नए कृषि मंत्री, नई उम्मीदें: क्या होगा किसानों की आय में इजाफा?
मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के दो दशकों के शासनकाल के दौरान किसानों की आय राष्ट्रीय औसत से कम रही है। खेती के खर्चे बढ़े और किसानों का कर्ज भी बढ़ा है। ये ही नहीं किसान आत्महत्या के मामलों में भी उछाल आया। ऐसे रिकार्ड के बावजूद उन्हें केंद्र में कृषि मंत्री बनाए जाना कई सवाल खड़े करता है।
भोपाल: "2014 से अब तक किसानों की आय घटती जा रही है, खेती के खर्चे बढ़े हैं और फसल का उचित दाम नहीं मिल पा रहा है। पिछले दो दशकों में शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे लेकिन किसानों की आय बढ़ाने के लिए उन्होंने कोई ठोस कदम नहीं उठाए। केंद्रीय कृषि मंत्री बनने के बाद वे इस दिशा में कुछ बेहतर काम करेंगे, इसकी हमें उम्मीद कम ही है।" हरदा के किसान बसंत रायखेरे ने शिवराज सिंह चौहान को केंद्रीय कृषि मंत्री बनने पर सवाल उठाते हुए कहा।
बसंत रायखेरे ने आगे कहा, "पिछले दस सालों में खेती से जुड़े खर्चों में भारी इजाफा हुआ है। डीजल, खाद, कीटनाशक सब कुछ दो से तीन गुना महंगा हो गया है। 2013-14 में एक एकड़ मूंग की खेती में 7000 से 9000 रुपए लगते थे, आज वही खेती 15000 से 20000 रुपए की पड़ रही है।" बसंत ने चिंता जताते हुए कहा, "लेकिन मूंग की फसल आज भी 5000 से 6000 रुपए प्रति क्विंटल के भाव में ही बिक रही है।"
पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 16 दिसंबर 2022 को राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में किसानों की आय के आंकड़े सदन के सामने रखे थे। आंकड़ों के मुताबिक, किसानों की राष्ट्रीय मासिक औसत आय 10,218 रुपए है। लेकिन मध्य प्रदेश में किसानों की आय राष्ट्रीय औसत से कम मात्र 8,339 रुपए है।
आर्थिक विकास एवं सहयोग संगठन (OECD) की 2023 की रिपोर्ट बताती है कि भारत का किसान 2000 से लेकर अब तक हर साल घाटे की खेती कर रहा है।
2016 के इकोनॉमिक सर्वे की रिपोर्ट की मानें तो भारत के 17 राज्यों में किसानों की औसतन सालाना आय ₹ 20000 है। यानी ज्यादातर किसान परिवार ₹1700 से भी कम में महीना भर गुजारने को मजबूर हैं।
2022 तक किसान की आय दोगुनी करने का मोदी सरकार का वादा
मौजूदा मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का वादा किया था, लेकिन हकीकत में यह वादा पूरा होता नजर नहीं आ रहा है। सरकार खुद कह रही है कि उसके पास किसानों की आय का कोई ब्योरा ही नहीं है। 2022 में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों की आय बढ़ाने के चार पहलुओं का उल्लेख किया था-खेती की लागत कम करना, उपज का उचित मूल्य देना, फसलों की बर्बादी रोकना, आय के वैकल्पिक स्रोत बनाना। इसके साथ ही नए बिजनेस मॉडल के जरिए किसानों की आय दोगुनी करने और उन्हें मुश्किलों से राहत दिलाने के लिए एक कार्यदल का भी गठन किया गया था।
देश के किसानों की आय बढ़ी, लेकिन मध्य प्रदेश के किसानों की आय कम हुई
कृषि पर बनी संसदीय समिति के अध्यक्ष बीजेपी सांसद पीसी गद्दीगौदर ने मार्च 2022 को अपनी रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार अपने लक्ष्य से अभी काफी दूर है। 2015-16 और 2018-19 के आंकड़ों के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के किसानों की औसत मासिक आमदनी 2015-16 में 8059 रुपए थी, जो 2018-19 में बढ़कर 10,218 रुपए हुई। यानी चार साल में सिर्फ 2,159 रुपए की बढ़ोतरी हुई। देश में चार राज्य ऐसे हैं जहां किसानों की आमदनी कम हुई है। झारखंड में 2,173, नागालैंड 1,551, मध्यप्रदेश में 1,400 और ओडिशा के किसानों की आमदनी 162 रुपए घट गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, किसानों की आमदनी अगर बढ़ी है तो खर्च भी बढ़ा है। अगर वह हर महीने औसतन 10,218 रुपए कमाते हैं तो उसमें से 4,226 रुपए तो खेती पर ही खर्च हो जाते हैं। जहां किसान हर महीने 2,959 रुपए बुआई और उत्पादन पर, तो वहीं 1,267 रुपए पशुपालन पर खर्च करता है। ऐसे में उनके पास 6000 रुपए भी नहीं बचते हैं।
गौरतलब है कि रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान मध्यप्रदेश में दूसरे राज्यों की ही तरह खेती का खर्चा बढ़ा है, लेकिन आमदनी कम हो गई।
कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान या किसी और के कृषि मंत्री बनने से बहुत फर्क इसलिए नहीं पड़ता क्योंकि मूल समस्या जस की तस है। किसान की आय सबसे बड़ा सवाल है, लेकिन अगर शिवराज सिंह चौहान की बात करें, तो उन्होंने किसानों की आय को लेकर अभी तक कोई बातचीत नहीं की है। उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री रहते हुए भी किसान की आय बढ़ाने के लिए कोई ठोस काम नहीं किए थे।
आर्थिक विकास एवं सहयोग संगठन (OECD) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए देवेंद्र शर्मा कहते हैं कि 2000 से अब तक किसानी घाटे का सौदा रहा है। सवाल ये है कि इतने लंबे समय तक कोई भी धंधा या व्यवसाय घाटे में चल सकता है क्या?
वे बताते हैं कि दुनिया की 54 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देश के एक अध्ययन में आर्थिक विकास एवं सहयोग संगठन (OECD) की रिपोर्ट बताती है कि कृषि के मामले में हम (भारत) वियतनाम और अर्जेंटीना के साथ नेगेटिव पैरामीटर पर खड़े हैं। यानी भारत का किसान लगातार खेती में अपना पैसा गंवा रहा है। जहां वियतनाम और अर्जेंटीना अपने कृषि घाटे की पूर्ति अपने बजट से करते हैं, वहीं भारत सरकार ने किसानों को भगवान भरोसे छोड़ा हुआ है।
बड़वानी के 58 साल के किसान जगदीश यादव के पास तकरीबन तीन एकड़ खेत है। वह बताते हैं, पिछले कई सालों से गेहूं का मूल्य 20 से 24 रुपए प्रति किलो के बीच बना हुआ है। जबकि पिछले 10 सालों में इसकी लागत लगभग दो से तीन गुना हो गई है। ऐसे में किसान की हालत का अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं।
वह आगे कहते हैं, पिछले कुछ सालों में महंगाई जिस हिसाब से बढ़ी है, किसानों के लिए घर चलाना बहुत ही मुश्किल हो गया है। कोई भी व्यक्ति अपनी खुशी से न तो कर्ज लेता है और न ही बिना वजह आत्महत्या करता है। किसान सब तरह से थक हारकर ही ऐसे कदम उठाता है। मध्य प्रदेश के किसानों की हालत बहुत बुरी हैं। आमदनी बढ़ नहीं रही है और खर्च लगातार भारी होते जा रहे हैं किसान कर्ज के बोझ में दबे जा रहे हैं।
कृषि क्षेत्र में प्रतिदिन 30 आत्महत्या
2023 में जारी NCRB (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) की रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में 2014-2022 में कृषि क्षेत्र में एक लाख से भी ज्यादा (1,00,474) लोगों ने आत्महत्या की हैं। इसका मतलब है कि इन 9 सालों में रोजाना लगभग 30 लोगों ने आत्महत्या की है।वर्ष (NCRB रिपोर्ट के अनुसार) | कृषि क्षेत्र में आत्महत्याएं |
2014 | 12,360 |
2015 | 12,602 |
2016 | 11,379 |
2017 | 10,655 |
2018 | 10,349 |
2019 | 10,281 |
2020 | 10,677 |
2021 | 10,881 |
2022 | 11,290 |
वर्ष 2014 से 2022 तक कुल आत्महत्याएं | 1,00,474 |
नई रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र में सबसे ज़्यादा 4,248 किसानों और कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या की है। कर्नाटक दूसरे नंबर पर है, जहां लगभग 2,392 किसानों और कृषि मजदूरों ने खुदकुशी की। आंध्र प्रदेश में 917, तमिलनाडु में 728 और मध्य प्रदेश में 641 किसानों और कृषि श्रमिकों ने अपनी जान दे दी।
पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री ने 3 फरवरी 2023 को सदन में एक सवाल के लिखित जवाब में यह बताया कि 2017 से लेकर 2021 तक क्रमशः 5955, 5763, 5957, 5579, 5318 किसानों ने आत्महत्या की।
अगर हम साल दर साल बात करें तो मध्य प्रदेश किसानों की आत्महत्या के मामले में इन पांच सालों में चौथे से सातवें स्थान के बीच रहा है। इस दौरान मध्य प्रदेश में 1,226 किसानों ने खुदकुशी की। मध्य प्रदेश में वर्ष 2017 में 429, 2018 में 303, 2019 में 142, 2020 में 235 और 2021 में 117 किसानों ने आत्महत्या की।
आर्थिक विकास एवं सहयोग संगठन (OECD) की रिपोर्ट के अनुसार 2000 से लेकर 2016 के बीच में भारत के किसानों को 45000 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
जुलाई 2022 में वित्त मंत्रालय ने बताया था कि नाबार्ड के आंकड़ों के अनुसार, 31 मार्च 2021 तक किसानों पर 16.80 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज बकाया था। NSSO की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2013 में देश के किसान-परिवारों पर औसतन 47,000 रुपए का कर्ज था। 2019 में यह कर्ज बढ़कर 74,121 रुपए हो गया।
किसान नेता शिवकुमार शर्मा (कक्का जी) कहते हैं कि, मुझे लगता है दिल्ली में बैठी सरकार के किसी भी मंत्री को स्वतंत्र रूप से काम करने की आजादी नहीं है।
उन्होंने आगे कहा ‘किसान आंदोलन के समय से ही हमारी दो बड़ी मांगे हैं- MSP कानून और कर्ज माफी। हम सब जानते हैं कि किसानी लगातार घाटे का सौदा साबित हो रही है। लेकिन प्रदेश में शिवराज और देश के पूर्व कृषि मंत्री कुछ कर नहीं पाए। किसान घाटे के दलदल में फंसता चला जा रहा है।
पिछली सरकार ने हमारी मांगों पर (किसान आंदोलन के दौरान), हमसे लिखित में मांगे पूरा करने का वादा किया था लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ। हमें उम्मीद है कि शिवराज सिंह चौहान अपने आला कमान से बात करेंगे और हमारी इन दो मुख्य मांगों को पूरा कर किसानों को राहत दिलवाएंगे।
क्या है MSP और स्वामीनाथन आयोग
नवंबर 2004 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किसानों की समस्याओं के अध्ययन के लिए मशहूर कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया था। इसे 'नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स' कहा गया था। दिसंबर 2004 से अक्टूबर 2006 तक इस कमेटी ने सरकार को छह रिपोर्ट सौंपी और कई सिफारिशें भी की।
किसानों की आय बढ़ाने के लिए उन्हें उनकी फसल लागत का 50 फीसदी से ज्यादा देने की भी सिफारिश की थी। इसे C2+50% फॉर्मूला कहा जाता है। किसान आंदोलनकारी इसी फार्मूले के आधार पर MSP गारंटी कानून लागू करने की मांग कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश कृषि विभाग के अनुसार मध्य प्रदेश का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 307.56 लाख हेक्टेयर है। इसमें से लगभग 151.91 लाख हेक्टेयर ही कृषि योग्य है। इसमें से वर्तमान में वर्ष 2022-23 के अंतिम अनुमान के मुताबिक, लगभग 146.08 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खरीफ फसलें और लगभग 141.62 लाख हेक्टेयर में रबी फसलें लगाई जा रही हैं। प्रदेश की फसल सघनता 190.03 प्रतिशत है। प्रदेश में कुल सिंचित क्षेत्रफल लगभग 169.48 लाख हेक्टेयर है।
मध्य प्रदेश के पूर्व कृषि डायरेक्टर जीएस कौशल कहते हैं, ‘पिछले साल का ही मामला ले लें। किसान की मूंग पड़ी रही और शिवराज सिंह चौहान सरकार यह फैसला नहीं कर पाई कि मूंग खरीदनी है या नहीं। जब तक फैसला लिया गया तब तक बारिश का मौसम आ चुका था और ज्यादातर किसान फसल के खराब होने के डर से अपनी फसल को कम दामों पर बाहर बेच चुके थे। हर मामले में नुकसान किसान का ही होता है। शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहने के दौरान भी किसानों को फसल के उचित दाम और फसल खरीद की व्यवस्था ठीक से नहीं हो पाई। MSP का सवाल तो जस का तस बना ही हुआ है।
कांग्रेस किसान प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष केदार सिरोही कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान से हमें कोई उम्मीद नहीं है। वो मध्य प्रदेश में करीब दो दशक तक मुख्यमंत्री रहे और किसानों की बातें भी करते रहे, लेकिन वो सोने के अंडे देने वाली मुर्गी नहीं बल्कि सोने के दाने खाने वाली मुर्गी हैं।
उन्होंने आगे कहा कि अगर शिवराज सिंह चौहान वाकई में किसानों के लिए काम करते तो देश में किसानों की आय के मामले में मध्य प्रदेश का स्थान 26वां नहीं होता।
2019 से तुलना करने पर पता चलता है कि 2022 में मध्य प्रदेश के किसानों की आय घटी है। किसानों के आत्महत्या के मामलों में भी मध्य प्रदेश कई सालों से पांचवें से सातवें पायदान के बीच बना रहा है।
मध्य प्रदेश में फिलहाल कुल 185-190 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में से सिर्फ 47 लाख हेक्टेयर में ही सिंचाई हो पा रही है। क्रॉपिंग इंटेंसिटी जो 200 के पार होनी चाहिए वो 150 से 155 के करीब है। अगर यह स्थिति अच्छी होती तो हम दूसरे इलाकों में तीसरी फसल की ओर बढ़ गए होते हैं। पिछले 20 साल में मध्य प्रदेश के किसानों पर लगभग 110 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है।
किसान नेता केदार सिरोही कहते हैं कि अगर शिवराज सिंह चौहान अच्छे मुख्यमंत्री होते और किसान हितैषी होते तो मध्य प्रदेश के किसानों की ये दुर्दशा ना होती।
18 सालों से शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश में 'किसान हितैषी' होने का दावा करते आ रहे हैं। उनकी सरकार ने कृषि उन्नति की बात भी की और 7 बार कृषि कर्मण अवार्ड भी जीता। लेकिन सच्चाई यह है कि किसानों की आय बढ़ाने में यह सरकार नाकाम रही है। ऐसे में शिवराज को देश का कृषि मंत्री बनाए जाने से कई सवाल उठ रहे हैं। मध्य प्रदेश में दो दशक तक मुख्यमंत्री रहते हुए शिवराज जिन चुनौतियों का सामना करते रहे, देश के कृषि मंत्री बनने पर उन्हें उन्हीं चुनौतियों का सामना देश के स्तर पर करना पड़ेगा। किसानों की आय बढ़ाना और किसानी को फायदे का सौदा बनाना अब भी उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है।