लोकसभा चुनाव और गन्ना पॉलिटिक्स...किसके हिस्से आएगी गन्ने की मिठास?
लोकसभा चुनाव 2024 का बिगुल बज चुका है। 19 अप्रैल को पहले चरण का मतदान होगा। इस चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों पर भी वोट डाले जाएंगे जिन्हें गन्ना बेल्ट कहा जाता है। प्रदेश के लगभग 30 लाख किसान गन्ने की खेती करते हैं। ऐसे में वे कई सीटों पर जीत-हार का कारण बन सकते हैं। प्रदेश सरकार ने चुनाव से ठीक पहले गन्ना मूल्य में बढ़ोतरी का ऐलान कर दिया। लेकिन क्या ये काफी हैं? पढ़िये पूरी रिपोर्ट
लखनऊ। “चुनावी साल है। हमें तो उम्मीद थी कि सरकार गन्ना की कीमत 50 रुपए से ज्यादा बढ़ाएगी। लेकिन इस बार भी हमें छला गया। लागत के हिसाब से 20 रुपए की बढ़ोतरी बहुत कम है।” किसान बंटी तोमर नाराजगी व्यक्त करते हैं।
गन्ना उत्पादन और रकबा के मामले में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार ने 18 फरवरी 2024 को पेराई सत्र 2023-24 (अक्टूबर 2023-सितंबर 2024) के लिए गन्ने की सभी किस्मों का समर्थन मूल्य (राज्य समर्थन मूल्य SAP) 20 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ाने की घोषणा की जिसके बाद गन्ने की अगेती प्रजातियों का मूल्य 370 रुपए प्रति क्विंटल, सामान्य प्रजाति का 360 रुपए और अनुपयुक्त प्रजाति का मूल्य 355 रुपए प्रति क्विंटल हो गया है। लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हुई इस बढ़ोतरी से गन्ना बेल्ट के किसान कितना खुश हैं?
बंटी इस बढ़ोतरी को मामूली करार देते हुए कहते हैं, “प्रदेश में पिछले सात साल से यही सरकार है। इन वर्षों में गन्ने की कीमत महज 55 रुपए बढ़ी है। इसकी अपेक्षा चीनी की कीमत हर साल बढ़ रही। लेकिन प्रदेश सरकार ने सात साल में तीन बार ही कीमत बढ़ाई। डीजल महंगा हो गया, मजदूरी बढ़ गई, गन्ने की खेती की लागत हर साल बढ़ रही। उस हिसाब से हमें कीमत नहीं मिल रही। कीमत जब 400 रुपए से ज्यादा होगी, तब जाकर हमें फायदा होगा।”
उत्तर प्रदेश सरकार की घोषणा के कुछ दिनों बाद ही केंद्र सरकार ने गन्ना खरीद की कीमत (उचित एवं लाभकारी मूल्य FRP) में आठ फीसदी की बढ़ोतरी को मंजूरी दे दी। इसके तहत कैबिनेट ने गन्ना खरीद की कीमत को 315 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 340 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया। इस तरह गन्ने की कीमत 25 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ी है।
हालांकि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक और उत्तराखंड जैसे राज्यों के किसानों को इसका ज्यादा फायदा नहीं मिलेगा क्योंकि इन राज्यों में गन्ना किसानों के लिए एसएपी यानी राज्य समर्थन मूल्य का प्रावधान है। उत्तर प्रदेश में गन्ने का समर्थन मूल्य केंद्र सरकार की दर से ज्यादा है। लेकिन हरियाणा से कम है जहां की राज्य सरकार ने नवंबर 2023 में गन्ने का समर्थन मूल्य 14 रुपए बढ़ाने का ऐलान किया था और तत्कालनी मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने वादा किया था अगले साल कीमत 400 रुपए प्रति क्विंटल तक कर दी जायेगी। पंजाब में गन्ने का मूल्य 391 रुपए तक है। राज्य सरकार ने दिसंबर 2013 में 11 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ाने का ऐलान किया था।
देश में लगभग 49 लाख हेक्टेयर भूमि पर गन्ने की खेती होती है। इसमें अकेले उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 45% से ज्यादा है। क्षेत्र और उत्पादन के मामले में महाराष्ट्र और कर्नाटक क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। उत्तर प्रदेश गन्ना विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में लगभग 30 लाख किसान गन्ने की खेती से जुड़े हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को गन्ने का गढ़ कहा जाता है।
“गन्ने की छिलाई के लिए प्रति क्विंटल 70 रुपए, सेंटर तक पहुंचाने के लिए 30-40 रुपए प्रति क्विंटल खर्च आता है। बीज, खाद, पानी, दवा आदि का खर्च अलग है। छुट्टा पशु, बंदर जैसे जानवार नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे में हमारे हिस्से बहुत कुछ नहीं आता। पंजाब की तरह गन्ने का दाम हमारे यहां भी 400 रुपए होना चाहिए। कीमत हर साल महंगाई के हिसाब बढ़ेगी तभी गन्ने की खेती से मुनाफा होगा। सरकार ने चुनाव देखते हुए कीमत बढ़ा तो दी है। लेकिन इससे बहुत ज्यादा फायदा नहीं होने वाला है।” पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर में रहने वाले किसान अरविंद शर्मा यह भी दावा करते हैं कि चुनाव को देखते हुए सरकार ने कीमत बढ़ा दी है। अब सरकार अगले चुनाव का इंतजार करेगी।
किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत का कहना है कि मात्र 20 रुपए बढ़ने से किसान निराश हैं। प्रदेश का किसान 400 रुपए से अधिक गन्ना मूल्य घोषित होने की आशा कर रहे थे, क्योंकि खेती पर प्रतिदिन खर्च बढ़ता जा रहा है।
किसान मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक वीएम सिंह कहते हैं, “सरकार ने चुनावी वर्ष में केवल चीनी मिलों को खुश किया है। किसानों को इससे कोई फायदा नहीं होने वाला। सरकार के गन्ना अनुसंधान संस्थानों का खुद कहना है कि गन्ना उत्पादन की प्रति क्विंटल लागत 300 से 325 रुपए के बीच है और सरकार ने वादा किया है कि उत्पादन लागत पर कम से कम 50% लाभ किसानों को मिलेगा। इस हिसाब से गन्ने का एसएपी 450 और 500 रुपए के बीच होना चाहिए थी।”
सिंह ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि पिछले दो वर्षों में उर्वरक, कीटनाशक, डीजल और मजदूरी की दरों में 50% तक की बढ़ोतरी हुई है। “गन्ने की खेती से किसानों को लगातार नुकसान हो रहा। यही वजह है कि नयी पीढ़ी इस पेशे से मुंह मोड़ रही। युवा किसान बड़े पैमाने पर नौकरी की तलाश में पलायन कर रहे हैं। सरकारों को इस ओर भी गंभीरता से देखने की जरूरत है।” सिंह आगे कहते हैं।
13 साल में 160 रुपए की बढ़ोतरी
यह तीसरा मौका है जब 2017 के बाद योगी सरकार ने गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाया है। 2017 में सरकार बनने के बाद बीजेपी सरकार ने पहली बार 10 रुपए प्रति क्विंटल की वृद्धि की थी। इसके बाद 2022 विधानसभा चुनाव से पहले 2021 में गन्ने के मूल्य में 25 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी हुई थी। इस तरह देखा जाए तो पिछले सात सालों में योगी सरकार ने गन्ने का समर्थन मूल्य 55 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ाया है।
इससे पहले समाजवादी पार्टी की सरकार ने अपने आठ वर्षों के कार्यकाल में कुल 95 रुपए गन्ना मूल्य में वृद्धि की थी। वर्ष 2012 में ही सपा की ओर से गन्ना मूल्य 250 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 290 किया गया था। इसके बाद 290 में 25 रुपए और बढ़ाए गए। वहीं, बसपा सरकार की बात करें तो उसकी ओर से अपने पूरे कार्यकाल में 120 रुपये की वृद्धि गन्ना मूल्य में की गई।
वहीं अगर अगर पिछले 13 वर्ष की बात करें तो इस दौरान गन्ना की कीमत 140 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ी है।
किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक के प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक का कहना है कि सरकार को इस साल मूल्य में ज्यादा बढ़ोतरी करनी चाहिए थी क्योंकि आपदा ने किसानों की कमर तोड़ दी है। उत्पादन कम हो रहा। ऐसे में हम सरकार से विशेष राहत की उम्मीद कर रहे थे। वहीं वीएम सिंह कहते हैं कि अब समय आ गया है कि किसान एकजुट होकर किसान बिरादरी बनाएं तभी चुनाव के समय अपनी ताकत दियाा पाएंगे और अपने हक की लड़ाई को अंजाम तक पहुंचा पाएंगे।
भुगतान में सुधार, लेकिन और सुधार की जरूरत!
मुजफ्फनगर के आखलोरा गांव में रहने वाले 67 वर्षीय गन्ना किसान कृष्ण कुमार त्यागी कहते हैं कि बात अगर भुगतान की करें तो पहले से सुधार हुआ है। लेकिन अभी भी पूरा पैसा लेने के लिए महीनों का इंतजार करना पड़ता है। “सरकार भले दावा करती है कि चीनी मिल 14 दिनों के अंदर भुगतान कर देते हैं। लेकिन धरातल पर सच्चाई इससे कोसो दूर है। मेरा ही पिछले सत्र का लगभग 50 हजार रुपए रुका हुआ है। अब तो नयी फसल लग रही है। अब ये पैसा अगले सत्र में ही मिलेगा।”
इसी गांव के रहने पीयूष कुमार अब 2019 तक 30 बीघा खेत में गन्ना लगाते थे। लेकिन अब 10 बीघा में ही गन्ना लगा रहे। बाकी के खेत में धान, गेहूं की खेती कर रहे हैं। वजह पूछने पर वे कहते हैं, “पहले तो चीनी मिल समय पर भुगतान करते थे और इधर कुछ वर्षों से मौसम की मार ने परेशान कर दिया है। बढ़ती लागत की वजह से गन्ने से मुनाफा कमाना मुश्किल हो रहा था। इसलिए मैं अब दूसरी फसलों में हाथ आजमा रहा।”
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान नेता नरेंद्र राणा कहते हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि बदलाव हुआ है। लेकिन कई क्षेत्रों में अभी भी बदलाव की जरूरत है। "सरकार घटतौली नहीं रोक पा रही। इस मामले में चीनी मिलों की मनमानी बरकरार है। किसान शिकायत तो करते हैं। लेकिन उनकी सुनवाई ही नहीं होती। बात अगर भुगतान की करें तो इस मामले में कुछ चीनी मिलों का रवैया अभी भी पहले जैसा ही है।
उत्तर प्रदेश चीनी उद्योग और गन्ना विकास विभाग के मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने 7 फरवरी 2024 को विधानसभा में पूछे गये एक प्रश्न के जवाब में बताया था कि पेराई सत्र 2023- 24 में किसानों को लगभग 80% भुगतान किया जा चुका है जबकि 3,400 करोड़ रुपए का भुगतान बाकी है।
मंत्री लक्ष्मी नारायण कहते हैं कि पिछले छह साल में योगी आदित्यनाथ सरकार ने गन्ना मूल्य में 55 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की है। 2017 में गन्ने की कीमत 315 रुपए प्रति क्विंटल थी। पिछली सरकार में राज्य में चीनी मिलें बंद होने के कगार पर थीं। जबकि अब प्रदेश में 42 लाख परिवार हैं जो गन्ने की खेती करते हैं और 45 लाख मजदूर इस काम में लगे हैं और 120 चीनी मिलों में पेराई का काम चल रहा। रही बात भुगतान की तो हमारी सरकार 100% भुगतान करने के लिए प्रतिबद्ध है। किसानों एक भी रुपया नहीं रुकेगा।