नई द‍िल्‍ली। तारीख 19 जून 202।, यह वो दिन है जब बिहार के मूंगेर निवासी रामबाबू कुमार डीटीसी बस स्टॉप पर अचानक गिर पड़े। आसपास के लोगों ने दिल्ली पुलिस की मदद से उन्हें डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल पहुंचाया। वहां इमरजेंसी वार्ड में तैनात डॉक्टर सिर्फ पूछताछ के जरिए कुछ ही मिनट में पूरा केस समझ गए और स्ट्रेचर के साथ भागते हुए एक बड़े बाथटब में मरीज को लिटा दिया जो बर्फ के कई हजार टुकड़ों से भरा पड़ा था। करीब 22 दिन अस्पताल में रहने के बाद रामबाबू जो​खिम से तो बाहर आ गए। लेकिन वह सब कुछ भूल गए। अपने परिवार, बच्चे, नौकरी और यहां तक कि उस घटना के बारे में उन्हें अब 10 महीने बाद भी कुछ याद नहीं।

रामबाबू की यह कहानी इसलिए क्योंकि 19 जून की उस दोपहर बस स्टॉप पर वह हीट वेव यानी गर्म हवाओं की लहर (सामान्य भाषा में लू) की चपेट में आने से बेहोश हुए। समय पर मदद मिलने से उनकी जान तो बच गई। लेकिन उनकी याददाश्त हमेशा के लिए दूर हो गई।

नई दिल्ली ​स्थित डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल के इमरजेंसी विभाग के प्रमुख डॉ. अमलेंदु यादव ने इंडियास्पेंड से बातचीत में कहा, "वो मेरे करियर का सबसे खास दिन रहा और शायद रामबाबू के लिए सबसे बुरा। मुझे 19 जून की तारीख याद है, जब तापमान यही कुछ 44 डिग्री या उससे ऊपर था। तब लगभग एक सप्ताह दिल्ली में बहुत गर्मी थी और मैं लगातार टीवी-अखबार के जरिए अलग अलग घटनाओं के बारे में सुन रहा था। उस वक्त हमारे पास हीट स्ट्रोक के अब तक के सबसे ज्यादा मामले सामने आए। एक दिन में हमारे पास करीब 18 मरीज इमरजेंसी में पहुंचे। इनमें से कई मल्टी ऑर्गन फेलियर रहे जिन्हें कुछ दिन तक वेंटिलेटर सपोर्ट पर भी रखा गया। रामबाबू का मामला भी इन्हीं में से एक है जिन्हें करीब तीन सप्ताह आईसीयू निगरानी के बाद बचाने में हम कामयाब रहे लेकिन तब तक वह अपनी याददाश्त गंवा चुके थे।"

हीट स्ट्रोक यूनिट में इस तरह मरीजों को बर्फ से भरे टब में रखा जाता है। स्त्रोत- परी​क्षित निर्भय


19 जून 2024 को रामबाबू का इलाज कुछ इस तरह किया गया, स्त्रोत- परी​क्षित निर्भय

वह कहते हैं, "लू लगना हम सब के लिए कोई नया नहीं है। हम सभी बचपन से इनके बारे में सुनते आए हैं। लेकिन, अब यह जानलेवा हो रही है। पहले से ज्यादा घातक, जानलेवा और एक साथ कई अंगों को खत्म करने वाली यह गर्म हवाएं हमारा दिमाग तक पिघला सकती हैं। यही सच है।"

भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक, जून 2024 में गर्मी ने 15 साल का रिकार्ड तोड़ा। 16 से 20 जून के बीच दिल्ली में अ​धिकतम तापमान 47 डिग्री से​ल्सियस तक दर्ज किया गया। इसी अव​धि में हीट स्ट्रोक के मामलों में डॉक्टरों ने उछाल देखा।

हीट स्ट्रोक की आग रामबाबू जैसे कई परिवारों को झुलसा रही है जिनमें से कुछ कहानियां दिल्ली के डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल से जुड़ी हैं क्योंकि सरकार ने 2024 में पहली बार हीट स्ट्रोक यूनिट को स्थापित किया और देश के सभी जिलों में इस तरह की यूनिट शुरू करने के लिए राज्यों को आदेश जारी किया। इसी यूनिट के प्रभारी डॉ. अमलेंदु यादव हैं जिन्होंने इंडियास्पेंड से आंकड़े साझा करते हुए बताया कि यूनिट शुरू होने के बाद जुलाई 2024 तक उनके यहां हीट स्ट्रोक की चपेट में आकर करीब 58 मरीजों को अस्पताल लाया गया जिनमें दो मौतें ऐसी हैं जिनमें से एक फैक्ट्री मजदूर 40 वर्षीय व्यक्ति के शरीर का तापमान 107 डिग्री फारेनहाइट तक पहुंच गया था। गुर्दे और यकृत ने काम करना बंद कर दिया था। दूसरी मौत एक 60 वर्षीय सुरक्षा गार्ड की हुई जो नई दिल्ली क्षेत्र में ही एक बैंक एटीएम पर ड्यूटी देता था।

150 लीटर पानी, 55 किलो बर्फ...तब कम होता है तापमान

हीट स्ट्रोक यूनिट में ऐसे हैं बाथ टब, जिनमें आता है 150 लीटर पानी, स्त्रोत- परी​क्षित निर्भय

डॉ. अमलेंदु यादव ने बताया कि दो बाथ टब और एक बर्फ उत्पादन मशीन वाली इस यूनिट में हीट स्ट्रोक प्रभावित मरीज को ठंडा करने के लिए कम से कम 150 लीटर पानी और 55 किलोग्राम बर्फ की जरूरत पड़ती है। महज एक से दो मिनट में पूरा टब भरने के लिए यहां काफी अ​धिक मोटाई वाले पाइप हैं जो ऊपर छत पर रखी टंकी से सीधे जुड़े हैं। इस टब में करीब 20 से 25 मिनट मरीज को लिटाने के बाद शरीर का तापमान कम से कम पांच डिग्री फारेनहाइट तक कम किया जा सकता है। इस बीच हार्ट बीट, बीपी और ऑक्सीजन की जांच के लिए बड़ी स्क्रीन वाली मशीनें भी लगी हैं जो टब के बिलकुल पास में ही हैं। पानी और बर्फ की बर्बादी रोकने के लिए इस यूनिट को पीक सीजन में ऑल टाइम हाई अलर्ट पर रखा जाता है।

डॉ. अमलेंदु यादव बताते हैं, "हमारे पास जब भी कोई हीट स्ट्रोक का केस आता है तो इमरजेंसी से यहां यूनिट तक लाने में अ​धिकतम 10 से 12 मिनट लगते हैं। सबसे पहले हमें जरूरत को समझना पड़ता है कि आ​खिर मरीज को यहां लाना सही भी है या नहीं। इसका सबसे आसान उपाय केस हिस्ट्री है। इसलिए जब भी कोई यहां आता है तो डॉक्टर सबसे पहले उस मरीज के साथ हुई अंतिम घटना के बारे में जानकारी जुटाते हैं और शरीर के तापमान की जांच करते हैं।"

हीट स्ट्रोक यूनिट में आइस मेकर, जो एक घंटे में 300 किलोग्राम बर्फ के टुकड़े देता है, स्त्रोत- परीक्षित निर्भय

उन्होंने बताया, "इस यूनिट के अलावा हमने अपनी एंबुलेंस को भी खास तरह से तैयार किया है जिसमें ज्यादातर देशी जुगाड़ है। हमने एक 8x8 का त्रिपाल रखा है। बच्चों के हवा फुलाने वाले बाथ टब रखे हैं। साथ ही बर्फ रखने के लिए हमने दवाओं के खाली डिब्बों को चुना जो इस अस्पताल के कबाड़ में भरे पड़े हैं। त्रिपाल इसलिए ताकि ऑन द स्पॉट जब भी कोई हीट स्ट्रोक का केस मिले तो तत्काल त्रिपाल को खोल कर मरीज को लिटाया जाए। उसके आसपास बर्फ रखने के बाद त्रिपाल के चारों कोने पकड़कर मरीज को झुलाया जाए ताकि बर्फ से उसका शरीर कुछ ठंडा हो सके।"

"अगर आप मुझसे एक लाइन में पूछे तो मैं यही कहूंगा, हीट स्ट्रोक से बचाव के लिए सबसे बड़ा ह​थियार एक ही है और वह शरीर को जितना जल्दी ठंडा कर सकते हैं, करिए।"

सुरक्षा गार्ड, मजदूर, रेहड़ी...यही हैं हीट स्ट्रोक के ​शिकार

भीषण गर्मी और लू में खुद को ठंडा रखने का प्रयास करता एक सुरक्षा गार्ड, स्त्रोत- परी​क्षित निर्भय

हीट स्ट्रोक यूनिट से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण करने पर इंडिया स्पेंड ने पाया कि साल 2024 में अत्य​धिक गर्मी के चलते यहां आने वाले मरीजों में सुरक्षा गार्ड, मजदूर, रेहड़ी-पटरी संचालक और 60 वर्ष से अ​धिक आयु वाले बुजुर्ग थे। इन सभी बुजुर्ग रोगियों की हिस्ट्री में एक बात कॉमन रही कि यह सभी छत पर बने कमरों में रहते हैं। डॉक्टरों ने बताया कि छत का कमरा सीधे तौर पर धूप और गर्म हवाओं के संपर्क में रहता है। दोपहर के वक्त जब दिन का तापमान सबसे पीक पर रहता है उस वक्त यह कमरा और इसके अंदर कोई भी इंसान गर्मी से बच नहीं सकता। इसलिए बुजुर्गों को इस तरह के कमरों में रखना बिलकुल उचित नहीं है। न ही बच्चों, गर्भवती महिलाओं या फिर पहले से बीमार रोगियों को रहना चाहिए क्योंकि यह सभी हीट स्ट्रोक की अति संवेदनशील श्रेणी में आते हैं।

डॉ. अमलेंदु कहते हैं, “मरता गरीब है। यह बात हीट स्ट्रोक पर सबसे सटीक बैठती है क्योंकि इसकी चपेट में गरीब आता है जो दिन भर अपने काम, पैदल चलना या अन्य किसी तरीके से गर्म तापमान में सबसे ज्यादा रहता है।”

जलवायु परिवर्तन, भीषण गर्मी और जून का महीना

यूरोपीय संघ (ईयू) की जलवायु एजेंसी कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) के मुताबिक, साल 2024 का जून महीना अब तक का सबसे गर्म महीना रहा। यह लगातार 12वां महीना था जब वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। इस पूरे महीने में सतह का औसत तापमान 16.66 डिग्री सेल्सियस रहा, जो 1991-2020 के औसत तापमान से 0.67 डिग्री सेल्सियस अधिक और जून 2023 में दर्ज पिछले उच्चतम तापमान से 0.14 डिग्री सेल्सियस अधिक है।

दिल्ली के जनपथ मार्केट में दोपहर के वक्त एक कपड़े से खुद को कवर करती युवतियां, स्त्रोत- परीक्षित निर्भय

संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित वैज्ञानिकों और संचारकों के एक स्वतंत्र समूह क्लाइमेट सेंट्रल के विश्लेषण के अनुसार, विश्व की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी ने 16-24 जून के दौरान अत्यधिक गर्मी का सामना किया, जो जलवायु परिवर्तन के कारण कम से कम तीन गुना अधिक संभावित था। जून माह में विश्व की समुद्री सतह भी अब तक के सर्वाधिक स्तर पर दर्ज की गई।

भारतीय मौसम विभाग का कहना है कि साल 2023 में जून का उच्चतम तापमान 41.8°C रहा जबकि 2022 में यह 44.2°C और 2021 में 43°C रहा। 2019 के जून माह में उच्चतम तापमान 45.6°C दर्ज किया गया जबकि 2024 के जून माह में अब तक सबसे उच्चतम तापमान 47 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जिसने 15 साल का रिकॉर्ड तोड़ा।

दरअसल क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन, हीटवेव (गर्म लहर) की आवृत्ति, तीव्रता और अवधि को बढ़ा रहा है। हीटवेव असामान्य रूप से गर्म मौसम की अवधि होती है, जो कुछ दिनों से लेकर महीनों तक भी चल सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि मानव मृत्यु दर के मामले में हीटवेव भारत की सबसे खतरनाक आपदा बन गई है। भारत में पांच सबसे गर्म वर्षों में से तीन पिछले दशक (2015-2024) में दर्ज किए गए हैं। अगर वैश्विक औसत तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है, तो सदी के अंत तक भारत में हीटवेव 30 गुना अधिक बार आने का अनुमान है।

वर्ष 2000 से 2020 के बीच राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने भारत में 20,615 लोगों की हीटस्ट्रोक से मौत होने की पु​ष्टि की है जबकि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के मुताबिक इस अव​​धि में 17,767 लोगों की हीटवेव से मौत हुई। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (IMD, 2022) के डेटा का उपयोग करके 10,545 मौतें दर्ज कीं।

हर एक मौत को बचा सकती है जागरुकता

हीट स्ट्रोक यूनिट में डॉक्टरों ने गर्मी और जलवायु परिवर्तन के बीच रिश्ते को इस तरह समझाने का प्रयास किया, स्त्रोत- परी​क्षित निर्भय

नई दिल्ली ​स्थित अटल बिहरी वाजपेयी इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेस के मेडिसिन विभाग के प्रो. अजय चौहान ने बताया, "गर्मी की चपेट में आकर मरने वालों को बचाया जा सकता है। अगर हम लोगों में जागरुकता लाएं तो हर एक मौत को बचाने में कामयाब हो सकते हैं क्योंकि हीट स्ट्रोक की मृत्युदर 80 से 90 फीसदी है। अगर हम तत्काल पीड़ित को ठंडा करने पर जोर देंगे तो यही दर 10 फीसदी से भी नीचे लाई जा सकती है। सोचिए, बर्फ के कुछ टुकड़े, छायादार जगह, एसी-पंखा या फिर कूलर की हवा, गीले पानी की पट्टी से मसाज जैसे कई उपाय हैं जिनमें से कुछ भी मौके पर मिले, उसका इस्तेमाल करें और जब तक शरीर का तापमान कम न होने लगे तब तक करते रहें। हमने यह पाया है कि जैसे ही तापमान कम होने लगता है, उस पीड़ित को फिर से होश आने लगता है और कुछ ही समय में वह खुद को पहले से बेहतर भी महसूस कर सकता है। इसलिए हर व्य​क्ति को सबसे पहले हीट स्ट्रोक से सावधान रहना चाहिए। अगर जरूरत पड़ती है तो इन उपायों को भूलना नहीं चाहिए।"

हीट स्ट्रोक यूनिट में डॉक्टरों ने गर्मी से बचने के प्रबंधन की जानकारी को कुछ इस तरह चस्पा किया, स्त्रोत- परी​क्षित निर्भय

नई दिल्ली ​स्थित राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के अधीन जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य पर राष्ट्रीय कार्यक्रम की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पूर्वी पटेल बताती हैं कि हीट वेव तब मानी जाती है जब मैदानी इलाकों के लिए वास्तविक अधिकतम तापमान ≥ 40°C, तटीय क्षेत्रों के लिए ≥ 37°C और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए ≥ 30°C हो। अगर हम सामान्य इलाकों की बात करें तो वहां सामान्य तापमान करीब 4.5°C से 6.4°C ऊपर जाने पर हीट वेव शुरू होती है। इससे अ​धिक तापमान पर यह गंभीर हीट वेव का स्वरूप धारण करती है। वास्तविक अधिकतम तापमान के आधार पर कहें तो 45°C तक हीट वेव और 47°C अ​धिकतम तापमान को गंभीर हीट वेव की श्रेणी माना जाता है।

भीषण गर्मी और लू से बचने के लिए सरकार सोशल मीडिया पर कुछ इस तरह जागरुकता अ​भियान चला रही है और बचने के उपाय बता रही है, स्त्रोत- परी​क्षित निर्भय

उन्होंने हीटवेव के प्रत्यक्ष चिकित्सा प्रभावों के बारे में बताया कि इनमें हीट क्रैम्प्स, हीट सिंकोप, हीट स्ट्रोक और यहां तक कि मरीज की मौत होना शामिल हैं। पहले से मौजूद सह-रुग्णताओं का बढ़ना, निर्जलीकरण, किडनी और हृदय संबंधी समस्याओं से ग्रस्त मरीजों के लिए यह काफी जो​खिम भरी हो सकती हैं। इनके अलावा, मनुष्यों और पशुओं की उत्पादकता में कमी - दूध उत्पादन में भी कमी, संघर्ष/झगड़े में वृद्धि - मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में वृद्धि और पानी की कमी से संबंधित समस्याएं होती हैं।