मुंबई/लखनऊ: एक ऐसा साल जब भीषण गर्मी और हीटवेव की आशंका थी, मई 2025 में अभूतपूर्व बारिश हुई, जिसने देश को चौंका दिया। बार‍िश भी थोड़ी बहुत ज्‍यादा नहीं, सामान्य से लगभग दोगुनी या 85.7% अधिक हुई। वास्तव में मध्य भारत में इस महीने (27 मई तक) सामान्य से पांच गुना अधिक बारिश हुई है और दक्षिण भारत ने 2.5 गुना का आंकड़ा पार कर लिया है।

दक्षिण-पश्चिम मानसून 24 मई को केरल पहुंचा, जो सामान्य से आठ दिन पहले और 2009 के बाद सबसे जल्दी आने वाला मानसून है।

देश के अधिकांश हिस्से मार्च और अप्रैल में भीषण गर्मी की चपेट में थे और उम्मीद थी कि मई में यह और भी बदतर हो जाएगा। लेक‍िन देश के अधिकांश हिस्सों में कोई महत्वपूर्ण या लंबे समय तक चलने वाली गर्मी की लहर नहीं देखी गई। इसके बजाय गरज के साथ बारिश हुई, यहां तक ​​कि ओलावृष्टि भी हुई, जिससे अधिकतम तापमान में गिरावट आई और मई भीषण गर्मी से बचा गई। हालांकि, बेमौसम बारिश के कारण तमिलनाडु, महाराष्ट्र, तेलंगाना, गुजरात और अन्य राज्यों में बड़े पैमाने पर फसल का नुकसान हुआ।

अब जबकि देश खरीफ की बुवाई के लिए तैयार है, क्या मई की बारिश किसी भी तरह से दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौर को प्रभावित करेगी या कम करेगी? भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के महानिदेशक एम. महापात्रा ने नकारात्मक जवाब दिया और इंडियास्पेंड से कहा, "लंबी अवधि की मौसमी बारिश मई की बारिश पर निर्भर नहीं है। कोई 1:1 संबंध नहीं है।"

IMD ने इस साल 'सामान्य से ऊपर' मानसून सीजन का अनुमान लगाया है। मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आईएमडी ने पूर्वानुमान लगाया कि मानसून दक्षिणी और मध्य भारत में सामान्य से अधिक, उत्तर-पश्चिम भारत में सामान्य और पूर्वोत्तर भारत में सामान्य से कम रहेगा। वास्तव में जून के महीने में सामान्य से 8% अधिक वर्षा का पूर्वानुमान है (दोनों पूर्वानुमान 4% की त्रुटि के मार्जिन के साथ)। लेकिन भिन्नताएं होना तय है।

पिछले पांच साल के दौरान जब भारत का मानसून 6% ज्‍यादा पर समाप्त हुआ था, क्षेत्र और महीनों के बीच में बड़े बदलाव हुए थे। मानसून के महीनों के दौरान बार‍िश में अंतर था। कहीं बार‍िश ज्‍यादा हुई तो तो कहीं कम। पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों, पंजाब, बिहार में कम बारिश हुई, जबकि गुजरात और राजस्थान में ज्‍यादा बार‍िश हुई।

गर्म हवाएं खत्म, आंधी-तूफान

मई की शुरुआत में IMD ने इस महीने उत्तर-पश्चिम, मध्य और पूर्वी भारत में गर्म दिन और रातें तथा सामान्य से अधिक गर्म हवाएं चलने का
पूर्वानुमान
लगाया था। साथ ही पूरे देश में सामान्य से अधिक बार‍िश (या 9% अधिक) होने का पूर्वानुमान लगाया था अब तक भारत की मासिक वर्षा सामान्य से 85.7% अधिक है (27 मई तक का डेटा)।

इसकी शुरुआत मई के पहले सप्ताह में ही हो गई थी, जब देश के कई हिस्सों में ठीक-ठाक बार‍िश होने लगी थी। उत्तर-पश्चिम, मध्य और पूर्वी भारत में मध्यम से लेकर तेज आंधी-तूफान, तेज हवाएं या झोंकेदार हवाएं चलने के साथ लंबे समय तक बारिश हुई। अकेले 7 मई को पूर्वी राजस्थान, पश्चिमी मध्य प्रदेश, सौराष्ट्र और कच्छ के कुछ हिस्सों में भारी बारिश दर्ज की गई। उस सप्ताह वर्ष के इस समय की अपेक्षा 35% अधिक वर्षा दर्ज की गई थी।

बारिश का दौर यहीं नहीं रुका। दूसरे सप्ताह में भी भारत में सामान्य से 20% अधिक बारिश हुई, इतनी अधिक कि कोई भी लू दर्ज नहीं की गई।

मई के इस मौसम की एक महत्वपूर्ण विशेषता तेज हवाएं, ओलावृष्टि, बिजली के साथ गरज के साथ बारिश और धूल भरी आंधी की उपस्थिति रही है। इन मौसमी घटनाओं के अप्रत्याशित आगमन की वजह से कई तरह की परेशानी का सामना करना पड़ा।

20 मई को बेंगलुरु शहर में भारी बारिश हुई जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई। गोवा, गुजरात, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और भारत के कई अन्य क्षेत्रों में भी इसी तरह की भारी बारिश दर्ज की गई। महाराष्ट्र में, मराठवाड़ा, विदर्भ और कोंकण क्षेत्रों में काफी बार‍िश जहां आमतौर पर लू चलती है। 2 मई को दिल्ली में 1901 के बाद से मई में 24 घंटे की दूसरी सबसे अधिक बारिश दर्ज की गई, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। दिल्ली में 21 मई को भी धूल भरी आंधी आई और 25 मई को भारी बारिश के कारण हवाई अड्डे पर छतरी का एक हिस्सा गिर गया।

7 मई को मुंबई में एक दशक में दूसरा सबसे ज्‍यादा बारिश वाला दिन दर्ज किया गया और शहर में इस साल मई में सबसे ज्‍यादा बारिश हुई। इन मौसमी की घटनाओं के कारण उड़ानें और ट्रेनें रद्द हो गई हैं, यातायात अस्त-व्यस्त हो गया है, स्कूल बंद हो गए हैं, दफ्तरों में व्यवधान आया और सामान्य जीवन भी अस्‍त-व्‍यस्‍त रहा। इन व्यवधानों ने दिहाड़ी मज़दूरों, छोटे विक्रेताओं और स्थानीय व्यवसायों को सबसे ज्‍यादा प्रभावित किया है, जिनमें से कई लोग कई दिनों तक ठप पड़े काम और क्षतिग्रस्त बुनियादी ढांचे से उबरने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

मौसम में आये दस बदलाव की गंभीरता को आंकड़ों से भी समझा जा सकता है। मध्य भारत में मई में सामान्य से पांच गुना ज्‍यादा बारिश दर्ज की गई है (सामान्य से 402% ज़्यादा) और दक्षिण भारत में सामान्य से ढाई गुना ज्‍यादा (सामान्य से 165% ज्‍यादा) बारिश दर्ज की गई है। यहां तक कि उत्तर-पश्चिम भारत में भी 24.7% ज़्यादा बारिश दर्ज की गई है। इसलिए, जहां मार्च और अप्रैल में बारिश कम रही, वहीं मई में अब तक 85.7% ज्‍यादा बारिश हुई है (सभी आंकड़े 27 मई तक के हैं)।

कुल मिलाकर प्री-मानसून सीजन जो किसी दिए गए वर्ष का 1 मार्च से 31 मई तक होता है, अब 28.3% ज्‍यादा है।

हालांकि पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों, जम्मू और कश्मीर और लद्दाख, और हिमाचल प्रदेश में इस साल (मार्च से मई) प्री-मानसून बारिश कम हुई है। इस बीच सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्र में सामान्य से 17 गुना बारिश हुई है। गुजरात उपखंड में लगभग 12 गुना, कोंकण और गोवा में 19 गुना और विदर्भ में इस प्री-मानसून सीजन में सामान्य से चार गुना बारिश हुई है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-बॉम्बे के सेवानिवृत्त प्रोफेसर और मैरीलैंड विश्वविद्यालय के एमेरिटस प्रोफेसर रघु मुर्तुगुडे ने कहा कि मौजूदा आंधी-तूफान (मई में) मुख्य रूप से अरब सागर पर चलने वाली हवाओं और बंगाल की खाड़ी से आने वाली हवाओं के मिलने के कारण हैं जो प्रायद्वीपीय और पूर्वी भारत में हो रही हैं।

"इससे कुछ वर्षा की घटनाएं बढ़ रही हैं। हां, यह मानसून-पूर्व अवधि के लिए असामान्य है। लेकिन 2023 से उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में हमारे पास असामान्य समुद्री सतह तापमान पैटर्न हैं।" उन्होंने आगे कहा।

आईएमडी के महानिदेशक एम. महापात्रा ने मई की वर्षा को 'ऐसी नियमित घटना नहीं' बताया। “इस वर्ष पश्चिमी विक्षोभ की आवृत्ति अधिक रही है। लगातार पश्चिमी विक्षोभ ने यह सब बार‍िश, गरज, ओलावृष्टि, तापमान में गिरावट आदि ला दी है। इन पश्चिमी विक्षोभों की अधिक दक्षिणी अक्षांश प्रतिध्वनि बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से नमी के प्रवेश में भी मदद करती है। इसलिए इस प्रकार की गतिविधि हुई है। यह एक बड़ा देश है, केवल एक कारण नहीं हो सकता है" महापात्रा ने कहा।

मई के लिए आईएमडी के पूर्वानुमान की सटीकता के बारे में पूछे जाने पर, महापात्रा ने कहा कि आईएमडी ने मई महीने के लिए सामान्य से अधिक बार‍िश का पूर्वानुमान लगाया था।

"हमने स्थानिक मानचित्र दिया, जिसमें दिखाया गया कि भारत के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक वर्षा हुई। हां, हमने हीटवेव का पूर्वानुमान लगाया था, लेकिन ऐसा बहुत कम हुआ।"

मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मोहपात्रा ने कहा कि मई के महीने में पांच से सात पश्चिमी विक्षोभ विकसित हुए, सक्रिय हुए और मध्य भारत तक फैल गए। भारत के कई हिस्सों में आंधी-तूफान के पीछे यही मुख्य कारण था, जिससे तापमान में गिरावट आई।

किसानों पर मार

दक्षिण-पश्चिम मानसून जब यह समय पर होता है तो ये भारतीय कृषि की जीवनरेखा है, जो देश के 50% से अधिक कृषि भूमि को पोषण देता है और खरीफ फसल के मौसम में अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है। इस वर्ष मई में बेमौसम बारिश ने तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात और कई अन्य क्षेत्रों में फसलों को काफी नुकसान पहुंचाया है।

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के किसान गोविंद कुशवाहा कहते हैं, "आमतौर पर मई में इतनी बारिश नहीं होती। इस बार हमारी फसल अच्छी थी। लेकिन मौसम खराब हो गया। मेरे केले के पेड़ों पर पहले से ही फल लगे हुए थे और वे गरज और बारिश का असर नहीं झेल पाए। अब सब भगवान के हाथ में है।"

कुशवाहा ने एक एकड़ जमीन पर केले लगाए थे। 22 मई को हुई बेमौसम बारिश के कारण उनके आधे पेड़ गिर गए हैं। अब उनके फल प्रभावित हुए हैं। फसल उम्मीद से कम होगी और जो बचे हैं उनकी गुणवत्ता बारिश के कारण खराब होगी, जिसके परिणामस्वरूप बाजार में मांग कम होगी या कीमतें कम होंगी।

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में भारी बारिश के कारण केले की फसल को नुकसान हुआ।फोटो: मिथिलेश धर दुबे

उत्तर प्रदेश में आम के किसानों को भी भारी नुकसान हुआ है। अवध आम उत्पादक बागवानी समिति मलीहाबाद के महासचिव उपेंद्र सिंह ने बताया कि जिन किसानों ने बैगिंग (फलों पर जाली लगाकर) तकनीक का इस्तेमाल कर अपने आमों की सुरक्षा की थी, वे अपनी फसल बचाने में कामयाब रहे, लेकिन जिन किसानों ने यह सावधानी नहीं बरती, उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

सिंह ने कहा, "इस तरह का मौसम बागवानों के लिए अच्छा नहीं है। लखनऊ, मेरठ, सहारनपुर, अलीगढ़, झांसी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में आंधी-तूफान के कारण बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। समय से पहले गिरे ये आम खराब हो गए हैं और इन्हें कोई खरीदार नहीं मिलेगा।"

पश्चिमी विक्षोभ और उनकी बदलती प्रकृति

भारत के विशाल आकार के कारण मई में असामान्य बार‍िश और ऐसी घटनाओं को केवल एक मौसमी घटना नहीं कहा जा सकता। पश्चिमी विक्षोभ, ऊपरी वायु चक्रवात, पश्चिम और पूर्व से आने वाली हवाओं की परस्पर क्रिया जैसे कई मौसम संबंधी कारण इसमें योगदान देने वाले कारक हैं।

पश्चिमी विक्षोभ तूफान हैं जो सर्दियों के दौरान मुख्य रूप से उत्तर भारत और पाकिस्तान को प्रभावित करते हैं। इस साल ये तूफान जनवरी के अंत से शुरू हुए। पश्चिमी विक्षोभ पूरे साल यात्रा करते हैं, लेकिन अलग-अलग अक्षांशों पर। वे सर्दियों के दौरान निचले अक्षांशों में यात्रा करते हैं और उत्तर भारत में काफी मात्रा में बारिश और बर्फबारी लाते हैं।

इस बीच दिल्ली स्थित थिंक-टैंक क्लाइमेट ट्रेंड्स द्वारा किए गए शोध के अनुसार गर्मियों में ये मौसम प्रणालियां उच्च अक्षांशों में यात्रा करती हैं जिससे बर्फबारी और बार‍िश की गतिविधियां क्षेत्र के उच्च क्षेत्रों तक ही सीमित रहती हैं।

हालांक‍ि, जलवायु परिवर्तन इन पश्चिमी विक्षोभ की प्रकृति को बदल सकता है। उदाहरण के लिए पश्चिमी विक्षोभ ने अप्रैल में पश्चिमी हिमालय पर बहुत अधिक बार‍िश की।

आईएमडी के मौसम विज्ञान के पूर्व महानिदेशक केजे रमेश ने अप्रैल में कहा था, "ग्लोबल वार्मिंग के कारण अरब सागर में तेजी से गर्मी बढ़ रही है, जिससे उत्तर की ओर ज्‍यादा नमी निकल रही है। अब जब पश्चिमी विक्षोभ का दायरा उत्तरी अरब सागर तक बढ़ रहा है, तो सिस्टम में ज्‍यादा नमी आ रही है, जिससे पहाड़ों पर मौसम की तीव्र गतिविधि हो रही है।"

वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वार्मिंग के बीच पश्चिमी विक्षोभ में तेजी से अनियमितता की प्रवृत्ति की चेतावनी दी है। भारतीय भू-चुंबकत्व संस्थान के निदेशक एपी डिमरी ने कहा कि गर्मी के बढ़ते दबाव ने पश्चिमी विक्षोभ की विशेषताओं को भी बदल दिया है।

"बढ़ते सबूत बताते हैं कि पश्चिमी विक्षोभ सर्दियों के मौसम के बाहर मौसम को प्रभावित कर रहे हैं, जिससे अत्यधिक बार‍िश हो रही है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि गर्मी का बढ़ता दबाव हर चीज का आधार है, क्योंकि यह ज्‍यादा ऊर्जा पैदा कर रहा है और साथ ही नमी को ऊपर की ओर धकेल रहा है।" डिमरी कहते हैं।

ये बदलते मौसम पैटर्न व्यापक जलवायु परिवर्तन प्रवृत्तियों के अनुरूप हैं, जहां बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण अप्रत्‍याश‍ित मौसम की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिसमें बेमौसम बारिश से लेकर तूफान चक्र में बदलाव शामिल हैं जो भारत के लिए नई चुनौतियां पेश कर रहे हैं।