कैसे अपार क्षमताओं के साथ भारत बन रहा चिकित्सा पर्यटन का केंद्र
दुनिया भर में भारत को एक गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा गंतव्य के रूप में बढ़ावा देने की जिम्मेदारी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय पर है, लेकिन अभी तक इसकी कोई योजना भी दिखाई नहीं दे रही।

गुरुग्राम, नई दिल्ली और नोएडा: आप शायद तेल की कीमतों और दुनिया में चल रही राजनीतिक व कूटनीतिक हलचलों पर नियमित निगरानी नहीं रख पाते हो लेकिन भारत के तमाम बड़े निजी अस्पतालों की नजर हमेशा इस पर रहती है। उनके लिए यह कितना जरूरी है? इस बारे में मैक्स हॉस्पिटल्स की मेडिकल वैल्यू टूरिज्म (एमवीटी) टीम बताती है कि तेल समृद्ध देशों से बीमार मरीज उनके अस्पतालों में इलाज के लिए आते हैं। इसलिए उनके लिए अंतरराष्ट्रीय गतिविधियां काफी मायने रखती हैं।
भारत का चिकित्सा पर्यटन हर साल तरक्की कर रहा है। यहां सालाना दुनिया के 200 से भी ज्यादा देशों से मरीज भारतीय अस्पतालों में आकर अपना इलाज कराते हैं। इनमें सबसे बड़ी संख्या बांग्लादेश से आने वालों की है। आंकड़ों पर गौर करें तो भारत ने सिर्फ 2024 में ही विदेशी नागरिकों के लिए 463,725 चिकित्सा वीजा जारी किए। यह संख्या भारत के साथ अन्य देशों से संबंध, उनकी आर्थिक स्थिति और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर निर्भर भी करती है।
इन सब के बावजूद भारत का चिकित्सा पर्यटन पिछले कुछ समय से पड़ोसी देशों से नए संबंधों को लेकर प्रभावित भी हो रहा है। नई दिल्ली स्थित मैक्स हेल्थकेयर के मुख्य बिक्री और विपणन अधिकारी अनस अब्दुल वाजिद ने इंडिया स्पेंड से बातचीत में कहा, "साल 2021 से भारत ने अफगान रोगियों के लिए बहुत ज्यादा वीजा जारी नहीं किए क्योंकि अब तक हमारे देश ने आधिकारिक तौर पर अफगान शासन को मान्यता नहीं दी है। वहीं दूसरी ओर बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल और कूटनीतिक खटास का सीधा असर चिकित्सा पर्यटन पर है।" उन्होंने आशंका जताई है अगले कुछ समय में बांग्लादेश से आने वाले मरीजों में भारी कमी देखने को मिल सकती है।
मेडिकल टूरिज्म इंडेक्स 2020-21 के अनुसार, भारत मेडिकल टूरिज्म के लिए दसवां सबसे आकर्षक गंतव्य है। हालांकि भारत आने वाले विदेशी रोगियों में सबसे ज्यादा बांग्लादेशी और अरबी हैं। बांग्लादेशी मरीजों को 2024 में 323,498 वीजा दिए गए, जो भारत में इलाज के लिए सबसे अधिक वीजा (सभी वीजा का लगभग 70%) है।
अस्पताल के साथ दूसरे व्यवसायों को मिलता है लाभ
किसी भी देश में चिकित्सा पर्यटन न केवल वहां के अस्पतालों बल्कि अन्य व्यवसायों के लिए भी बहुत उपयोगी माना जाता है क्योंकि यह उनके व्यापार तरक्की के मार्ग को और मजबूत करता है। विदेशों से आने वाले मरीज और उनके तीमारदारों के जरिए यह व्यापार तेजी से लाभ हासिल करता है।
उदाहरण के तौर पर गुरुग्राम के सेक्टर 50 में एक बेकर की स्टॉल है जिसका दावा है कि वह अरबी, पश्तो और रूसी में 20 तक गिन सकता है। इस बीच वहां एक सूडानी नागरिक आया और उसने स्टॉल पर रखे फ्लैटब्रेड के बारे में पूछा, इस पर बेकर ने कहा, "खमसा अशरा [अरबी में 15]।" इस स्टॉल के ठीक पीछे एक एक रेस्टोरेंट है जो अरबी शैली का भुना हुआ मांस बेचता है। सड़क के दोनों छोर पर लाइन से होटल हैं और उनके नजदीक आवासीय सुविधाएं भी हैं जहां विदेशी नागरिकों को ठहरने की व्यवस्था मिलती है।
भारत की भाषा, जलवायु और भीड़-भाड़ वाले इलाकों के अभ्यस्त न होने के बावजूद विदेशों से लोग यहां इलाज के लिए आते हैं। मरीजों का कहना है कि दूसरे देशों की तुलना में भारत की चिकित्सा काफी किफायती, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण है। यह उन्हें अपने या किसी और नजदीकी देश में नहीं मिलती।
मरीज बता रहे, क्यों सस्ता और किफायती है भारत
फिलीपींस निवासी कैसंड्रा अपने पति और एक साल के बच्चे के साथ इन दिनों दिल्ली के एक अस्पताल में उपचार करा रही हैं। गुरुग्राम के एक इलाके में उन्होंने एक फ्लैट किराए से लिया है जहां से हर दिन दिल्ली के साकेत तक का सफर यह उबर या लोकल कैब के जरिए करता है। इन्हें हिंदी भाषा नहीं आती है लेकिन अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान है। इसलिए दिल्ली और गुरुग्राम के बीच यात्रा करने में इन्हें ज्यादा दिक्कत नहीं होती। इनके पास किचन की व्यवस्था भी है जहां खुद से अपने पसंदीदा व्यंजन तैयार कर सकते हैं।
कैसंड्रा बताती हैं कि कुछ समय पहले उनके बच्चे जुल्कारनैन अली को पित्त संबंधी अट्रेसिया नामक बीमारी का पता चला। यह एक ऐसी बीमारी है जिसके लिए लीवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ती है जिसके लिए उनके पास दो ही विकल्प थे, या तो वह अपने बच्चे का इलाज फिलीपींस में ही किसी अस्पताल में करवाते क्योंकि यह देश भी चिकित्सा पर्यटन के लिहाज से काफी बेहतर है और साल 2020 के चिकित्सा पर्यटन सूचकांक में इस देश का 24वां स्थान है। वहीं भारत इस सूचकांक में 10वें स्थान पर है। उनके पास दूसरा विकल्प जापान, अमेरिका या फिर भारत जैसे किसी दूसरे देश जाकर इलाज कराने का विकल्प था। उन्होंने इस विकल्प के लिए भारत के चिकित्सा पर्यटन पर भरोसा जताया।
इसका कारण पूछे जाने पर अली की मां कैसंड्रा कहती हैं, "हमने फिलीपींस को इसलिए नकार दिया क्योंकि वहां उसके बचने की संभावना बहुत कम थी। जापान और अमेरिका में इलाज बहुत महंगा था जो हमारी आर्थिक स्थिति से काफी बाहर भी था। ऐसे में हमारे पास भारत ही बचा जहां का उपचार न सिर्फ बाकी देशों की तुलना में सस्ता लेकिन अधिक किफायती भी है।"
बीते मार्च में ही दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स अस्पताल में अली का प्रत्यारोपण हुआ है जिसके लिए उसकी मां कैसंड्रा ने अपने लीवर का टुकड़ा दान किया है। फिलहाल यह दोनों चिकित्सा निगरानी में है। अभी एक और महीने तक इस परिवार को भारत में रहना पड़ सकता है। इसके बाद डॉक्टर इन्हें घर वापसी की मंजूरी दे सकते हैं।
भारत में 100 में से 10 प्रत्यारोपण विदेशी मरीजों के
कैसंड्रा की तरह और भी कई विदेशी परिवार हर साल अपने मरीजों का अंग प्रत्यारोपण कराने के लिए भारत आते हैं। यही कारण है कि भारत में सालाना औसतन 100 में से 10 प्रत्यारोपण विदेशी मरीजों के होते हैं। नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) की एक रिपोर्ट बताती है, 2023 में भारत के अस्पतालों ने कुल 18,378 मरीजों का अंग प्रत्यारोपण किया जिनमें 1,851 विदेशी मरीज शामिल हैं। यहां गौर करने वाली बात यह है कि 1851 में अधिकांश 1445 प्रत्यारोपण दिल्ली और एनसीआर के अस्पतालों में हुए हैं जिससे पता चलता है कि विदेश से आने वाले मरीजों के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अस्पताल पहली प्राथमिकता पर हैं।
NOTTO के आंकड़े यह भी बताते हैं कि जिन विदेशी मरीजों ने भारत में आकर 2023 में अंग प्रत्यारोपण कराया है उनमें से केवल नौ मरीजों को ही मृतक दाता से अंग प्राप्त हो पाया। बाकी सभी विदेशी मरीजों को उनके ही परिवार के सदस्य ने अंग दिया है। इसमें अस्थि मज्जा, गुर्दा या फिर लीवर शामिल है।
दरअसल भारत में अंगदान मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम 1994 द्वारा शासित है। नियम बताते हैं, विदेशी नागरिक अंगों की जरूरत वाले रोगियों की रजिस्ट्री में शामिल हो सकते हैं, लेकिन उन्हें आवंटन के लिए तभी विचार किया जाएगा जब भारत में कहीं भी अंग लेने के लिए कोई भारतीय उपलब्ध न हो।
अब्दुल वाजिद ने बताया, "विदेशी रोगी अपने साथ एक दाता लाता है जो रक्त संबंधी यानी उसका नजदीकी पारिवारिक सदस्य होता है। इसकी जांच करने के लिए मरीज का डीएनए टेस्ट भी कराते हैं क्योंकि अंग प्रत्यारोपण को लेकर अक्सर व्यावसायिक हितों से संबंधित खबरें भी आती रहती हैं। यह जांच अस्पताल स्तर पर होती है क्योंकि हमें NOTTO के लिए दाता और प्राप्तकर्ता के बीच नजदीकी रिश्ता होने का सबूत देना पड़ता है।"
दूसरे देशों का भोजन यहां नहीं, कई बार सुरक्षा की भी चिंता
विदेशों से आने वाले मरीज बताते हैं कि उनके यहां का भोजन भारत में नहीं मिल पाता है। कई बार खाना पैक करवाते समय रेस्तरां में बोला भी जाता है लेकिन फिर भी उनकी सुनवाई नहीं होती। इसके अलावा, कई बार सुरक्षा को लेकर भी चिंता होती है क्योंकि भीड़ से भरी सड़कों या बाजार देखने की उन्हें आदत नहीं है।
इस बारे में अपनी सात साल की बेटी के साथ भारत आए तुर्कमेनिस्तान के पूर्व इंजीनियर सेरदार नियाजोव बताते हैं, "मेरी पत्नी और मुझे मसालेदार खाना उतना नहीं खलता, जितना मेरी बेटी को खलता है। मैं हर रेस्टोरेंट में जाकर यही कहता हूं कि मेरे खाने में मसाले न डालें, लेकिन वे मेरी बात मानते भी नहीं। मेरी बेटी खाना चखती है और एक ही निवाले के बाद कहती है कि यह बहुत मसालेदार है। हालांकि मैं दूसरी बार बेटी को लेकर आया हूं। इसलिए अब धीरे धीरे वह इस खाने की आदती हो रही है।"
तुर्कमेनिस्तान का खान पान भारत की तुलना में काफी अलग है। यह मध्य एशिया का ऐसा देश जिसकी जनसंख्या महज 70 लाख है जो भारत की राजधानी दिल्ली (1.68 करोड़) या मुंबई (1.28 करोड़) से भी कम आबादी वाला देश है। इसलिए सेरदार नियाजोव का परिवार यहां की भीड़ भाड़ वाली जगहों में सहज महसूस नहीं करते।
नियाजोव ने बताया कि छह साल पहले जब उनकी बेटी एक साल की थी तब वे उसे लेकर भारत आए थे। उसका लंबा उपचार चल रहा है। इसलिए दूसरी बार भारत अब लेकर आए हैं। पिछले महीने ही डॉक्टरों ने मिर्गी की सर्जरी में सफलता हासिल की है। डॉक्टरों का ही कहना है कि उनकी बेटी की स्थिति अब पहले से काफी बेहतर है और धीरे-धीरे उसकी दवाएं बंद की जा सकती हैं।
विदेशों से भारत आने वाले मरीजों को भले ही दिल्ली एनसीआर के अस्पतालों पर भरोसा ज्यादा है लेकिन रहने और खानपान के लिए उन्हें दिल्ली से ज्यादा गुरुग्राम पसंद आता है। दिल्ली में कई इलाके खासतौर पर अस्पतालों के नजदीक होटल की व्यवस्था है लेकिन गुरुग्राम जैसा बंदोबस्त नहीं है क्योंकि वहां के लोगों ने अंतरराष्ट्रीय मरीजों की जरूरतों के हिसाब से खुद को ढाल लिया है। वहां उनके लिए अधिक सुविधाएं हैं। उनकी भाषा में बातचीत करने वाले लोग हैं जो खानपान से लेकर अन्य कई चीजों का ध्यान भी रखते हैं। यही कारण है कि अली और नियाजोव जैसे विदेशी परिवारों को दिल्ली से ज्यादा गुरुग्राम में रहना पसंद आता है।
विदेशियों से बात करने के लिए ट्रांसलेशन एप की लेते हैं मदद
अबू इस्माइल (बदला हुआ नाम) अपने होटल की लॉबी में बाहर की ओर पीठ करके बैठे थे। वे कुरान की आयतें पढ़ रहे थे। इराक निवासी 55 वर्षीय अबू इस्माइल अंग्रेजी नहीं जानते हैं। उन्हें जब भी कोई बात करनी होती है तो वह अपने फोन पर एक ट्रांसलेशन एप की मदद लेते हैं। इसी एप के जरिए उन्होंने कहा, "मेरे भाई का फोर्टिस अस्पताल में कैंसर का इलाज चल रहा है।"
गुरुग्राम के इस होटल में अबू इस्माइल ठहरे हुए हैं, वहां के मैनेजर का फोन नंबर और विजिटिंग कार्ड के साथ साथ होटल का नंबर भी एक कागज पर लिखा होता है जो वहां ठहरने वाले प्रत्येक विदेशी मेहमान के पास रहता है। इस होटल के मैनेजर तेग बहादुर से लेकर अन्य स्टाफ तक हर कोई अपने फोन में ट्रांसलेशन एप के जरिए इन मेहमानों का ध्यान रखता है। चार मंजिला इमारत और हर मंजिल पर चार चार फ्लैट वाली इस जगह पर अबू इस्माइल बीते छह महीने से हैं।
तेग बहादुर ने बताया, यहां हमारा कोई भी कर्मचारी अरबी या फिर अंग्रेजी भाषा बोलना नहीं जानता है जबकि हमारे पास अधिकांश मेहमान इसी भाषा से जुड़े हैं। ऐसे में हमने ट्रांसलेशन एप के जरिए इन लोगों से संवाद शुरू किया और अब उसकी मदद से हमें अपने मेहमानों का ध्यान रखना और भी आसान हो गया है। स्वच्छता का विशेष ध्यान रखते हुए कपड़े धोने से लेकर हाउसकीपिंग तक की सेवाएं प्रदान करते हैं क्योंकि यहां कई मरीज इन कार्यों के लिए सामर्थ्यवान नहीं होते। कई बार, उन्हें अपने मेहमानों की ओर से ऑटो रिक्शा या फिर कैब ड्राइवरों के साथ बहस में भी हस्तक्षेप करना पड़ता है।
तेग बहादुर का यह होटल गुरुग्राम के मेदांता और फोर्टिस अस्पताल में इलाज करा रहे विदेशी मरीजों की सेवा करने वाले कई प्रतिष्ठानों में से एक है। यहां आस-पास की गलियों में फार्मेसियों और दंत चिकित्सकों के क्लीनिक पर अरबी और रूसी भाषा में विज्ञापन बोर्ड लगे हैं। ऑटो या कैब चालक होटल के विजिटिंग कार्ड के जरिए विदेशी नागरिकों को यहां तक छोड़ देते हैं।
भारत का चिकित्सा पर्यटन हो सकता है प्रभावित
अब्दुल वाजिद का मानना है कि आगामी समय में भारत का चिकित्सा पर्यटन काफी प्रभावित हो सकता है क्योंकि भारत में सबसे ज्यादा बांग्लादेश से इलाज कराने आते हैं। पिछले कुछ समय से बांग्लादेश में सियासी तख्तापलट के बाद भारत के साथ उनके संबंध बहुत अच्छे भी नहीं है। भारत ने बांग्लादेशी नागरिकों को वीजा देना बंद नहीं किया है लेकिन यह पहले जितना आसान भी नहीं रहा। इसी तरह अफगानिस्तान को लेकर भी हालात हैं। इलाज के लिए भारत आने वाले अफगान नागरिकों की संख्या साल 2021 में 22,463 से घटकर 2024 में एक व्यक्ति रह गई। यह इसलिए क्योंकि तालिबान ने दक्षिण एशियाई देश में अमेरिका समर्थित शासन को उखाड़ फेंका और अफगान में अपनी सरकार स्थापित की। तब भारत ने अगस्त 2021 में ही काबुल से अपना दूतावास दिल्ली स्थानांतरित कर दिया था।
हालांकि भारत का एक और पड़ोसी देश नेपाल है वहां के नागरिकों को आसानी से प्रवेश मिल जाता है क्योंकि नेपाली नागरिक बिना वीजा भारत आ सकते हैं। आंकड़े बताते हैं कि भारत चिकित्सा मूल्य यात्रा के लिए सबसे किफायती गंतव्यों में से एक है। अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित देशों में भी बिना बीमा वाले लोग इसे पसंद करते हैं। साल 2024 में अमेरिका से 1,911 लोग इलाज के लिए भारत आए जबकि यूके से आने वालों की संख्या 785 रही।
ई-वीजा की पहल बेहतर, लेकिन और भी सख्त नियम जरूरी
भारत सरकार ने विदेशियों के लिए इलाज के लिए ई वीजा की पहल की है जिसने मेडिकल वैल्यू ट्रैवल (MVT) को ‘चैंपियन सर्विस सेक्टर’ के रूप में उभारा है। इसके लिए साल 2018 में भारत सरकार ने 5,000 करोड़ रुपये का कोष भी स्थापित किया।
अब्दुल वाजिद मानते हैं कि सरकार को इस क्षेत्र के लिए और अधिक नियम बनाने चाहिए। उन्होंने कहा, “दुनिया के किसी दूसरे हिस्से में बैठे व्यक्ति के पास यह जानने का कोई तरीका नहीं है कि उनके देश में जिस अस्पताल से उन्होंने संपर्क किया है, वह उन्हें विश्व स्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं देगा या फिर किसी संदिग्ध साख वाले अस्पताल में इलाज देगा।”
इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया कि वे निजी तौर पर ऐसे कई रोगियों से मिले हैं जो भारत में बिना आवश्यक उपचार के फंस गए और उन्हें बाद में बेहतर सुविधा लेने के लिए स्थानांतरित करना पड़ा। वह काफी बुरे तरीके से फंस गए थे जिसका समाधान उनके पास नहीं था। इसलिए भारत सरकार को इस मुद्दे को लेकर भी सख्त नियम बनाने के साथ साथ एक मंच भी शुरू करना चाहिए जहां से दूसरे देश के नागरिक सही जानकारी जुटा सकें।
तुर्कमेनिस्तान के नियाजोव ने भी भारत की ई वीजा नीति की काफी सराहना की। इस पर अब्दुल वाजिद का कहना है कि यह इसलिए सबसे बेहतर है क्योंकि भारत हमेशा दूसरे नागरिकों को आसानी से अपने देश में वीजा देने की सुविधा रखता है। अगर हम तुर्कमेनिस्तान का उदाहरण दें, भारत से वहां कोई जाता है तो उसे कम से कम 35-1015 डॉलर (2,983-86,525 रुपये) खर्च करने के बाद वीजा मिलता है जबकि भारत में यह शुल्क बहुत कम या बाकी देशों की तुलना में लगभग न के बराबर है।
भारत के लिए महंगा, लेकिन विदेशों के लिए सस्ता है इलाज
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 2020 के मध्य में भारत के चिकित्सा पर्यटन क्षेत्र का मूल्य 5-6 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है, जिसके 2022 तक 13 बिलियन डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है। यह अनुमान इसलिए है क्योंकि भारत में चिकित्सा पर्यटन हर साल बढ़ रहा है।
इस वृद्धि को ऐसे भी समझ सकते हैं, भारतीय महिलाओं में सबसे आम स्तन कैंसर है जिसके इलाज का प्राइवेट अस्पताल में खर्च करीब 3,800 डॉलर (3.25 लाख रुपये) से शुरू है। भारत के प्रति परिवार सालाना स्वास्थ्य पर खर्च लगभग (35,000 रुपये) है और स्तन कैंसर का प्राइवेट अस्पताल में खर्च इससे करीब 10 गुना ज्यादा है। ऐसे में भारतीय परिवारों के लिए यह इलाज काफी महंगा हो सकता है लेकिन उन देशों के लिए नहीं, जहां भारत से कई गुना ज्यादा महंगा इलाज है।
खुद अब्दुल वाजिद भी इस बात से सहमति जताते हुए कहते हैं, "ओमान और यूएई जैसी ज्यादातर पश्चिम एशियाई सरकारें अपने बीमारियों के इलाज का खर्च उठाती हैं और भारत उनके लिए सबसे लोकप्रिय गंतव्यों में से एक है क्योंकि पश्चिमी देशों की तुलना में यहां इलाज की लागत कम है।"
गरीब देशों में चिकित्सा पर्यटन मुश्किल
भारत के चिकित्सा पर्यटन में एक ओर अधिक आय वाले देशों से नागरिक इलाज कराने के लिए भारतीय प्राइवेट अस्पतालों में बढ़ रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ दुनिया के कई देश ऐसे भी हैं जो गरीब या निम्न आय श्रेणी में आते हैं। वहां के नागरिकों को चिकित्सा पर्यटन का लाभ नहीं मिल पाता। हालांकि इन देशों के साथ भारत के पास बेहतर शर्तों पर बातचीत करने का कोई प्रोत्साहन भी नहीं है।
अब्दुल वाजिद ने कहा, “इलाज के लिए कोई भी मरीज भारत से नाइजीरिया या इथियोपिया नहीं जाना चाहता। इसलिए नहीं कि वहां का चिकित्सा वीजा शुल्क भारत की तुलना में अधिक है बल्कि इसलिए कि भारत जैसी गुणवत्ता युक्त चिकित्सा भी वहां नहीं है।”
बहरहाल, इंडिया स्पेंड ने भारत के चिकित्सा पर्यटन को लेकर विभिन्न मुद्दों पर बातचीत के लिए विदेश मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और दिल्ली सरकार से संपर्क किया ताकि भारत आने वाले विदेशी नागरिकों से जुड़े मुद्दों के समाधान पर ठोस कार्यवाही हो सके। इसके अलावा, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के चलते भारत के चिकित्सा पर्यटन पर पड़ने वाले प्रभाव और उसे लेकर सरकार की आगामी नीति को लेकर भी सवाल पूछे हैं जिनके जवाब मिलने पर इस स्टोरी को अपडेट किया जाएगा।