बहराइच: 550 वर्ग किलोमीटर में फैले कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग के आसपास 47 गांव बसे हैं, जहां वन्यजीव- मानव संघर्ष आम बात है। पिछले पांच महीनों में बहराइच में भेड़ियों के आतंक की वजह से दस लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। तो वहीं, पीलीभीत और आसपास के जिलों में भी हाल ही में तेंदुए और इंसानों के बीच संघर्ष की कई घटनाएं सामने आई हैं।

इन बढ़ते संघर्षों को देखते हुए वन विभाग और कई स्वयंसेवी संस्थाएं एक साथ आगे आए है और ऐसे उपायों पर काम कर रहे हैं, जिससे इंसानी आबादी वाले इलाकों में जंगली जानवरों की आवाजाही कम हो सके। 'बाघ मित्र' और 'गज मित्र' उनके इन्हीं प्रयासों के कुछ उदाहरण हैं।

सरकार के 2022-23 के आंकड़ों के मुताबिक, इस दौरान 8,873 वन्यजीव हमले हुए, जिनमें से 4193 जंगली हाथियों, 1524 जंगली सूअरों, 193 बाघों, 244 तेंदुओं और 32 बाइसन द्वारा किए गए। 2017 से 2023 के बीच, वन्यजीवों द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाने की 20,957 घटनाएं हुईं, जिसके कारण 1,559 पालतू जानवर, खासकर मवेशी मारे गए।

पर्यावरण के संरक्षण शोध एवं पुनर्स्थापना के लिये काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन विश्व प्रकृति कोष (वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर) ने सबसे पहले 2017 में उत्तर प्रदेश के पीलीभीत टाइगर रिजर्व में 'बाघ मित्रों' को प्रशिक्षित करना शुरू किया था, ताकि ये लोग जंगली जानवरों के व्यवहार को समझ सकें और ग्रामीणों को उनके बारे में जागरूक कर सकें। इससे मानव-वन्यजीव संघर्षों के मामले में काफी सकारात्मक नतीजे सामने आए थे।

इसकी सफलता को देखते हुए, विश्व प्रकृति कोष अब कतर्नियाघाट जंगल के आसपास रहने वाले कुछ चुनिंदा लोगों को भी बाघ मित्र के तौर पर प्रशिक्षित कर रहा है। इसके लिए उन्होंने जंगल के करीब रहने वाले साफ-सुथरी छवि वाले उन लोगों को चुना, जिन पर वन विभाग की तरफ से कोई केस नहीं चल रहा है और ये स्वेच्छा से वन्यजीव-मानव संघर्ष को कम करने के लिए काम करना चाहते हैं। इन्हें बाघ और तेंदुए के हमलों को कम करने, ग्रामीणों को वन्यजीवों के बारे में जागरूक करने और वन विभाग व ग्रामीणों के बीच समन्वय स्थापित करने की ट्रेनिंग दी जाती है।

प्रशिक्षण के दौरान उन्हें न सिर्फ जंगली जानवरों के व्यवहार के बारे में बल्कि पंजे के निशान से बाघ और तेंदुए की पहचान करना भी सिखाया जाता है। एक बाघ मित्र ने बताया, “प्रशिक्षण के दौरान हमें बताया गया है कि पंजे के आकार से तेंदुए और बाघ में अंतर कैसे किया जाए। पंजे के आकार से नर-मादा और उम्र का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। और साथ ही यह जानने में भी मदद मिलती है कि जानवर स्थानीय है या कहीं और से आया है।”

इन 'बाघ मित्रों' को वन विभाग और ग्रामीणों के बीच एक पुल की तरह काम करने और किसी घटना के होने पर ग्रामीणों को आक्रोशित न होने देने के तरीके भी सिखाए गए हैं।

वन विभाग भी समय-समय पर इन 'बाघ मित्रों' को ट्रेनिंग देता रहता है। फिलहाल कतर्नियाघाट में 91 'बाघ मित्र' हैं जो 5-5 की टोलियों में रात भर प्रभावित इलाकों में गश्त करते हैं। इनकी पहचान और सुरक्षा के लिए इन्हें पारदर्शी जैकेट, लम्बी दूरी तक रोशनी देने वाली टार्च, मजबूत डंडे, बैग, टी शर्ट, जूते आदि दिए जाते है। ये लोग स्वेच्छा से बिना किसी मानदेय के काम करते हैं।

विश्व प्रकृति कोष के वरिष्ठ परियोजना अधिकारी दबीर हसन ने बताया कि इन 'बाघ मित्रों' को जंगल और खेतों में बाघ और तेंदुए की उपस्थिति पहचानना सिखाया जाता है। हसन कहते हैं, "इन जानवरों के पास से आने वाली गंध से भी पता चल जाता है कि वे आस-पास हैं।" इसके अलावा, "जिस जगह पर ये जानवर होते हैं, वहां पक्षी चिल्लाने लगते हैं, और बंदर ज़रूरत से ज़्यादा उछल-कूद मचाने लगते हैं। ऐसी स्थिति में 'बाघ मित्र' का झुंड भी शोर मचाता है, जिससे ये जानवर करीब नहीं आते और खतरा टल जाता है।"

पीलीभीत में प्रशिक्षित बाघ मित्रों ने ग्रामीणों को वन्यजीवों के प्रति जागरूक किया है, जिसके बहुत अच्छे नतीजे सामने आए हैं। 2017 से पहले, पीलीभीत में हर साल औसतन सात लोग वन्यजीव हमलों में मारे जाते थे। लेकिन 'बाघ मित्रों' के काम करने के बाद यह आंकड़ा 0 से 3 के बीच आ गया है। कतर्नियाघाट में भी वन विभाग को इन 'बाघ मित्रों' से बहुत सहयोग मिल रहा है। सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि 'बाघ मित्र' वन विभाग को घटनाओं की तुरंत जानकारी दे देते हैं। इससे ग्रामीणों में आक्रोश नहीं फैलता है।

बाघ मित्रों के काम से प्रभावित होकर वन विभाग अब एक कदम और आगे बढ़ते हुए इन्हें वन्यजीवों के आंकड़े संकलन करने के तरीके और थर्मोस्टेट कैमरे का इस्तेमाल करना भी सिखा रहा है। इससे जंगल में जानवरों और इंसानों की बेवजह घूमने की घटनाओं को रिकॉर्ड किया जा सकेगा और उन्हें कम करने में मदद मिलेगी। विश्व प्रकृति कोष अपने इस प्रयोग को उत्तर प्रदेश के कुछ और जिलों में भी शुरू करने की योजना बना रहा है।

नेचर इनवायरमेंट एंड वाइल्ड लाइफ सोसाइटी
(NEWS) ने भी वन्यजीवों और इंसानों के बीच संघर्ष को रोकने के लिए तरह-तरह के प्रयोग किए है। लेकिन उनका पूरा दारोमदार जंगली हाथियों से होने वाले नुकसान और हाथी-मानव संघर्ष को रोकने पर है। संस्था ने बाघ मित्र की तर्ज पर ही 'गज मित्रों' की नियुक्ति की और उन्हें हाथियों के व्यवहार को समझने के लिए प्रशिक्षित किया गया।

कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग में भ्रमड़ करता एक जंगली हाथी। तस्वीर साभार: सुब्रतो चौधरी

एक अधिकारी ने बताया, "हाथी कब क्रूर होता है, कब शांत होता है, कब सामाजिक होता है, कब अकेला होता है, ये सब उसके व्यवहार से जाना जा सकता है। हाथी के मस्तिष्क और व्यवहार को पढ़ने की ट्रेनिंग इससे पहले कभी नहीं दी गई थी, इसलिए इसमें बहुत सारे लोग शामिल होना चाहते थे। लेकिन हमने केवल 30 लोगों को 'गज मित्र' के रूप में चुना है, जो साफ-सुथरी छवि वाले हैं और प्रकृति से प्यार करते हैं।"

हाथियों पर पिछले 30-35 साल से काम कर रहे वन्यजीव विशेषज्ञ और 'गज मित्र' प्रशिक्षक सुब्रत पाल चौधरी ने बताया कि प्रशिक्षण के दौरान हाथियों के व्यवहार की बारीकियां सिखाई जाती हैं। उन्होंने कहा, "जो हाथी बार-बार सूंड उठाए और उसके कान के पास से द्रव निकले, तो समझ जाना चाहिए कि यह नर हाथी है और इस समय यह संबंध बनाने के लिए मादा हथनी को निमंत्रण दे रहा है। ऐसे समय में नर हाथी काफी उग्र होता है और ज्यादातर अकेला रहता है। इसी तरह, हथनी जब अपने छोटे बच्चे के साथ होती है तो काफी असुरक्षित महसूस करती है इसलिए कोई भी उसके करीब जाता है तो वह बचाव में हमलावर हो जाती है।"

चौधरी ने कहा, "जब कभी इस प्रकार के हाथी को देखें तो उससे लगभग 100 मीटर की दूरी बनाकर रखें और हाथी के सामने न जाएं। छिपकर शोर मचाएं। शोर मचाते समय अगर इंसानों की संख्या 5 से 20 के बीच होगी तो हाथी का झुंड आसानी से भाग जाएगा। लेकिन यह संख्या 20 से अधिक भी नहीं होनी चाहिए।"

हाथी सामाजिक जानवर हैं और अक्सर झुंड में रहते हैं। हालांकि, वयस्क नर हाथी कभी-कभी झुंड से अलग हो जाते हैं। झुंड की नेता बूढ़ी हथनी होती है और सभी सदस्य उसके निर्देशों का पालन करते हैं। चौधरी ने कहा, "हाथी सूंड उठाकर जब चिंघाड़ता है तो वह अपनी भाषा में अपने दूसरे साथियों से बात करता है।" 'गज मित्रों' को हाथियों के इन सभी व्यवहारों के बारे में सिखाया जाता है।

कतर्नियाघाट के आसपास के इलाकों में हाथियों के हमले से फसलों को होने वाले नुकसान से निपटने के लिए, नेचर एनवायरमेंट एंड वाइल्ड लाइफ सोसाइटी (NEWS) ने गोबर और लाल मिर्च से एक 'चिली डंक केक' तैयार किया है। इसके धुएं में मिर्च की तीखी गंध होती है, जिससे हाथी दूर भाग जाते हैं। न्यूज़ संस्था ने ग्रामीणों को 'चिली डंक केक' बनाने के लिए 10 मशीनें भी मुहैया कराई हैं, ताकि वे इसे आसानी से बना सकें और फसलों को होने वाले नुकसान को कम कर सकें। इतना ही नहीं न्यूज़ संस्था ने इसके लिए कुछ लोगो को ट्रेंड भी किया है जो अब दूसरे लोंगों को भी इसकी तकनीक सिखा रहे हैं।

यह 2021 में गोरुमारा नेशनल पार्क, उत्तर पश्चिम बंगाल में हाथी को रेडियो कॉलर लगाने की तस्वीर है। तस्वीर साभार: सुब्रतो चौधरी

नेचर एनवायरमेंट एंड वाइल्ड लाइफ सोसाइटी के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिषेक ने कहा, "हमारा पूरा प्रोग्राम जर्मन कारपोरेशन के सहयोग से बिहार के वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के दो गांवों और कतर्नियाघाट के दस गांवों में चल रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य इंसानों और हाथी के बीच संघर्ष को प्रभावी ढंग से कम करना है।"

अभिषेक ने बताया कि दिन में ग्रामीण अपने खेतों में होते हैं, इसलिए हाथी से होने वाली घटनाएं कम होती हैं। लेकिन रात में 'गज मित्र' 5-5 की टोलियों में गांव के बाहर पहरा देते हैं। उन्होंने कहा, "जब हाथी आता है, तो वे सीटी बजाते हैं, जिससे गांव वाले भी चौकन्ने हो जाते हैं। कई बार शोर मचाकर हाथियों को भगाने में गांव वाले भी 'गज मित्रों' का सहयोग करते हैं।"

संस्था ने हाथी से प्रभावित इलाकों में सामुदायिक शौचालय व सोलर लाइट की भी व्यवस्था की है।

गज मित्र का हाथियों या फिर जंगल के किसी भी जानवर से कोई नुकसान न पहुंचे, इसके लिए इन्हें एनिमल डेटोरेंट नामक एक प्रकार का जैविक हथियार दिया जाता है। यह तीखी लाल मिर्च का स्प्रे है, जो हाथी जैसे विशाल जानवर पर भी तीस फिट की दूरी से काम कर जाता है। इससे जानवरों को कोई नुकसान नहीं होता लेकिन वो भाग जाते हैं। एनिमल डेटोरेंट के इस्तेमाल के लिए संस्था ने कड़े निर्देश दिए हुए हैं।

प्रभागीय वनाधिकारी बी शिव शंकर ने बताया कि कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग की 7 रेंजों में से 5 रेंजों - मोतीपुर, ककरहा, सुजौली, निशानगाढ़ा और कतर्नियाघाट- में 23 करोड़ रुपए की लागत से 75 किलोमीटर लंबी 8 फीट ऊंची फेंसिंग कराई जा रही है। उन्होंने कहा, "इस बाउंड्री से वन्यजीवों पर एक मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है। कूद कर जाना उनके स्वतंत्र विचरण में अवरोध डालता है। इस कारण अक्सर वे जंगल से बाहर जाने से हिचकिचाते हैं और घटनाएं भी कम होती हैं।"

हाथियों की अभी तक कोई गणना नहीं हुई है लेकिन प्रभागीय वनाधिकारी बी शिव शंकर के अनुसार, कतर्नियाघाट में करीब 150 से 200 हाथी, 60 से 70 तेंदुए और 59 बाघ मौजूद हैं। पिछले कुछ सालों में इन जानवरों और इंसानों के बीच संघर्ष बढ़ा है. जनवरी 2024 से अब तक 34 घटनाएं हुई हैं जिसमें 4 लोगों की मौत हो गई और 30 घायल हो गए। साल 2023-24 में 58 घटनाएं हुईं जिसमें 6 लोगों की मौत और 52 घायल हुए। 2022-23 में 75 घटनाएं दर्ज की गईं जिसमें 17 लोगों की मौत और 58 घायल हुए हैं। इन घटनाओं में ज्यादातर हमले तेंदुओं ने किए हैं, लेकिन बाघ, हाथी और मगरमच्छ के हमलों के भी मामले सामने आए हैं।

घटनाओं को कम करने के लिए वन विभाग ग्रामीणों का सहयोग भी चाहता है। प्रभागीय वनाधिकारी बी शिव शंकर ने सलाह दी कि अगर गन्ने की जगह हल्दी की पैदावार की जाए, तो भी इन मामलों में कुछ कमी आ सकती है। उन्होंने कहा, "गन्ने को जंगल की बड़ी घास समझकर तेंदुए वर्ष भर इसे अपना आवास बना लेते हैं। हल्दी की खेती में गन्ने से कम आमदनी नहीं है। हल्दी की खेती से तेंदुओं को छिपने की जगह नहीं मिलेगी, जिससे उनके हमलों में कमी आएगी।"

तेंदुओं से फसलों को होने वाले नुकसान को कम करने के लिए, उद्यान विभाग, गन्ना विभाग और विश्व प्रकृति कोष ने मिलकर मटेही गांव में एक पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत भी की थी। इसमें गन्ने के बीच में हल्दी की बुवाई कराई गई। वरिष्ठ उद्यान निरीक्षक आर.के. वर्मा ने बताया कि इस नई खेती के तरीके में किसानों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। इससे उनकी आमदनी बढ़ गई थी और गन्ने की पैदावार पर भी कोई असर नहीं पड़ा था।

उन्होंने आगे कहा, “लेकिन दुर्भाग्यवश यह प्रोजेक्ट सरकारी योजना नहीं थी, इसलिए इसे कोई फंड नहीं मिला और यह आगे नहीं बढ़ सका। यह प्रोजेक्ट तेंदुआ-मानव संघर्ष को कम करने के लिए एक अच्छा समाधान साबित हो सकता था, लेकिन फंडिंग की कमी के कारण अधूरा रह गया।”

अतिरिक्त योगदान संघप्रिया मौर्य द्वारा