नई दिल्ली: "साहब, मैंने 14 महीने तक ऐसी दवाओं का सेवन किया जिनका मेरी परेशानी से कोई लेना देना नहीं था। तीन साल पहले अचानक मेरे चेहरे पर बड़े बड़े लाल चकते उभरना शुरू हुआ। शुरुआत में घरेलु उपायों के जरिए मैंने इन्हें ठीक करना मुनासिफ समझा लेकिन जब आराम नहीं मिला तो एक के बाद एक चार डॉक्टरों के पास गई। लगभग सभी ने इसे चर्म रोग बताते हुए मुझे दवाएं देते रहे और एक एक बार में चार से पांच दवाओं की खुराकें लेने के बाद भी मुझे आराम नहीं मिला।"

यह कहना है उत्तर प्रदेश के बरेली जिला निवासी 54 वर्षीय सीमा देवी (बदला नाम) का। सीमा को साल 2022 में दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में कुष्ठ रोग का पता चला। पहले उन्हें इस पर विश्वास नहीं हुआ क्योंकि उससे पहले तक वे जितने भी डॉक्टरों के पास गईं, हर किसी ने उन्हें त्वचा रोग ही बताया। कुष्ठ के बारे में सुनकर सीमा और उनका पूरा परिवार काफी घबरा गया लेकिन डॉक्टरों ने काउंसलर की मदद से मरीज और उनके परिजनों को उपचार का आश्वासन दिया।

इसी तरह का एक अन्य मामला राजधानी दिल्ली से कुछ ही किलोमीटर दूर हरियाणा के फरीदाबाद जिले में सामने आया। यहां 42 वर्षीय महेंद्र प्रताप (बदला नाम) की पीठ और बाजुओं पर चकते उभरना शुरू हुआ। देखते ही देखते उनके हाथों में कमजोरी महसूस होने लगी। महेंद्र भी करीब छह महीने तक स्थानीय डॉक्टर की सलाह पर त्वचा रोग का इलाज लेते रहे लेकिन जब आ​खिर में जब उन्होंने दिल्ली में दिखाया तो यहां उन्हें कुष्ठ रोग का पता चला।

ओडिशा के बौध जिला में मरीज नरत्तम मेहर की जांच करता स्वास्थ्य कर्मी, स्त्रोत- परी​क्षित निर्भय

भारत बीते कई दशकों से कुष्ठ रोग से लड़ाई का सामना कर रहा है। साक्ष्य बताते हैं कि भारत में इसकी उपस्थिति 2000 ई.पू. से ही थी और ऐसा माना जाता है कि यहां से ही बीमारी दुनिया के बाकी हिस्सों तक फैली है। एक लंबी मैराथन के बाद भारत अब कुष्ठ रोग से मु​क्ति की दहलीज पर पहुंचा है लेकिन सीमा और महेंद्र प्रताप जैसे ऐसे कई मामले हैं जिनका समय रहते बीमारी का पता नहीं चल पाया और महीनों तक यह उन दवाओं का सेवन करते रहे जिनकी बीमारी उन्हें नहीं थी। इसकी वजह से न सिर्फ मरीज की जेब पर अतिरिक्त बोझ आया ब​ल्कि समुदाय में रोग संचरण के साथ साथ उसकी बीमारी का जो​खिम भी बढ़ा।

नई दिल्ली ​स्थित डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल (आरएमएल) के वरिष्ठ त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. कबीर सरदाना बताते हैं, "ऐसे कई मामले अक्सर हमारे सामने आ रहे हैं जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि गलत निदान और गलत उपचार को संबोधित किए बिना कोई भी देश बीमारी से मुक्त नहीं हो सकता है। भारत ही नहीं ब​ल्कि पूरी दुनिया के लिए कुष्ठ रोग काफी पुराना है और डब्ल्यूएचओ के जरिए अ​धिकांश देश इससे मुक्ति पाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं। इसमें कोई दोराय नहीं कि अन्य त्वचा रोगों और कुष्ठ में अंतर कर पाना शुरुआती चरण में थोड़ा जटिल हो सकता है लेकिन सच यह भी है कि कई हिस्सों में बिना विशेषज्ञता वाले उपचार करते हैं। अगर इनसे ऐसे मामले छूटते हैं तो रोग मुक्त होने की कल्पना कैसे संभव है? क्योंकि हम जानते हैं कि यही छूटे मामले समुदाय में संक्रमण को बढ़ावा दे सकते हैं।"

दिल्ली के एक अस्पताल में संदिग्ध रोगियों की जांच करते त्चचा रोग डॉक्टर, स्त्रोत- परी​क्षित निर्भय

यहां समय पर जांच हुई तो ठीक भी हो गए

भारत के कुछ हिस्सों में गलत निदान के चलते मरीजों को कई महीनों बाद कुष्ठ रोग का पता चला जिसके चलते उनके उपचार पर भी बुरा असर पड़ा है लेकिन कुछ अन्य राज्यों में समय पर जांच होने से मरीजों की जल्दी रिकवरी भी हुई। छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर जिले के कंठी गांव निवासी 52 वर्षीय सुरेश चंद्र पांडे ने इंडियास्पेंड हिंदी से बातचीत में कहा कि कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन के दौरान उन्हें कुष्ठ रोग का पता चला। उनका कुष्ठ रोग का इलाज किया गया लेकिन उस दौरान उनमें जटिलताएं (लेप्रा रिएक्शन) उत्पन्न हो गईं। हालांकि गनीमत रही कि समय पर कंठी के स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र पर डॉक्टरों से जटिलताओं का सफलतापूर्वक प्रबंधन करने में सहयोग मिला। सुरेश ने एमडीटी दवाओं के साथ उपचार का पूरा कोर्स पूरा कर लिया है, उनमें विकलांगता के कोई लक्षण नहीं हैं और वे अपने खेत पर काम कर रहे हैं।

छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर जिले के कंठी गांव निवासी 52 वर्षीय सुरेश चंद्र पांडे की तस्वीर, स्त्रोत- परी​क्षित निर्भय

इसी तरह की एक कहानी ओडिशा के बौध जिला निवासी 44 वर्षीय नरत्तम मेहर की है जिन्होंने इंडियास्पेंड हिंदी से बताया, "मुझे कुछ वर्ष पहले दाहिने हाथ की उंगलियों में कमजोरी महसूस हुई। इसके अलावा मुझे कोई अन्य लक्षण नहीं था, लेकिन मैं खाने के लिए भोजन नहीं पकड़ सकता था। मैं एक बुनकर हूँ, और यह मुझे चिंतित करता था।" फिलहाल नरत्तम मेहर ने दवा का कोर्स पूरा कर लिया है और वह पहले की तरह अपना जीवन यापन कर रहे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मापदंडों पर भारतीय डॉक्टरों ने अध्ययन से उठाए सवाल

इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईजेएमआर) में प्रका​शित एक अध्ययन में विशेषज्ञों का कहना है कि भारत ने कुष्ठ रोग नियंत्रण में महत्वपूर्ण प्रगति की है, फिर भी चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। इनमें कलंक और रोग को समाप्त करने के लिए निरंतर प्रयास की जरूरत है।

इस अध्ययन के निष्कर्ष में कहा है कि कुष्ठ रोग से मु​क्ति के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशा निर्देशों का पालन किया जा रहा है। तीन साल तक एक भी नया मामला नहीं मिलने पर उक्त देश को बीमारी मुक्त घो​षित किया जाएगा लेकिन डब्ल्यूएचओ के इन निर्देशों में गैर-त्वचा विशेषज्ञों द्वारा बड़ी संख्या में छूटे मामलों को शामिल नहीं किया है। इसलिए पूरी दुनिया का मार्गदर्शन करने वाले डब्ल्यूएचओ के सलाहकार समूह में त्वचा रोग विशेषज्ञों को भी शामिल करने की सिफारिश की है क्योंकि गलत निदान के मामले में जमीनी हकीकत शायद ही कभी दिशा-निर्देशों में अपना रास्ता बना पाती है।

डॉ. कबीर सरदाना का कहना है कि कुष्ठ रोग को लेकर एक स्थानिक देश में लक्ष्य प्राप्त करने के लिए, चिकित्सकों और न्यूरोलॉजिस्ट को भी कुष्ठ रोग और उसकी विभिन्न प्रस्तुतियों के बारे में जागरूक होना चाहिए।

कुष्ठ रोग का इलाज संभव

कोलकात्ता में संदिग्ध क्षेत्रों की मेपिंग को कुछ इस तरह मीटिंग में दिखाते अ​धिकारी, स्त्रोत -परीक्षित निर्भय

कुष्ठ यानी हैनसेन रोग एक प्रमुख रूप से उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग बना हुआ है। साल 2023 में, दुनिया भर में 1,82,815 नए मामले सामने आए जिनमें सबसे ज्यादा भारत, ब्राजील और इंडोनेशिया में दर्ज किए गए। भारत के कई राज्यों में कुष्ठ रोग स्थानिक है, जिसकी वार्षिक मामले की पहचान दर 10,000 की आबादी पर 4.56 है। देश में कुष्ठ रोग की व्यापकता दर 10,000 की आबादी पर 0.4 है। 2020-2021 के दौरान पता लगाए गए नए मामलों में से 58.1% मल्टीबैसिलरी थे जिनमें 39% महिलाएं थीं। इनके अलावा, 5.8% मामले 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे थे और 2.41% मामलों में दृश्य विकृतियां थीं।

दिल्ली के त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. मनीष जांगड़ा बताते हैं कि कुष्ठ रोग माइकोबैक्टीरियम लेप्री के कारण होने वाला एक पुराना संक्रामक रोग है। यह रोग मुख्य रूप से त्वचा, परिधीय तंत्रिकाओं, ऊपरी श्वसन पथ के म्यूकोसा और आंखों को प्रभावित करता है। कुष्ठ रोग के कारण त्वचा पर हल्के रंग के धब्बे पड़ जाते हैं और रोग के शुरुआती चरणों में संवेदना का नुकसान होता है। यदि उपचार न किया जाए तो उन्नत रोग में हाथ, पैर, चेहरे और आंखों की मांसपेशियों में कमजोरी या पक्षाघात, पैरों के तलवों में अल्सर और अंधापन शामिल है। कुष्ठ रोग का इलाज संभव है और शुरुआती चरणों में उपचार से विकलांगता को रोका जा सकता है।

पूरे देश में सबसे बड़ा 45% का उछाल उत्तर प्रदेश में

उत्तर प्रदेश में इस तरह अ​भियान चलाकर सबसे ज्यादा रोगियों की पहचान की, स्त्रोत- परी​क्षित निर्भय

उत्तर प्रदेश में कुष्ठ रोग के नए मामलों की पहचान में 45% का इजाफा हुआ है। अक्टूबर 2024 में एक वार्षिक सर्वेक्षण के अनुसार, स्वास्थ्य विभाग की टीमों ने कुल 1,913 नए मामलों की पहचान की है, जबकि एक साल पहले यह संख्या 1,316 थी। यह सर्वेक्षण उन मामलों की संख्या की जांच करने के लिए किया गया था, जिनका इलाज नहीं हो रहा है। राज्य कुष्ठ अधिकारी (एसएलओ) डॉ. जया देहलवी ने कहा, "54,323 संदिग्ध मामलों में से 1,913 कुष्ठ रोग के लिए सकारात्मक पाए गए, जो 2023 की तुलना में 597 अधिक हैं क्योंकि तब 1,12,124 संदिग्ध मामलों में से 1,316 मामले सामने आए थे।"

दो साल में मुक्त होगा भारत

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अ​धिकारी ने कहा, भारत में राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम (NLEP) के जरिए कुष्ठ रोग के बहु-औषधि संयोजन उपचार (MDT) पर जोर दिया जा रहा है। इसके अलावा सामुदायिक शिक्षा, रोगी निगरानी और जागरुकता अभियान चलाए जा रहे हैं। इस NLEP के तहत, कुष्ठ रोग मामलों का पता लगाने के लिए अभियान (एलसीडीसी) चलाया जा रहा है ताकि सक्रिय मामलों का पता लग सके और संदिग्धों लोगों की तत्काल जांच हो सके। ताकि रोग के प्रेरक जीव माइकोबैक्टीरियम लेप्री के संचरण को रोका जा सके।

एम्स मंगलागिरी में इस साल कुष्ठ रोगियों के लिए विशेष अ​भियान चलाया गया , स्त्रोत- परी​क्षित निर्भय

उन्होंने कहा कि सक्रिय केस डिटेक्शन गतिविधियों का उद्देश्य समुदाय में संदिग्ध मामलों की शीघ्र पहचान करना है ताकि शीघ्र निदान और उपचार किया जा सके। स्पर्श अभियान के तहत हर साल गांव स्तर पर देशव्यापी जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं ताकि समुदायों को शिक्षित किया जा सके, कलंक और भेदभाव को रोका जा सके और संक्रमित लोगों को ढूंढा जा सके और उन्हें स्वास्थ्य सेवाओं से जोड़ा जा सके।

भारत ने वर्ष 2005 में राष्ट्रीय स्तर पर प्रति 10,000 जनसंख्या पर 1 मामले से भी कम का लक्ष्य हासिल कर लिया है। इसके चलते सरकार ने वर्ष 2027 तक यानी सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 2030 से तीन वर्ष पहले भारत को कुष्ठ रोग से मु​क्ति दिलाने का लक्ष्य रखा है।