तापमान बढ़ा, कम हुई बारिश, फरवरी की रिकॉर्ड तोड़ गर्मी का खेती किसानी पर कितना असर पड़ेगा?
पिछले 125 वर्षों की तुलना में 2025 का फरवरी महीना सबसे गर्म रहा। इस महीने में बारिश भी कम हुई। ऐसे में रबी फसलों के किसान चिंतित हैं। खासकर गेहूं की खेती करने वाले किसान। लेकिन क्या इसका असर उत्पादन पर भी पड़ेगा? पढ़िये ये रिपोर्ट

ज्यादा तापमान की वजह से गेहूं सहित रबी की दूसरी फसलों के उत्पादन पर असर पड़ सकता है। फोटो- मिथिलेश धर दुबे
लखनऊ। फरवरी 2025 का महीना 125 साल (1901-2025) के इतिहास में सबसे गर्म रहा। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने एक वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बताया कि आगामी गर्मी के सीजन (मार्च-मई) के दौरान देश के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक गर्मी पड़ेगी। इस दौरान लू के दिनों की संख्या अधिक होगी। वर्ष 2025 के दोनों महीने, जनवरी, फरवरी तीन सबसे गर्म महीनों में शामिल हैं, क्योंकि जनवरी 1901 के बाद से तीसरा सबसे गर्म महीना था। इससे पहले 1901 के रिकॉर्ड में 2024 को सबसे गर्म वर्ष घोषित किया गया था। आईएमडी ने यह भी बताया कि सर्दी के मौसम में तापमान बढ़ने की वजह से रबी फसलों का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। सबसे ज्यादा प्रभाव गेहूं की पैदावार पर देखने को मिल सकता है।
आईएमडी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डीएस पई ने गर्म मौसम के लिए पूर्वानुमान जारी करते हुए कहा, "मार्च से मई तक राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और उत्तरी कर्नाटक में सामान्य से अधिक गर्म हवाएं चलने की संभावना हैं। लगातार गर्म सर्दियों के महीने और मार्च में सामान्य से अधिक गर्मी की वजह से गेहूं और दलहनी फसलों के पकने का समय प्रभावित हो सकता है। वहीं जिन राज्यों में फसलों की बुवाई में देरी हुई है, वहां उत्पादन सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकता है।"
मार्च में ज्यादा गर्म दिनों की संख्या बढ़ सकती है
आईएमडी ने बताया कि भारत में फरवरी 2025 के दौरान औसत तापमान 22.04 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जो सामान्य से 1.34 डिग्री सेल्सियस अधिक था। इस महीने में 1901 के बाद से सबसे गर्म न्यूनतम (रात) तापमान और दूसरा सबसे गर्म अधिकतम (दिन) तापमान दर्ज किया गया। यह मध्य भारत में अब तक का सबसे गर्म महीना था, दक्षिण भारत में तीसरा सबसे गर्म, उत्तर पश्चिम में पांचवां सबसे गर्म और पूर्व और पूर्वोत्तर भारत में नौवां सबसे गर्म था।
मध्य भारत में औसत तापमान 24.6 डिग्री सेल्सियस था, जबकि दक्षिण भारत में यह 26.75 डिग्री सेल्सियस, पूर्व और पूर्वोत्तर भारत में 20.14 डिग्री सेल्सियस और उत्तर पश्चिम भारत में यह 17.11 डिग्री सेल्सियस था। मार्च भी गर्म रहने की आशंका है। देश के अधिकांश हिस्सों में दिन और रात दोनों के दौरान सामान्य से अधिक तापमान रहने की आशंका है।फरवरी 2025 के दौरान अधिकतम और न्यूनतम तापमान। सोर्स- IMD
रबी फसल पर गर्म मौसम के प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर डीएस पई कहते हैं कि कृषि मंत्रालय के विशेषज्ञों के साथ उनकी चर्चा के मुताबिक देश में उगाए जाने वाले लगभग 60 प्रतिशत गेहूं की किस्म गर्मी प्रतिरोधी है।
फरवरी कम हुई बारिश, किसानों पर इसका कितना असर?
फरवरी महीने में बारिश भी बहुत कम सामान्य से 50 फीसदी कम हुई। वहीं जनवरी में 71 फीसदी कम बारिश थी। मौसम विभाग ने जनवरी 2025 की अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि फरवरी में कम बारिश और ज्यादा तापमान की वजह से गेहूं की फसलें तो प्रभावित होंगी ही, इसके अलावा बागवानी की फसलें जैसे- सेब का उत्पादन और गुणवत्ता प्रभावित हो सकता है।
आईएमडी के महानिदेशक एम. महापात्रा ने मासिक मौसम ब्रीफिंग में कहा, "उत्तर-पश्चिम भारत के मैदानी इलाकों में सामान्य से कम बारिश और उच्च तापमान के कारण गेहूं जैसी खड़ी फसलों पर फूल और दाने भरने के चरण में काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।"
फरवरी 2025 में अधिकतम तापमान की स्थिति। सोर्स- IMD
"सरसों और चने जैसी फसलें भी जल्दी पक सकती हैं। सेब और अन्य बागवानी फसलों में गर्म तापमान के कारण समय से पहले कली टूटने और जल्दी फूल आने की समस्या हो सकती है जिसके परिणामस्वरूप फलों का खराब होना और उनकी गुणवत्ता खराब हो सकती है, जिसका असर अंततः खराब उपज के रूप में दिख सकता है।" वे आगे कहते हैं।
भारत की सबसे महत्वपूर्ण रबी फसल गेहूं की कटाई आमतौर पर फरवरी से अप्रैल के बीच की जाती है। आईएमडी ने बताया कि पंजाब, हरियाणा और राजस्थान जैसे प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों पर इसका सबसे अधिक असर पड़ने की संभावना है। इसमें कहा गया है कि अन्य गेहूं उत्पादक राज्यों - उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश - पर कम असर पड़ने की संभावना है क्योंकि बारिश और इसलिए कम तापमान की संभावना अधिक है।
गेहूं, सरसों पर कितना असर?
भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान (IIWBR) के पूर्व निदेशक ज्ञानेंद्र सिंह कहते हैं, "किसान अब जिन किस्मों को अपनाते हैं, वे जलवायु-प्रतिरोधी हो चुकी हैं और जब तक रात का तापमान ठंडा रहता है और न्यूनतम तापमान 15 डिग्री सेल्सियस के भीतर रहता है, गेहूं सुरक्षित रहेगा।" उन्होंने बताया कि जो गेहूं पौधे सामान्य समय पर 20 नवंबर से पहले बोए गए थे। यह लगभग 50 दिनों में परिपक्व हो जाएगी। मौजूदा समय में जो किस्में बोई जाती हैं, वे दिन में तापमान 35 डिग्री सेल्सियस तक सहन कर सकती हैं। हालांकि, किसानों खेतों को हल्का सिंचाई करते रहें ताकि फसल सूख न जाए।
मध्य प्रदेश, उज्जैन कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख प्रवीण कुमार द्विवेदी कहते हैं कि यदि मार्च में तापमान 32 डिग्री सेल्सियस से अधिक पहुंचता है तो गेहूं के उत्पादन पर सीधा असर पड़ेगा। अभी औसत तापमान 28 डिग्री सेल्सियस है, जबकि गेहूं के लिए आदर्श तापमान 20-22 डिग्री सेल्सियस माना जाता है। अधिक गर्मी के कारण गेहूं के दाने सिकुड़ सकते हैं, जिससे पैदावार में कमी आ सकती है। अगर ऐसे स्थिति किसानों को दिखे तो वे गेहूं के खेत में बोरोन और 0050 का स्प्रे जरूर करें या बोरोन के साथ पोटेशियम नाइट्रेट का छिड़काव करें. इससे फसल को गर्मी के प्रभाव से कुछ हद तक बचाया जा सकता है।
जनवरी 2025 में हुई बारिश का लेखा-जोखा। सोर्स- IMD
करनाल स्थित भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान के प्रधान कृषि वैज्ञानिक अनुज कुमार (Quality and Basic Science) बताते हैं कि किसान गेहूं की तीन किस्मों की खेती करते हैं। अगेती यानी समय से पहले, समय पर, और पछेती। हर किस्म का दाना पकने में अलग-अलग समय लेता है। सामान्य तौर पर 140-145 दिनों में फसल तैयार होती। 100 दिन की फसल में बाली आने लगती है।
वे आगे बताते हैं, “25 नवबंर से पहले बोई गई फसल मार्च के महीने में तैयार हो जाती है, जबकि 25 नवंबर के बाद बोई गई फसल अप्रैल तक पक जाती है। आखिरी के एक महीने में गेहूं की बालियों में दूध भरने लगता है। इस समय सही तापमान की जरूरत पड़ती है। ज्यादा तापमान के कारण बालियां जल्दी पक जाती हैं जिसकी वजह से दाने पतले हो जाते हैं। ऐसे में दानों की संख्या तो ठीक रहेगी। लेकिन वजन कम हो जायेगा।”
1901 से 2025 तक फरवरी महीने का तापमान। सोर्स- IMD
भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार गेहूं उत्पादन के मामले में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब क्रमश: पहले, दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं।
लखनऊ कृषि विज्ञान केंद्र में वरिष्ठ वैज्ञानिक और क्रॉप पैटर्न के जानकार डॉ. अखिलेश कुमार दुबे का कहना है कि फरवरी महीने के शुरुआती सप्ताह में ज्यादा तापमान ने सरसों पर प्रभाव डाला है! लेकिन अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा।
“फरवरी के पहले और दूसरे सप्ताह में तापमान सरसों के लिए जरूरी तापमान 25 से 30 डिग्री से ज्यादा रहा। ऐसे में उसके फूलों पर असर पड़ा है। लेकिन अभी रात का मौसम ठीक है। ऐसे में अब यहां से ज्यादा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि फसल की कटाई भी शुरू हो गई। अगर तापमान और बढ़ता है तो पछेती फसल पर जरूर असर देखने को मिल सकता है।”
“सरसों की फसल पर असर कम देखने को मिल सकता है। दिन का मौसम भले ही गर्म है। लेकिन रात का तापमान सही है। अगर दिन में भी तापमान 30 से 32 डिग्री सेल्सियस तक रहता है तो सरसों की फसल को दिक्कत नहीं होगी। पैदावार पर असर पड़ेगा भी तो उन क्षेत्रों में जहां बुआई देर से हुई है। समय पर या पहले लगी फसल पर असर नहीं पड़ेगा।” सरसों अनुसंधान निदेशालय, भरतपुर के निदेशक प्रमोद कुमार राय ने इंडियास्पेंड हिंदी को बताया।
कृषि वैज्ञानिक अनुज कुमार का कहना है कि अभी कुछ भी भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगा।
“ये बात बिल्कुल सही है कि ज्यादा तापमान से गेहूं की फसलों को नुकसान पहुंचता है। लेकिन यहां देखने वाली बात यह भी कि अगर ज्यादा तापमान एक सप्ताह से ज्यादा तक रहता है तो नुकसान हो सकता है। गेहूं की पैदावार पर असर पड़ सकता है। लेकिन चूंकि रात का तापमान ठीक है तो नुकसान की आशंका कम है। हम कई वर्षों से बदलते मौसम को देख रहे हैं। ऐसे में हम काफी समय से ऐसी किस्मों पर जोर दे रहे हैं कि जो ऐसे प्रतिकूल मौसम से लड़ने में सक्षम है। देश के बहुत हिस्सों में ऐसी ही किस्म लगाई जा रही। मार्च महीने का तापमान देश के ज्यादातर हिस्सों में ठीक है।”
लागत बढ़ी, लेकिन किसानों के सामने विकल्प क्या हैं?
बढ़ते तापमान के कारण खेती की लागत भी बढ़ रही है। मध्य प्रदेश के जिला छिंदवाड़ा में रहने वाले किसान राकेश पटेल कहते हैं कि तापमान बढ़ने की वजह से सिंचाई और दवा का खर्च बढ़ गया है। इस बार गेहूं के खेत में मार्च के पहले सप्ताह में चौथी बार सिंचाई करनी पड़ी, जिससे प्रति एकड़ 700 रुपए का भार बढ़ गया है। इस साल कम ओस पड़ने की वजह से खेतों में नमी तेजी से खत्म हो रही है, जिससे अतिरिक्त सिंचाई की आवश्यकता पड़ रही है। यदि तापमान इसी तरह बढ़ता रहा, तो लागत और बढ़ जायेगी।
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. दीपल राय कहते हैं किसानों को बदलते मौसम का सामना करने के लिए अच्छी किस्मों के चयन के अलावा फसल का चक्र भी बदलना होगा।
“बढ़ते तापमान का फसलों पर प्रतिकूल असर तो पड़ेगा ही, किसानों की लागत भी बढ़ रही है। ऐसे में किसानों को फसली चक्र में मौसम के अनुसार बदलाव करने होंगे। गेहूं के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान सही माना जाता है। लेकिन अभी तापमान देखें तो पारा 30 से ऊपर चल रहा। तेज हवाओं ने और मुश्किल बढ़ा दी है। इतना ज्यादा तापमान दानों को सुखा देगा। ऐसे में जरूरी है किसान खेत को नम तो रखें ही, वैज्ञानिक से सलाह लेकर सही समय पर सिंचाई करें।”
“किसानों को जरूरत पड़ने पर अपने खेतों को पानी से नम रखने की जरूरत है और साथ ही इस बात का ध्यान भी रखना होगा कि जब गर्म हवा चल रही हो तो वे सिंचाई ना करें।” डॉ. दीपल राय आगे कहते हैं। वे यह भी कहते हैं कि पिछले कई वर्षों से ऐसी स्थिति बन रही है। ऐसे में किसानों को चाहिए कि वे नवंबर तक हर हाल में गेहूं की बुआई कर लें।