उत्तर भारत में बाढ़, भूस्खलन और एक ख़ामोश स्वास्थ्य आपदा
जम्मू-कश्मीर, पंजाब और हिमाचल में बाढ़ सिर्फ़ घरों और सड़कों को नहीं बहा ले गई—उसने मानसिक स्वास्थ्य, साफ़ पानी और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमजोर कड़ी को भी उजागर कर दिया।

श्रीनगर के राजबाग़ इलाके में बाढ़ के बीच एक युवक अस्थायी नाव की मदद से रास्ता बनाता हुआ। इमेज क्रेडिट: अर्शदीप सिंह
श्रीनगर: अगस्त के अंतिम हफ्ते में जो रिकॉर्ड तोड़ बारिश, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं ने जम्मू-कश्मीर, पंजाब और हिमाचल प्रदेश को तबाह किया, तो राजमार्ग नदियों में बदल गए, मकान ढह गए और मौत का आंकड़ा बढ़ता चला गया। लेकिन इस साफ़ दिखने वाली तबाही के पीछे एक और ख़ामोश आपदा छिपी थी — स्वास्थ्य तंत्र का चरमराना।
कश्मीर में जीवन रेखा मानी जाने वाली झेलम नदी लगातार बारिश के बाद खतरनाक स्तर तक फूल गई। 26-27 अगस्त की रात तक इसके पानी ने श्रीनगर के राजबाग़ इलाके की गलियों में प्रवेश कर लिया। इससे पहले, 14 अगस्त को जम्मू के किश्तवाड़ जिले के चिसोटी गाँव के पास बादल फटने से आई बाढ़ में कम से कम 64 लोगों की मौत हो चुकी थी।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि ये बाढ़ एक-दूसरे से अलग-थलग आपदा नहीं हैं, बल्कि एक दोहराया जाने वाला चक्र है जिसके लिए भारत अब भी तैयार नहीं है। कश्मीर से लेकर पंजाब और हिमाचल तक, टूटी हुई स्वास्थ्य सेवाएं, दूषित पानी और मच्छर जनित रोगों का बढ़ना यह दिखाता है कि जलवायु परिवर्तन से बढ़ रही चरम घटनाओं के बीच भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली कितनी नाज़ुक है।
श्रीनगर में बाढ़ का पानी घरों में घुसते देख जुटे स्थानीय निवासी। फ़ोटो: अर्शदीप रैना
ज़िंदगी थमी, इलाज टूटा
श्रीनगर के राजबाग़ इलाके की 22 वर्षीय छात्रा मदीहा ज़हरा, जो बारामुला की रहने वाली हैं, को तब बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ा जब भूस्खलन से श्रीनगर- जम्मू राजमार्ग बंद हो गया और उनके मानसिक स्वास्थ्य की दवाइयां घाटी तक नहीं पहुंच सकीं। “मेरी मानसिक स्वास्थ्य की दवाइयाँ देर से पहुँचीं,” उन्होंने कहा। “उनके बिना बाढ़ और भी घुटन भरी लग रही थी।” आमतौर पर सर्दियों में सड़कें बंद होने पर वे कम से कम डॉक्टर को कॉल कर सकती थीं या एम्बुलेंस मँगवा सकती थीं। इस बार कोई सहारा नहीं था। तीन दिनों तक घाटी के ज़्यादातर हिस्सों में बाढ़ से मोबाइल और इंटरनेट सेवाएँ ठप रहीं।
“मैं पास के अस्पताल गई थी, लेकिन वहाँ बहुत भीड़ थी और फोन बंद होने की वजह से मैं अपने प्राइवेट डॉक्टर से भी संपर्क नहीं कर सकी,” ज़हरा ने कहा। “बर्फ़ में तो मदद बुला सकते हैं। बाढ़ में तो कुछ भी नहीं था।” कश्मीर में मानसिक स्वास्थ्य की ज़रूरतें बेहद बड़ी हैं। डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (MSF) के 2015 के सर्वे के अनुसार, घाटी के लगभग 18 लाख वयस्कों यानी कुल आबादी के 45% ने मानसिक तनाव महसूस किया था। लगभग हर पाँच में से एक व्यक्ति में पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) के लक्षण मिले थे। वहीं, 41% महिलाओं और 26% पुरुषों में डिप्रेशन पाया गया। फिर भी स्वास्थ्य तंत्र बहुत कमजोर है। 2011 की जनगणना के अनुसार, जम्मू- कश्मीर की 1.25 करोड़ आबादी के लिए केवल 41 मनोचिकित्सक थे। विशेषज्ञों का कहना है कि तब से संख्या में थोड़ा ही सुधार हुआ है। ऐसे में कुछ दिनों का भी बाढ़ जनित व्यवधान यहाँ बेहद विनाशकारी हो सकता है।
दूषित पानी, बीमार समुदाय
मुसीबत सिर्फ़ दवाइयों की देरी तक सीमित नहीं रही। अनंतनाग जिले के 26 वर्षीय आदिल डार ने कहा कि बाढ़ के बाद बीमारी फैल गई। “इन बाढ़ों के बाद मेरे इलाके में बहुत लोग डायरिया से बीमार हो गए, क्योंकि पीने का पानी दूषित हो गया था,” उन्होंने बताया।
ऐसे प्रकोप आम हैं। ज़िला महामारी विशेषज्ञ डॉ. शैलेश ने द ट्रिब्यून को बताया कि “रुका हुआ और गंदा पानी बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में संक्रमण का मुख्य स्रोत बन जाता है।” उन्होंने चेताया कि हैज़ा, डायरिया, टाइफ़ॉयड, हेपेटाइटिस-ए और गैस्ट्रोएंटेराइटिस जैसी बीमारियां “बाढ़ के बाद बहुत आम” हैं, जबकि रुके हुए पानी से मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया का खतरा भी बढ़ जाता है।
2014 की कश्मीर बाढ़ के बाद कुछ ही दिनों में पीलिया और डायरिया के मामले दर्ज हुए थे। इस साल पंजाब पहले से ही डेंगू मामलों में वृद्धि देख रहा है। 2023 में नवंबर के मध्य तक 11,000 से ज़्यादा मामले रिपोर्ट किए गए थे। इसी तरह, हिमाचल प्रदेश में पिछले साल 3,359 डेंगू मामले सामने आए थे, जबकि जम्मू और कश्मीर में 6,876 मामले दर्ज किए गए थे। इस साल जनवरी में कश्मीर के अनंतनाग क्षेत्र में कम से कम 27 लोगों जिनमें अधिकतर बच्चे शामिल हैं को दूषित पेयजल के कारण पीलिया हुआ। हाल ही में आई बाढ़ ने मच्छरों के प्रजनन को और बढ़ा दिया है।"
केंद्रीय कश्मीर के 22 वर्षीय अर्शदीप सिंह ने कहा कि उनका परिवार अब बोतलबंद पानी ख़रीदता है। “मेरी बहन और मुझे पहले पीलिया हो चुका है। मुझे महीनों लग गए ठीक होने में। अब हम रिस्क नहीं लेते,” उन्होंने कहा। “लेकिन पैकेज्ड पानी महंगा है। हर कोई इसे खरीद कर पी नहीं कर सकता।”
चरमराता ढांचा
खुद स्वास्थ्य केंद्र भी बचे नहीं। भूस्खलन से जम्मू-कश्मीर के कई जिला अस्पतालों का रास्ता कट गया। पंजाब के 24 बाढ़-प्रवण जिलों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र डूब गए, जिससे मरीजों को लंबी दूरी तय करनी पड़ी। हिमाचल प्रदेश में भी सब-सेंटर टूटे और जरूरी दवाइयों की भारी कमी रही। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, 23 से 28 अगस्त के बीच जम्मू क्षेत्र में सामान्य से 726% अधिक बारिश हुई 1950 के बाद सबसे ज्यादा, रॉयटर्स के मुताबिक। सड़कों, पुलों और बिजली की लाइनों के टूटने से आपातकालीन सेवाएं पंगु हो गईं। एम्बुलेंस को गाँवों तक पहुँचना मुश्किल हुआ, खासकर गर्भवती महिलाओं और बच्चों तक। कोविड-19 महामारी में अहम साबित हुई टेलीमेडिसिन सेवाओं कश्मीर में संचार बाधित होने से पूरी तरह बंद हो गईं।
बार-बार दोहराया जाने वाला पैटर्न
उत्तर भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और गंगा के मैदानी इलाकों में बाढ़ नई बात नहीं है, लेकिन अब इसकी आवृत्ति बढ़ रही है। पाकिस्तान में इस साल सैकड़ों मौतें और बड़े पैमाने पर विस्थापन दर्ज हुआ है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में सिंधु बेसिन के साथ भारी तबाही का ज़िक्र है। अफगानिस्तान के उत्तरी और पूर्वी प्रांतों में भी बार-बार बाढ़ आई। 31 अगस्त को अफगानिस्तान के पूर्वी क्षेत्र में 6.0 तीव्रता का भूकंप आया, जिसमें 1,450 से अधिक लोगों की मौत और 3,300 से ज़्यादा घायल हुए। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, अस्पताल भर गए और हजारों लोग भीड़ भाड़ वाले शिविरों में शरण लेने पर मजबूर हुए, जहाँ साफ पानी और स्वच्छता की कमी थी। इससे हैज़ा, डायरिया और श्वसन रोगों का खतरा और बढ़ गया। WHO ने आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाएँ बनाए रखने के लिए 4 मिलियन डॉलर की अपील की।
भारत में भी यही पैटर्न दोहराया जा रहा है। 2014 की कश्मीर बाढ़ में 500 से अधिक लोगों की मौत हुई और हज़ारों लोग विस्थापित हुए। अस्पताल पंगु हो गए और जल जनित बीमारियां फैल गईं। हिमाचल प्रदेश ने पिछले पाँच सालों में लगातार भूस्खलन और बाढ़ झेली है। पंजाब लगातार डेंगू की लहरों से जूझ रहा है।
जलवायु वैज्ञानिक कहते हैं कि गर्म होती वायुमंडल की वजह से चरम बारिश की घटनाएं बढ़ रही हैं। श्रीनगर स्थित एक जलवायु वैज्ञानिक ने इंडियास्पेंड हिंदी को बताया कि हिमालयी क्षेत्र में पिछले दशक की तुलना में चरम मौसम की घटनाएं 33% बढ़ गई हैं।"
गर्म होती वायुमंडल की वजह से चरम वर्षा की घटनाएं बढ़ रही हैं,” श्रीनगर स्थित जलवायु वैज्ञानिक उमर नजीर बताते हैं । उन्होंने इंडियास्पेंड हिन्दी को बताया कि हिमालयी क्षेत्र में चरम मौसम की घटनाएं पिछले दशक की तुलना में 33% बढ़ गई हैं।
क्या बदलना ज़रूरी है
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत की बाढ़ प्रतिक्रिया अब भी निकासी और बचाव
पर केंद्रित है, जबकि स्वास्थ्य पीछे छूट जाता है। डॉक्टर चेतावनी देते हैं कि ज़रूरी दवाइयों — जैसे मानसिक स्वास्थ्य की दवाइयाँ, इंसुलिन, ओआरएस और एंटीबायोटिक का आपात भंडार ज़रूरी है ताकि सड़कों के बंद होने पर मरीजों की जिंदगी ख़तरे में न पड़े। वे यह भी कहते हैं कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को बाढ़ रोधी बनाना चाहे, जहाँ
बैकअप बिजली, संचार और पंप जैसी व्यवस्था हो। साफ़ पानी सबसे अहम ज़रूरत है। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का कहना है कि मोबाइल वाटर ट्रीटमेंट यूनिट्स को घंटों में तैनात करना चाहिए, हफ़्तों में नहीं।
“अभी की स्थिति में एक तूफ़ान ही पूरे जिले का एकमात्र स्वास्थ्य केंद्र बंद कर देता है,” अनंतनाग की सामुदायिक कार्यकर्ता शाज़िया भट कहती हैं । विश्व स्वास्थ्य संगठन चेतावनी देता है कि अगर बाढ़ के बाद स्वास्थ्य संकटों को
समय रहते नहीं सुलझाया गया, तो उनसे मरने वालों की संख्या बाढ़ से ज़्यादा हो सकती है।