिन्हें उपद्रवी माना जाता है क्योंकि वे मनुष्यों, फसलों, पशुधन या संपत्ति पर हमला करते हैं। इससे जानवर सुरक्षा से वंचित हो जाते हैं और उनका स्वतंत्र रूप से शिकार किया जा सकता है।
वन्यजीव विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, सरकार अपनी जलवायु कार्य योजना को अपडेट करने की प्रक्रिया में है। योजना स्वीकार करती है कि जलवायु परिवर्तन प्रजातियों की विविधता, आवास, वन, वन्य जीवन, मत्स्य पालन और जल संसाधनों सहित क्षेत्र के विभिन्न पहलुओं के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा पैदा करता है। अधिकारी ने कहा, "सरकार इस खतरे को गंभीरता से ले रही है और इन चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी रणनीतियों और कार्यों को संशोधित करने पर सक्रिय रूप से काम कर रही है।"