4 राज्यों को 3600 करोड़ मिलने के बाद भी 2024 में एक भी दिन नहीं मिली साफ हवा
हर साल की तरह 2024 भी वायु प्रदूषण से निजात नहीं मिल पाया। एक तरफ जहरीली हवा लोगों को बीमार बना रही है। वहीं दूसरी ओर सरकार बचाव के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च करने का दावा कर रही है। बावजूद इसके दिल्ली और एनसीआर के साथ साथ देश के कई शहर प्रदूषित हैं।
नई दिल्ली: हर साल की तरह 2024 भी वायु प्रदूषण से निजात दिलाए बिना खत्म होने वाला है। देश के अधिकांश शहरों की आबोहवा को प्रभावित करने वाला यह प्रदूषण दिल्ली और एनसीआर में खासतौर पर गंभीर है। हवा को साफ रखने और नई नीतियों को लागू करने के लिए सरकार भी करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। बावजूद इसके आम आदमी दमघोंटू हवा में सांस लेने को मजबूर है।
स्थिति यह है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने अपनी रिपोर्ट में साल 2024 के दौरान एक भी दिन हवा साफ न रहने की पुष्टि की है। इनका मानना है कि जब हवा में प्रदूषण का स्तर शून्य से 50 के बीच रहता है तो उसे सबसे बेहतर स्थिति माना जाता है लेकिन इस साल दिल्ली और एनसीआर के क्षेत्र में ऐसा कोई दिन नहीं रहा, जब हवा इतनी स्वच्छ रही हो।
हालांकि साल के 66 दिन यह प्रदूषण 51 से 100 के बीच रहा है जिसे अंतरराष्ट्रीय मानकों के आधार पर सटिस्फैक्टरी यानी संतोषजनक कहा जाता है लेकिन उससे कहीं अधिक 141 दिन हवा में प्रदूषण का स्तर 100 से 200 और 134 दिन यह 200 से 400 के बीच रहा जो किसी भी मायने में आम आदमी के स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं है। इतना ही नहीं, साल 2024 में 17 दिन लोगों ने 500 से ज्यादा एक्यूआई लेवल का सामना किया है, इस स्थिति को स्वास्थ्य आपातकाल माना गया है। ऐसे हालात साल 2022 में केवल छह और 2023 में 14 दिन तक रहे।
इंडियास्पेंड से साझा जानकारी में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने बताया कि वायु प्रदूषण को कम करने के लिए केंद्र सरकार ने अब तक 3600 करोड़ रुपये (2018 से 2024-25 की अवधि के दौरान (15.11.2024 तक) की आर्थिक सहायता की है। जिन राज्यों को यह रकम मिली है उनमें दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश शामिल हैं। 2018 से नवंबर 2024 तक अलग अलग किस्तों में 3623.45 करोड़ रुपये जारी किए जिनमें पंजाब को 1681.45, हरियाणा 1081.71, उत्तर प्रदेश 763.67 और दिल्ली को 6.05 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं। इतना ही नहीं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) को भी वायु प्रदूषण के नाम पर 83.35 करोड़ रुपये का अनुदान मिला है।इसी तरह, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत 2019-20 से 2024-25 के दौरान दिल्ली के लिए कुल 476.04 करोड़ रुपये का बजट जारी किया जिनमें से 334.53 (70%) रुपये का उपयोग हुआ। इसमें 42.69 करोड़ रुपये का बजट सिर्फ दिल्ली के लिए रखा जिसमें 13.56 करोड़ (32%) खर्च हुए।
यह पूछे जाने पर कि इतनी बड़ी रकम का इस्तेमाल कैसे हुआ? मंत्रालय ने बताया कि पराली इसमें सबसे अहम मुद्दा है। वायु प्रदूषण में पराली की अहम भूमिका है और इसलिए एक अक्टूबर से 30 नवंबर 2024 के बीच सीपीसीबी ने 26 टीमें (पंजाब के 16 जिलों और हरियाणा के 10 जिलों में) तैनात की जो पराली जलाने के संबंध में स्थानीय अधिकारियों के साथ समन्वय कर रही हैं और कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट यानी सीएक्यूएम को रिपोर्ट कर रही हैं।
मंत्रालय ने यह भी बताया कि पराली से निजात पाने के लिए केंद्र सरकार ने हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के किसानों को मशीनें उपलब्ध कराने का कार्य भी किया है। करीब तीन लाख से ज्यादा किसानों को मिलीं मशीनों के जरिए पराली को एकत्रित कर उनका निस्तारण किया जा सकता है। इनके अलावा 40 हजार किसानों को सीएचसी उपलब्ध कराई गई जिनमें 4500 से अधिक बेलर और रेक भी शामिल हैं। इसका उपयोग गांठों के रूप में पुआल संग्रहण के लिए किया जाता है। हालांकि मंत्रालय ने सीपीसीबी की उस रिपोर्ट पर कोई पक्ष नहीं रखा जिसमें यह कहा है कि साल 2024 में एक भी दिन दिल्ली और एनसीआर में साफ हवा नहीं मिली।
सरकारी दावों से अलग वैज्ञानिक तथ्य
बहरहाल, सरकारी योजना और वित्तीय सहायता के जमीनी बदलावों को जानने के लिए जब स्वतंत्र वैज्ञानिकों से संपर्क किया गया तो पता चला कि करोड़ों रुपये के अनुदान के बाद भी हालात जस के तस बने हुए हैं। ताजा अपडेट यह है कि आठ अक्टूबर से सात दिसंबर 2024 के बीच भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन आईआईटीएम-पुणे के शोधकर्ताओं ने एक रिपोर्ट सौंपी है जिसमें कहा है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण और पीएम 2.5 के लिए पराली करीब 10.6% जिम्मेदार है लेकिन 8 अक्टूबर-7 दिसंबर 2024 की अवधि के दौरान यह 35% का योगदान रहा।
इसी अवधि में पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) के सेटेलाइट इमेजरी पर आधारित आंकड़ों के अनुसार 18 नवंबर को पंजाब में खेतों में आग लगने के 1,251 मामले सामने आए। मुक्तसर जिले में खेतों में आग लगने की सबसे अधिक 247 घटनाएं दर्ज की गई, इसके बाद मोगा (149) और फिरोजपुर (130) का स्थान रहा। अकेले पंजाब में 15 सितंबर से 18 नवंबर 2024 के बीच पराली जलाने पर 6611 मामले दर्ज किए गए।
नई दिल्ली स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली (IIT) के वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र के प्रोफेसर साग्निक डे ने इंडियास्पेंड से बातचीत में कहा, "दिल्ली और एनसीआर में वायु प्रदूषण और देश के बाकी हिस्सों में वायु प्रदूषण, दोनों को अलग अलग समझने की आवश्यकता है। जहां बाकी शहरों में धूल और सड़कों का रखरखाव मुख्य समस्याएं हैं वहीं दिल्ली और एनसीआर में वायु प्रदूषण कई कारकों का सामूहिक परिणाम है।"
उन्होंने कहा, “उच्च घनत्व वाले आबादी वाले क्षेत्रों में उच्च स्तर की मानवजनित गतिविधियां जैसे वाहन प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण, निर्माण से धूल और जर्जर सड़कें, बायोमास जलाना, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट जलाना और लैंडफिल में आग इत्यादि। मानसून के बाद कम तापमान, कम मिश्रण ऊंचाई, व्युत्क्रमण की स्थिति और हवा में स्थिरता के चलते प्रदूषक तत्व फंस जाते हैं जिससे आसपास उच्च प्रदूषण होता है।”
प्रोफेसर ने कहा कि त्योहारी सीजन खासतौर पर दिवाली पर आतिशबाजी और उसके आसपास खेतों में पराली जलाना इस स्थिति को भयानक रूप देने लगता है जिसे हम अक्सर अपनी नग्न आंखों से चारों ओर धुंध के रूप में देखते हैं।
राज्य परिषद का सांसदों को दिया सुझाव
प्रदूषकों को साइंटिफिक तौर पर देखा जाए तो सितंबर 2023 में प्रकाशित आईआईटी कानपुर का अध्ययन बताता है कि दिल्ली के वायु प्रदूषण में पीएम 10 और पीएम 2.5 आकार के प्रदूषकों की भरमार है। PM 2.5 के लिए माध्यमिक अकार्बनिक एरोसोल (32%) और वाहन प्रदूषण (17%) जिम्मेदार हैं। इसी तरह बायोमास जलाना (24%), अन्य महत्वपूर्ण कारकों में कोयला और फ्लाई ऐश (7%), घरेलू स्रोत (3%), नगरपालिका ठोस अपशिष्ट जलाना (3%), मिट्टी और सड़क की धूल (2%) भी शामिल है। यह अध्ययन 2019 के सर्दियों के महीनों के दौरान दिल्ली के लिए डिज़ाइन किया गया था जहां एयरोसोल आकार वितरण और परिवेश एयरोसोल और गैसों की आणविक संरचना को मापा गया था।
उन्होंने बताया कि वायु प्रदूषण को लेकर हाल ही में पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद शशि थरूर के नेतृत्व में 19 दिसंबर 2024 को एक बैठक हुई। दिल्ली में हुई इस बैठक में 11 सांसदों सहित कई विशेषज्ञ भी मौजूद थे। इसी बैठक में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की पूर्व मुख्य वैज्ञानिक और भारत के आईसीएमआर की पूर्व महानिदेशक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन भी उपस्थिति रहीं।
बैठक के बारे में डॉ. सौम्या ने कहा, "19 दिसंबर 2024 को दिल्ली में यह बैठक हुई जिसमें वायु प्रदूषण संकट पर सांसदों और हितधारकों के बीच काफी लंबी चर्चा हुई। इस बीच सर्वसम्मति से कई क्षेत्र उभर कर सामने आए और उनके अनुसरण करने के लिए आगे बढ़ने की जरूरत भी है। सांसदों के साथ हमारे परामर्श की एक प्रमुख सिफारिश वायु प्रदूषण सहित स्वास्थ्य के प्रमुख खतरों को संबोधित करने के लिए राज्य पर्यावरण मंत्रियों की एक परिषद स्थापित करना है। यह बहुत अच्छा होगा यदि सिफारिश के अनुसार स्वास्थ्य मंत्री भी इसमें शामिल हों। इससे सही नीति को लागू करने और उसके जमीनी प्रयासों के बारे में पता करने में आसानी होगी।"
2024 में 22 शहरों में प्रदूषण कम होने की घोषणा
केंद्र सरकार ने 2024 में देश के 22 शहरों की सूची जारी की जिसमें प्रदूषण का स्तर कम होने की घोषणा की है। इनमें उत्तर प्रदेश के वाराणसी, बरेली, फिरोजाबाद, मुरादाबाद, खुर्जा, लखनऊ, कानपुर और आगरा शामिल हैं। इनके अलावा उत्तराखंड की राजधानी देहरादून और ऋषिकेश, तमिलनाडु का तूतीकोरिन व तिरुच्चिराप्पल्ली, झारखंड का धनबाद, हिमाचल प्रदेश का नालागढ़, सुंदर नगर और परवाणु, नागालैंड का कोहिमा, आंध्र प्रदेश का कडपा, असम का सिबसागर, ग्रेटर मुंबई, जोधपुर और मेघालय का बिर्नीहाट शामिल है। इन शहरों में पीएम 10 के स्तर में करीब 40 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है।
केंद्र सरकार का कहना है कि राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) योजना के तहत 24 राज्यों में 131 शहरों में प्रदूषण का स्तर कम करने का लक्ष्य रखा गया। 2017-18 की तुलना में 2024-25 तक पार्टिकुलेट मैटर (पीएम10) का स्तर 20 से 30% तक कम करने का लक्ष्य रखा गया जिसके तहत देश के 22 शहरों में 40% तक की कमी आई है। वहीं 13 ऐसे शहर हैं जहां यह स्तर 30 से 40 फीसदी के बीच कम हुआ है। वहीं 37 शहरों में यह गिरावट 10 से 30 फीसदी के बीच रही है। इनके अलावा 23 शहरों में अभी एक से 10 फीसदी तक ही अंतर आया है। इसलिए सरकार ने वित्त वर्ष 2025-26 तक लक्ष्य को आगे बढ़ाते हुए 19,614.44 करोड़ रुपये निर्धारित किए हैं जिनसे 4.90 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले शहरों को सहायता मिल पाएगी।
जैव विविधता पार्क वायु प्रदूषण रोकने में मददगार
जैव विविधतात पार्कों के विज्ञानी प्रभारी डा. फैयाज खुदसर ने इंडियास्पेंड से बातचीत में कहा, “वायु प्रदूषण को जैव विविधता के जरिए भी रोका जा सकता है। दिल्ली में कई स्थानों पर जैव विविधता पार्क विकसित हुए हैं। बीते 20 साल में अरावली जैव विविधता पार्क वनस्पति के पारिस्थितिकि तंत्र के रूप में विकसित हो गया है।”
उन्होंने कहा, “ यहां पेड़, झाड़ियां और चौड़ी पत्ती वाली शाक व घास सहित लगभग 12 सौ प्रजातियां उपलब्ध हैं। इनकी मदद से हवा में कार्बन की मात्रा भी कम हो रही है। यह वैज्ञानिक अध्ययन में भी स्पष्ट हुआ है। दिल्ली की हवा को जहरीली बनाने में अन्य प्रदूषक तत्वों के साथ कार्बन उत्सर्जन बड़ा कारण है। जैव विविधता इस समस्या का प्रकृति आधारित समाधान है। इससे वातावरण में कार्बन की मात्रा कम करने में मदद भी मिलती है।”
उन्होंने यह भी कहा, “पार्क में 2,02,100 पेड़ों में 9,107.90 टन कार्बन संग्रहित है जिसकी कीमत लगभग 12.35 करोड़ रुपये है। पलाश, अर्जुन और पीलू के पेड़ में सबसे ज्यादा कार्बन संग्रहण की क्षमता है। इन वृक्षों द्वारा प्रतिवर्ष लगभग 5.89 लाख रुपये का जल संग्रहण भी होता है।”
उन्होंने कहा कि यमुना नदी के सक्रिय एवं असक्रिय बाढ़ क्षेत्रों को पुनर्जीवित कर पुनर्स्थापित करने के लिए सरकार यमुना जैव विविधता उद्यान पर काम कर रही है। हाल ही में टेम्स नदी फाउंडेशन के प्रमुख डॉ. रॉबर्ट ओट्स ने यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क में घूमने के बाद कहा कि विश्वस्तर पर किसी भी नदी को पुनर्जीवित करने का यह अनूठा प्रयास है एवं सभी को इससे सीख लेनी चाहिए। यमुना जैव विविधता उद्यान एक ऐसा उदाहरण है, जहां इस्तेमाल में लाई वैज्ञानिक विधियां अन्य नदियों को पुनर्जीवित करने में उपयोगी सिद्ध होंगी।
341 फैक्ट्री में प्रदूषण की जांच, 11 को सील का आदेश
हाल ही में केंद्र सरकार ने संसद में बताया कि प्रदूषण को लेकर देश के अलग अलग राज्यों में सीपीसीबी ने 341 फैक्ट्री का निरीक्षण किया है जिनमें से 159 ईकाई में पर्यावरण के नियमों का उल्लंघन पाया गया। इनमें से 11 को सील करने का आदेश जारी किया गया। इनके अलावा 89 ईकाई को नोटिस जारी करते हुए पर्यावरण से जुड़े नियमों का पालन न करने पर जवाब तलब किया है। अकेले पंजाब में पांच इकाइयों का निरीक्षण किया जिनमें से सर्वाधिक चार इकाइयां पर्यावरणीय मानदंडों का अनुपालन न करते पाए गईं। इनके खिलाफ पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 5 के तहत 2 इकाइयों को नोटिस जारी किया और दो इकाइयों ने बाद में मानदंडों का पालन करने की जानकारी दी जबकि शेष दो गैर-अनुपालन इकाइयों के लिए सीपीसीबी का नोटिस अभी भी लागू है।
इसी तरह दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में वायु प्रदूषण को लेकर निर्माणाधीन क्षेत्रों का निरीक्षण किया गया। 2024 में दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 539 स्थानों से 2.38 करोड़ रुपये का जुर्माना वसूला है। वहीं एक जनवरी से 16 दिसंबर 2024 के बीच दिल्ली में 69, हरियाणा में 155, उत्तर प्रदेश में 201 और राजस्थान में 46 निर्माणाधीन साइट को नोटिस जारी किया। सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, इन क्षेत्रों में निर्माणाधीन साइट की वजह से काफी मात्रा में धूल ने पूरे इलाके को अपनी चपेट में ले रखा था। इन सभी साइट को तत्काल बंद करने का आदेश जारी हुआ। हालांकि प्रदूषण का स्तर कम होने के बाद इनमें से 335 साइट पर वापस काम शुरू हुआ लेकिन 136 साइट को बंद रखा गया है।
सौर ऊर्जा में सफलता, प्लास्टिक कचरे पर ध्यान नहीं
वायु प्रदूषण के अलावा साल 2024 में सरकार ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में सफलता मिलने की घोषणा की है। सरकार के मुताबिक, भारत अपनी नवीकरणीय ऊर्जा यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील के पत्थर पर पहुंच गया है। 10 अक्टूबर 2024 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 200 गीगावाट (गीगावाट) के आंकड़े को पार कर गई है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार कुल नवीकरणीय ऊर्जा आधारित बिजली उत्पादन क्षमता अब 201.45 गीगावॉट है। यह उपलब्धि स्वच्छ ऊर्जा के प्रति प्रतिबद्धता और हरित भविष्य के निर्माण में इसकी प्रगति को रेखांकित करती है। वहीं गैर-नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने राष्ट्रीय बायोएनर्जी योजना के बारे में बताया कि 1,715 करोड़ रुपये के बजट वाले इस कार्यक्रम के जरिए 97.7 मेगावाट ऊर्जा अपशिष्ट से प्राप्त हुई है। इस बजट के जरिए 6 संयंत्र की स्थापना हुई है जिनके जरिए 14.3 मेगावाट के बराबर बायो-गैस का उत्पादन किया जा रहा है।
जबकि प्लास्टिक उत्पादन और प्लास्टिक अपशिष्ट को लेकर सरकार को अब तक बड़ी कामयाबी नहीं मिल पाई है। साल 2018-19 से 2022-23 के बीच सालाना प्लास्टिक कचरे का उत्पादन बढ़कर 4136188.83 टन तक पहुंच गया है। सरकार का कहना है कि प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम स्थानीय निकायों और ग्राम पंचायतों को यह सुनिश्चित करना अनिवार्य करते हैं कि प्लास्टिक कचरे को खुले में न जलाया जाए। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियमों के तहत प्लास्टिक पैकेजिंग को लेकर निर्माताओं की जिम्मेदारी भी है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के संदर्भ में बात करें तो यहाँ हर साल तकरीबन 56 लाख टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन होता है। जिसमें से लगभग 9205 टन प्लास्टिक को रिसाइकिल किया जाता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, देश के चार महानगरों दिल्ली में रोजाना 690 टन, चेन्नई में 429 टन, कोलकाता में 426 टन और मुंबई में 408 टन प्लास्टिक कचरा फेंका जा रहा है।