फेकल कोलीफॉर्म : गंगा में नहाने से ज्यादा जल का 'आचमन' जोखिम भरा, आंतों में चिपक सकते हैं बैक्टीरिया
महाकुंभ में प्रदूषित गंगा पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट ने जहां एक तरफ सियासी हड़कंप मचाया है। वहीं दूसरी ओर प्रयागराज में स्नान करने वाले इस रिपोर्ट पर चितिंत हैं। लखनऊ से लेकर दिल्ली सहित कई जगहों पर घर लौटने के बाद लोग बीमार भी पड़े हैं।

दिल्ली में यमुना खादर में दूषित जल और प्रभावित भू क्षेत्र की यह तस्वीर, स्त्रोत- परीक्षित निर्भय
नई दिल्ली: किसी भी नदी में कोलीफॉर्म का पाया जाना हैरानी भरा नहीं है लेकिन इंसान के लिए इसका पानी पीना किसी मुसीबत से कम भी नहीं है। ऐसे पानी में स्नान करने से घातक बैक्टीरिया त्वचा पर ही चिपके रह जाते हैं लेकिन अगर यह पानी शरीर में अंदर प्रवेश करता है तो जोखिम भरा हो सकता है।
देश के चर्चित स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने यह सावधानी उस वक्त दी है जब केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट को लेकर एक तरफ सियासी हड़कंप मचा है। वहीं दूसरी ओर महाकुंभ में प्रयागराज जाकर गंगा में डुबकी लगाने वाले चिंतित हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक बयान में इसे महज एक अफवाह बताया है जबकि नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने इस मामले में 28 फरवरी को अगली सुनवाई तय की है।
बहरहाल, देश के कई शहरों में महाकुंभ से लौटने के बाद लोगों के बीमार पड़ने के मामले भी सामने आए हैं। कुछ शहरों के डॉक्टरों ने इसकी पुष्टि अपने सोशल मीडिया एकाउंट के जरिए की है जबकि कुछ ने इंडियास्पेंड से बातचीत में अचानक से ओपीडी में इससे संबंधित मरीजों के बढ़ने की जानकारी दी है।प्रयोगशाला में आइसोलेट कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की यह तस्वीर
नई दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल के इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एंड पैनक्रिएटिको बिलीरी साइंसेज के उपाध्यक्ष डॉ. पीयूष रंजन ने इंडियास्पेंड से बातचीत में कहा, “किसी भी नदी में फेकल कोलीफॉर्म काउंट्स का होना गंभीर बात नहीं है क्योंकि नदियों में सीवेज डंप होने के बारे में सभी जानते हैं। यहां सवाल यह है कि आम इंसान के लिए क्या गंगा का जल घातक है? सीधेतौर पर कहें तो नदी के पानी में फेकल कोलीफॉर्म बढ़ने से इंसानों को तभी जोखिम हो सकता है जब पानी उनके शरीर में प्रवेश करे। ऐसे जल में स्नान करने से कोई नुकसान नहीं है क्योंकि तब यह बैक्टीरिया ऊपरी त्वचा पर ही चिपक कर रह जाएगें। हालांकि इसका सेवन या आचमन सेहत के लिए ठीक नहीं है क्योंकि इसकी वजह से जल जनित रोगों की चपेट में आ सकते हैं। इनमें टाइफाइड, हैजा, डायरिया, वायरल हेपेटाइटिस और गैस्ट्रोएंटेराइटिस सबसे आम बीमारियां हैं।”
डॉ. रंजन ने कहा कि यह लोगों की आस्था से जुड़ा विषय है। गंगाजल का आचमन थोड़ी सी मात्रा में किया जाता है लेकिन इसमें फेकल कोलीफॉर्म की मात्रा कितनी है? इसके बारे में जानकारी नहीं है। इसलिए दूषित जल थोड़ा या अधिक कितनी भी मात्रा में नहीं पीना चाहिए क्योंकि यह शरीर में कई घातक संक्रमणों का कारण बन सकता है।
गंगा में फेकल कोलीफॉर्म मतलब क्या?
गंगा नदी में एंटीबायोटिक प्रतिरोध बैक्टीरिया और प्रतिरोध जीन की जांच का परिणाम, साइंस डायरेक्ट जर्नल में प्रकाशित अध्ययन।
नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉ. अरविंद कुमार ने बताया कि किसी भी पानी की शुद्धता का पता लगाने के लिए पांच अलग अलग पैमानों पर इनकी जांच होती है। इसमें टोटल कोलीफॉर्म और फेकल कोलीफॉर्म भी शामिल है। कोलीफॉर्म एक बैक्टीरिया है जो हमेशा इंसान और जानवरों के पांचन तंत्र में मौजूद रहता है। इसलिए यह पेशाब या मल अपशिष्ट के जरिए शरीर से बाहर निकल जाता है। जब यही बैक्टीरिया एक समूह में एकत्रित होने लगते हैं तो उन्हें फेकल कोलीफॉर्म कहा जाता है। सीवेज से प्रदूषित हो रहीं भारत की अधिकांश नदियों खासतौर पर गंगा और यमुना में यह अक्सर पाए जाते हैं।
प्रदूषित नदी के अधिक फेकल कोलीफॉर्म काउंट्स युक्त पानी पीने से इंसानों को कई कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। इसमें गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल परेशानियां सबसे आम हैं जिनमें डायरिया, पेट में ऐंठन के साथ साथ टाइफाइड, हेपेटाइटिस ए और पेचिश जैसी गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं। यहां गौर करने वाली बात है कि शहरी भारत में टाइफाइड बुखार का प्रकोप अभी भी अधिक है, जबकि अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में इसका प्रकोप कम है। यह एस. टाइफी और एस. पैराटाइफी नामक बैक्टीरिया की वजह से होता है। शहरों में अधिक प्रकोप के लिए सीवेज और उसकी वजह से प्रदूषित जल स्त्रोतों को जिम्मेदार ठहराया गया है।
झारखंड के देवघर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉ. शुभम आनंद बताते हैं कि फेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा एस्चेरिचिया कोली (ई. कोली) से बना होता है, जिसमें ई. कोली O157:H7 जैसे कुछ स्ट्रेन विशेष रूप से रोगजनक होते हैं जो इंसानों में गंभीर आंतों के संक्रमण का कारण बन सकता है। मुख्य रूप से खूनी दस्त, पेट में ऐंठन और कभी-कभी हेमोलिटिक यूरेमिक सिंड्रोम (एचयूएस) नामक एक गंभीर बीमारी भी हो सकती है जो विशेष तौर पर छोटे बच्चों और बुजुर्गों में गुर्दे की विफलता का कारण बन सकता है। इस बैक्टीरिया के लक्षण अक्सर दो से पांच दिन बाद ही दिखाई देते हैं।
कोलीफॉर्म बैक्टीरिया: जल संदूषण का एक संकेतक
ग्लोबल एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल स्टूडेंट्स के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. आनंद ने बताया कि ऐसे पानी में स्नान के बाद हाथ और शरीर को एक बार दोबारा साबुन एवं साफ पानी से अच्छे से धोना चाहिए। ताकि ऊपरी त्वचा पर चिपके कोलीफॉर्म अच्छे से छूट सकें। इसके साथ साथ अपने शरीर को सुखाकर साफ कपड़ा पहनना चाहिए। अपने पास हमेशा हैंड सैनिटाइजर रखे और अपने हाथों को नहाने के बाद और खाने के पहले जरूर इस्तेमाल करे। उन्होंने कहा कि कुंभ से लौटने के बाद अगर किसी को तेज बुखार, थकान, मांसपेशियों में दर्द, पसीना आना, डायरिया या कब्ज की शिकायत होती है तो बिना देर किए डॉक्टर से संपर्क करें।
हमारी ओपीडी में रोजाना आ रहे ऐसे मामले
नई दिल्ली स्थित श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट के इन्टर्नल मेडिसिन एंड इंफेक्शन डिजीज विभाग में सलाहकार डॉ. अंकित बंसल ने इंडियास्पेंड से कहा, " हमारे अस्पताल में इससे संबंधित लगभग प्रतिदिन 30 से 40 मरीज आ रहे हैं। सबसे पहले, यह बैक्टीरिया पेट में संक्रमण पैदा कर सकता है जिससे पेट दर्द, उल्टी, दस्त, और बुखार जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसके अलावा, यह बैक्टीरिया रक्तप्रवाह में प्रवेश कर सकता है और शरीर के अन्य अंगों में संक्रमण पैदा कर सकता है। फेकल कोलीफॉर्म के संपर्क में आने से कई अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं, जैसे कि गुर्दे की समस्याएं, हृदय रोग, और यहां तक कि मरीज की मृत्यु भी हो सकती है। इसलिए, यह बहुत जरूरी है कि हम अपने जल स्रोतों को सुरक्षित रखें और फेकल कोलीफॉर्म के संपर्क में आने से बचें।
नई दिल्ली स्थित पीएसआरआई हॉस्पिटल के सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. भूषण प्रभाकर भोले ने यहां तक बताया कि महाकुंभ में करोड़ों लोग स्नान के लिए पहुंच रहे हैं। पिछले कुछ सप्ताह से यह भीड़ लगातार देखने को मिल रही है। ऐसे में गंगा और यमुना में फेकल कोलीफॉर्म की मात्रा बढ़ना स्वाभाविक है। लोगों के इस हुजूम से गंगा और यमुना का जल दूषित हुआ है। उनके यहां भी ऐसे मरीज आ रहे हैं जिन्हें पेट में संक्रमण, दर्द, बुखार या फिर उल्टी व दस्त की शिकायत है। इन बीमारियों में सबसे बड़ी चुनौती समय पर जांच और इलाज है। अगर ऐसा न हो तो उल्टियां और दस्त बढ़ने से शरीर में पानी की कमी हो सकती है और उससे ब्ल्ड प्रेशर भी गिर सकता है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मेदांता अस्पताल के पल्मोनरी, क्रिटिकल केयर और स्लीप मेडिसिन विभाग में सहयोगी सलाहकार डॉ. अभिषेक टंडन अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर लिखते हैं, " प्रिय एक्स, कृपया मुझे राष्ट्र-विरोधी/सनातन-विरोधी का लेबल न लगाएं, लेकिन मैं उन रोगियों में निमोनिया के बहुत सारे मामले देख रहा हूं जिन्होंने हाल ही में प्रयागराज जाकर गंगा में डुबकी लगाई है!"
कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की तीन केस स्टडी :
1. दिल्ली के द्वारका निवासी 32 वर्षीय महिला दस्त, पेट में ऐंठन के साथ दो दिन से उल्टी होने की शिकायत लेकर आई। डॉक्टरों से पूछताछ में बताया कि रात को भोजन के बाद अचानक से तबियत बिगड़ गई। इसके बाद ओवर-द-काउंटर एंटी-डायरिया दवा लेकर खुद को ठीक कर लिया लेकिन एक दिन बाद फिर से तबियत बिगड़ गई। इस बातचीत में डॉक्टरों ने बीमारी के लिए दूषित जल यानी आरओ वाटर प्यूरीफायर की समय पर सर्विस न होने का पता लगाया। मल की जांच में ई. कोली और हल्के ल्यूकोसाइटोसिस मिले और उसके घर के पानी में उच्च फेकल कोलीफॉर्म काउंट पाए गए।
2. पश्चिमी दिल्ली निवासी 28 वर्षीय एक युवक तीन सप्ताह पहले टाइफाइड के चलते अस्पताल आया। पेशे से गुरुग्राम की एक आईटी कंपनी में कार्यरत युवक सात दिन से थकान और हल्का सिरदर्द महसूस कर रहा था। पैरासिटामोल लेने के बाद भी बुखार नहीं उतर रहा था। डॉक्टरों ने मरीज की पूरी बात सुनने के बाद उसके ऑफिस के पानी को लेकर जब पूछताछ की तो पाया कि आखिरी बार पानी पीते वक्त वहां डिस्पेंसर से दुर्गंध आ रही थी। जांच में एस टाइफी बैक्टीरिया के अलावा हल्का ल्यूकोपेनिया और लिम्फोसाइटोसिस भी मिला।
3. दिल्ली के उत्तर नगर की एक कॉलज छात्रा स्ट्रीट फूड खाने के बाद पीलिया, मतली और थकान की चपेट में आई। बीते 22 जनवरी को भर्ती छात्रा ने गन्ने का जूस और गोल गप्पा खाने के बारे में भी बताया जिसके बाद आकाश अस्पताल के डॉक्टरों ने जांच में हेपेटाइटिस ए की पुष्टि की। यह आगे चलकर हेपेटिक एन्सेफैलोपैथी में बदल गया। लगातार बिगड़ती हालत के चलते मरीज को वेंटिलेटर सपोर्ट पर भी रखा गया लेकिन सामान्य सेरेब्रल एडिमा होने के बाद ब्रेन हर्निऐशन के कारण उसकी मौत हो गई।
(यह सभी मामले दिल्ली के आकाश अस्पताल के वरिष्ठ सलाहकार डाॅ. राकेश पंडित ने इंडियास्पेंड से साझा किए)
वे सब प्रजातियां मौजूद, जिन पर आईसीएमआर चितिंत
कोलीफॉर्म बैक्टीरिया में वे सभी प्रजातियां शामिल हैं जिनका इंसानों के अपशिष्ट से संबंध है। एस्चेरिचिया कोली, एंटरोबैक्टर, क्लेबसिएला, सिट्रोबैक्टर, ये सभी ग्राम-नकारात्मक बैक्टीरिया हैं और यह सभी एंटरोबैक्टीरियासी परिवार के सदस्य हैं। नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट 2023 में भारत में लगातार बढ़ते इन बैक्टीरिया के प्रसार पर चिंता जताई है। यह रिपोर्ट बताती है कि देश के अधिकांश सरकारी अस्पतालों में भर्ती मरीजों की जांच में क्लेबसिएला के बाद एस्चेरिचिया कोली सबसे आम रोगजनक पाया गया। मरीजों के मूत्र, पस और रक्त नमूनों में इनके साथ साथ निमोनिया, एसिनेटोबैक्टर बाउमानी, स्यूडोमोनास एरुगिनोसा और स्टैफिलोकोकस ऑरियस भी मिले हैं। आईसीएमआर ने अपनी रिपोर्ट सुपर बग का नाम देते हुए इन सभी बैक्टीरिया के प्रसार को भारत के लिए एक बड़ा जोखिम तक माना है।