लखनऊ। आबादी के ल‍िहाज से देश के सबसे बड़े राज्‍य उत्तर प्रदेश में वर्ष 2018-19 में सर्पदंश की वजह से 21 लोगों की मौत र‍िपोर्ट हुई थी। 2023-24 में (9 द‍िसंबर 2023 तक) ये संख्या बढ़कर 773 हो गई। मतलब इन छह वर्षों में मौत का आंकड़ा 3,500% बढ़ गया। ये हाल तब है जब प्रदेश में सर्पदंश से बचाने के लिए कई तरह की योजनाएं चल रही हैं।

उत्तर प्रदेश आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार 2018 से अब तक राज्य में सर्पदंश की वजह से 3,288 लोगों की मौत हो चुकी है। यानी हर साल औसतन 548 मौतें हो रही हैं।

सबसे ज्‍यादा प्रभावित वर्ष 2021-22 रहा, जब 981 लोगों की सर्पदंश से मौत हुई, उसके बाद 2023-24 (773) और 2020-21 (532) का स्थान रहा। सबसे ज्‍यादा प्रभावित जिले सोनभद्र, फतेहपुर, बाराबंकी, उन्नाव, हरदोई, सीतापुर, गाजीपुर, ललितपुर और मिर्जापुर रहे हैं। इस सूची में पहले पांच जिलों को सरकार ने हॉटस्पॉट घोषित किया है। ये बड़े पैमाने पर ग्रामीण और कृषि प्रधान जिले हैं।

यूपी राज्य आपदा प्रबंधन के अनुसार इस साल अब तक प्रदेश में सर्पदंश की वजह 50 से ज्‍यादा मौतें दर्ज हो चुकी हैं। यूपी सरकार के सर्पदंश संबंधी मैनुअल के अनुसार, किसान, मजदूर, पशुपालक और आदिवासी लोग सबसे ज्यादा सर्पदंश के शिकार हो रहे हैं।

लेकिन क्‍या इन मौतों को रोका जा सकता है? तमाम कवायदों के बावजूद आंकड़े साल दर साल बढ़ क्यों रहे हैं?

राजधानी लखनऊ से लगभग 200 क‍िलोमीटर दूर जौनपुर में रहने वाले सर्प म‍ित्र (सांप बचावकर्ता) और सामाजिक कार्यकर्ता मुरली धर यादव कहते हैं कि सांपों के बारे में लोगों को शिक्षित करने की सख्त जरूरत है क्योंकि अधिकांश प्रजातियां जहरीली नहीं होती हैं। ज्यादातर मामलों में व्यक्ति की मौत सांप के जहर के कारण नहीं बल्कि दिल के दौरे के कारण होती है।




“अगर लोगों को अंतर पता हो तो वे सांप के काटने के बाद घबराएंगे नहीं और उनकी जान बच सकती है। हमें लोगों को अंधविश्वास के खिलाफ भी शिक्षित करने की जरूरत है। बहुत से लोग आज भी डॉक्टर के पास ना जाकर ओझा या झाड़-फूंक करने वालों के पास चले जाते हैं। एंटी-वेनम ही इसका एकमात्र इलाज है जो जान बचा सकता है।" मुरली आगे कहते हैं।


ओझा का चक्कर और महंगा इलाज

श्रावस्ती के देवरनिया में पांच वर्षीय मासूम साधना अपने पिता मुरलीधर के साथ चारपाई पर सो रही थीं। घटना 20 जुलाई की है। सुबह लगभग चार बजे की घटना है। प‍िता उसे गांव में झाड़-फूंक करने वाले ओझा के पास ले गए।

ओझा ने अपनी भाषा मे बताया कि उसने बंद बांध दिया है। यह अब ठीक हो जाएगी। लेकिन उसकी हालत सुधरने की जगह बिगड़ने लगी तो पर‍िजन उसे बहराइच के रिसिया अस्पताल को ले गये। लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले ही बच्ची ने दम तोड़ दिया।

परिजन अस्पताल के अंदर नहीं गये क्‍योंकि उन्‍हें डर था क‍ि अस्पताल में जाएंगे तो बच्ची का पोस्टमार्टम कराया जाएगा। पोस्टमार्टम न कराने के कारण सरकार द्वारा मिलने वाली 4 लाख रुपए की सहायता भी उन्हें नहीं मिल पाएगी।

मद्रास क्रोकोडाइल इंस्टीट्यूट से ट्रेनिंग लेने के बाद पिछले 20 साल से जहरीले सांपों को पकड़कर उनके प्राकृतिक आवास में छोड़ने वाले और कई अन्‍य वन्यजीवों पर काम कर रहे अभिषेक कहते हैं कि यह कामन करैत सांप हो सकता है क्योंकि ज्‍यादातर यही सांप चारपाई पर चढ़ता है। इसके विषदन्त काफी छोटे होते हैं। इसलिए यह जिसको डसता है, उन्हें ज्‍यादा दर्द नहीं होता है। इसके जहर में नीरो टॉक्सिक वेनम होता है जो नर्वस सिस्टम को डाउन कर देता जिससे इंसान की मौत हो जाती है।

वर्ष 2018 में आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य आपदा राहत कोष के माध्यम से राज्य मुआवजे के लिए पात्रता का विस्तार किया और सर्पदंश को राज्य आपदा घोषित किया। इसके तहत सर्पदंश की वजह से अपने प्रियजनों को खोने वाले परिवार सरकार से 4 लाख रुपए के मुआवजे का दावा करने के पात्र होंगे।

श्रावस्‍ती के बालापुर सिरसिया निवासी राम संवारी देवी 18 जून की सुबह पास में ही बने गोदाम से भूसा निकालने गई थीं। भूसे में बैठे एक काले सांप ने उनके हाथ में डस ल‍िया। पर‍िजन ने फौरन हाथ में कुछ दूरी पर एक कपड़ा बांध दिया। मान्‍यता है कि इससे जहर नहीं फैलता। आनन-फानन उन्‍हें सिरसिया प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। मौके पर तैनात स्वास्थ्यकर्मी ने कुछ इंजेक्शन लगाए। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।



सांप को सुरक्षित स्‍थान पर ले जाते अभिषेक।


मृतक के बेटे मनोहर लाल उस द‍िन को याद करते हुए कहते हैं, “मां कह रही थी क‍ि मुझे ज‍िला अस्पताल ले चलो। यहां सही दवा नहीं कर रहे। लेकिन मैंने हाथ से कपड़ा खोला और कहा कि अब सब ठीक हो जायेगा। कपड़ा खोलते ही मेरी मां की सांसें रुक गईं और वह हमेशा के ल‍िए हमसे दूर हो गई।”

क्‍या संवारी देवी को ऐंटी वेनम द‍िया गया था? इस पर मनोहर लाल कहते हैं, “जहर खत्म करने वाला इंजेक्शन लगता तो मेरी मां क्यों मरती।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बनाई गई गाइडलाइंस में भी उल्‍लेख है कि राज्‍य के ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्‍त संसाधन न होना भी एक बड़ी समस्‍या है। इसी वजह से तमाम योजनाओं के बावजूद सर्पदंश से होने वाली मौतों की संख्‍या कम नहीं हो रही है।


गाइडलाइंस में कुछ और कम‍ियों के बारे में ल‍िखा है:


  • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों जैसे देखभाल के पहले केंद्र पर कुशल कर्मचार‍ियों की अपर्याप्त उपलब्धता।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों/सांप काटने वाले केंद्रों में एंटी-वेनम की पर्याप्त आपूर्ति की कमी।
  • पीड़ितों को स्वास्थ्य केंद्रों तक जल्दी पहुंचने के लिए दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में एंबुलेंस की अनुपलब्धता।
  • तत्काल अस्पताल में देखभाल की मांग करने के बारे में समुदाय के सदस्यों में जागरूकता की कमी।
  • सांप के काटने के मामलों के इलाज के लिए लोगों द्वारा स्थानीय मान्यताओं और अंधविश्वासों का सहारा लेना।

मानसून के द‍िनों में सर्पदंश की संख्या अचानक से बढ़ क्‍यों जाती हैं? उत्तर प्रदेश वन विभाग से मान्यता प्राप्त सर्प विशेषज्ञ अरव‍िंद म‍िश्रा इसके ल‍िए कई वजह बताते हैं।

“वैसे तो सर्पदंश घटनाएं पूरे साल आम हैं। लेकिन मानसून में ऐसी घटनाएं बहुत तेजी से बढ़ जाती है क्योंकि पानी के बहाव के कारण सरीसृप अपने बिलों से बाहर निकलने के लिए मजबूर हो जाते हैं। हमारे राज्य में विष वाले सांपों की संख्या बहुत कम है। लेकिन ज्यादातर जानें अज्ञानता के कारण जाती हैं। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि प्राथमिक और सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों पर एंटी-वेनम की उपलब्‍धता कम होती है। ऐसे में लोग ओझा के पास जाने को मजबूर हो जाते हैं।” उत्तर प्रदेश वन विभाग से मान्यता प्राप्त सर्प विशेषज्ञ अरविंद म‍िश्रा बताते हैं।

ज‍िला बाराबंकी के घुंघटेर थाना क्षेत्र में रहने रामशरण व‍िश्‍वकर्मा के 29 वर्षीय बेटे राजकुमार को दो अगस्‍त को उस समय सांप ने डस ल‍िया जब वह खेत में चारा काट रहा था। इसके बाद पर‍िजन उसे पास के न‍िजी अस्‍पताल ले गये।



सोर्स: UPSDMA


“बेटे को चार द‍िन तक अस्‍पताल में भर्ती रखा। वह ठीक तो हो गया। लेकिन हमें 16 हजार रुपए जमा करना पड़ा।”

आप अपने बच्‍चे को सरकारी अस्‍पताल लेकर क्‍यों नहीं गये? “कुछ द‍िन पहले पड़ोस में भी एक ऐसी ही घटना हुई थी। उसे सरकारी अस्‍पताल लगे गये थे। लेकिन वहां दवा ही नहीं थी। बाद बच्‍चे की जान बड़े मुश्किल से बच पाई थी। इसल‍िए हम पहले ही अपने बच्‍चे को प्राइवेट अस्‍पताल लेकर चले गये। जान से बढ़कर क्‍या है।” रामशरण जवाब देते हैं।

वर्ष 2020 में एक व्यापक अध्ययन के अनुसार, आठ राज्यों - बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, अविभाजित आंध्र प्रदेश (जिसमें तेलंगाना भी शामिल है), राजस्थान और गुजरात, में सर्पदंश से सबसे ज्‍यादा मौतें होती हैं।

वर्ल्ड हेल्‍थ ऑर्गेनाजेइशन (WHO) का अनुमान है कि भारत में हर साल लगभग 50 लाख लोगों को सांप डसते हैं जिससे 27 लाख लोगों में जहर फैल जाता है। हर साल 81,000 से 138,000 के बीच मौतें होती हैं। सांप के जहर के कारण लगभग 400,000 लोगों के अंग काटने पड़ते हैं।

वहीं भारत सरकार की एक र‍िपोर्ट यह भी कहती है कि देशभर में सर्पदंश के बहुत से मामले दर्ज ही नहीं हो पाते। मतलब ये संख्‍या और ज्‍यादा हो जाती है। हालांकि इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल लगभग 30-40 लाख लोगों को सांप काटते है ज‍िनमें से लगभग 50,000 मौतें होती हैं जो वैश्विक स्तर पर सांप के काटने से होने वाली मौतों का आधा हिस्सा है। केंद्रीय स्वास्थ्य जांच ब्यूरो (CBHI) की रिपोर्ट (2016-2020) के अनुसार भारत में सर्पदंश के मामलों की औसत वार्षिक आवृत्ति लगभग 3 लाख है और सांप के काटने के कारण लगभग 2000 मौतें होती हैं।

र‍िपोर्ट में यह भी उल्‍लेख है कि कोबरा, रसेल वाइपर, कॉमन करेत और सॉ स्केल्ड वाइपर के खिलाफ एंटीबॉडी युक्त पॉलीवेलेंट एंटी-स्नेक वेनम (ASV) का डोज 80% सर्पदंश मामलों में प्रभावी है। लेकिन प्रशिक्षित स्‍टाफ की कमी चिंता का विषय बनी हुई है।


किट और जागरुकता कार्यक्रम कितना सफल?

एक र‍िसर्च र‍िपोर्ट के मुताब‍िक उत्तर प्रदेश में सर्पदंश से सबसे अधिक सालाना लगभग 16,000 मौते हो रही हैं। इसके बाद मध्य प्रदेश (5,790 तक) और राजस्थान (5,230 तक) का स्थान है।

सोनभद्र, गाजीपुर व बाराबंकी जैसे ज‍िलों में सर्पदंश के बाद मृत्यु दर कम करने के लिए प‍िछले साल नया प्रयोग किया गया है। मृत्यु दर कम करने के लिए जन जागरुकता कार्यक्रम के साथ सभी ग्राम प्रधान व आशाओं को सर्पदंश बचाव किट दिया गया। इसके अलावा राहत आयुक्‍त कार्यालय सर्पदंश पीड़ितों को प्राथमिक इलाज के लिए

स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षित करने का निर्णय लिया है। पहले चरण में सर्पदंश मामले में अव्वल तीन जिलों क्रमशः सोनभद्र, बाराबंकी, सीतापुर के स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षित किया जायेगा। इस प्रोजेक्ट को वर्ष 2024-26 के मध्य पूर्ण करने का लक्ष्य रखा गया है।

वर्ष 2030 तक सर्पदंश से होने वाली मौत और व‍िकलांगता को रोकने के ल‍िए केंद्र सरकार की ओर से राष्ट्रीय कार्य योजना भी चल रही है। योजना में एक जगह बताया गया है कि घनी आबादी की वजह से उत्तर प्रदेश जैसे राज्‍यों में सर्पदंश की घटनाएं और बढ़ रही हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार राज्‍य के कई ज‍िलों में सर्पदंश को रोकने के ल‍िए जागरूकता जैसे कई अभियान चला रही है। फिर भी सर्पदंश जैसी घटनाओं से होने वाली मौतों को क्‍या नहीं रोका जा पा रहा।

इसके बारे में सर्पदंश मानक संचालन प्रक्र‍िया की र‍िपोर्ट में राज्‍य आपदा प्रबंधन प्राध‍िकरण के उपाध्‍यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल रविंद्र प्रताप साही ल‍िखते हैं, "उत्‍तर प्रदेश में प‍िछले कुछ वर्षों में सर्पदंश के मामले बढ़े हैं ज‍िसके पीछे प्रमुख कारण समुदाय स्‍तर पर इसके प्रत‍ि अश‍िक्षा और जागरुकता की कमी है।"

“सर्पदंश की मौत को बस एंटी स्‍नेक वेनम (एएसवी) से ही रोका जा सकता है। क‍िट से यह तो पता नहीं लगाया जा सकता कि पीड़‍ित की बॉडी में कैसा जहर है। ऐसे में ब्‍लड की जांच जरूरी होती है। इसलिए किट भी बहुत उपयोगी नहीं हो सकता।” पूर्व सीएमओ डॉक्‍टर लक्ष्‍मी नारायण कहते हैं।

“चूंकि अधिकांश सर्पदंश के शिकार ग्रामीण क्षेत्रों से होते हैं, इसलिए उन्हें एंटीवेनम और वेंटिलेटर और ब्लड बैंक जैसी महत्वपूर्ण देखभाल सुविधाओं से लैस स्वास्थ्य सेवा केंद्रों तक ले जाने में बहुत लंबा समय लग सकता है। कई क्षेत्रों में एम्बुलेंस जैसे आपातकालीन परिवहन की कमी है। पेशेवर चिकित्सक के बीच भी सर्पदंश के इलाज के बारे में जानकारी रखने वाले डॉक्‍टर बहुत कम हैं। ऐसे में सरकार को क‍िट और जागरूकता कार्यक्रम के आगे भी सोचना होगा।” डॉक्‍टर लक्ष्‍मी नारायण आगे कहते हैं।


एंटी-वेनम की उपलब्‍धता और चुनौती

वर्ष 2022 में अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका प्लॉस वन में प्रकाशित भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की एक र‍िपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल सर्पदंश की वजह से 46,000 से अधिक लोगों की जान चली जाती है। जबकि केवल 20-30 प्रतिशत पीड़ित ही चिकित्सा उपचार के लिए अस्पतालों में पहुंचते हैं।

विशेषज्ञ भारत में सर्पदंश से होने वाली मौतों के पीछे कई वजहों की ओर इशारा करते हैं। जैसे कि एंटीवेनम बनाने के लिए आज भी देश में सदियों पुराना तरीका अपनाया जा रहा। इसके अलावा ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा सुव‍िधाओं का ठीक न होना, जागरुकता में कमी और सर्पदंश की रोकथाम पर उचित सरकारी नीति का न होना।

भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के पारिस्थितिकी विज्ञान केंद्र (CES) में इवोल्यूशनरी वेनोमिक्स लैब के शोधकर्ता कार्तिक सुनगर के अनुसार, भारत में एंटीवेनम की कमी नहीं है।

वे कहते हैं, “भारत सीरम और वैक्सीन, बायोलॉजिकल ई और हैफकिन इंस्टीट्यूट जैसे कई निर्माता इसका उत्पादन कर रहे हैं। हालांकि, सौ से अधिक वर्षों से एंटीवेनम के निर्माण के प्रोटोकॉल में कोई बदलाव नहीं हुआ है। निर्माता घोड़ों से एंटीबॉडी को अलग करके एंटीवेनम बनाते हैं, जिन्हें चार सांपों - कॉमन करेत, इंडियन कोबरा, रसेल वाइपर और सॉ-स्केल्ड वाइपर से एकत्रित जहर के साथ इंजेक्ट किया जाता है।

माना जाता है कि इस तरह से उत्पादित घोड़े के एंटीबॉडी एंटीवेनम के रूप में कम प्रभावी होते हैं।

"चूंकि विनिर्माण प्रोटोकॉल बहुत पुराने हैं, इसलिए एंटीवेनम की गुणवत्ता बहुत खराब है। कभी-कभी इन एंटीबॉडी की एक शीशी पर्याप्त नहीं होती है, लेकिन कई शीशियां देने से सर्पदंश के शिकार लोगों में अन्य समस्‍याएं पैदा हो सकती हैं," सुनागर आगे बताते हैं।

उन्होंने कहा कि एंटीवेनम के अत्यधिक उपयोग से रोगियों में सीरम बीमारी हो सकती है, जिसका इलाज बहुत से ग्रामीण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) को नहीं पता है।

इसके अलावा सुनागर ने कहा कि सर्पदंश का श‍िकार सबसे ज्‍यादा गरीब आदमी होता है। यही वजह है कि इसकी रोकथाम और उपचार में ज्यादा निवेश नहीं किया जाता है। "एंटीवेनम के लिए रीकॉम्बिनेंट तकनीक विकसित करने के लिए बहुत सारे शोध निवेश की आवश्यकता होती है, जो दुर्भाग्य से सरकार ने नहीं किया है।"

भारत में वर्तमान में विकसित पॉलीवैलेंट एंटीवेनम चार बड़ी सांप प्रजातियों को ध्‍यान में रखकर बनाया जाता है। हालांकि भारत में सांपों की कम से कम 60 प्रजातियां हैं जिन्हें विषैला माना जाता है।

भारत के कई हिस्सों में - खासकर पूर्वोत्तर राज्यों में बड़ी प्रजातियां नहीं हैं। इन क्षेत्रों में सांपों की दूसरी प्रजातियां हैं जो जहरीले भी हैं। लेकिन इनसे बचाने के ल‍िए एंटीवेनम का निर्माण नहीं हो रहा।

“जिन क्षेत्रों में ये चार प्रजातियां नहीं पाई जाती हैं, वहां अन्य प्रजातियां हैं जो मृत्यु और विकलांगता का कारण बनती हैं। लेकिन हम उन्हें टारगेट कर एंटीवेनम नहीं बनाते हैं।"

सभी फोटो साभार - न्यूज संस्था

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