पटना: विधवा शहनाज खातून (55 ) कटिहार जिले के कदवा प्रखंड अंतर्गत शेखपुरा पंचायत की निवासी हैं। मतदाता सूची विशेष गहन पुनरिक्षण गणना फॉर्म को भरने के लिए वह आज 4-5 दिनों से भटक रही है। दो बेटों में एक बेटा बीमार रहता है वहीं दूसरा मजदूरी करता है। शहनाज कहती हैं कि, "मेरा बेटा अगर फॉर्म भरने आएगा तो पूरा दिन का मजदूरी खत्म हो जाएगा। इसलिए 4-5 दिनों से मैं ही आ रही हूं लेकिन मेरे बेटे का फॉर्म अब तक नहीं मिला है। ब्लॉक दूर होने की वजह से निवास प्रमाण पत्र बनाने के लिए दलाल को 700 रुपये दिए हैं। अभी सरकार जो यह कर रही है, इसमें हम लोग क्या करें कहां से पैसे लेकर आए और इतनी जल्दी कैसे कागज बनाएं।” वहीं सुपौल जिला के कोसी नदी के किनारे बसे बलहा पंचायत के लगभग 70 वर्षीय सत्तो यादव के पास भी जन्म और नागरिकता का कोई प्रमाण पत्र नहीं है। सब कुछ पिछले साल ही बाढ़ में बह गया था। वह भी पिछले दो दिनों से सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं।

विधवा शहनाज खातून कटिहार जिले के कदवा प्रखंड अंतर्गत शेखपुरा पंचायत की निवासी हैं। फोटो: राहुल गौरव

बिहार में शहनाज खातून और सत्तो यादव जैसे लाखों नागरिक हैं, जिन्होंने पिछले कई चुनावों में मतदान किया होगा, लेकिन अब उन्हें अपने मतदान के अधिकार को प्रमाणित करने के लिए जल्दी से जल्दी दस्तावेजी सबूत पेश करने होंगे। बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन को लेकर दिशा निर्देश जारी किए हैं। स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन यानी विशेष गहन पुनरीक्षण के तहत न केवल मतदाता सूचियों को नए सिरे से तैयार किया जा रहा है, बल्कि 2003 के बाद पंजीकृत मतदाताओं से नागरिकता साबित करने वाले दस्तावेज भी मांगे जा रहे हैं।

बिहार में करीब सात करोड़ 90 लाख वोटर हैं, जिनमें से 2003 के बाद जोड़े गए करीब दो करोड़ 93 लाख मतदाताओं को अपनी जानकारी की पुष्टि करानी होगी। “किसी कारणवश अगर किसी भी मतदाता की जानकारी पुष्टि नहीं हो पाती है, तो उसका नाम सूची से हटा दिया जाएगा,” यह कहना है चुनाव आयोग का ।

आंकड़ों के मुताबिक बिहार के सभी जिलों में नागरिकता प्रमाण पत्र के लिए भारी संख्या में आवेदन किया जा रहा है। लोगों के मुताबिक अचानक इस कागजात को निकालने के लिए भीड़ बढ़ने की वजह से घूस देने के बावजूद काफी दिक्कत हो रही है। रिश्वत लेने के आधार पर इंडिया करप्शन सर्वे रिपोर्ट 2019 के मुताबिक
बिहार
दूसरे नंबर पर है।

सरबानो खातून कटिहार जिले के बलिया बेलौन थाना अंतर्गत बिशनपुर गांव की निवासी हैं। फोटो: राहुल गौरव

बार-बार बदल रहा चुनाव आयोग का आदेश

24 जून को निर्वाचन आयोग ने बिहार में विशेष मतदाता गहन पुनरीक्षण का निर्देश दिया था। इस निर्देश में सबसे दिलचस्प यह है कि चुनाव आयोग ने जन्म तिथि/जन्म स्थान से संबंधित जिन 11 मान्य दस्तावेजों की सूची दी है, उसमें आधार कार्ड, राशन कार्ड, मनरेगा जॉब कार्ड, पैन कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस मान्य नहीं हैं।

इसके बाद बिहार के विपक्षी पार्टी द्वारा इसका काफी विरोध किया गया था। विरोध इस कदर कि राज्य के लगभग सभी विपक्षी पार्टी ने मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण के विरोध में नौ जुलाई को द्वारा चक्का जाम किया। लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के साथ बिहार विपक्ष के सभी नेता इस जाम में शामिल हुए। प्रदेश के सात शहरों में ट्रेनें रोकी गईं तथा जगह-जगह नेशनल हाईवे जाम किया गया। चुनाव आयोग के दफ्तर तक जाने के लिए तेजस्वी यादव, दीपंकर भट्टाचार्य के साथ राहुल गांधी एक गाड़ी पर सवार हुए,हालांकि, उन लोगों को आयोग के दफ्तर के पहले ही रोक दिया गया।

चुनाव आयोग के खिलाफ विरोध और समर्थन के बीच 24 जून से अभी तक मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण को लेकर चुनाव आयोग तीन अलग अलग नोटिफ़िकेशन निकाल चुका है। इनमें दस्तावेज के संबंध में बार-बार सुधार किया जा रहा है।

इसी क्रम में चुनाव आयोग ने शनिवार को पूरे पेज का एक विज्ञापन अखबारों में दिया कि कि अगर उनके पास जरूरी दस्तावेज नहीं हैं तो वे बिना जरूरी दस्तावेजों के भी मतदाता फार्म भरकर जमा करें। बीएलओ को सभी भरे हुए, हस्ताक्षरित फ़ॉर्म अपलोड करने के लिए कहा गया है, जबकि दस्तावेज बाद में जमा किए जा सकते हैं। लेकिन शनिवार को शाम होते-होते चुनाव आयोग ने एक प्रेस रिलीज जारी की और कहा कि 24 जून को जारी आदेश में कोई बदलाव नहीं लाया गया है। 6 जुलाई को जारी विज्ञापन के हवाले से जिस बदलाव की बात कही गई उसे चुनाव आयोग के बयान में अफवाह बताया गया। हालांकि कई इलाकों में बिना दस्तावेज के भी फार्म जमा किया जा रहा है।

एक तरह की नोटेबंदी:

पटना हाई कोर्ट के वकील राजीव कुमार इस पूरे मुद्दे पर विस्तार से बताते हैं कि, “6 जुलाई को जारी प्रेस नोट में कहा गया था कि 1 अगस्त को जारी होने वाला ड्राफ्ट इलेक्टोरल रोल में उन लोगों का नाम शामिल होगा जिनका एन्यूमरेशन फॉर्म चुनाव आयोग को मिल चुका है। फिर बाद में कहा गया कि ड्राफ्ट इलेक्टोरल रोल के प्रकाशन के बाद अगर किसी दस्तावेज की कमी होती है तो ईआरओ संबंधित डॉक्यूमेंट मतदाता से मांग सकते हैं। जिसकी अवधि 1 अगस्त से 1 सितंबर तक है। अब सवाल हैं कि क्या बिना दस्तावेज जमा किए गए फॉर्म के आधार पर वोटर लिस्ट में नाम रहेगा या उसके लिए बाद में ही सही दस्तावेज देने ही होंगे?”

राजनीतिक विश्लेषक योगेन्द्र यादव मीडिया से कहते हैं कि,”कोई भी पत्रकार बिहार के किसी गांव में चला जाए 40 साल से कम उम्र के आधे नागरिकों के पास वो दस्तावेज नहीं हैं, जो चुनाव आयोग आज वोटर बनने के लिए मांग रहा है। नोटबंदी की तरह ही इसमें भी अलग-अलग नियम आते रहेंगे। बाद में इसको लेकर पूरे चुनाव को प्रभावित किया जा सकता है। यह विशेष रूप से गरीब, दलित, आदिवासी, महिला, मजदूर और अशिक्षित नागरिकों के मताधिकार पर गहन प्रहार है।

मधेपुरा जिला में BLO द्वारा गणना प्रपत्र भरवाया जा रहा. Credit: Election Commission of India

जेएनयू में पढ़ाई कर रहें सत्यम बिहार की राजनीति पर काफी काम कर चुके हैं। वह बताते हैं कि, “बिहार प्रवासियों का राज्य है। अभी धान रोपनी के टाइम अधिकांश मजदूर दिल्ली और पंजाब में होंगे। 75 प्रतिशत हिस्सा आपदा से प्रभावित रहता है। जहां उन्हें उनकी जान की खबर नहीं..वहां इतने कम दिनों में सही सलामत कागज मिलेगा? बिहार की एक बड़ी आबादी की पॉलिटिकल सिटीजनशिप पर आफत है।”

आम लोगों और बीएलओ की परेशानी

बिहार के गांवों में चुनाव आयोग के नए दिशा-निर्देशों के बाद लोगों को काफी मुश्किलें पेश आ रही हैं। कई लोगों को अभी भी इसकी पूरी जानकारी नहीं है। वहीं जिस घर में सरकारी मुलाजिम पहुंच चुके हैं, वहां लोग चुनाव आयोग की ओर से मांगे गए डॉक्यूमेंट्स को बनवाने के लिए सरकारी कार्यालयों में भाग-दौड़ कर रहे हैं। गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने 25 जुलाई तक वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन का काम पूरा करने को कहा है। इस पूरी प्रक्रिया में सबसे ज्यादा परेशान 2.93 करोड़ ऐसे लोग हैं, जिनका नाम 2003 की वोटर लिस्ट में नहीं था।

पूर्वी चम्पारण के निवासी जो कोलकाता में नौकरी कर रहे हैं कहते है कि , "ऐन्यूमरेशन फॉर्म के लिए इलेक्शन कमीशन वोटर कार्ड/आधार कार्ड ड्राइविंग लाइसेंस/राशन कार्ड /जमीन का रशीद जैसी सरकारी दस्तावेज को वैध नहीं मान रही हैं आखिर क्यों ? मुख्य निर्वाचन आयोग को यह महसूस हो गया हैं कि यह सब डॉक्युमेंट्स का डुप्लीकेसी हो चुकी हैं और ऐन्यूमरेशन में जटिल डॉक्युमेंट्स की मांग की जायें ताकि फ़र्ज़ी वोटरों को पहचाना जाये। मैं खुद सत्रह सालों से बिहार के बाहर रहता हूँ और डॉक्यूमेंट के नाम पर सब कुछ है जिसमें मेरा वोटर कार्ड /ड्राइविंग लाइसेंस बिहार का हैं। इसके अलावे मेरे पास को कोई डॉक्यूमेंट नहीं है जिससे साबित कर सकूँ कि मैं बिहार के पूर्वी चंपारण का निवासी हूँ। कैसे भी करके मैंने अपना ऐन्यूमरेशन ऑनलाइन कराया,लेकिन सच्चाई यह हैं कि कुछ क्षण मैं भी बुरी तरह फंस गया था तो जरा सोचिये बिहार के करोड़ो मतदाता का क्या हश्र होगा ?"

बूथ लेवल अफसर (अधिकारियों) की परेशानी:

कटिहार जिले के आजमनगर प्रखंड अंतर्गत मल्लिकपुर पंचायत के समिति सदस्य प्रदीप यादव ने बताया कि, “ बिहार में मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण में 2003 का वोटर लिस्ट की जरूरत पड़ती है, लेकिन अब तक इलेक्शन कमीशन के वेबसाइट पर आजमनगर प्रखंड के तीन पंचायत का वोटर लिस्ट उपलब्ध नहीं है। जिसके कारण लोग काफी परेशान हैं। पंचायत प्रतिनिधि होने के कारण लोग हम लोग से सहयोग मांगते हैं लेकिन वोटर लिस्ट हम लोग कहां से उपलब्ध कराएंगे। यह काम तो इलेक्शन कमीशन का है।”

2 दिन पूर्व कटिहार जिला के ही जलकी पंचायत में ग्रामीणों ने पंचायत करके इलेक्शन कमीशन को पत्र लिखा है कि ग्रामीण परेशान है।‌ अगर सरकार यह नियम लाई है तो उसको 2003 वाला वोटर लिस्ट भी उपलब्ध कराना चाहिए।

कटिहार जिला के आजमनगर प्रखंड के गायघट्टा पंचायत के एक बीएलओ ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि, "हम लोगों को ट्रेनिंग के वक्त कहा गया था कि सभी बीएलओ को 2003 का वोटर लिस्ट दिया जाएगा, लेकिन अब तक वोटर लिस्ट नहीं दिया गया और इंटरनेट पर भी यह उपलब्ध नहीं है। जिसके कारण लोग काफी परेशान है कि उनका नाम लिस्ट में आएगा या नहीं। कम पढ़े लिखे होने की वजह से इस इलाके के ज्यादातर लोगों के पास के पास कोई शैक्षणिक दस्तावेज भी नहीं है। इसलिए यहां तीन पंचायत के लोग काफी असमंजस में हैं।”

सुपौल जिले के बिना पंचायत में काम कर रही एक बीएलओ भी नाम ना बताने के शर्त पर कहती है कि, “दस्तावेज के साथ और बिना दोनों तरह का फॉर्म हम लोग ले रहे हैं। मेरे पास जमा करने के लिए 1,,000 से ज्यादा गणना फार्म और दस्तावेज हैं। जिसे स्कैन करना है। इतनी कम समय(26 जुलाई) तक यह संभव कैसे हैं। हम समयसीमा बढ़ाने के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।”

बीएलओ के रूप में काम कर रही एक अधिकारी मीडिया से सीधे तौर पर कहती हैं कि, “लोगों के पास जरूरी कागज नहीं हैं। इतने कम दिनों में यह पूरा काम बहुत मुश्किल है।” सोशल मीडिया पर यह वीडियो काफी तेजी से वायरल हो रहा है।

इंडियास्पेंड हिंदी ने एक हफ्ते की रिपोर्टिंग के दौरान या देखा कि यह परेशानी सभी वर्ग और धर्म के लोगों के बीच है।‌ चुनाव आयोग के द्वारा पेश करने के लिए दिए गए 11 डॉक्यूमेंट कई परिवारों के पास नहीं है।

विपक्ष के नेताओं का बयान

चुनाव आयोग के इस फैसले पर सर्वोच्च न्यायालय कई संस्था एवं लोगों ने याचिका दायर किया है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) के अलावा राजद सांसद मनोज झा, सांसद महुआ मैत्रा और सोशल एक्टिविस्ट योगेन्द्र यादव शामिल हैं। याचिका में कहा गया है कि इस अभियान से लाखों लोगों का वोटर लिस्ट से नाम कट जाएगा। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट 10 जुलाई को सुनवाई के लिए तैयार हो गया है।

बिहार के मुख्य विपक्ष नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इस मुद्दे पर मीडिया से बात करते हुए कहते हैं कि, “बिहार में भारत निर्वाचन आयोग द्वारा चलाए जा रहे विशेष गहन मतदाता पुनरीक्षण अभियान 2025 में जो अव्यवस्था, अराजकता और असंवैधानिक कार्यप्रणाली सामने आ रही है, वह अत्यंत निंदनीय और लोकतंत्र के लिए घातक है।यह सब 10 जुलाई को माननीय सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई से पहले जल्दबाजी में किया जा रहा है ताकि आंकड़ों की बाज़ीगरी से सच्चाई को ढका जा सके। कहीं मौखिक रूप से कहा जा रहा है कि आधार कार्ड ही काफी है, तो कहीं कहा जा रहा है कि किसी दस्तावेज की जरूरत नहीं इससे मतदाताओं के बीच भारी भ्रम की स्थिति बन गई है।”

भाकपा (माले) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य इस पूरे मुद्दे पर कहते हैं कि, “शुरुआत से ही पूरी विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया में कोई पारदर्शिता नहीं रही है। हर नई घोषणा के साथ यह प्रक्रिया और अधिक अपारदर्शी व मनमानी पूर्ण होती जा रही है। इसमें किये जा रहे 'बदलाव' हमारी इस समझदारी की तस्दीक कर रहे हैं कि विशेष गहन पुनर्रीक्षण एक अविवेकपूर्ण व अवांछित योजना है और इस कपट भरी योजना की पूरी तरह वापसी की हमारी मांग को बल प्रदान करता है।”