प्रशिक्षण की कमी, असुरक्षा और मदद में देरी…ऑटोमोबाइल कंपनियों में काम करने वाली महिलाओं का दर्द कौन समझेगा?
महिला कर्मचारी लैंगिक वेतन असमानता, उचित प्रशिक्षण की कमी और दुर्घटना के बाद कानूनी रूप से हकदार सहायता तक पहुँचने में कठिनाई के कारण असुरक्षित हैं
चेतावनी: इस कहानी में चित्र ग्राफ़िक प्रकृति के हैं और पाठकों के लिए परेशान करने वाले हो सकते हैं।
फरीदाबाद/ बेंगलुरु: मूल रूप से राजस्थान के धौलपुर की रहने वालीं 37 वर्षीय प्रवासी श्रमिक बसंती पिछले सात महीनों से अपनी दिनचर्या को फिर से पटरी पर लाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। नवंबर 2023 में एक रविवार को उनके सुपरवाइजर ने उनसे फरीदाबाद में ऑटोमोबाइल पार्ट बनाने वाली फैक्ट्री में आने के लिए कहा। वह वहां बतौर पावर प्रेस ऑपरेटर काम करती थीं। उनका जाने का मन नहीं था। लेकिन बसंती से कहा गया कि अगर वह तत्काल ऑर्डर को पूरा करने में मदद नहीं करतीं तो उन्हें नौकरी से निकाल दिया जायेगा। यह वही कंपनी है जहां उन्होंने पिछले दो साल के दौरान हर दिन 10 घंटे काम किया था।
"जब मैं वहां पहुंची तो मैंने सुपरवाइजर को बताया कि मशीन की स्थिति ठीक नहीं है और यह पिछले छह महीने से ऐसी ही है। उसे आमतौर पर कोई दूसरा व्यक्ति चलाता था जो उस दिन छुट्टी पर था। दुर्घटना से पहले उस दिन मशीन से लगभग तीन बार मेरा हाथ कुचलने से बचा। लेकिन ऑर्डर पूरा करने के लिए मुझे इसे चलाने के लिए मजबूर होना पड़ा।” बसंती ने इंडियास्पेंड को बताया।
पावर प्रेस मशीन खराब हालात में था जिसकी वजह से उसमें बसंती का हाथ कुचल गया और उनके दोनों हाथ काटने पड़े। अब, वह खाने, नहाने और कपड़े पहनने के लिए परिवार के किसी सदस्य, आमतौर पर अपनी बेटी पर निर्भर हैं। "मैं बस इतना चाहती हूं कि मेरा हाथ [शल्य चिकित्सा द्वारा] फिर से लगाया जाए ताकि मैं अपना जीवन जी सकूं," बसंती कहती हैं।
मुनाफे वाले ऑटोमोबाइल सेक्टर के लिए ऐसी घटनाएं कोई अपवाद नहीं है। नागरिक समाज संगठन सेफ इन इंडिया फाउंडेशन (SII) की रिपोर्ट ‘क्रश्ड 2023’ के अनुसार 2016 से अब तक ऑटो सेक्टर में 5,000 से ज्यादा दुर्घटनाएं हुई हैं जहां औसतन मजदूरों को अपनी दो उंगलियां खोनी पड़ी हैं। ये घटनाएं 20 से ज्यादा ऑटोमोबाइल ब्रैंड या ओरिजिनल इक्विपमेंट निर्माताओं (OEM) की सप्लाई चेन में दर्ज की गई हैं। इनमें से ज्यादातर मजदूर, जिन्हें SII ने मेडिकल सहायता और पेंशन जैसी कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) की पात्रताओं तक पहुंचने में मदद की है, हरियाणा और महाराष्ट्र में हैं।
ऑटोमोटिव इंडस्ट्री का प्रतिनिधित्व करने वाली शीर्ष संस्था ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ACMA) के अनुसार 2023 में इंडस्ट्री सालाना 33% बढ़कर $70 बिलियन (5.6 लाख करोड़ रुपए) हो जाएगी जबकि OEM को ऑटो कंपोनेंट की आपूर्ति 40% बढ़ी है। बसंती को उस काम के लिए सिर्फ 10,000 रुपए (करीब 120 डॉलर) महीने मिलते थे जिसके लिए उन्हें कभी तकनीकी रूप से प्रशिक्षित नहीं किया गया था।
इंडियास्पेंड ने फरीदाबाद में ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान पाया कि प्रभावशाली लाभ और वृद्धि के बावजूद सप्लाई चेन के निचले स्तरों में कुल मिलाकर श्रमिकों की सुरक्षा, विशेष रूप से महिला श्रमिकों की अच्छी स्थिति में नहीं है। उनका शोषण किया जाता है। ज्यादातर प्रवासी महिला श्रमिक गरीब हैं उन्हें लैंगिक वेतन असमानता का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा निरक्षरता और पावर प्रेस चलाने के लिए उचित प्रशिक्षण ने मिलने की वजह से उन्हें और परेशानी का सामना करना पड़ता है। दुर्घटनाओं के बाद नौकरी के अवसरों की कमी, पारिवारिक दबाव और दुर्घटना के बाद कानूनी रूप से हकदार सहायता तक पहुँचने में कठिनाई के कारण वे इस क्षेत्र में और असुरक्षित हो जाती हैं।
श्रमिकों की सुरक्षा की अनदेखी और प्रशिक्षण की कमी
वर्ष 2021 में भारत के पंजीकृत कारखानों में 31 लाख से अधिक महिलाएं कार्यरत थीं। ये आंकड़े श्रम मंत्रालय की तकनीकी शाखा, फैक्ट्री सलाह सेवा और श्रम संस्थान महानिदेशालय (DGFASLI) के पास उपलब्ध नवीनतम आँकड़ों पर आधारित है जो प्रमुख बंदरगाहों के कारखानों और गोदी कार्यों में व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य (OSH) से संबंधित मामलों को देखती है। 2021 में हरियाणा के कारखानों में पाँच लाख से अधिक महिलाओं ने काम किया जो तमिलनाडु के बाद सबसे अधिक है।
DGFASLI राज्य के मुख्य कारखानों के निरीक्षकों और औद्योगिक सुरक्षा और स्वास्थ्य के निदेशकों से OSH आँकड़े एकत्र करता है। ये डेटा केवल पंजीकृत कारखानों का प्रतिनिधित्व करते हैं, हालाँकि भारत में लगभग 90% श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं। इसके लिए इंडियास्पेंड की जनवरी 2023 की रिपोर्ट देखी जा सकती है।
फरीदाबाद के बल्लभगढ़ में बसंती के एक कमरे के किराए के घर से थोड़ी दूर 32 वर्षीय श्यामवती पावर प्रेस ऑपरेटर थीं। वे एक कमरे में अपने दिहाड़ी मजदूर और तीन बच्चों के साथ रहती हैं। वे आज भी अपना हाथ ठीक होने का इंतजार कर रही हैं।
अप्रैल 2024 में श्यामवती का जीवन तब बदल गया जब प्रमुख ओईएम के ऑटोमोटिव कंपोनेंट सप्लायर के पावर प्रेस में उनका बायां हाथ कुचल गया। उनकी बाईं तर्जनी को छोड़कर जो सुन्न और स्थिर है, अन्य सभी अंग काटे गए थे और जून में जब इंडियास्पेंड ने उससे मुलाकात की थी तब तक वह ठीक नहीं हुई थी।
ऑटोमोबाइल उद्योग में धातु को काटने और आकार देने के लिए पावर प्रेस मशीन का उपयोग किया जाता है जिससे सामग्री का उत्पादन करने में श्रम और समय कम लगता है। SII के 2023 के विश्लेषण के आधार पर हरियाणा, महाराष्ट्र और उत्तराखंड में कम से कम दो-तिहाई चोटें पावर प्रेस से हैं और ज्यादातर खराब रखरखाव के कारण हैं। हरियाणा में, 2016 से कम से कम आधी चोटें पावर प्रेस के कारण थीं।
हरियाणा प्रमुख ऑटो सेक्टर केन्द्रों में से एक है और इसके फरीदाबाद, गुरुग्राम जिले ऑटोमोबाइल कंपोनेंट निर्माण के प्रमुख सेंटर हैं।
एक दशक से भी ज्यादा पहले राजस्थान के भरतपुर से फरीदाबाद आने के बाद उनके दिहाड़ी करने वाले पति को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ होने लगीं, तब से श्यामवती अपने परिवार की मुख्य कमाने वाली थीं। वह हर महीने 13,200 रुपए (करीब 160 डॉलर) कमाती थीं जो अन्य महिला ऑपरेटरों द्वारा कमाए जाने वाले वेतन से ज्यादा था।
"डॉक्टर कहते हैं कि वे ज्यादा कुछ नहीं कर सकते हैं," श्यामवती बताती हैं। उन्हें अपने दर्द को कम करने के लिए हर दिन चार गोलियां खानी पड़ती हैं।
दुर्घटना के तुरंत बाद उन्हें अप्रैल में चार दिनों के काम के लिए 2,700 रुपए का भुगतान किया गया था और फैक्ट्ररी के प्रतिनिधियों ने उन्हें सलाह दी थी कि वे कानूनी मामला चलाने के बजाय 10,000 रुपए का समझौता/मुआवजा लें जो उनके लिए वित्तीय बोझ होगा।
"मुझे नहीं लगता कि वे मुझे नौकरी देंगे। जब मैं उनसे मिलने गई तो उन्होंने एक गिलास पानी भी नहीं दिया।" असुरक्षित मशीन पर तयशुदा उत्पादन पूरा ना करने पर बसंती की तरह श्यामवती को भी कार्यस्थल पर अपमान का सामना करना पड़ता था। अंततः उनका हाथ अपंग हो गया।
वे कहती हैं, "जब मैं मशीन साफ कर रही थी तो मैंने देखा कि पावर प्रेस अपने आप काम करने लगी थी, जिसके बारे में मैंने तुरंत सुपरवाइजर को बताया।" "मुझे कहा गया कि अगर मैं काम नहीं करना चाहती तो घर चली जाऊं और मुझ पर ऐसी मशीन पर उत्पादन की गुणवत्ता सुनिश्चित करने का दबाव डाला गया।"
अब बिना किसी आय और 1 लाख रुपए से ज्यादा के कर्ज के कारण श्यामवती को अपने 12, 11 और 9 साल के तीन छोटे बच्चों को स्कूल से निकालना पड़ा। उन्होंने कहा कि वह और बच्चे अब 120 किमी दूर
अपनी बहन के साथ मथुरा में रहते हैं क्योंकि खाना बनाना और घर की दूसरी जिम्मेदारियां निभाना लगभग असंभव हो गया है। "मेरी बेटी मदद करने के लिए बहुत छोटी है और मेरे पति को यहां अकेले ही काम चलाना पड़ता है।" चिंतित श्यामवती कहती हैं।
महिला कार्यबल पर बढ़ता तनाव
बसंती और श्यामवती दोनों प्रवासी हैं और इन्हें ठेकेदारों के माध्यम से रोजगार मिला। एसआईआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस क्षेत्र में अधिकांश श्रमिक गैर-स्थायी भूमिकाओं में युवा प्रवासी हैं और उनके किसी श्रमिक संघ का हिस्सा होने की संभावना नहीं है।
भारत में महिला श्रम बल भागीदारी चिंता का विषय रही है। स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया (एसडब्ल्यूआई) 2023 की रिपोर्ट में कहा गया है कि विकास मंदी के दौरान महिलाओं के लिए कार्यबल भागीदारी दर बढ़ी। लेकिन अधिकांश वृद्धि स्वरोजगार में हुई।
इंडियास्पेंड ने जनवरी 2024 में अपनी रिपोर्ट में बताया कि औसतन भारतीय महिलाएं अवैतनिक घरेलू काम और देखभाल गतिविधियों में प्रति सप्ताह 44 घंटे से अधिक समय बिताती हैं। इसकी तुलना में पुरुष इन गतिविधियों पर प्रति सप्ताह केवल पांच घंटे से अधिक समय बिताते हैं।
दिल्ली के इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट में अर्थशास्त्री और विजिटिंग फैकल्टी निशा श्रीवास्तव कहती हैं कि ये दुर्घटनाओं को टाला जा सकता है। श्रमिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ऑटोमोबाइल क्षेत्र को बहुत अधिक खर्च नहीं करना पड़ेगा। "परिस्थितियाँ किसी भी श्रमिक के अनुकूल नहीं हैं और महिलाओं की स्थिति अपेक्षाकृत खराब है। मुझे लगता है कि यह हताशा ही है जो लोगों को ऐसी नौकरियों की ओर ले जाती है।" वे आगे कहती हैं।
वर्ष 2017 से 2021 के बीच भारत के पंजीकृत कारखानों में दुर्घटनाओं के कारण औसतन हर दिन 10 लोग घायल हुए और हर साल लगभग 3,800 दुर्घटनाएं हुईं। 2023 के अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के आंकड़ों के अनुसार 2019 में दुनिया भर में 39.5 करोड़ से अधिक श्रमिकों को काम के दौरान चोटें आईं।
श्रमिक आम तौर पर सहायक के रूप में काम शुरू करते हैं और पावर प्रेस ऑपरेटर की सहायता करते हैं। स्क्रैप हटाने और मशीन के टुकड़ों को लोड करने जैसे छोटे-मोटे काम करते हैं। बसंती और श्यामवती सहायक थीं जिन्होंने बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण के काम पर पावर प्रेस चलाना सीखा। श्यामवती ने हाई स्कूल की पढ़ाई की है जबकि बसंती स्कूल भी नहीं गई हैं। अक्सर, श्रमिक सहायक या प्रेस शॉप सहायक बनने के लिए शैक्षिक रूप से योग्य नहीं होते हैं जिसके लिए उन्हें आठवीं कक्षा उत्तीर्ण होना आवश्यक है। इंडियास्पेंड ने जिन महिलाओं से बात की, उनमें से अधिकांश ने कहा कि उन्होंने प्राथमिक विद्यालय पूरा नहीं किया है या स्कूल नहीं गई हैं।
दुर्घटनाओं की रिपोर्ट कम वर्ष 2017 से 2021 के बीच, DGFASLI ने भारत में 18,956 गैर-घातक चोटों के मामले दर्ज किये। गैर-घातक चोटों की संख्या 2020 से 1.2% घटकर 2021 में 2,803 हो गई। फरवरी 2024 में सूचना के अधिकार के तहत वर्ष 2023 तक के आंकड़े मांगे गये। लेकिन DGFASLI ने कहा कि जानकारी वेबसाइट पर उपलब्ध है जबकि वहां 1 जुलाई तक 2021 के बाद का डेटा नहीं है। इसके अलावा डेटा में लिंग-आधारित दुर्घटना की जानकारी नहीं है और RTI प्रतिक्रिया में कहा गया है कि ऐसा डेटा उपलब्ध नहीं है। जो डेटा उपलब्ध है भी तो उस पर भी रिपोर्ट कम किया गया है। उदाहरण के लिए, ‘क्रश्ड 2023’ ने बताया कि एसआईआई ने 2021 में हरियाणा में 803 घायल श्रमिकों की सहायता की। हालांकि डीजीएफएएसएलआई के आंकड़े 24 दिखाते हैं जो 2017 और 2021 के बीच सबसे कम है। हालांकि डीजीएफएएसएलआई के पास डेटा उपलब्ध नहीं है। लेकिन एसआईआई के 2021 के आंकड़ों की तुलना में 2022 और 2023 में श्रमिकों में क्रमशः 27% और 55% की वृद्धि दर्ज की है। इसके अलावा ESIC के आंकड़ों से पता चलता है कि 2021 में फरीदाबाद में 712,285 कर्मचारी संभावित रूप से काम करने के दौरान चोटिल हो गये। अगले साल यह आंकड़ा 13% बढ़कर 801,250 हो गया। पूरे हरियाणा (फरीदाबाद, गुरुग्राम और करनाल) में 20 लाख कर्मचारी घायल हुए। पूरे भारत में यह आंकड़ा 29 लाख था। ESIC के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 2021 में फरीदाबाद और गुरुग्राम से स्थायी विकलांगता लाभ की आवश्यकता वाले श्रमिकों के 678 नए मामले दर्ज किए गए। ये संख्याएँ आदर्श रूप से DGFASLI पर भी दिखाई देनी चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं होता है। 2022 में ESIC डेटा के अनुसार 696 मामले थे। SII में वकालत, श्रमिक सुरक्षा और ESIC पहल के प्रमुख वीएन सरोजा ने कहा कि सरकारी प्रणालियों के पास डेटा है। लेकिन वे अलग-अलग हैं और एक-दूसरे से जुड़े हुए नहीं हैं। "जबकि श्रमिक घायल हो रहे हैं और उन्हें स्थायी विकलांगता लाभ सहित ईएसआई उपचार मिल रहा है। सभी दुर्घटनाएं जो हम देखते हैं, चोटों के आधार पर स्पष्ट रूप से डीजीएफएएसएलआई या श्रम मंत्रालय द्वारा दर्ज नहीं की जा रही हैं।" वे आगे बातते हैं। सरोजा ने आगे बताया कि औद्योगिक सुरक्षा और स्वास्थ्य प्रभाग के राज्य अधिकारियों के अनुसार जब ईएसआई डेटा साझा करता है तो इसमें उस ठेकेदार का नाम होता है जिसके माध्यम से श्रमिकों को रोजगार मिला और कुछ का दावा है कि वे फैक्ट्री दुर्घटनाएं नहीं हैं। दुर्घटनाओं का वर्गीकरण नहीं हो पाता जिसका फायदा उठाया जाता है। निशा श्रीवास्तव को लगता है कि पारदर्शिता और त्वरित कार्रवाई के लिए डेटा महत्वपूर्ण हैं। वह ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम जैसे पोर्टल का सुझाव देती हैं जो जहां से नियमित रूप से लाखों श्रमिकों का डेटा मिल जाता है। "लेकिन डीजीएफएएसएलआई से दुर्घटनाओं के बारे में शायद ही कोई डेटा मिले। जो है भी तो अविश्वसनीय है। ऐसे में एक ऐसा पोर्टल बनाया जाना चाहिए जहां औद्योगिक दुर्घटनाओं पर वास्तविक और समय पर डेटा मिले।" डीजीएफएएसएलआई के आंकड़ों से पता चलता है कि एक दशक से 2021 तक दर्ज की गई लगभग 125,000 चोटों में से 14,332 मशीनरी के कारण थीं - यानी इस समय अवधि के दौरान हुई दुर्घटनाओं में नौ चोटें ही रिपोर्ट की गईं। लेकिन 2021 में फैक्ट्रीज़ एक्ट 1948 की धारा 92 (अपराधों के लिए सामान्य दंड) और 96 ए (खतरनाक प्रक्रिया से संबंधित प्रावधानों के उल्लंघन के लिए दंड) के तहत लगभग 9,000 अभियोग चलाए गए। इसके अलावा 47,984 लंबित मामले भी थे। दोष सिद्ध होने के बाद 5,012 में से केवल आठ में कारावास हुई जबकि 6.5 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया। |
इंडियास्पेंड ने श्रमिक सुरक्षा में सुधार, महिला श्रमिकों और वेतन संबंधी समस्याओं के लिए सहायता, ऑटोमोबाइल सप्लाई चेन में दुर्घटनाओं पर नजर रखने और घायल श्रमिकों के लिए सरकार की सामाजिक सुरक्षा पात्रता तक पहुँच जैसे मुद्दों पर कमेंट के लिए श्रम मंत्रालय और हरियाणा के श्रम आयुक्त को लिखा है। कोई जवाब आता है तो उसे खबर में अपडेट किया जायेगा।
सप्लाई चेन और सुरक्षा नीति का चित्रण
"भारत में ऑटोमोबाइल उद्योग की सप्लाई चेन बहुत विस्तृत और गहरी है। उत्पादन मॉडल में श्रम सहित कम और सस्ती लागत की मांग की जाती है," गुड़गांव के प्रबंधन विकास संस्थान (एमडीआई) में श्रम अर्थशास्त्री और सहायक संकाय श्याम सुंदर ने कहा। "जैसे-जैसे हम सप्लाई चेन में नीचे जाते हैं, ज़्यादातर नियम कमजोर होते जाते हैं।"
नवंबर 2023 में इंडियास्पेंड के साथ एक साक्षात्कार में SII के सह-संस्थापक और सीईओ संदीप सचदेवा ने कहा था कि OEM को इन चोटों को रोकने के लिए न्यूनतम आवश्यक कार्रवाइयों के कार्यान्वयन को प्राथमिकता देनी चाहिए, जैसे कि कम से कम टियर 3 आपूर्तिकर्ताओं, यानी आपूर्तिकर्ताओं की तीन स्तरों पर मैपिंग होनी चाहिए। साथ ही टियर 1, टियर 2 और टियर 3 आपूर्तिकर्ताओं के लिए गुणवत्ता ऑडिट और इन शिकायतों के लिए अलग से व्यवस्था होनी चाहिए।
भारत ने 2021 तक मौजूदा श्रम नियमों को आधुनिक और सरल बनाने के लिए चार लेबर कोड पारित कीं। हालाँकि, नियम अभी भी सभी राज्यों द्वारा तैयार नहीं किए गए हैं। जून 2024 की बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने राष्ट्रव्यापी रोल आउट में मदद के लिए राज्यों के लिए एक कार्यशाला आयोजित करने की योजना बनाई है। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो ट्रेड यूनियनें लेबर कोड को खत्म करना चाहती हैं।
हरियाणा श्रम विभाग द्वारा प्रकाशित व्यवसाय सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति (OSH और WC) कोड 2020 के तहत मसौदा नियमों में पावर प्रेस की फिटनेस, इसकी सुरक्षा और संचालन सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न आवश्यकताओं का उल्लेख किया गया है और सुरक्षा संबंधी समस्याएं पाए जाने पर कार्रवाई की जानी है। DGFASLI पर प्रकाशित फैक्ट्री एक्ट 1948 के मॉडल नियमों में पावर प्रेस को संचालित करने के लिए इसी तरह की आवश्यकताओं की मांग की गई है।
मई 2020 में कोविड-19 जब चरम पर था, तब पावर प्रेस संचालित करने वाले उद्योगों को महाराष्ट्र सरकार द्वारा जारी पावर प्रेस संचालन दिशा-निर्देशों के एक पत्र में कहा गया कि ऐसी मशीनों पर काम करने वाले श्रमिकों को इसे संचालित करने के खतरों के बारे में बताया जाना चाहिए। इसमें कहा गया कि किसी भी पावर प्रेस मशीन पर काम शुरू करने से पहले काम करने के सुरक्षित तरीकों के बारे में बताया जाना चाहिए।
श्रमिकों के अनुभव के आधार पर इन नियमों का नियमित रूप से उल्लंघन होता है और सुरक्षा की उपेक्षा की जाती है।
सुंदर ने कहा कि विक्रेता विभिन्न क्षेत्रों और टियर-2 (ऑटो कंपोनेंट बनाने वाली छोटी इकाइयां) से परे फैले हुए हैं जिसके कारण ओईएम को यह पता नहीं चल सकता है कि इसे कहां से खरीदा गया है। "उत्पादन की कोई मैपिंग नहीं है जिसका अर्थ है कि श्रम कानून विनियमन का कोई सवाल ही नहीं है। मैपिंग रैखिक नहीं है। यानी इसे OEM के लिए टियर 1 और दूसरे के लिए टियर 2 या 3 से प्राप्त किया जा सकता है।
सुरक्षा प्रणाली में चूक की निगरानी सुनिश्चित करने और चोटों, मौतों आदि मुद्दों के रिकॉर्ड की जांच करने के वाले फैक्ट्री इंस्पेक्टरों की संख्या भी अपर्याप्त है। 2021 में इंस्पेक्टरों के तीन स्वीकृत पदों में से एक खाली रहा। हर 417 चालू कारखानों के लिए एक फैक्ट्री इंस्पेक्टर था और हरियाणा में हर 604 कार्यरत कारखानों के लिए एक।
कुछ श्रमिकों ने बताया कि सुरक्षा ऑडिट आमतौर पर उनकी उपस्थिति में नहीं होते है, इस वजह से पारदर्शिता प्रभावित होती है। ‘क्रश्ड’ रिपोर्ट में कहा गया है कि पावर प्रेस मशीनों का संचालन करने वाले आधे से अधिक घायल श्रमिकों ने बताया कि या तो उनकी उपस्थिति में ऑडिट नहीं हुए, या उन्हें ऑडिट के दौरान जाने के लिए कहा गया।
इससे पारदर्शिता प्रभावित होती है, क्योंकि पावर प्रेस जैसी मशीनों की सुरक्षा और प्रदर्शन के बारे में विशेष रूप से शिकायत करने की कोई दूसरी सुविधा नहीं है।
एसआईआई में एडवोकेसी, श्रमिक सुरक्षा और ईएसआईसी पहल की प्रमुख वीएन सरोजा ने कहा कि ओईएम उन कारखानों को ब्लैकलिस्ट नहीं करते हैं जहां दुर्घटनाएं बार-बार होती हैं, क्योंकि सप्लाई चेन इतनी सघन है कि कंपोनेंट आपूर्तिकर्ता को बदलना तुरंत संभव नहीं हो सकता है।
"सरकार को उन हॉट स्पॉट की पहचान करने के लिए प्रौद्योगिकी और डेटा का उपयोग करना चाहिए, जहां दुर्घटनाएं होती हैं और सभी कारखानों को समान महत्व देने के बजाय खराब तरीके से संचालित कारखानों में निरीक्षण की संभावना बढ़ाने के लिए डेटा का उपयोग करना चाहिए।" उन्होंने आगे कहा।
‘हम पुरुषों से ज्यादा काम करते हैं’
इंडियास्पेंड ने कई महिला कर्मचारियों से बात की जिन्हें पावर प्रेस मशीनों के कारण चोटें आई थीं। उनमें से कोई भी इन मशीनों को चलाने के लिए प्रशिक्षित या शैक्षणिक रूप से योग्य नहीं थी। उन्होंने ऑपरेटरों की सहायता करने वाले हेल्पर के रूप में शुरुआत की। आठ घंटे काम करने के लिए उन्हें 6,000 से 8,000 रुपए प्रति माह मिलते थे और उन्हें अप्रशिक्षित के साथ ऑपरेटर बनने के लिए मजबूर होना पड़ा। एक ऐसी स्थिति जिसे उन्होंने इसलिए स्वीकार किया क्योंकि पैसा मिलता था।
केंद्र सरकार की भारत में महिला और पुरुष 2022 रिपोर्ट के अनुसार भारत में शहरी पुरुष प्लांट, मशीन ऑपरेटर और असेंबलर औसतन शहरी महिला कर्मचारियों की तुलना में 15 रुपये प्रति घंटे अधिक कमाते हैं। महिलाएं 43 रुपए प्रति घंटे कमाती हैं।
भारत में दुनिया में सबसे व्यापक लिंग-आधारित वेतन असमानता है। ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2024 के अनुसार आर्थिक भागीदारी और अवसर के मामले में भारत 146 देशों में 142वें स्थान पर है। आर्थिक समानता के मामले में यह पाकिस्तान, ईरान, सूडान और बांग्लादेश से सिर्फ थोड़ा ऊपर है। कुल मिलाकर, भारत 2023 से दो पायदान नीचे है।
लैंगिक वेतन असमानता हर जगह मौजूद है, निशा श्रीवास्तव कहती हैं। "यहां त्रासदी दुर्घटनाएं और उनका प्रभाव है। अन्य क्षेत्रों में ऐसा नहीं हो सकता है।"
अप्रैल 2024 में 34 वर्षीय कविता को तब नई कंपनी में काम शुरू किए सिर्फ एक महीना ही हुआ था, जब पावर प्रेस मशीन में उनकी दो उंगलियां कुचल गई थीं। अपने पति से अलग होने के बाद से उन्हें घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ा। कविता पांच साल से ज्यादा समय से अपनी मां के साथ किराए के कमरे में रह रही हैं। हर महीने उनके वेतन का एक चौथाई से ज्यादा हिस्सा किराए और बिजली पर खर्च हो जाता है। उन्होंने कहा कि उन्हें ठेकेदार से एक महीने का वेतन मिला है और उन्हें उम्मीद है कि वे उन्हें तब तक वेतन देंगे, जब तक वे ठीक नहीं हो जाते। हालाँकि कंपनी ने उन्हें काम पर लौटने के लिए कहा है। लेकिन यह एक हेल्पर की नौकरी है जिसमें कम वेतन मिलता है।
कविता, जो कभी स्कूल नहीं गई हैं, कहती हैं, "मैंने 10,500 रुपए के मासिक वेतन पर काम शुरू किया था। मेरे पास पारिवारिक मजबूरियां थीं और मुझे नौकरी की जरूरत थी। पुरुषों को महिलाओं से ज्यादा मिलता है क्योंकि वे कहते हैं कि महिलाएं समय बरबाद करती हैं। वास्तव में हम पुरुषों से ज्यादा [काम] करते हैं।”
वर्ष 2023 SWI रिपोर्ट में कहा गया है कि औसतन वेतनभोगी काम में महिलाएं पुरुषों की तुलना में 76% कमाती हैं जो स्व-रोजगार के लिए सिर्फ 40% रह जाती है। कुछ महिला कर्मचारियों ने कहा कि पुरुषों को पावर प्रेस में सेटिंग डाई (धातु को काटने के लिए एक विशेष उपकरण) या भारी भागों को उठाने का काम करना पड़ सकता है जो ज्यादा मेहनत का काम है। लेकिन महिलाओं को समान प्रकार के काम और उत्पादन आवश्यकताओं के लिए कम भुगतान करने का यह कोई वैध कारण नहीं है।
SII के फरीदाबाद केंद्र में एक फील्ड एग्जीक्यूटिव सीमा शर्मा ने कहा कि पुरुष और महिला दोनों कर्मचारियों की समस्याएं समान हैं। लेकिन दबाव - काम और परिवार - महिलाओं पर ज्यादा है। “अधिक काम करने के बावजूद महिलाओं को कम वेतन मिलता है। कई महिलाएं अपने अधिकारों के लिए नहीं लड़ पाती हैं क्योंकि वे [दुर्घटनाओं के बाद] दूसरी नौकरी नहीं ढूँढ पाती हैं और इसका असर उनके परिवार पर पड़ता है।”
इंडियास्पेंड ने जिन महिला श्रमिकों से बात की, उन्होंने बताया कि वे प्रतिदिन आठ घंटे से अधिक और सप्ताह में 48 घंटे से अधिक काम करती हैं जो OSH कोड 2020 के तहत निर्धारित सीमा से अधिक है। अधिकांश ने कहा कि उन्हें बिना ओवरटाइम वेतन के घंटे के हिसाब से भुगतान किया जाता है। फैक्ट्रीज़ एक्ट, 1948 के अनुसार, श्रमिक दैनिक मजदूरी दरों से दोगुना ओवरटाइम वेतन पाने के हकदार हैं।
SII की क्रश्ड 2023 रिपोर्ट में कहा गया है कि घायल श्रमिकों में से दो-तिहाई ने सप्ताह में 60 घंटे से अधिक काम किया है और 26% ने 48 घंटे से अधिक काम किया है। सुंदर ने बताया, "समान काम के लिए समान मजदूरी का भुगतान न करना एक ऐतिहासिक बीमारी है।" लिंग आधारित मजदूरी का अंतर सबसे उन्नत उद्योगों में मौजूद है न कि केवल उत्पादन के निचले स्तरों में और यह सभी उद्योगों में है। भले ही समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 है जिसके तहत कंपनियों को समान काम के लिए भुगतान करना आवश्यक है। लेकिन यह एक ऐसा कानून है जिस पर सबसे कम चर्चा होती है। लेकिन इसका सबसे अधिक शोषण किया जाता है।
सहानुभूति की कमी और दुर्घटना के बाद उपचार न मिलना
जिन श्रमिकों ने अपने अंग खो दिए हैं उनके लिए भविष्य अंधकारमय लगता है। उन्होंने कहा कि अब उन्हें अन्य कारखानों में काम नहीं मिल पप रहा। ठेकेदार उन्हें काम पर रखने से पहले उनके हाथ और पैर की चोटों की जांच करते हैं जिससे सभी श्रमिकों के लिए अवसर सीमित हो जाते हैं। खासकर महिला श्रमिकों को ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है क्योंकि उनकी नेटवर्किंग भी कमजोर होती है।
दुर्घटना के तुरंत बाद श्रमिकों को ESIC के तहत चिकित्सा अधिकारों का लाभ उठाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। ESIC के तहत बीमित व्यक्ति और उनके परिवार को बीमारी, मातृत्व, विकलांगता आदि के दौरान चिकित्सा देखभाल सुविधा मिलती है।
हरियाणा में तीन में से दो श्रमिकों ने कहा कि उन्हें दुर्घटनाओं के बाद अपना ESIC ई-पहचान (पहचान) कार्ड मिला जबकि महाराष्ट्र में 75% से अधिक ने ऐसा कहा।
ESIC कारखानों और सड़क परिवहन, होटल, रेस्तरां आदि जैसे अन्य प्रतिष्ठानों पर लागू होता है जहाँ 10 या अधिक व्यक्ति कार्यरत हैं। 21,000 रुपए प्रति माह तक वेतन पाने वाले कर्मचारी ESI अधिनियम के तहत सामाजिक सुरक्षा कवर के हकदार हैं।
45 वर्षीय सुचिता सैनी एक पावर प्रेस ऑपरेटर हैं, जिन्होंने सातवीं कक्षा तक पढ़ाई की है। वह 17 साल पहले बिहार के छपरा से अपनी चार बेटियों और एक फैक्ट्री में हेल्पर पति के साथ फरीदाबाद आई थीं। 2022 में एक पावर प्रेस दुर्घटना में उन्होंने अपनी तीन अंगुलियां खो दीं। यह एक ऐसी मशीन पर था जिसका ठीक से रखरखाव नहीं किया गया था।
फैक्ट्री मालिक ने सैनी को उसके काम से हटा दिया, इसका उन्होंने विरोध भी किया। उनका परिवार मुख्य रूप से सैनी की 10,500 रुपए की मासिक आय से चलता है।
दुर्घटना के बाद उन्हें ईएसआई अस्पताल के बजाय "दो खाटों वाली" एक निजी डिस्पेंसरी में ले जाया गया। "फैक्ट्री मुझसे मेरे पति का ईएसआई कार्ड लाने के लिए कह रही थी," वह कहती हैं। "जब मैं फैक्ट्री में [पावर] प्रेस ऑपरेटर हूँ तो मुझे उनका कार्ड क्यों मिलेगा? मैंने मांग की कि मुझे इलाज के लिए ईएसआई अस्पताल ले जाया जाए।" उन्होंने कहा कि वहां कोई व्यवस्था नहीं है और दुर्घटनाएँ और भी हुई हैं।
कंपनी को दुर्घटना रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए जिसे ईएसआई को देना होता है। लेकिन अक्सर ऐसा नहीं होता है जिसके कारण अस्पताल में उपचार में देरी होती है। कंपनी को दुर्घटना की रिपोर्ट बनाकर 24 घंटे बाद अस्पताल में जमा करना होता है। इसमें बताना होता है कि दुर्घटना कब, कैसे और कहां हुई। यह अस्थायी और स्थायी विकलांगता के बाद मिलने वाले लाभों में मदद करता है जो वेतन का 90% होता है।
“स्थायी विकलांगता पात्रता को ईएसआई मेडिकल बोर्ड अंतिम रूप देता है और कमाई क्षमता के नुकसान की सीमा के आधार पर प्रमाणित करता है।” सरोजा ने बताया। "नियोक्ता द्वारा तैयार की गई दुर्घटना रिपोर्ट में आदर्श रूप से दुर्घटना का स्थान होता है जिसका अर्थ है कि श्रम विभाग के तहत राज्य औद्योगिक सुरक्षा और स्वास्थ्य प्रभाग को दुर्घटनाओं के बारे में पता होना चाहिए। जबकि ईएसआई डेटा उपचार को दर्शा सकता है। डीजीएफएएसएलआई जो श्रम मंत्रालय के अंतर्गत आता है, के पास समान डेटा नहीं हो सकता है।"
सैनी को ईएसआई के माध्यम से चिकित्सा आवश्यकताओं के लिए 24,000 रुपए मिले हैं, जबकि दुर्घटना से पहले उनका वेतन 11,000 रुपए था जिसे घटाकर 10,500 रुपए कर दिया गया है। "हमें वेतन पर्ची नहीं मिलती है। लेकिन हम जानते हैं कि ईएसआई अंशदान में कटौती की जाती है क्योंकि मेरे पास मैसेज आते हैं।" सैनी की मित्र सविता देवी 36 वर्षीय प्रेस ऑपरेटर हैं इस बात से नाराज हैं कि जिस ऑटो कंपोनेंट यूनिटकंपनी के लिए वह काम करती हैं, उन्होंने दुर्घटना के समय उनका ईएसआई कार्ड नहीं बनाया था। दुर्घटना में उनकी बाईं तर्जनी उंगली चली गई थी। जब उन्होंने आखिरकार कार्ड बनाया तो उन्होंने जानकारी गलत कर दी। सही विवरण के बिना वह हरियाणा सरकार की राज्य विकलांगता पेंशन से 3,000 रुपए प्रति माह सहित विकलांगता पात्रता और पेंशन का लाभ नहीं उठा सकतीं।
बिहार के शेखपुरा की प्रवासी मजदूर सविता कहती हैं, "मुझे अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ रहा है।" "मैं देखना चाहती हूँ कि वे [मालिक] मुझे मेरा हक दिए बिना कैसे बाहर निकालेंगे। अपने हक के लिए लड़ते रहेंगे।" बसंती ने अपने हाथों की सर्जरी के लिए अपनी कंपनी से मदद की उम्मीद खो दी है और उनसे लड़ने की ताकत पाने के लिए संघर्ष कर रही है। "मैंने उनसे एकमुश्त पैसा ट्रांसफर करने के लिए कहा जो उन्होंने किया। लेकिन न तो ठेकेदार और न ही मालिक ने मेरी सर्जरी के बारे में कोई चिंता की। मुझे उनसे कोई उम्मीद नहीं है।"
ऑटो सेक्टर सप्लाई चेन में सुरक्षा को बेहतर बनाने के लिए विशेषज्ञों/एसआईआई द्वारा सुझाई गई कुछ सिफारिशें
ओईएम को बड़ी सप्लाई चेन में सुरक्षा के लिए जवाबदेह और जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए
दुर्घटना रिपोर्टिंग सिस्टममें सुधार किया जाना चाहिए, जिसमें श्रमिकों को घटनाओं और सुरक्षा चूक की रिपोर्ट करने में मदद करने के लिए गोपनीय हेल्पलाइन शामिल हैं
मशीन ऑपरेटरों के प्रशिक्षण और सुरक्षा ऑडिट में सुधार करें और नियमित कारखाना निरीक्षण सुनिश्चित करें
कारखानों में दुर्घटनाओं और मौतों पर एक मजबूत डेटा पोर्टल बनाएं
कर्मचारियों की प्रतिक्रिया सुनने के लिए गोपनीय शिकायत निवारण तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए
कारखानों में सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करने वाले नियोक्ताओं को दंडित करें और उन पर मुकदमा चलाएं
जवाबदेही और श्रमिकों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए गहरी ऑटो सेक्टर सप्लाई चेन का मानचित्र बनाएं
ईएसआईसी कार्यालयों द्वारा डीजीएफएएसएलआई और राज्य श्रम प्रभागों को कारखानों या अन्य कार्यस्थलों में दुर्घटनाओं की नियमित रिपोर्टिंग की व्यवस्था हो ताकि बार-बार अपराध करने वालों की निगरानी और सुधार हो सके।