बढ़ती माँग और घटते रीचार्ज के बीच मध्यप्रदेश के कई ज़िलों में भूजल संकट
मध्यप्रदेश में कृषि, उद्योग और घरेलू इस्तेमाल की वजह से भूजल का दोहन लगातार बढ़ता जा रहा है, लेकिन रीचार्ज पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया जा रहा। हालिया रिपोर्ट में कई ज़िलों में जल संकट गहरा होने की चेतावनी दी गई है। भूजल की सतह लगातार गिर रही है और कई इलाक़े गंभीर स्तर पर पहुँच चुके हैं। अगर वक़्त रहते क़दम नहीं उठाए गए, तो मुस्तक़बिल में यह परेशानी गंभीर हो सकती है।

भोपाल की एक बस्ती में पब्लिक नल से पानी भरकर ले जाती महिला। फोटो साभार हुनेज़ा खान
भोपाल: कभी एक हाथ में, कभी दोनों में पानी से भरी कुप्पियाँ लिए हुए, अपने मर्दों की ग़ैर मौजूदगी में ज़िम्मेदारी उठाती महिलाएँ। कोई सिर पर घघरा रखे हुए, तो कोई नल की ख़बर सुनते ही मौहल्ले में लगे हुए सरकारी नल की तरफ़ बर्तन उठाकर दौड़ती हुई। इनमें से कुछ महिलाएँ क़तार में लगी हुई सब्र का मुज़ाहिरा करती हैं, तो कुछ ज़्यादा बर्तन लाने पर आपस में एक दूसरे से झगड़ती हैं। क्यूँकि थोड़ी देर चलने वाला नल अगर बंद हो जाएगा तो उनका कल तक पानी का खर्च कैसे चलेगा।
ये कोई अलग या अनोखा मंज़र नहीं। हिंदुस्तान के कई हिस्सों में ये रोज़मर्रा की ज़िंदगी है। लेकिन, यहाँ ये मंज़र उस शहर ए भोपाल का है जिसने दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी झेली है। जहाँ गैस काण्ड की वजह से ग्राउंडवाटर आज भी दूषित है, जिस वजह से इसे ‘भोपाल की दूसरी त्रासदी’ होने का दावा किया जाता है। ये वो बस्तियाँ हैं जो आज भी शहर के बीचों बीच मौजूद यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के नज़दीक बनी हुई हैं। जहाँ न साफ़ पानी है, न साफ़ माहौल।
यह ज़िक्र महज़ महिलओं की पानी लाने की मशक़्क़त तक सीमित नहीं है, बल्कि ये आने वाली मुश्किल की एक झलक है— भूजल की गिरती सतह। जिसे नज़रअंदाज़ करना भयावह हो सकता है। भोपाल के 96% इलाक़े में ग्राउंडवॉटर रीचार्जिंग की ज़रुरत होती है, और अभी भूजल सेमी-क्रिटिकल स्थिति में है।
भूजल संसाधन आकलन 2009 से २०२४ ‘डायनामिक ग्राउंड वाटर रिसोर्सेज़ 2024’ रिपोर्ट
मध्यप्रदेश में जलवायु और ख़ासकर मानसून में हो रहे बदलाव का सीधा असर खेती, पानी की उपलब्धता और राज्य की पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। ग्रामीण जल आपूर्ति का लगभग 70% हिस्सा भूजल पर निर्भर है, जबकि शहरी इलाकों में यह आँकड़ा 30% है (वर्ल्ड बैंक, 2012)। जलवायु परिवर्तन के असर से निपटने में भूजल एक अहम साधन है क्योंकि यह बारिश में आने वाले उतार-चढ़ाव को संतुलित करने का काम करता है। ऐसे में भूजल के अत्यधिक दोहन और उस पर बढ़ती निर्भरता को रोकना ज़रूरी है। भूजल का अत्यधिक दोहन सिंचाई और पीने के पानी दोनों के लिए कमी का कारण बन रहा है। अनुमानित 18 अरब घन मीटर भूजल निकासी के साथ, राज्य तेज़ी से एक गंभीर संकट की ओर बढ़ रहा है, जहाँ भूजल का अत्यधिक उपयोग और उसका प्रदूषण दोनों बड़े मुद्दे बन चुके हैं।
बीते मई भोपाल से लगे सीहोर ज़िले के बिलक़िसगंज में पानी की क़िल्लत की वजह से ग्रामीणों ने पानी की टंकी पर चढ़कर प्रदर्शन किया। हाथों में ख़ाली बर्तन लिए ये लोग जलापूर्ति शुरू करने की मांग कर रहे थे। ग्रामीणों का कहना था कि पिछले एक साल से टंकी से पानी की सप्लाई बंद है। हालात इतने बिगड़े कि लोगों को दूर-दराज़ से साइकिलों पर केन टांगकर पानी लाना पड़ा। ऐसे ही एक गाँव में महिलाएँ 1-2 किलोमीटर पैदल चल कर पानी लाने को मजबूर थीं।
ज़िला वार भूजल दोहन की स्थिति ‘डायनामिक ग्राउंड वाटर रिसोर्सेज़ 2024’ रिपोर्ट
‘डायनामिक ग्राउंड वाटर रिसोर्सेज़ 2024’ रिपोर्ट में भोपाल ज़िले के लिए भूजल से जुड़ा आंकलन साल 2024 को आधार मानकर किया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक़, ज़िले का कुल क्षेत्रफल 2,77,237 हेक्टेयर है, जिसमें से 2,64,800 हेक्टेयर (यानी 96%) इलाका ऐसा है जहाँ भूजल रीचार्ज हो सकता है। बाक़ी 12,437 हेक्टेयर (4%) हिस्सा पहाड़ी इलाक़ा है। दो ब्लॉक और एक शहरी क्षेत्र मिला कर ज़िले में कुल तीन असेसमेंट यूनिट हैं, जो नॉन-कमांड क्षेत्र में आते हैं। इन सभी यूनिट्स को ‘सेमी-क्रिटिकल’ यानी ‘आंशिक रूप से चिंताजनक’ श्रेणी में रखा गया है। सबसे ज़्यादा भूजल निकासी फंदा ब्लॉक में दर्ज की गई है, जहाँ यह दर 80.68% है। पूरे ज़िले में कुल 37,553 हैक्टेयर मीटर (ham) पानी हर साल निकाला जा सकता है। अभी सभी ज़रूरतों के लिए कुल 29,776 ham पानी निकाला जा रहा है। इसका मतलब ये है कि ज़िले में भूजल निकासी की दर औसतन 79.29% हो चुकी है। 2025 की घरेलू ज़रूरतों के लिए कुछ पानी अलग रख देने के बाद, ज़िले में भविष्य के लिए केवल 7,401 ham पानी बचता है, जिसे निकाला जा सकता है।
केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) जल शक्ति मंत्रालय के अधीन एक तकनीकी संस्था है, जो देशभर में भूजल संसाधनों का आकलन, निगरानी और प्रबंधन करती है। यह बोर्ड हर साल राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के भूजल विभागों के साथ मिलकर ‘डायनामिक ग्राउंड वाटर रिसोर्सेज़’ नाम की रिपोर्ट तैयार करता है। इस रिपोर्ट में देश के अलग-अलग हिस्सों में भूजल रीचार्ज, दोहन (निकासी) और कुल स्थिति का विस्तृत जायज़ा दिया जाता है। यह रिपोर्ट भूजल को टिकाऊ तरीक़े से इस्तेमाल करने और नीति निर्धारण के लिए बेहद अहम मानी जाती है।

भूजल निकालने की स्थिति. ‘डायनामिक ग्राउंड वाटर रिसोर्सेज़ 2024’ रिपोर्ट
मध्यप्रदेश के पर्यावरणविद सुभाष पांडेय इंडिया स्पेंड से बातचीत करते हुए कहते हैं कि मध्यप्रदेश में केवल तवा डैम के नीचे के हिस्से में ग्राउंडवॉटर पर्याप्त है। बाक़ी मध्यप्रदेश की हालत बहुत ख़राब है । “भोपाल के आसपास ही सीहोर का इलाक़ा है, वहाँ पानी 500 फीट नीचे तक भी नहीं है। सर्वाइवल इसलिए हो रहा है क्योंकि बरसात का पानी, जिसे फर्स्ट एक्वाफर या ज़मीन के पहले तल का पानी कहते हैं, वो 30–40 फीट तक जाता है। अगर बरसात ठीक हो जाती है तो, उससे नल, कुँए और पहली फ़सल निकल जाती है। दूसरी फ़सल क़िस्मत के भरोसे रहती है कि कुएँ से ले लिया या फव्वारेनुमा स्प्रिंकलर लगा देते हैं, जिससे आधी-अधूरी फसल होती है।”
भूजल का ‘ओवर-एक्सप्लॉइटेशन’ और विज्ञान
ज़मीन पर लोग अपनी परेशानी अलग-अलग तरीक़े से ज़ाहिर कर रहे हैं। सीहोर ज़िले में गुज़रेअप्रैल एक व्यक्ति अपने शरीर पर रस्सी बाँधकर, उसमें कई लिखित आवेदन लटकाए हुए घिसटते हुए कलेक्टर कार्यालय पहुँचा। ये तरीक़ा उसने अपने गाँव में पानी की “कमी” को दिखाने के लिए अपनाया था। ऐसी घटनाएँ अपवाद नहीं रह गई हैं। आँकड़े बताते हैं कि संकट अब व्यक्तिगत अनुभव से कहीं आगे निकल चुका है और पूरे राज्य की जल-स्थिति पर भारी दबाव डाल रहा है।
मध्यप्रदेश की हालिया रिपोर्ट बताती है कि राज्य में औसतन 58.40% ग्राउंडवॉटर का इस्तेमाल हो रहा है। लेकिन कई ज़िलों में यह स्थिति बेहद गंभीर है। इंदौर, मंदसौर, नीमच, रतलाम, शाजापुर और उज्जैन में खपत 100% से ज़्यादा दर्ज हुई है। इसका मतलब है कि इन ज़िलों में जितना पानी निकाला जा रहा है, उतना हर साल वापस ज़मीन में जमा ही नहीं हो पा रहा।
बड़वानी, भोपाल, बुरहानपुर, देवास, राजगढ़ और टीकमगढ़ जैसे ज़िलों में ये खपत 70% से 90% के बीच है। मालवा क्षेत्र के कुछ हिस्सों में यह आँकड़ा 90% से 100% तक पहुँच गया है। वहीं ज़्यादातर ज़िलों में जहाँ खपत 70% से कम है वहाँ हालात थोड़े बेहतर हैं।

मध्यप्रदेश में प्रति इकाई क्षेत्र में कुल भूजल दोहन. ‘डायनामिक ग्राउंड वाटर रिसोर्सेज़ 2024’ रिपोर्ट
सबसे गंभीर स्थिति रतलाम की है। यहाँ 134.03% पानी निकाला जा रहा है, 118.84% पर इंदौर का आँकड़ा भी डराने वाला है। इसके विपरीत, सबसे सुरक्षित डिंडोरी है, जहाँ केवल 13.73% पानी इस्तेमाल होता है। अगर ब्लॉकों पर नज़र डालें तो 170.73% के स्तर के साथ रतलाम का जावरा ब्लॉक सबसे ख़तरनाक स्थिति में है। दूसरी तरफ़, बालाघाट का परसवाड़ा ब्लॉक सबसे सुरक्षित है, जहाँ खपत केवल 4.74% है।
सुभाष पांडेय कहते हैं कि ग्राउंडवॉटर डिप्लीट होने का सीधा मतलब है कि रीचार्ज से ज़्यादा पानी निकाला जा रहा है। भोपाल में भी यही हुआ है। "आबादी के दबाव की वजह से ओवर-एक्सप्लॉयटेशन बढ़ा और स्थिति सेमी-क्रिटिकल हो गई है, जो आगे क्रिटिकल हो सकती है। नॉर्थईस्ट को छोड़कर देशभर में लगभग हर जगह यही हाल है। ओवर-एक्सप्लॉयटेशन की वजह से पानी सालाना औसतन 2 फीट से 2 मीटर तक नीचे जा रहा है।"
हर साल ज़मीन से करीब 34 हज़ार मिलियन घन मीटर पानी निकाला जा सकता है। इसमें से 10% से ज़्यादा पानी उन इलाकों से निकाला जा रहा है, जिन्हें ‘अत्यधिक दोहन वाला’ माना गया है। लगभग 2% पानी गंभीर इलाकों से और 19% अर्ध-गंभीर इलाकों से निकाला जा रहा है। बाकी 69% हिस्सा सुरक्षित इलाकों से लिया जा रहा है। राज्य का ज़्यादातर ‘अत्यधिक दोहन’ वाला इलाक़ा पश्चिमी हिस्से यानी मालवा क्षेत्र में है, जहाँ पिछले दशकों में पानी निकालने की दर कई गुना बढ़ गई है।

आकलन इकाई का वर्गीकरण. ‘डायनामिक ग्राउंड वाटर रिसोर्सेज़ 2024’ रिपोर्ट
पांडेय आगे कहते हैं कि डेवलपमेंट के नाम पर लगातार डिफॉरेस्टेशन होता जा रहा है, और भोपाल को कांक्रीट के जंगल में तब्दील कर देने की वजह से यहाँ की हालत ख़राब हो गयी है। बिना पेड़ों को काटे भी सिटी प्लान हो सकता है लेकिन सरकार अनप्लांड अर्बनाइज़ेशन कर2 रही है। जिसका नुक़सान है कि जंगल कम हो रहे हैं। “सड़कें चौड़ी करने के लिए लगातार पेड़ों को काटा गया है और उसके बदले छोटे सैप्लिंग्स लगा दिए जाते हैं, जो पेड़ों का काम नहीं करते। उसके बदले सड़क के दोनों तरफ़ बची हुई ज़मीन को सीमेंटाइज कर दिया गया है, जिससे ज़मीन के अंदर बिल्कुल पानी नहीं जा पा रहा। पेड़ वॉटर रन-ऑफ को रोकते हैं क्यूँकि जड़ें बहाव को रोकती हैं जिससे ग्राउंडवॉटर रिचार्ज होता है। एक रिपोर्ट कहती है कि भोपाल में पिछले चार से छह साल में प्लांटेशन की संख्या गिरती जा रही है। किसी भी शहर के लिए ये बहुत बड़ी विडंबना है कि 0.56 स्क्वायर किलोमीटर का फॉरेस्ट कम हो गया है।”
राज्य में कुल 317 ब्लॉक और शहरी इलाकों में से 26 (यानी 8%) ऐसे हैं जहाँ ज़मीन से पानी निकालने की दर इतनी ज़्यादा है कि वह साल भर में उपलब्ध होने वाले पानी से भी ज़्यादा हो चुकी है। ऐसे इलाकों को ‘अत्यधिक दोहन वाले क्षेत्र’ कहा गया है। इसके अलावा, 5 इलाके (2%) ऐसे हैं जहाँ पानी निकालने की दर 90% से 100% के बीच है। इन्हें ‘गंभीर स्थिति वाले क्षेत्र’ कहा गया है। वहीं 61 इलाके (19%) ऐसे हैं जहाँ पानी निकालने की दर 70% से 90% के बीच है, इन्हें ‘अर्ध-गंभीर क्षेत्र’ कहा गया है। बाक़ी 225 इलाके (71%) ऐसे हैं जहाँ पानी निकालने की दर 70% से कम है। इन्हें ‘सुरक्षित क्षेत्र’ कहा जाता है।
रीचार्ज और खपत का हाल

मध्यप्रदेश में भूजल रीचार्ज की स्थिति. सोर्स: मध्यप्रदेश डायनामिक ग्राउंडवाटर रेसोर्सेज़ रिपोर्ट 2024
गर्मी में सीहोर ज़िले में भूजल को ले कर हालात इतने गंभीर हो गए थे कि प्रशासन ने पूरे ज़िले को जल-अभावग्रस्त घोषित कर दिया था। आदेश में कहा गया कि घरेलू ज़रूरतों को छोड़कर खेती और उद्योगों के लिए पानी का इस्तेमाल नहीं होगा। साथ ही, नए निजी नलकूप खोदने पर भी रोक लगा दी गई। इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि पानी का संकट लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कितनी मुश्किलें खड़ी करता है।
पानी की क़िल्लत के चलते बीते अप्रैल डिंडोरी ज़िले में भी एक अनोखा वाक़िया सामने आया जहाँ पानी की कमी से परेशान एक महिला अपने पति और बच्चों को छोड़कर मायके चली गयी। देवरा गांव के जितेन्द्र सोनी ने अपनी पीड़ा साप्ताहिक जनसुनवाई में कलेक्टर के सामने रखी। उन्होंने बताया कि पत्नी लक्ष्मी बार-बार पानी की समस्या से तंग आ चुकी थी। उसकी नाराज़गी इस हद तक बढ़ गई कि बच्चों को लेकर मायके चली गई। कलेक्टर ने सार्वजनिक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग को गाँव में पानी की समस्या हल करने के निर्देश दिए।
राज्य में ज़मीन से कुल पानी निकालने की मात्रा 1985023 हैक्टेयर मीटर (यानी लगभग 19.85 बिलियन क्यूबिक मीटर) आंकी गई है। सबसे ज़्यादा पानी रतलाम ज़िले में, लगभग 105732 हैक्टेयर मीटर निकाला गया है। वहीं, सबसे कम निकासी पूर्वी मध्यप्रदेश के डिंडोरी ज़िले में हुई है, जहाँ 4285 हैक्टेयर मीटर पानी निकाला गया। अगर निकासी के इस्तेमाल को देखें तो, कुल ज़मीन से निकाले गए पानी में से 90% से ज़्यादा हिस्सा सिंचाई के लिए इस्तेमाल होता है। घरेलू इस्तेमाल के लिए 9% पानी निकाला जाता है और उद्योगों के लिए सिर्फ 1% पानी निकाला जाता है।

भोपाल के ताज महल और ताज-उल-मसाजिद के बीच बना हुआ मोतिया तालाब। ये एक आर्टिफिशियल लेक है जिसे 1899 में नवाब शाहजहाँ बेग़म ने बनवाया था। ठीक रख रखाव नहीं होने से तालाब का पानी गंदा है। फोटो साभार हुनेज़ा खान
कई सारे डैम और तालाब होने के बावजूद भोपाल में स्थिति ख़राब होने की वजह सुभाष पाण्डेय समझाते हैं। “भोपाल ‘सिटी ऑफ लेक्स’ कहलाता है, लेकिन बड़ा तालाब समेत कोई भी झील का पानी पीने योग्य नहीं है। सब पानी ट्रीटमेंट के बाद ही उपयोगी बनता है। शहर में भूजल का दोहन असमान रूप से हो रहा है, आउटर स्कर्ट्स जैसे फंदा और बेरसिया में स्थिति और ख़राब है। इन इलाकों में किसान नगर निगम सीमा के भीतर रहकर खेती करते हैं, जिससे खेती के लिए इस्तेमाल होने वाला पानी शहर की ज़रूरतों पर हावी हो जाता है। सरकार ने रेनवॉटर हार्वेस्टिंग का प्रावधान तो रखा है, लेकिन उसका पालन मुश्किल से होता है। नगर निगम निगरानी नहीं करता, नतीजा यह है कि डिप्लीशन लगातार बढ़कर गंभीर स्तर तक पहुँच रहा है। शहर में कम से कम सरकार को मिनिमम फॉरेस्ट्री तो मेंटेन करने की ज़रूरत है।”
ज़मीन के नीचे रिसकर इकट्ठा होने वाले पानी यानी भूजल की कुल मात्रा 35.47 से बढ़कर 35.90 बिलियन क्यूबिक मीटर हो गई है। यह बढ़ोतरी ज़्यादा बारिश और जल संरक्षण के लिए बनाए गए ढांचों की वजह से हुई है। इसी के चलते 2024 की ग्राउंड वॉटर रिपोर्ट के मुताबिक़, हर साल निकाले जा सकने वाले पानी की मात्रा 2023 में 32.85 से बढ़कर 33.99 बिलियन क्यूबिक मीटर हो गई है। हालांकि, भूजल की खपत भी बढ़ी है। पहले जहां 19.30 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी निकाला जा रहा था, अब यह बढ़कर 19.85 बिलियन हो गया है। बढ़ती आबादी और पानी निकालने के साधनों में इज़ाफ़ा इसकी मुख्य वजह हैं। इस बीच राहत की बात ये है कि पानी निकालने की कुल दर थोड़ी घटी है। 2023 में मध्यप्रदेश में 58.75% भूजल निकाला जा रहा था, अब यह घटकर 58.40% हो गया है।
बारिश का बदलता पैटर्न और और राज्य की भूगर्भीय संरचना

मध्यप्रदेश में वार्षिक बारिश और बरसाती दिनों की विशेषताएँ. मध्यप्रदेश राज्य जलवायु परिवर्तन कार्ययोजना ड्राफ़्ट 2022
मध्यप्रदेश राज्य जलवायु परिवर्तन कार्ययोजना ड्राफ़्ट 2022 बताती है कि 1951 से 2013 के बीच राज्य में कुल बारिश और बारिश वाले दिनों, दोनों में गिरावट का रुझान देखा गया है। सालाना बारिश की मात्रा में कमी बहुत अहम नहीं मानी गई, लेकिन बारिश वाले दिनों की कमी सांख्यिक तौर पर महत्वपूर्ण है। यानी अब बारिश कम दिनों में ज़्यादा तेज़ी से होती है। राज्य के 50 में से 40 ज़िलों में बारिश घटने का रुझान दर्ज हुआ, जबकि 10 ज़िलों में बढ़ोतरी दिखी। शिवपुरी को छोड़कर बाकी सभी ज़िलों में बारिश वाले दिनों की संख्या कम हुई। अशोकनगर, भिंड, दतिया, डिंडोरी, पूर्वी निमाड़, ग्वालियर, होशंगाबाद और मुरैना में सालाना बारिश में सबसे अहम गिरावट दर्ज हुई।
डायनामिक ग्राउंड वाटर रिपोर्ट और मध्यप्रदेश राज्य जलवायु परिवर्तन कार्ययोजना ड्राफ़्ट 2022, दोनों बताती हैं कि मध्यप्रदेश में भूजल रीचार्ज का सबसे बड़ा स्रोत बारिश है, जो कुल पुनर्भरण का लगभग 76–77% देती है। साल का लगभग 99% पानी जून से सितंबर के बीच गिरता है। नहरों से रिसाव, सिंचाई से बचा पानी, तालाबों और अन्य संरचनाओं से शेष 23–24% रीचार्ज होता है। राज्य का 80% हिस्सा कठोर चट्टानों वाला है, जहाँ पानी का संग्रह सीमित रहता है। इसके उलट भिंड, होशंगाबाद, नरसिंहपुर, श्योपुर, मुरैना, दतिया और जबलपुर जैसे ज़िलों की जलोढ़ ज़मीन भूजल के बेहतर भंडार उपलब्ध कराती है।

नर्मदा, चंबल, बेतवा, सोन, केन, टोंस, सिंद, वैंगंगा, मही और ताप्ती राज्य की प्रमुख नदियाँ हैं। यहाँ सालाना रीचार्ज होने वाले भूजल संसाधन 37.19 बिलियन क्यूबिक मीटर और कुल उपलब्ध भूजल 35.53 बिलियन क्यूबिक मीटर है। राज्य में मानसून से सालाना रीचार्ज 30.64 BCM होता है, जबकि अन्य स्रोतों से 6.55 BCM रीचार्ज होता है। सोर्स: मध्यप्रदेश राज्य जलवायु परिवर्तन कार्ययोजना ड्राफ़्ट 2022
पर्यावरण और क्लाइमेट चेंज पर काम करने वाली एडवोकेट सलोनी बहेतर कहती हैं कि पानी राज्य का विषय है, इसलिए राज्य सरकारें अपने स्तर पर ग्राउंडवाटर से जुड़े क़ानून बना सकती हैं। लेकिन मध्यप्रदेश में अभी तक ऐसा कोई क़ानून नहीं है जो विशेष रूप से भूजल पर केंद्रित हो। वह बताती हैं कि पहले ग्राउंडवाटर को साफ माना जाता था, लेकिन अब रिपोर्ट्स दिखा रही हैं कि यह प्रदूषित हो चुका है और पीने योग्य नहीं रहा। इसकी वजह जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और औद्योगिकीकरण है। वह याद दिलाती हैं कि 1996 के MC मेहता बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस में कोर्ट ने ग्राउंडवाटर की रक्षा के लिए समिति बनाने और गाइडलाइंस लागू करने को कहा था, लेकिन आज तक वह समिति नहीं बनी। उनके अनुसार अब इंडस्ट्रियल ग्राउंडवाटर एक्सट्रैक्शन पर केवल पेनल्टी भरकर बच निकलने का चलन है। नियमों का पालन करने की बजाय यह सब एक चेकलिस्ट बन गया है, या तो आप नियमों का पालन करो, या पेनल्टी भर दो। और वो पेनल्टी अब असली पेनल्टी नहीं रह गई है।
पानी का संकट लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी को प्रभावित करता है। जल संरक्षण अब विकल्प नहीं बल्कि ज़रूरत है। आने वाले वर्षों में यदि भूजल का दोहन इसी तरह जारी रहा तो हालात और गंभीर हो जाएंगे। सवाल यही है कि सरकार, समाज और हम सब मिलकर कब इस संकट को हल करने के लिए ठोस कदम उठाएँगे।
(इस मुद्दे को और गंभीरता से समझने के लिए हमने अपने सवालों के साथ सीजीडब्ल्यूबी भोपाल को ईमेल किया है। उनका जवाब आने पर इस कॉपी को अपडेट कर दिया जाएगा)