जिनके भरोसे महाकुंभ की सफाई, उनका हाल कैसा?
सरकार के दावों के मुताबिक अब तक 60 करोड़ से ज्यादा लोग महाकुंभ पहुंच चुके हैं। जब इतने लोग आएंगे तो मेले को साफ-सुथरा रखना और श्रद्धालुओं को शौचालय मुहैया कराना भी किसी चुनौती से कम नहीं है। ऐसे में सफाई की जिम्मेदारी उठा रहे सफाईकर्मी किस हाल में हैं, देखिए हमारी रिपोर्ट
प्रयागराज। “पढ़ी लिखी होती तो कम से कम टॉयलेट सफाई का काम तो नहीं ही करती।” लगभग 10 घंटे लगातार सफाई करने के बाद महाकुंभ मेले के सेक्टर 19 में बने अपने टेंट के पास बैठीं माया कुमारी थकावट के बाद भी मुस्कुरा रही हैं।
“बांदा से आये लगभग दो महीने हो गये हैं। खुश नहीं रहूंगी तो दिनभर गंदगी साफ करने के बाद रहना मुश्किल हो जायेगा। हम ठेकेदार के माध्यम से आये हैं। मेरे साथ 20 लोग और हैं।”
मेला क्षेत्र में रहने, खाने की व्यवस्था क्या है? इस सवाल पर माया ठिठकते हुए कहती हैं, “खाने का सहारा भंडारा है। यहां अच्छी बात तो यही है कि भूखे नहीं सोना पड़ता। कहीं न कही खाने के लिए ही मिल ही जाता है। रहने के लिए यही टेंट है।”
महाकुंभ 2025। 13 जनवरी 2025 से शुरू हुआ यह मेला 26 फरवरी तक चलेगा। मतलब मेला अब खत्म होने को है। सरकार के दावों के मुताबिक अब तक 60 करोड़ से ज्यादा लोग महाकुंभ पहुंच चुके हैं। जब इतने लोग आएंगे तो मेले का साफ-सुथरा रखना और श्रद्धालुओं को शौचालय मुहैया करना भी किसी चुनौती से कम नहीं है।प्रयागराज नगर विकास के प्रमुख सचिव अमृत अभिजात ने हमें बताया कि प्रयागराज में आयोजित आस्था और श्रद्धा के महाकुंभ को साफ-सुथरा और स्वच्छ बनाए रखने के लिए सरकार ने करीब 4,000 हेक्टेयर में फैले कुंभ क्षेत्र को 25 सेक्टरों में बांटकर पूरी व्यवस्था सुनिश्चित करने की योजना बनाई। रोज करीब 600 मीट्रिक टन कचरा निकल रहा है। इसे हटाने के लिए 120 टिपर, 40 कॉम्पैक्टर, ट्रैक्टर-ट्रॉली और अन्य मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
कूड़ा इकट्ठा कर नैनी के बसवार स्थित सॉलिड वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट में भेजा जा रहा है। लाइनर बैग्स पूरी तरह बायोडिग्रेडेबल हैं, यानी यह पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए प्रशासन ने 1.50 लाख टॉयलेट और 4 लाख डस्टबिन लगाए हैं। सफाई व्यवस्था संभालने के लिए 800 टीमें बनाई गई हैं, जिनमें से एक टीम में 12 सफाईकर्मी होते हैं। हर टीम का एक मेट और महिला मेट होता है, जो सफाईकर्मियों का नेतृत्व करते हैं। बाकी 10 सफाईकर्मी होते हैं। एक तिहाई कर्मचारियों की ड्यूटी रात में लगाई गई है। यह शिफ्ट रात 8 बजे से लेकर सुबह 4 बजे तक की रहती है। कुल मिलाकर यूपी सरकार ने मेला क्षेत्र में 15,000 सफाईकर्मी तैनात किए हैं। इनके साथ ही 2,500 गंगा सेवा दूतों को भी काम पर लगाया है।
गंगा की स्वच्छता पर उठे सवाल
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को 3 फरवरी को एक रिपोर्ट सौंपी थी। इसमें कहा था कि गंगा-यमुना के पानी में तय मानक से कई गुना ज्यादा फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया हैं।
सीपीसीबी ने कुंभ मेला के दौरान श्रृंगवेरपुर घाट, लॉर्ड कर्जन ब्रिज, नागवासुकी मंदिर, दीहा घाट, नैनी ब्रिज और संगम क्षेत्र से पानी के सैंपल लिए। 13 जनवरी 2025 को गंगा के दीहा घाट और यमुना के पुराने नैनी ब्रिज के पास से लिए गए सैंपल में 100 मिलीलीटर पानी में फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया 33,000 एमपीएन मिला।
श्रृंगवेरपुर घाट के सैंपल में फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया 23,000 एमपीएन पाया गया। सीपीसीबी के मुताबिक नहाने के लिए 100 मिलीलीटर पानी में 2,500 एमपीएन सुरक्षित स्तर है। संगम घाट के पानी का सुबह और शाम का परीक्षण किया गया जिसमें फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया 100 मिलीलीटर पानी में 13,000 एमपीएन है। रिपोर्ट में फीकल कोलीफॉर्म ही नहीं अन्य मानकों पर भी स्नान क्षेत्र का पानी आचमन और स्नान करने योग्य नहीं पाया गया।
हालांकि 18 फरवरी को उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने एनजीटी को एक नई रिपोर्ट दी। इसमें सीपीसीबी की रिपोर्ट को खारिज कर दिया। इस पर एनजीटी ने टिप्पणी करते हुए यूपीपीसीबी से नई रिपोर्ट मांगी है। मामले पर 28 फरवरी को अगली सुनवाई होगी।
बीएचयू के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख और लंबे समय से गंगा की स्वच्छता पर काम कर रहे प्रो. विजय नाथ मिश्रा ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की गंगाजल को प्रदूषित बताने वाली रिपोर्ट को गलत बताते हुए गंगा जल की शुद्धता पर उठे सवालों का जवाब दिया।
“फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया गर्म रक्त वाले जानवरों और मनुष्यों की आंतों में पाए जाते है। इन्हें आमतौर पर पानी में संभावित प्रदूषण के संकेतक के रूप में माना जाता है। उनकी मौजूदगी से पता चलता है कि पानी में हानिकारक रोगाणु भी हो सकते हैं, जैसे वायरस, परजीवी या अन्य बैक्टीरिया, जो जानवरों और मनुष्यों की आंतों से निकलने वाले मल से पैदा होते हैं।” प्रो. विजय बताते हैं।
वे बताते हैं, "गंगा में प्रदूषण को खत्म करने की अपनी स्वाभाविक शक्ति है, और इसे स्नान के लिए पूरी तरह सुरक्षित माना जाना चाहिए। गंगा जल में बैक्टीरियोफेज बनने की अद्भुत क्षमता है, जो हानिकारक बैक्टीरिया को स्वतः ही नष्ट कर देती है। गंगा में जितना अधिक फीकल कोलीफार्म बढ़ता है, गंगा उतनी ही तेजी से बैक्टीरियोफेज बनाकर उसे नष्ट कर देती है।"
बातों की बातों माया सफाई के दौरान होने वाली सबसे बड़ी समस्या की ओर ध्यान दिलाती हैं। “भीड़ बहुत है। ऐसे में लोग शौचालय के बाहर भी शौच कर दे रहे हैं। जिसे हमें बाद में फावड़े की मदद से उठाना पड़ता है। शौचालय प्रयोग करने के बाद लोग पानी तक नहीं डाल रहे हैं, जबकि पानी की व्यवस्था पर्याप्त है।”
किसी को मना करो तो वे कहते हैं- “साफ करना तुम्हारा काम है।” माया आवेशित स्वर में कहती हैं।
"साफ-सफाई के लिए नगर निगम से 100-150 सफाईकर्मी जोड़े गए हैं। साथ ही नगर विकास विभाग से 6 एग्जीक्यूटिव ऑफिसर (EO) की ड्यूटी संगम नोज पर लगाई गई है। स्ट्रीट स्वीपिंग और लाइनर बैग्स चेंज करने का काम ज्यादातर रात में ही किया जाता है। पूरे मेले को 25 सेक्टर में बांटा गया है। हर सेक्टर में कुछ सर्कल होते हैं, जिनको सर्कल इंचार्ज संभालते हैं।" अमृत अभिजात आगे बताते हैं।
लगभग 4,000 हेक्टेयर में फैले मेला क्षेत्र अभी भी जहां तक नजर जायेगी, लोग ही लोग दिख रहे हैं। मेला शुरू होने से पहले सरकार को 40 करोड़ श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान था, जो अब बहुत पीछे छूट चुका है। उम्मीद की जा रही थी कि शाही स्नान खत्म होने के बाद से भीड़ कम होगी। लेकिन ऐसा होता नहीं दिखा। ज्यादातर अखाड़े भी मेले से जा चुके हैं।
भीड़ थम रही न सफाईकर्मियों रुक रहे। जहां से गुजरेंगे, हाथ में झाडूं लिए सफाईकर्मी आपको जरूर दिख जाएंगे। इनके जिम्मे ही मेले की सफाई है। लेकिन इन्हें किन समस्याओं से दो-चार होना पड़ा, देखिए ये रिपोर्ट।