डेटाविज़: भारत के जिले समरूप (Equal) क्यों नहीं हैं?
भारत के 785 जिलों में जनसंख्या और क्षेत्रफल में बहुत अंतर है
पुणे: आबादी, क्षेत्रफल और जनसंख्या घनत्व (Popular Density) के मामले में भारत के जिले काफी अलग-अलग हैं। यह हमारे देश में जिलों के गठन की व्यवस्था के मनमाने तरीके को उजागर करता है। महाराष्ट्र के FLAME यूनिवर्सिटी में राज्य और जिला विकास परियोजना के तहत सेंटर फॉर लेजिस्लेटिव एजुकेशन ऐंड रिसर्च की ओर से शुरू किए गए शोध में यह बात खासतौर पर सामने आई है। उदाहरण के तौर पर गुजरात के कच्छ को लें तो 45 हजार 674 वर्ग किलोमीटर में फैला यह जिला क्षेत्रफल के मामले में भारत का सबसे बड़ा जिला है। क्षेत्रफल में यह न सिर्फ पूरे हरियाणा प्रदेश के आकार के बराबर है बल्कि देश के सबसे छोटे जिले पुडुचेरी के माहे (9 वर्ग किलोमीटर) के आकार से 5 हजार गुना ज़्यादा है।
वहीं, उत्तर-पूर्वी दिल्ली में आबादी का घनत्व सबसे ज़्यादा है, जहां प्रति वर्ग किलोमीटर में 36 हजार 161 लोग रहते हैं। इसको ऐसे समझें कि कोलकाता के ईडन गार्डन क्रिकेट मैदान का क्षेत्रफल 0.6 वर्ग किलोमीटर है। मतलब यह कि ईडन गार्डन से थोड़े से ही बड़े आकार के क्षेत्रफल में उत्तर पूर्वी दिल्ली में 36 हजार से ज्यादा लोग रहते हैं। वहीं, अरुणाचल प्रदेश के दिबांग घाटी की बात करें तो यहां प्रति वर्ग किलोमीटर एरिया में सिर्फ एक व्यक्ति रहता है।
पालघर को अलग जिला घोषित किए जाने से पहले महाराष्ट्र के ठाणे जिले में 2011 की जनगणना के हिसाब से सबसे ज्यादा जनसंख्या (11 मिलियन) थी। वहीं अरुणाचल की दिबांग घाटी में सबसे कम लोग (8,004) रहते थे। भारत जैसे देश में जिले काफी महत्वपूर्ण और निर्णायक होते हैं, क्योंकि राज्य और केंद्र सरकारों की ओर से शुरू किए गए सभी विकास कार्यक्रमों का कार्यान्वयन जिला स्तर पर ही किया जाता है। जिलों के सीमांकन से प्रशासनिक कार्यों की कुशलता निर्धारित होती है। हालांकि,विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत में जिलों का गठन किस तरह से किया जाता है, इसके बारे में कोई स्पष्ट मानदंड या दिशा-निर्देश नहीं हैं।
एक प्रदेश के जिलों में असमानता
महाराष्ट्र में 35 जिले हैं। यहां के जिलों में जनसंख्या के मामले में सबसे ज्यादा अंतर दिखाई देता है। यानी राज्य में सबसे ज्यादा और सबसे कम आबादी वाले जिलों के बीच का अंतर देश के अन्य राज्यों के मुकाबले सर्वाधिक है। वहीं, केंद्रशासित प्रदेश लक्षद्वीप में यह अंतर सबसे छोटा है।
हालांकि, ये रैंकिंग भ्रामक हो सकती है, क्योंकि हर राज्य में प्राकृतिक परिस्थितियां अलग-अलग हैं और वहां जिलों के बीच आबादी या क्षेत्रफल का अंतर उसकी भौगोलिक बनावट की वजह से भी हो सकता है। ऐसे में अगर जिलों के बीच असमानता के इस अंतर को ठीक से समझना है तो आय असमानता (इनकम इनइक्वलिटी) के लिए पारंपरिक रूप से प्रयोग में लाया जाने वाला अनुमानित गिनी इंडेक्स (Gini Index) ज्यादा सटीक हो सकता है। अपने विश्लेषण में हमने भारत के 640 जिलों के लिए इंडेक्स निकाले हैं। ये Indeces 2011 की जनगणना के हिसाब से एरिया, पॉपुलेशन और पॉपुलेशन डेंसिटी के आधार पर तैयार किए गए हैं। इसके तहत गिनी इंडेक्स में जीरो (0) का मतलब है कि जिलों में पूर्ण समानता है जबकि 1 पूर्ण असमानता को दर्शाता है। ऐसे में गणना के क्रम में जिसका इंडेक्स 1 के जितना करीब होगा, वहां असमानता उतनी ही ज्यादा होगी। इस इंडेक्स के हिसाब से भारत के जिले जनसंख्या घनत्व के मामले में सबसे ज्यादा असमान हैं, जिनका गिनी इंडेक्स 0.678 है। वहीं क्षेत्रफल के मामले में यह असमानता सबसे कम है, जिसका गिनी इंडेक्स 0.414 होता है।
जनसंख्या घनत्व में असमानता में महाराष्ट्र अव्वल
जनसंख्या घनत्व के मामले में महाराष्ट्र सबसे ज़्यादा असमान है। इसके बाद अविभाजित आंध्र प्रदेश और फिर तमिलनाडु का नंबर आता है। बड़े राज्यों में बिहार, पंजाब और केरल में जनसंख्या घनत्व के मामले में सबसे कम असमानता है। डेटा से पता चलता है कि शहरी और भौगोलिक रूप से विविधता वाले राज्यों में असमानताएं ज़्यादा हैं। खास तौर पर जनसंख्या घनत्व और क्षेत्रफल के मामले में जबकि ज़्यादा समरूप या छोटे राज्यों में जिलों के हिसाब से असमानताएं कम हैं।
जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र प्रदेश के अंदर मुंबई उपनगर में जनसंख्या घनत्व 20 हजार 980 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर जबकि गढ़चिरौली में केवल 74 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। प्रदेश में ठाणे, मुंबई, पुणे और नागपुर जैसे जिलों में जनसंख्या घनत्व बहुत अधिक है जबकि यहां के अन्य जिले बहुत कम घनी यानी कि विरल आबादी वाले हैं।
पुडुचेरी असमान जनसंख्या के मामले में अव्वल
जिलों की आबादी को देखें तो इस मामले में पुडुचेरी केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) सबसे ज़्यादा असमानता वाला राज्य है। छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड इस मामले में दूसरे नंबर पर हैं। राज्य के गठन से ठीक 2 साल पहले 1998 में छत्तीसगढ़ ने अपने जिलों की संख्या 7 से बढ़ाकर 16 कर दी थी। इसके बाद से यहां जिलों की संख्या दोगुनी होकर 33 हो गई है। दूसरी ओर, आंध्र प्रदेश (अविभाजित), हरियाणा और मध्य प्रदेश में जिलों के बीच जनसंख्या असमानता सबसे कम है। कुल मिलाकर, पुडुचेरी जैसे छोटे राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में जनसंख्या वितरण ज़्यादा असमान है, जो संभवतः भौगोलिक कारकों और सिर्फ कुछ जिलों में केंद्रित शहरीकरण की वजह से है।
केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में माहे जिले की जनसंख्या 41 हजार से थोड़ी ज्यादा है।
पुडुचेरी जिले की जनसंख्या 20 गुना अधिक यानी 9 लाख 50 हजार है।
क्षेत्रफल की दृष्टि से जम्मू-कश्मीर सबसे ज़्यादा असमान
जिलों के क्षेत्रफल के मामले में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के विभाजन से पहले जम्मू-कश्मीर राज्य में सबसे ज़्यादा असमानता थी। यानी कि यहां के जिलों के क्षेत्रफलों में तुलनात्मक अंतर काफी ज्यादा था। इसका मुख्य कारण लद्दाख और कश्मीर क्षेत्रों में पहाड़ी इलाका या अलग-अलग तरह के भूगोल का होना था। क्षेत्रफल के आधार पर असमानता के मामले में पुडुचेरी और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली दूसरे नंबर पर हैं। वहीं गोवा और त्रिपुरा में क्षेत्रफल के लिहाज से सबसे कम असमानता है।
जम्मू और कश्मीर में लेह ( अब लद्दाख में) जिला 45 हजार 110 वर्ग किलोमीटर में फैला है। इस जिले का क्षेत्रफल देश भर में सबसे ज्यादा है, जबकि गांदेरबल जिले का क्षेत्रफल सबसे कम (259 वर्ग किलोमीटर) है।
जिला गठन के लिए मानदंड
भारत में साल 1961 से 2021 के बीच जिलों की संख्या 340 से बढ़कर 693 हो गई है। इस हिसाब से देखें तो हर दशक में औसतन 60 नए जिले गठित किए गए हैं। 1991-2001 के दशक में सरकारों ने देश में 127 नए जिले बनाए, जो आज़ादी के बाद जिलों के गठन का सबसे बड़ा आंकड़ा है। हाल ही में 2021 से 2024 के बीच सरकारों ने देश में 92 और नए जिले जोड़े हैं। इससे देश भर में (फरवरी 2024 तक) कुल जिलों की संख्या तकरीबन 785 हो गई है।
हालांकि, भारत में जिलों की ये संख्या अनुमानित ही है क्योंकि जिलों के गठित होने की घोषणा और इसके लिए आधिकारिक नोटिफिकेशन पब्लिश होने के बीच काफी समयांतराल होता है, जिसके बाद यह बदलाव सरकारी डेटाबेस और मानचित्रों में दिखाई देता है। इसके अलावा, चूंकि जिलों का बनना एक डायनमिक प्रोसेस है, ऐसे में जिलों की संख्या साल भर बदलती रहती है। उदाहरण के तौर पर 26 अगस्त को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लद्दाख में 5 नए जिले बनाने की घोषणा की लेकिन ये जिले अभी तक प्रदेश के मानचित्र या सरकारी डेटाबेस में दिखाई नहीं देते।
शोध से पता चलता है कि आमतौर पर बढ़ती आबादी के कारण नए जिलों का गठन करना ठीक है, जिसके लिए जिला स्तर पर प्रशासनिक क्षमता में बढ़ोतरी होती है। 1951 से 2024 के बीच भारत की जनसंख्या 361 मिलियन से 4 गुना बढ़कर 1.4 बिलियन हो गई। साथ ही, साल 1951 की जनगणना और 2024 के लिए संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या अनुमानों के आधार पर गणना के अनुसार, भारत में नए जिलों के गठन के साथ औसत जिला जनसंख्या 1.16 मिलियन से 53 फीसदी बढ़कर 1.78 मिलियन तक पहुंच गई। उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र में पालघर जिले का निर्माण ठाणे की बड़ी जनसंख्या (2011 में 11 मिलियन) और क्षेत्रीय विविधता को देखते हुए जरूरी था। पालघर जिले की घोषणा 2000 के दशक के शुरुआत में की गई थी और 2014 में यह घोषणा साकार हो पाई। भले ही विशाल जनसंख्या के आधार पर ठाणे से पालघर को अलग किया गया हो लेकिन जिला बनाने के लिए जनसंख्या प्राथमिक मानदंड कभी नहीं रही है।
एक ओर, पश्चिम बंगाल के कोलकाता की सीमा पर स्थित नॉर्थ 24 परगना जिला है, जिसकी आबादी जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार10 मिलियन से ज्यादा है। वहीं दूसरी ओर अरुणाचल प्रदेश की दिबांग घाटी है, जिसकी आबादी जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार देश के सभी जिलों में सबसे कम 8,000 है। जिलों के गठन को लेकर किसी व्यापक कानून या नीति की कमी के कारण भारत में कई नए जिले बिना किसी ठोस औचित्य के, जनमत की परवाह किए बिना और अक्सर राजनीतिक कारणों से मनमाने ढंग से बनाए गए हैं। यह बात देश के 3 पूर्व सिविल सर्वेंट्स ने भी कही है जिन्होंने गुजरात, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र में जिला कलेक्टर के रूप में काम किया है और कई प्रशासनिक पदों पर रहे हैं।
लेखक फ्लेम यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर लेजिस्लेटिव एजुकेशन एंड रिसर्च द्वारा शुरू की गई ‘द स्टेट एंड डिस्ट्रिक्ट इवोल्यूशन प्रोजेक्ट’ का हिस्सा हैं, जिसका उद्देश्य यह पता लगाना है कि भारत में राज्य और जिले स्वतंत्रता पूर्व के समय से लेकर विभाजन के बाद की अवधि और वर्तमान तक कैसे विकसित हुए हैं।