केंद्रीय मंत्री के संसदीय क्षेत्र से ग्राउंड रिपोर्ट: आजादी के दशकों बाद भी इस गांव को सड़क नसीब नहीं
देश में 18वीं लोकसभा के गठन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। सदस्यों का चुनाव करने के लिए देशभर में सात चरणों में मतदान हो रहा है। चुनाव शुरू होने के साथ ही मतदाता अपनी मांगों, अपने मुद्दों पर बात कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के जिला मिर्जापुर के एक गांव से इंडियास्पेंड हिंदी की ग्राउंड रिपोर्ट। इस गांव के लोग आजादी के बाद से पक्की सड़क की राह तक रहे हैं।
दांती बंधवा (मिर्जापुर), उत्तर प्रदेश। "सड़क इतनी खराब है कि गांव में अगर कोई बीमार हो तो उसे डोली-खटोली से मुख्य मार्ग तक लेकर जाना पड़ता है। गांव में एंबुलेंस आ ही नहीं पाती।” दांती गांव के मल्लू (45) नाराज होते हुए अपनी बात जारी रखते हैं।
“पिछले विधानसभा चुनाव में सड़क और पानी की मांग को लेकर हम लोगों ने चुनाव का बहिष्कार कर दिया था। शासन-प्रशासन ने सरकारी संस्थानो में काम करने वाले मतदाताओं का वोट डलवा दिया। विधानसभा चुनाव में कुल 16 मत पड़ा था, जबकि गांव की कुल आबादी लगभग 10 हजार है, 3500 के लगभग मतदाता है।” वे आगे कहते हैं।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 290 किलोमीटर दूर जिला मिर्जापुर में बरकछा पहाड़ी पर दांती बंधवा गांव है। मल्लू लगभग 10 हजार की आबादी वाले इसी गांव में रहते हैं। उनके जैसे अन्य ग्रामीण भी सड़क ना होने से लंबे समय से परेशान हैं। उनकी शिकायत है कि देश की आजादी के इतने दशकों बाद भी उनके गांव में गाड़ी चलने लायक सड़क नहीं है।
जिला मुख्यालय से लगभग 20 किमी दूर बसा यह गांव मिर्जापुर-सोनभद्र मार्ग पर चर्चित पर्यटन स्थल विंढमफाल के पास स्थित है। मल्लू कहते हैं कि गांव के विकास कार्य में बाधा पड़ रही जमीन वन विभाग की है। इसके वजह गांव से पहले लगभग दो किमी वन विभाग की जमीन पड़ने से सड़क का निर्माण कार्य रुका है। मतलब शहर पहुंचने के लिए जो मुख्य मार्ग है, उसके और गांव के बीच लगभग दो किलोमीटर तक सड़क ही नहीं है। ग्रामीण पगडंडियों से होकर गांव पहुँचते हैं। रात में जंगल के रास्ते पैदल चलना कठिन है।
“एक किलोमीटर दूरी पर अपर खजुरी बांध और बाणसागर नहर का पानी जा रहा है। लेकिन इस पानी का लाभ हम ग्रामीणों को नहीं मिल पा रहा है।” वे पानी की समस्या की ओर भी ध्यान दिलाते हैं।
देश में 26 अप्रैल से शुरू हुए लोकसभा चुनाव 2024 इस बार कुल सात चरणों में संपन्न होंगे और मिर्जापुर में आखिरी दौर में 1 जून को मतदान होना है। राजनीतिक पार्टी अपना दल (सोनेलाल) की राष्ट्रीय अध्यक्ष और वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल मिर्जापुर की लगातार दो बार से (2014, 2019) सांसद हैं। अनुप्रिया एनडीए (National Democratic Alliance) गठबंधन से इस बार भी मिर्जापुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी हैं।
“आप मानेंगे नहीं। लेकिन सड़क ना होने की वजह से मेरे यहां बच्चों की जल्दी शादी नहीं होती। पानी की समस्या भी है।” 54 वर्षीय रामधारी यादव ये कहते-कहते थोड़ा नाराज हो जाते हैं।
वे आगे बताते हैं कि सबसे ज्यादा दिक्कत लड़कों की शादी में आती है। हमारे गांव में लोग अपनी बेटी ब्याहने से कतराते हैं। चुनाव आते ही नेता सड़क बनवा देने का वादा करते हैं। पिछले कई वर्षों से यही हो रहा। कलेक्ट्रेट में न जाने कितनी बार पत्र लिख चुके हैं। हम अपनी जमीन तक देने को तैयार नहीं हैं। लेकिन कोई सुन ही नहीं रहा। हम तो कई बार चुनाव बहिष्कार भी कर चुके हैं। लेकिन स्थिति जस की तस है।
लेकिन ये चुनावी मुद्दा क्यों नहीं?
गांव के प्रधान जितेंद्र कुमार मौर्य (38) कहते हैं कि आजादी के बाद से अभी तक कोई संपर्क मार्ग नहीं बना है। पथरीला रास्ता होने की वजह से गांव के बच्चों को शहर जाने में परेशानी होती है। मरीज को आने-जाने में पथरीला रास्ता होने की वजह से गाड़ी जाने में बहुत परेशानी होती है।
“बारिश के समय में कोई बीमार हो गया तो एंबुलेंस गांव में आने को तैयार नहीं होता है। गांव के सड़क के लिए वन विभाग ने अनापत्ति प्रमाण पत्र लोक निर्माण विभाग को सौंप दिया है। लोक निर्माण विभाग ने शासन स्तर पर रूपरेखा बनाकर सड़क बनाने के लिए भेज दिया है। लेकिन जिले के जनप्रतिनिधियों ध्यान नहीं दे रहे इसलिए सड़क निर्माण में देरी हो रही है।” जितेंद्र विधायक और मौजूदा सांसद पर सवाल उठाते हैं।
इसी गांव के दलित बस्ती की रहने वाली बुजुर्ग राजकुमारी 50 नाराज होकर कहती हैं "हम लोग बहुत परेशान हैं। बारिश के दिनों में गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी के लिए एंबुलेंस गांव में नहीं आ पाता है। गांव के बाहर एम्बुलेंस खड़ी हो जाती है। वहीं से फोन करके बोलते हैं कि आप अपने मरीज को लेकर गाड़ी तक आइये। आपके घर तक गाड़ी नहीं आ सकती। अब चुनाव फिर से आ गया है। नेता लोग आएंगे, झूठा वादा करेंगे और चले जाएंगे और हम इसी जगह रहेंगे।”
नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) की 2022 में आई 2020 की रिपोर्ट के अनुसार 2022 में हुई कुल मौतों में से 45 प्रतिशत से अधिक मौतें चिकित्सा देखभाल के अभाव में हुईं। यह देश की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की अपर्याप्तता और इसकी पहुंच को उजागर करता है। चिकित्सा देखभाल के अभाव में मरने वाले लोगों का अनुपात 2019 में 34.5 प्रतिशत ही था। हालांकि वर्ष 2020 में देश कोरोना महामारी से भी जूझ रहा था।
उत्तर प्रदेश सरकार के पास कोर रोड नेटवर्क (सीआरएन) में सुधार के लिए एक लंबा कार्यक्रम है और इस कार्यक्रम के हिस्से के रूप में विश्व बैंक राज्य सरकार की मदद कर रहा है। इस बजट का उपयोग पूरे लोक निर्माण विभाग में सुरक्षा इंजीनियरिंग प्रबंधन प्रणालियों और प्रथाओं में सुधार के लिए किया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश पीडब्ल्यूडी की वेबसाइट के अनुसार राज्य के अंदर पूरे 7,550 किलोमीटर लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग इस सीआरएन परियोजना में शामिल नहीं हैं। कुल मिलाकर राज्य में लगभग 300,000 किलोमीटर का सड़क नेटवर्क है, जिसमें से 173,000 किलोमीटर पीडब्ल्यूडी के अधीन है।
उत्तर प्रदेश पीडब्ल्यूडी की वेबसाइट के अनुसार राज्य के अंदर पूरे 7,550 किलोमीटर लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग इस सीआरएन परियोजना में शामिल नहीं हैं। कुल मिलाकर राज्य में लगभग 300,000 किलोमीटर का सड़क नेटवर्क है, जिसमें से 173,000 किलोमीटर पीडब्ल्यूडी के अधीन है। पीडब्ल्यूडी के अंतर्गत आने वाली सड़कों में 7,550 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग, 7,530 किमी राज्य राजमार्ग, 7,544 किमी प्रमुख जिला सड़कें, 39,245 किमी अन्य जिला सड़कें और 118,166 किमी ग्रामीण सड़कें शामिल हैं।
केवल 60 फीसदी स्टेट हाईवे डबल लेन हैं। पूरे राज्य में 62 प्रतिशत प्रमुख जिला सड़कों और 83 प्रतिशत अन्य जिला सड़कों की चौड़ाई सात मीटर से कम है।
भारतीय जनता पार्टी के स्वतंत्र प्रभार एवं राज्यमंत्री दयाशंकर मिश्र कहते हैं कि देश में ग्रामीण सड़कों के लिए प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना है, जिस सड़क की बात हो रही है वहां पर वन विभाग से जुड़ा मामला है। हम लोग वन मंत्री से बात करके सड़क बनवाने का काम करेंगे।"
लोक निर्माण विभाग की वजह से रुका काम!
मिर्जापुर की डीएम प्रियंका निरंजन का कहना है कि जनपद का कुछ ऐसा क्षेत्र है जिसका कुछ हिस्सा वन विभाग और कैमूर वन विभाग में आता है, जिसकी वजह से संपर्क मार्ग निर्माण की अनुमति नहीं मिल पा रही थी। भारत सरकार की प्रक्रिया के तहत प्रतिपूरक वनीकरण के लिए शासन द्वारा भूमि दी जानी थी, जिस पर बार-बार आपत्ति लग रही थी। उस पर प्रयास किया गया। जिसके बाद वन विभाग ने अनापत्ति प्रमाण पत्र दे दिया है। सड़क बनाने के लिए शासन को प्रस्ताव भेज दिया गया है। आचार संहिता समाप्त होने के बाद गांव में सड़क बनाई जाएगी।
"पीडब्ल्यूडी को सड़क बनाने के लिए उसे कार्ययोजना में शामिल करना होता है। हमारी तरफ से नवंबर-दिसंबर 2023 में ही अपर मुख्य सचिव लोक निर्माण विभाग को पत्र लिखकर सड़क को कार्ययोजना में शामिल कर सड़क निर्माण करने का मांग की थी। लेकिन लोक निर्माण विभाग की तरफ से सड़क बनाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।”
हालांकि वन विभाग ने अनापत्ति प्रमाण पत्र वर्ष 2021 में ही दे दिया था। लेकिन अब तक काम क्यों नहीं शुरू हुआ, इसक जवाब किसी के पास नहीं है।
नेशनल रूरल इंस्फ्राट्रक्चर डेवलपमेंट एजेंसी, भारत सरकार की एक रिपोर्ट कहती है, “यह देखा गया है कि गाँवों तक सड़क संपर्क के अभाव में कई लोगों की मृत्यु हो गई जिन्हें थोड़ी सी चिकित्सा देखभाल से बचाया जा सकता था। सरकारी या निजी चिकित्सा सेवा प्राप्त करने के लिए सड़क संपर्क बहुत महत्वपूर्ण हैं। यह अफसोस की बात है कि अन्य संसाधनों वाले गाँवों के लोग इस महत्वपूर्ण सेवा से वंचित हैं क्योंकि दुर्भाग्य से वे स्थान जहाँ वे पैदा हुए हैं और रहते हैं, बारहमासी सड़कों से नहीं जुड़े हैं। इसलिए जनता को न्यूनतम चिकित्सा देखभाल प्रदान करने के लिए गांवों को सड़कों से जोड़ना नितांत आवश्यक है।”
भारत सरकार ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि ग्रामीण भारत में जुलाई 2023 तक प्रति दिन 91 किलोमीटर की दर से कुल 7,42,398 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण किया जा चुका है। 2014 तक यक दर प्रति दिन 80 किलोमीटर ही थी। इसके लिए 3,06,358 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। यह भी बताया गया कि ग्रामीण विकास और वहां की आबादी की जरूरत पूरी करने के लिए योजना के तहत 5.5 मीटर चौड़ाई तक की ग्रामीण सड़कों का भी निर्माण किया जा रहा है।
वर्ष 2022 में रिलीज हुई 'भारत में बुनियादी सड़क सांख्यिकी-2018-19' के अनुसार भारत ने 2018-19 में अपने सड़क नेटवर्क में लगभग 1.16 लाख किमी की बढ़ोतरी की जिससे कुल लंबाई लगभग 63.32 लाख किमी हो गई। रिपोर्ट के के अनुसार ग्रामीण सड़कों की लंबाई 2017-18 के दौरान 44.1 लाख किमी की तुलना में मार्च 2019 में बढ़कर 45.2 लाख किमी हो गई।
रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत के कुल सड़क नेटवर्क का 71.4% ग्रामीण सड़क श्रेणी के अंतर्गत आता है और यह 2015 में 61% से काफी बढ़ गया है। इसी तरह नेशनल हाईवे (एनएच) की हिस्सेदारी भी धीरे-धीरे बढ़कर 2019 में पूरे सड़क नेटवर्क में 2.1% हो गई है। इसके आगे की रिपोर्ट आनी अभी बाकी है।