नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच गंभीर तनाव के लिए आतंकवाद जिम्मेदार है जो वैश्विक स्तर पर इंसानियत के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है। सिर्फ भारत या पाकिस्तान ही नहीं, ब​ल्कि साल 2024 में आतंकवादी घटनाओं से प्रभावित देशों की संख्या 58 से बढ़कर 66 तक पहुंची गई है। साल 2023 में आतंकी घटनाओं की वजह से दुनिया भर में 21,596 यानी औसतन हर दिन 59 लोगों की मौत हुई। वहीं भारत में कुल 460 यानी औसतन हर दिन एक और पाकिस्तान में 1513 यानी रोजाना औसतन चार लोगों की आतंकी घटनाओं में मौत हुई है। ऐसे में अगर आतंकवाद को पूरी दुनिया से खत्म कर दिया जाए तो सिर्फ भारत या पाकिस्तान ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में हर दिन 59 लोगों की जान बचाई जा सकती है।

सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (सीएसआईएस) के वरिष्ठ सहयोगी एवं भारत और उभरते एशिया अर्थशास्त्र पर अध्यक्ष रेमंड विकरी ने कहा, "पूरी दुनिया से आतंकवाद के जघन्य कृत्य को नष्ट करने में अमेरिका जैसे समृद्ध देशों को पैरवी करनी चाहिए। भू-राजनीति और व्यापार से खुद को अलग रखते हुए जब सभी देश एक साथ मिलकर आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करेंगे तो इस धरती पर इंसानियत की सबसे बड़ी दुश्मन दहशतगर्दी और उसकी सोच से हम सभी को आजादी मिलने की उम्मीद है।"


वहीं राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञ मैक्स अब्राहम का मानना है, "भारत के साथ पाकिस्तान भी लंबे समय से आतंकवाद का सामना कर रहा है। इसलिए वहां की सरकारों को एक दूसरे का साथ देते हुए इसे जड़ से खत्म करना चाहिए।" हालांकि दोनों ही विशेषज्ञ अपनी सलाह को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं है क्योंकि उन्हें यह पता है कि राजनीतिक और आ​र्थिक हालातों से जुड़ी सोच किसी भी देश को ऐसा नहीं करने देगी।

पूरी दुनिया में पाकिस्तान दूसरा सबसे प्रभावित

वैश्विक आतंकवाद सूचकांक के अनुसार, साल 2023 में वैश्विक स्तर पर आतंकवाद से होने वाली मौतें साल 2022 की तुलना में 22 फीसदी से ज्यादा है। विश्व भर में आतंकवाद के प्रभाव को मापने वाली ऑस्ट्रेलिया के सिडनी ​स्थित अर्थशास्त्र एवं शांति संस्थान (IEP) का यह वैश्विक आतंकवाद सूचकांक (जीटीआई) एक व्यापक अध्ययन है, जो विश्व की 99.7 प्रतिशत आबादी को कवर करते हुए 163 देशों में आतंकवाद के प्रभाव का विश्लेषण करता है। इसके मुताबिक, आतंकवाद का सामना करने वाले दुनिया के सभी देशों में पाकिस्तान दूसरे स्थान पर है जबकि भारत 14वें पायदान पर है। इस सूची में पहले स्थान पर बुर्किना फासो है जहां आतंकी घटनाओं में 1532 से ज्यादा लोगों की मौत एक साल में हुई है।

नई दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट फॉर कनफ्लिक्ट मैनेजमेंट (आईसीएम) के दक्षिण एशिया आतंकवाद पोर्टल (एसएटीपी) का मानना है कि पाकिस्तान और उनकी सरकार हर साल औसतन 1000 से 1500 तक आतंकी घटनाओं का सामना कर रहा है जिनमें न सिर्फ आम नागरिक बल्कि पाकिस्तान की फौजी और अन्य सुरक्षा जवान भी अपनी जान गंवा रहे हैं। वहीं भारत में यह हमले सालाना औसतन 200 से 300 के बीच हैं।

पहलगाम हमले के बाद जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों की पहचान में तैनात भारतीय सेना, स्त्रोत भारत सरकार

बीते 24 साल से हर दिन औसतन तीन पाक नागरिक आतंकी घटनाओं में मारे जा रहे हैं जबकि भारत में यह संख्या एक अंक से भी कम है। पिछले साल 2024 में ही पाकिस्तान ने अपने 582 आम नागरिकों को खो दिया। रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण एशिया में भारत और पाकिस्तान दोनों ही आतंकवाद की चपेट में है। इन घटनाओं से जुड़ी भारतीय जानकारियां सार्वजनिक प्लेटफॉर्म पर हैं लेकिन पाकिस्तान की अ​धिकांश घटनाएं सार्वजनिक नहीं है। इसलिए आईसीएम ने स्थानीय मीडिया की खबरों के जरिए वहां की प्रत्येक घटनाओं का ब्यौरा एकत्रित कर उनका विश्लेषण किया। इसमें पता चला कि साल 2000 से 2024 के बीच पाकिस्तान में 17,643 आतंकी हमलों में 22,188 आम नागरिक, 9551 फौजी सहित 70,935 मौतें हुई हैं। अगर इसकी तुलना भारत से करें तो ठीक इसी अवधि में आतंक पीड़ित भारत की जमीन पर 24,382 आतंकी हमले हुए हैं जिनमें 14517 आम नागरिकों की मौत हुई जबकि 7579 सैन्य जवान शहीद हुए।

इंस्टीट्यूट फॉर कनफ्लिक्ट मैनेजमेंट (आईसीएम) ने अपनी रिपोर्ट में इस साल जनवरी से अप्रैल माह के बीच पाकिस्तान में हुई आतंकी घटनाओं पर भी अहम जानकारियां जुटाई हैं। इन चार महीनों में 331 आतंकी हमलों में पाकिस्तान ने अपने 188 नागरिकों को गंवा दिया जबकि उनकी फौज के 371 जवान भी मारे गए।

आतंक के ​खिलाफ कार्रवाई लेकिन आत्मसमर्पण चुनिंदा

160 में दूसरा सबसे ज्यादा आतंक से प्रभावित देश होने के बावजूद पाकिस्तान में इनके ​खिलाफ सरकारी और कानूनी कार्रवाई काफी सीमित दिखाई देती है। साल 1997 से दक्षिण एशिया में आंतरिक सुरक्षा पर सक्रिय गैर लाभकारी संस्था इंस्टीट्यूट फॉर कनफ्लिक्ट मैनेजमेंट (आईसीएम) के आंकड़े बताते हैं कि 24 साल में भारत से ज्यादा आतंकी हमले पाकिस्तान में हुए हैं। इसके जवाब में भारतीय फौजियों ने हजारों आतंकियों को घुटने पर ला दिया लेकिन पाकिस्तान में ऐसा बहुत कम देखने को मिला।

साल 2000 से 2024 के बीच पाकिस्तान ने 328 घटनाओं में कुल 10,018 आतंकियों के आत्मसमर्पण कराए हैं जबकि भारत में 3777 घटनाओं में कुल 41,311 आंतकियों को भारतीय कैद में जीने का अधिकार दिया। इतना ही नहीं, आंकड़े यह भी बताते हैं कि पाकिस्तान में आत्मसमर्पण करने वाले 10,018 में 70 फीसदी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के सदस्य हैं जो पाकिस्तानी संप्रभुता से हटाना चाहता हैं। इनमें लश्कर-ए-तैयबा या फिर जैश-ए-मोहम्मद संगठनों का एक भी सदस्य शामिल नहीं है।

आईसीएम के शोध सहयोगी तुषार रंजन मोहंती बताते है, "अधिकांश आतंकी एनकाउंटर के समय अपने माता पिता और अन्य परिजनों की अपील पर मौत से बचने के लिए हथियार छोड़ देते हैं। हालांकि आतंकवादी संगठन अब स्थानीय समर्थन से बाहर हो रहा है जिसके चलते आत्मसमर्पण में कमी आ रही है क्योंकि पहले इन संगठनों का टारगेट स्थानीय युवा होते थे जिन्हें बहला फुसला कर हथियार थमा दिए जाते थे।" उन्होंने कहा कि हाल ही में पहलगाम हमला इसका ताजा उदाहरण है जिसके ​​खिलाफ स्थानीय आबादी ही सड़कों पर है।

आतंक का सबसे घातक स्वरूप फिदायीन हमला

भारत के जाने माने आतंकवाद निरोधक विशेषज्ञ अजय साहनी का कहना है कि एक क्षणिक ‘प्रतिशोध’, चाहे कितना भी नाटकीय हो, सबसे खराब राजनीतिक क्षेत्र को खुश कर सकता है, लेकिन यह वास्तविक चुनौती का समाधान करने में विफल रहेगा। केवल एक व्यापक, निरंतर रणनीति जो आतंक के खिलाफ राज्य शक्ति के सभी साधनों को काम में लाती है, वह वास्तविक और स्थायी जीत दिलाएगी जिसकी भारतीय राज्य और राष्ट्र को आवश्यकता है।

दक्षिण एशिया आतंकवाद पोर्टल (एसएटीपी) और आईसीएम के कार्यकारी निदेशक अजय साहनी का कहना है कि किसी भी फिदायीन (सुसाइड बम्बिंग) हमले को रोकना बहुत ही मुश्किल होता है। यह आतंक का सबसे ​घिनौना स्वरूप है जिसका भुक्तभोगी भारत और पाकिस्तान हैं। भारत का पुलवामा हमला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान में जितने लोगों की मौत फिदायीन हमलों में साल 2024 में हुई, उससे कहीं ज्यादा इस साल के शुरूआती चार महीने में हुई हैं। 2024 में 22 फिदायनी हमलों में 138 लोगों की मौत हुई जबकि इस साल जनवरी से अप्रैल माह के बीच 12 घटनाओं में 144 लोगों की मौत हुई है। साल 2002 से अब तक पाकिस्तान में 673 फिदायनी हमलों में 15427 मौतें हुई।

द​क्षिण ए​​शिया में आतंकवाद पर चर्चा करते हुए अजय साहनी ने कहा, "22 अप्रैल 2025 को कश्मीर घाटी में पहलगाम के पास बैसरन मैदान में हुए बर्बर हत्याकांड ने भारत के सामने एक अहम सवाल खड़ा कर दिया है - राष्ट्र को इसका जवाब कैसे देना चाहिए? भारत की प्रतिक्रिया में स्थायी अवरोध पैदा करने चाहिए और पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद की लगातार चुनौती का समाधान करना चाहिए जिसने विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर (J&K) में बहुत नुकसान पहुंचाया है, और देश के बाकी हिस्सों में भी काफी नुकसान पहुंचाया है।"

उन्होंने आगे कहा, "असंगति, उन्माद या अस्पष्ट लक्ष्यों के माहौल में कोई भी वास्तविक सफल प्रतिक्रिया तैयार नहीं की जा सकती। दुर्भाग्य से, यह ठीक वही माहौल है जो न केवल व्याप्त है, बल्कि ऐसा लगता है कि जानबूझकर इसे अंजाम दिया गया है।"

इजरायल-भारत ने बदला ट्रेंड, इंसानियत अब नहीं सहेगी आतंकवाद

मैक्स अब्राहम का कहना है कि आतंकवाद को लेकर अब लगभग सभी देशों का रूख पहले से ज्यादा सख्त हुआ है। पहले इजरायल और अब भारत की कार्रवाई ने पूरी दुनिया को इसका संदेश भी दिया है। उन्होंने कहा, "मुझे नहीं लगता, अब इंसानियत आतंकवाद को सहन कर पाएगी। पिछले कुछ वर्षों में, आतंकी घटनाओं और उन्हें लेकर प्रभावित देशों की कार्रवाई से पता चलता है कि दहशतगर्दों के ​खिलाफ हर किसी को कड़े कदम उठाने होंगे। ऐसा न होने पर काफी बड़ा नुकसान हो सकता है। हालांकि इसका एक साइड इफेक्ट यह है कि आतंकी संगठन सीमा युद्ध का जानबूझकर कारण भी बन सकते हैं जिसका कहीं न कहीं उन्हें भी खामियाजा उठाना पड़ सकता है।