लखनऊ। महाराष्‍ट्र के ज‍िला लासलगांव में रहने अशोक देवरे इन द‍िनों मायूस तो हैं ही, परेशान भी हैं। मायूस इसलिए क्‍योंक‍ि सात फरवरी 2025 को जब वे लगभग 12 क्‍विंटल अरहर (तुअर) लेकर मंडी पहुंचे तो उन्‍हें 6,400 रुपए प्रति क्‍विंटल के ह‍िसाब से फसल बेचनी पड़ी जो न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य से 1,100 रुपए कम है। अब उनकी परेशानी इसलिए बढ़ गई क्‍योंकि अभी उनके पास लगभग 12 क्‍विंटल अरहर और है लेकिन वे तय नहीं कर पा रहे कि इसे भी मौजूदा दर पर बेच दें या अभी सही कीमत के लिए इंतजार करें।

“प‍िछले साल इसी समय मंडी में अच्‍छी अरहर की कीमत 9,000 प्रति क्‍विंटल थी जो इस समय 6,400-6,500 रुपए चल रही है। प‍िछले साल कीमत अच्‍छी म‍िली थी इसीलिए इस साल रकबा एक से बढ़ाकर दो एकड़ कर द‍िया। लेकिन जो कीमत अभी चल रही है, उससे तो बहुत नुकसान हो जायेगा। समझ नहीं आ रहा बची हुई फसल बेचें या अभी सही कीमत के लिए इंतजार करें।”

ये कहानी बस महाराष्‍ट्र की ही नहीं है। कर्नाटक, मध्‍य प्रदेश और दूसरे दाल उत्‍पादक राज्यों के किसान अरहर ही नहीं, दूसरी दालों की ग‍िरती कीमतों को लेकर परेशान हैं। दरअसल 20 जनवरी 2025 को विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने एक अधिसूचना में कहा कि तुअर दाल के मुक्त आयात यानी ड्यूटी फ्री की नीति 31 मार्च 2026 तक बढ़ा दी गई है।

भारत ने मोजाम्बिक के साथ पांच साल के लिए सालाना 0.2 मीट्रिक टन तुअर के आयात के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर तब किया था जब 2016 में तुअर की खुदरा कीमतें 200 रुपए प्रति किलोग्राम तक बढ़ गई थीं। इस समझौता ज्ञापन को सितंबर 2021 में अगले पांच साल के लिए बढ़ा दिया गया था। 2021 में भारत ने अगले पांच वर्षों के लिए प्रति वर्ष 50,000 टन तुअर के आयात के लिए मलावी के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। भारत में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और म्यांमार जैसे देशों से चना, अरहर, उड़द, मसूर और मूंग जैसी दालें आती हैं।

ड्यूटी-फ्री आयात की अवधि को एक साल बढ़ाने का फैसला ठीक उस समय ल‍िया गया जब महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्‍थान और मध्‍य प्रदेश जैसे प्रमुख अरहर उत्पादक राज्यों में किसान अपनी फसल बेचने की तैयारी कर रहे थे। किसानों का कहना है कि सरकार के फैसले की वजह मंडियों में अरहर की कीमत न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य से भी कम हो गई है।

सरकार ने 2021 से मुक्त श्रेणी के तहत तुअर और मूंग दाल के आयात की अनुमति दी थी। इसके बाद से मुक्त आयात व्यवस्था को लगातार बढ़ाया जाता रहा है। मूंग के अलावा सभी प्रमुख दालों जैसे अरहर, उड़द, मसूर, चना और पीली मटर का शुल्क मुक्त आयात जारी है।

प्रमुख दाल उत्‍पादक राज्‍य

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य है जिस पर वह किसानों से फसल खरीदती है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बाजार में उतार-चढ़ाव के कारण उन्हें नुकसान न हो। कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत काम करने वाला कृषि लागत और मूल्य आयोग की स‍िफार‍िश पर फसलों की कीमत तय होती है। वर्ष 2024-25 के लिए तुअर/अरहर की एमएसपी 7,550 प्रति क्‍विंटल है।

अरहर ही नहीं, दूसरी दालों की कीमत भी एमएसपी से नीचे

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय की र‍िपोर्ट के अनुसार नौ फरवरी को देशभर की मंड‍ियों में अरहर की जो आवक हुई, उसे औसतन 7,309 प्रत‍ि क्‍विंटल के ह‍िसाब से खरीदा गया। मतलब एमएसपी से लगभग 200 रुपए कम। जबकि गुजरात में यही औसत मूल्‍य 7,025 (एमएसपी से 525 रुपए कम) और कर्नाटक में 6,558 प्रति क्‍विंटल (एमएसपी से 929 रुपए कम) रहा। इस दौरान मध्‍य प्रदेश में कीमत एमएसपी से ज्‍यादा 7,700 रुपए (एमएसपी से 150 रुपए ज्‍यादा) रही।


कर्नाटक के कोलार में अरहर और टमाटर की खेती करने वाले किसान वसीम खान ने इंड‍ियास्‍पेंड को फोन पर बताया कि उन्‍होंने सात फवरी को 6,700 रुपए प्रत‍ि क्व‍िंटल के ह‍िसाब से अरहर बेचा जो सरकारी रेट यानी एमएसपी से 850 रुपए कम है। जबकि उन्‍हें उम्‍मीद थी कि इस साल कीमत 9,000 रुपए प्रति क्‍विंटल से ज्‍यादा जायेगी। "सरकार को इंपोर्ट ड्यूटी इतनी रखनी चाह‍िए कि किसानों को उनकी उपज की सही कीमत मिलती रहे। मेरे क्षेत्र के दाल किसान न‍िराश हैं। इस साल बहुत नुकसान होने वाला है।" वसीम आगे कहते हैं।

कृष‍ि मंत्रालाय की र‍िपोर्ट के आधार पर नौ फरवरी 2025 तक देश में चार प्रमुख दलहन फसलों मसूर, मूंग, अरहर और उड़द का दाम एमएसपी से नीचे चल रहा है। बस चना की कीमत एमएसपी 5,460 रुपए प्रति क्‍विंटल से ज्‍यादा 6,124 है। लेकिन मसूर, मूंग, अरहर (तुअर) और उड़द का दाम काफी नीचे चल रहा। वहीं अगर प‍िछले एक साल की बात करें तो प‍िछले एक साल में चने की कीमत 2.19, मसूर की 1.69, मूंग की 12.71, अरहर की 24.07 और उड़द के भाव में 18.86 फीसदी की ग‍िरावट दर्ज की गई है़।

एक फरवरी 2025 को बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए 6 वर्षीय मिशन की घोषणा की। इस दौरान उन्‍होंने कहा, "हमारी सरकार अब 6 साल का "दलहनों में आत्मनिर्भरता मिशन" शुरू करेगी, जिसमें तुअर, उड़द और मसूर पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। केंद्रीय एजेंसियां (नेफेड और एनसीसीएफ) इन तीन दालों की खरीद के लिए तैयार रहेंगी, जो अगले चार वर्षों के दौरान उन किसानों से खरीद के लिए तैयार होंगी जो इन एजेंसियों के साथ पंजीकरण करते हैं और समझौते करते हैं।"

इसके बाद 10 फरवरी को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐलान किया कि सरकार अगले चार वर्षों तक तुअर, मसूर और उड़द की 100% खरीदी करेगी। उन्‍होंने कहा, "केंद्र सरकार ने दालों के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने में योगदान देने वाले किसानों को प्रोत्साहित करने और आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए खरीद वर्ष 2024-25 के लिए राज्य के उत्पादन के 100% के बराबर पीएसएस के तहत तुअर, उड़द और मसूर की खरीद की अनुमति दी है। सरकार ने बजट 2025 में यह भी घोषणा की है कि देश में दालों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए केंद्रीय नोडल एजेंसियों के माध्यम से राज्य के उत्पादन के 100% तक तुअर, उड़द और मसूर की खरीद अगले चार वर्षों तक जारी रहेगी, जिससे दालों के घरेलू उत्पादन में वृद्धि होगी और आयात पर निर्भरता कम होगी और भारत दालों में आत्मनिर्भर बनेगा।"

ऑल इंड‍िया दाल मिल एसोसिएशन अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल ने इंड‍ियास्‍पेंड को बताया कि संगठन मुक्त आयात के फैसले को वापस लेने की मांग कर रहा है। "इससे किसानों को काफी नुकसान होगा। दालों के मामले में भारत की आत्मनिर्भरता का लक्ष्‍य पूरा करना मुश्‍किल होगा क्योंकि दालों के एमएसपी से नीचे जाने से किसान हताश हो जाएंगे तो दालों की खेती से उनका मोह भंग हो सकता है।" अग्रवाल ने किसानों के लिए एमएसपी में बढ़ोतरी की भी मांग की है।

"सरकार का यह निर्णय केवल अरहर की बढ़ती खपत के कारण लिया गया है, जिसके कारण आयात की आवश्यकता है। हालांकि शुल्क मुक्त आयात नीति को आगे बढ़ाने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यदि खपत अधिकतम 50 लाख टन तक भी पहुंच जाती है तो भी सरकार मार्च तक 40 लाख टन अरहर का आयात करेगी और 1 से 15 लाख टन की कमी के लिए निर्णय उचित नहीं है। ऑल इंड‍िया दाल मिल एसोसिएशन ने एक बैठक में केंद्र सरकार से अरहर का एमएसपी 9,000 रुपये प्रति क्विंटल करने का आग्रह किया है।

दोगुना हुआ आयात, कैसे पूरा होगा आत्‍मनिर्भरता का सपना?

कई मीड‍िया रिपोर्ट्स के अनुसार कैलेंडर वर्ष 2024 के दौरान दालों का आयात लगभग दोगुना होकर रिकॉर्ड 66.33 लाख टन हो गया है, जबकि पिछले वर्ष यह 33.07 लाख टन था। कैलेंडर वर्ष 2024 के दौरान आयात घरेलू खपत का लगभग एक चौथाई है, जो लगभग 270 लाख टन है। सरकार के अनुमान के अनुसार भारत का दाल उत्पादन 2015-17 में 163.23 लाख टन से बढ़कर 2021-22 के दौरान 273.02 लाख टन के उच्च स्तर पर पहुंच गया जो 2023-24 के दौरान अनियमित जलवायु के कारण उत्पादन को प्रभावित करने के कारण घटकर 242.46 लाख टन रह गया।

खरीफ 2024-25 सीजन में भी रकबे में वृद्धि के बावजूद उत्पादन पिछले सीजन के 69.74 लाख टन से मामूली रूप से कम यानी 69.54 लाख टन रहने का अनुमान है। आपूर्ति बढ़ाने के लिए सरकार ने पहले ही तुअर के लिए मुफ्त आयात अवधि 21 मार्च, 2026 तक बढ़ा दी है। पीली मटर के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति 20 फरवरी, 2025 तक है, जबकि चना का आयात 31 मार्च, 2025 तक शुल्क मुक्त रहेगा।

बजट 2025 पेश करते हुए जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने छह साल के दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन का ऐलान किया तो इसके लिए 1,000 करोड़ रुपए भी आवंटित किए गये। यह तब हुआ है जब अप्रैल-नवंबर 2024 के दौरान भारत का दालों का आयात 3.28 बिलियन डॉलर था जो 2023 की इसी अवधि के 2.09 बिलियन डॉलर से 56.6% अधिक है। इस दर पर 2024-25 वित्तीय वर्ष (अप्रैल-मार्च) के लिए आयात 5.9 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है, जो 2016-17 में 4.24 बिलियन डॉलर के उच्च स्तर को पीछे छोड़ सकता है।

वर्ष 2013-14 और 2016-17 के बीच भारत का दालों का आयात मूल्य (1.83 बिलियन डॉलर से 4.24 बिलियन डॉलर तक) और मात्रा (31.78 लाख टन से बढ़कर 66.09 लाख टन) दोनों बढ़ा है। 2018-19 में यह घटकर 25.28 लाख टन (1.14 बिलियन डॉलर), 2019-20 में 28.98 लाख टन (1.44 बिलियन डॉलर), 2020-21 में 24.66 लाख टन (1.61 बिलियन डॉलर), 2021-22 में 27 लाख टन (2.23 बिलियन डॉलर) और 2022-23 में 24.96 लाख टन (1.94 बिलियन डॉलर) रह गया। [एक बिलियन मतलब 100 करोड़]

"कुल मिलाकर मंड‍ियों में तुअर की आवक बढ़ने वाली है। ऐसे में इस महीने के अंत तक कीमतें एमएसपी से और नीचे आ सकती हैं। सरकार को इस तरफ सोचना होगा नहीं तो आने वाले समय दालों के उत्‍पादन पर असर पड़ सकता है।" नई द‍िल्‍ली स्‍थ‍ित दालों के कारोबारी श‍िव प्रकाश कहते हैं।

इंडिया पल्सेस एंड ग्रेन एसोसिएशन (आईपीजीए) के अध्यक्ष बिमल कोठारी बताते हैं कहा कि सरकार किसानों के हित में पीली मटर के आयात पर प्रतिबंध लगा सकती है। "हमें उम्मीद है कि यह (पीली मटर का शुल्क मुक्त आयात) आगे नहीं बढ़ाया जाएगा या आयात पर कुछ प्रतिबंध हो सकते हैं।"

उन्होंने कहा कि 2024 कैलेंडर वर्ष के दौरान भारत का पीली मटर आयात कुल 67 लाख टन दालों के आयात में से 30 लाख टन रहा। "पिछले साल हमारा दाल उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ था और कीमतें अधिक थीं, इसलिए हमें आयात करना पड़ा। लेकिन मुझे नहीं लगता कि इस साल हम इतनी ही मात्रा में आयात करने जा रहे हैं, यह बहुत कम होगा।"

पीली मटर के आयात पर संभावित प्रतिबंधों के साथ कोठारी ने कहा कि अधिक घरेलू उत्पादन के कारण चालू वर्ष में अनुमानित 5.5 मिलियन टन से 2025-26 वित्त वर्ष में देश का कुल दाल आयात घट सकता है। उद्योग को उम्मीद है कि सरकार पीली मटर पर 15-20 प्रतिशत आयात शुल्क लगा सकती है।