लखनऊ। “मेरी नियुक्ति वर्ष 2012 में हुई थी। मैं गणित, विज्ञान और अंग्रेजी पढ़ाता था। केन्द्र सरकार की ओर से महीने में 12,000 रुपए मिलते थे। राज्य में उस समय अखिलेश यादव (समाजवादी पार्टी) की सरकार थी तो राज्य सरकार की ओर से भी 3,000 रुपए मिलने लगे। इस हिसाब से महीने में 15,000 रुपए मिल जाते थे। लेकिन अब कुछ नहीं मिल रहा।”

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 28 किलोमीटर दूर बाराबंकी शहर में रहने वाले मोहम्मद अकरम अंसारी एक मदरसा में आधुनिक व‍िषयों के टीचर हैं। लेकिन उन्‍हें काफी समय से वेतन नहीं म‍िला है।

“प्रधानमंत्री जी का नारा था ‘एक हाथ में कुरान एक हाथ में लैपटॉप’ हमें लग रहा अब कटोरा हाथ में आ जाएगा। अभी हम ठेलिया चला रहे हैं। एक चक्कर का 20 रुपया मिलता है। पूरे दिन में 150 रुपए का काम हो जाता है। हमें केन्द्र सरकार से 2012 से अब तक मात्र 3 साल का मानदेय मिला है। हमारी लॉट संख्या 273 थी इसमें काफी शिक्षकों का पैसा बकाया है। बात अगर इस सत्र की करें तो हमें अप्रैल और मई महीने का पैसा राज्य सरकार से म‍िला। परिवार में 5 लोग हैं, 3,000 में खर्च पूरा नहीं हो पाता। मदरसा जाने में हमारा 60 रुपए का पेट्रोल लग जाता था।" अकरम आगे बताते हैं।

ये कहानी बस अकरम की नहीं है। उत्तर प्रदेश के मदरसों में पढ़ाने वाले उनके जैसे हजारों मॉर्डन श‍िक्षकों की स्‍थ‍ित‍ि लगभग ऐसी ही है। उनका आरोप है क‍ि उन्‍हें प‍िछले कई वर्षों से केंद्र सरकार से म‍िलने वाला वेतन नहीं म‍िला है। वहीं उत्तर प्रदेश सरकार से म‍िलने वाला अत‍िर‍िक्‍त धन भी जनवरी 2024 से रोक द‍िया गया है। हालांकि उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. इफ्तिखार जावेद अहमद का कहना है क‍ि प्रदेश सरकार की ओर से म‍िलने वाला पैसा भी प‍िछले एक साल से नहीं म‍िला है, जबकि केंद्र सरकार की ओर से इसे रुके हुए छह साल हो गये।

मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत आधुनिक शिक्षक जो स्नातक हैं, उन्हें केंद्र सरकार की ओर से 6,000 रुपए प्रति माह मिलता था और जो स्नातकोत्तर हैं, उन्हें 12,000 रुपए का भुगतान होता था। वेतन के बजाय इन शिक्षकों को उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त धन मिल रहा था। स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षकों के लिए क्रमशः 2,000 रुपए और 3,000 रुपए म‍िल रहा था जिसकी घोषणा राज्य सरकार ने 2014 में की थी।

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड के अनुसार राज्य भर में चल रहे 7,442 पंजीकृत मदरसों में 21,000 से अधिक आधुनिक शिक्षक तैनात हैं। इनमें हर समुदाय के लोग हैं। वे लगभग 10 लाख छात्रों को हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान जैसे विषय पढ़ाते हैं। पंजीकृत मदरसों में से 560 सरकारी सहायता प्राप्त हैं।

मदरसों में हिंदी, अंग्रेजी, विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान और अन्य भाषाओं में शिक्षा प्रदान करने के लिए मदरसा आधुनिकीकरण योजना 1993-94 में तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी, जिसका नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया। एक मदरसे में अधिकतम तीन आधुनिक शिक्षक नियुक्त किए जाते हैं। अप्रैल 2021 में इस योजना को शिक्षा मंत्रालय से अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया।

तारीख एक मार्च, वर्ष 2018। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था, "पूरी खुशहाली और समग्र विकास तभी संभव है, जब आप यह देखें कि मुस्लिम युवाओं के एक हाथ में कुरान शरीफ है तो दूसरे हाथ में कंप्यूटर है।" उन्होंने यह भी कहा था कि आज सबसे ज्‍यादा जरूरत इस बात की है कि हमारे युवा एक तरफ मानवीय इस्लाम से जुड़े हों और दूसरी तरफ आधुनिक विज्ञान और तकनीक का इस्तेमाल भी कर सकें।

इसी वर्ष यानी 2018 में ही साल उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आद‍ित्‍यनाथ ने लगभग यही बात दुहराते हुए कहा, "हम लोगों को तय करना होगा कि हम अपनी वर्तमान पीढ़ी को कहां ले जाना चाहते हैं। कितने मौलवी और मुंशी चाहिए आपको? कितने मुतवल्ली चाहिए? आपकी परंपरागत शिक्षा केवल आपको वो देगी। क्यों नहीं आधुनिक मानी जानी चाहिए? क्या उसे अच्छा नागरिक बनाने, एपीजे अब्दुल कलाम बनने का अधिकार उस नौजवान के लिए नहीं है जो मदरसे में पढ़ रहा है? अगर उसको विज्ञान के बारे में, गणित के बारे में, कंप्यूटर के बारे में शिक्षा देने के किसी अभियान को सरकार चलती है तो उसका विरोध क्यों?"

राजधानी लखनऊ से 58 किलोमीटर दूर सहादतगंज बाराबंकी के सहादतगंज कस्बे में रहने वाले मोहम्मद सूफियान अंसारी बताते हैं "मैं पिछले 12 से मदरसे में आधुनिक शिक्षक के रूप में पढ़ा रहा। केन्द्र सरकार से 12,000 रुपए और राज्य सरकार से 3,000 मिलते थे। लेकिन केंद्र सरकार से हमें पिछले सात वर्षों से हमें कोई मानदेय मिला ही नहीं। मैं अंग्रेजी और गणित पढ़ाता था। सिलाई करके पर‍िवार चला रहा। 200 से 250 रुपए तक की कमाई हो जाती है। चार लोगों का परिवार है, इस महंगाई में इतने पैसे से पर‍िवार कैसे चलेगा।"

सूफियान आगे बताते हैं क‍ि जब हमारी नियुक्ति हुई थी तब हम हमे देर सवेरे पैसा मिल जाता था। लेकिन अब वह भी बंद है। अभी हम रोज पढ़ाने जाते हैं। लेकिन चुनाव बाद सरकार हमारी नहीं सुनती तो मजबूरी में हम मदरसा जाना बंद कर देंगे। सात साल हो गए हैं। हमारी कहीं सुनवाई नहीं हुई। चुनाव में नेता वादा तो करते हैं। लेकिन चुनाव खत्‍म होते ही सब भूल जाते हैं।

सहादतगंज के ही जैद अंसारी 2009 से मदरसे में पढ़ा रहे हैं। वे द‍िव्‍यांग हैं। ऐसे में उनके सामने पर‍िवार चलाना और चुनौती है। “घर में भुखमरी जैसे हालात हैं। परिवार का पालन पोषण करना मेरी लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। बूढ़ी मां और तीन बच्चों की जिम्मेदारी मेरे ऊपर है। पेट भरने के लिए बुनकारी का काम कर रहा।"

अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने पिछले साल राज्यसभा में कहा था कि एसपीक्यूईएम एक मांग-आधारित योजना थी, जिसे 3 मार्च 2022 तक लागू किया गया था। 8 जनवरी 2024 को, यूपी राज्य अल्पसंख्यक मामलों के निदेशक की ओर से जिलाधिकारियों सहित विभिन्न हितधारकों को एक पत्र लिखा गया कि यूपी सरकार मानदेय रोक रही है क्योंकि यह एसपीक्यूईएम से जुड़ी एक पूरक योजना थी।

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. इफ्तिखार जावेद अहमद का कहना है क‍ि सरकार इस फैसले पर फ‍िर से व‍िवार करना चाह‍िए। एसपीक्यूईएम के जर‍िये मदरसों के हजारों छात्रों को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ा गया। ऐसे में तो एक हाथ कुरान, एक हाथ कंप्‍यूटर का सपना कभी पूरा नहीं हो पायेगा।

वहीं इस मामले पर उत्‍तर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण राज्यमंत्री दानिश आजाद अंसारी ने कहा क‍ि योगी सरकार मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षकों के लिए बहुत संजीदा है। चूंकि केंद्र ने मानदेय बंद कर दिया है इसलिए तकनीकी कारणों से यहां भी बंद हो गया है। इस समस्या का हल निकाला जा रहा है।