लखनऊ: बारह वर्ष की एक नाबालिग के साथ एक पारिवारिक शादी के दौरान दुष्‍कर्म किया गया। वह अपराधी को नहीं पहचानती थी। घर वालों को जब ये बात पता चली तो उन्होंने मामला दर्ज कराया। लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद भी उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। जबकि कानून की मानें तो ये मामला पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज किया गया जाएगा जिस पर त्वरित कार्रवाई होनी चाहिए थी। पॉक्सो भारत सरकार द्वारा बनाया गया कानून है जिसमें बच्चों और नाबालिगों के साथ यौन-शोषण पर जल्द से जल्द कड़ी सजा के नियम रखे गए हैं। बावजूद इसके लाखों नाबालिग बच्चे न्याय की उम्मीद लगाए सालों से इंतजार कर रहे हैं।

इस कानून के तहत बच्चों और नाबालिगों के साथ अश्लील हरकत करना, उनके प्राइवेट पार्ट्स को छूना, बच्चों को अश्लील फिल्म या पोर्नोग्राफिक कंटेंट दिखाना आते हैं। बच्चों के शरीर को गलत इरादे से छूना या बच्चों के साथ गलत भावना से की गयी सभी हरकतें इस एक्ट में रेप की श्रेणी में रखी गई हैं।इन सभी को अपराधों में कड़ी सजा का प्रावधान भी है। बाल अधिकारों पर काम कर रही गैर सरकारी संस्था विथ यू के मैनेजर राकेश कुमार बताते हैं।

“बाल अपराध से जुड़े हर मामले को हम पॉस्को के तहत रजिस्टर भी नहीं कर सकते। लेकिन जो मामले दर्ज होते हैं वह गंभीर होते हैं और उन पर तुरंत ही कार्रवाई होनी चाहिए। इसे दर्ज कराने के ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनों ही तरीके हैं”, राकेश कुमार ने आगे बताया।

पॉस्को के तहत आते हैं ये मामले

चाइल्ड राइट एंड यू CRY की प्रोग्राम हेड जया सिंह बताती हैं, “18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से संबंधित सभी प्रकार के यौन उत्पीड़न और बाल अश्लील साहित्य के मामलों को पोक्सो (POCSO) अधिनियम के तहत दर्ज किया जा सकता है। इसमें पीछा करना, यौन संतुष्टि के लिए बच्चों का उपयोग, बाल अश्लील साहित्य का संग्रह और बच्चों को अश्लील सामग्री दिखाना शामिल है। "ईव-टीजिंग" (eve-teasing) एक पुराना शब्द है। इसे सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्परिभाषित कर यौन उत्पीड़न के रूप में माना है। पॉक्सो अधिनियम की धारा 11 में यौन उत्पीड़न को शामिल किया गया है।

(i) कोई शब्द बोलता है या कोई ध्वनि निकालता है, या कोई इशारा करता है या कोई वस्तु या अपने शरीर का कोई हिस्सा प्रदर्शित करता है, इस इरादे से कि वह शब्द या ध्वनि सुनी जाए, या वह इशारा, वस्तु या शरीर का हिस्सा बच्चे द्वारा देखा जाए।

(ii) किसी बच्चे को अपने शरीर या उसके किसी हिस्से को प्रदर्शित करने के लिए कहता है ताकि वह व्यक्ति या कोई अन्य व्यक्ति उसे देख सके।

(iii) किसी वस्तु को किसी भी रूप या मीडिया में अश्लील उद्देश्यों के लिए बच्चे को दिखाता है।

(iv) बार-बार या लगातार किसी बच्चे का पीछा करता है, उसे देखता है या उससे संपर्क करता है, चाहे वह सीधे तौर पर हो या इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल या किसी अन्य माध्यम से।

(v) मीडिया के किसी भी रूप में धमकी देता है कि वह बच्चे के शरीर के किसी हिस्से या बच्चे को किसी यौन क्रिया में शामिल करने के वास्तविक या बनाए हुए चित्रों का उपयोग करेगा, चाहे वह इलेक्ट्रॉनिक, फिल्म या डिजिटल या किसी अन्य माध्यम से हो।

(vi) किसी बच्चे को अश्लील उद्देश्यों के लिए उकसाता है या इसके लिए संतुष्टि प्रदान करता है।

बाल अपराध के मामलों में दर्ज हुई बढ़त

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो NCRB ने की हालिया रिपोर्ट क्राइम इन इंडिया 2022 के अनुसार साल 2022 में बाल अपराध के कुल 1,62,449 मामले दर्ज किए गए, जो 2021 (1,49,404 मामले) की तुलना में 8.7% ज्यादा हैं। बाल अपराध से जुड़े मामलों में 39.7 प्रतिशत मामले पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज किए गए थे।

पारिवारिक मालों की रिपोर्टिंग कम

जया सिंह आगे बताती हैं कि विभिन्न मुद्दों के कारण पॉक्सो अधिनियम के तहत मामलों की लंबितता बढ़ जाती है। अक्सर, माता-पिता परिवार की छवि को नुकसान पहुंचाने के डर और आरोपी के दबाव के कारण केस को आगे तक नहीं ले जाते हैं। इसके अलावा साक्ष्य की कमी के कारण भी मामले लटके रह जाते हैं। ऐसे उदाहरण जहां आरोपी परिवार के करीबी होते हैं वहां भी केस आगे नहीं जाते हैं। न्यायाधीश भी पॉक्सो मामलों में सजा की कठोरता के कारण प्रामाणिक साक्ष्य प्राप्त करने में समय लेते हैं।

जब आरोपी के रूप में कोई निकट संबंधी या रिश्तेदार शामिल होता है तो स्थिति विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण हो जाती है। पारिवारिक जुड़ाव के कारण अपराध की रिपोर्टिंग में कई तरह की बाधाएं आती हैं क्योंकि पीड़ित और उनके परिवार भावनात्मक, सामाजिक और आर्थिक दबावों का सामना कर सकते हैं, जो कानूनी प्रक्रिया को जटिल बना देते हैं।

नवंबर 2022 में प्रकाशित ए डिकेट ऑफ पॉक्सो नाम की एक रिपोर्ट मे पॉक्सो को लेकर कई विश्लेषण सामने आएं। वर्ष 2012 से 2021 तक 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 486 जिलों में स्थित ई-कोर्ट के 2,30,730 मामलों का अध्ययन किया गया। इस कानून के तहत दर्ज 138 मामलों का विस्तार से अध्ययन किया गया, तो पाया गया कि 22.9 प्रतिशत मामलों में आरोपी और पीड़ित एक-दूसरे को जानते थे। 3.7% मामलों में पीड़ित और आरोपी परिवार के सदस्य मिले, वहीं 44% मामलों में आरोपी और पीड़ित दोनों एक-दूसरे से पूरी तरह से अपरिचित थे।

न्याय के मामले में क्यों धीमी है फास्ट ट्रैक कोर्ट्स की रफ्तार

रिसर्च पेपर ‘जस्टिस अवेट्स : ऐन एनालिसिस ऑफ द एफिकेसी ऑफ जस्टिस डिलीवरी मैकेनिज्म इन केसेज ऑफ चाइल्ड एब्यूज’ के जरिए बाल अपराध व उससे जुड़े ऐसे मामले जो पॉक्सो के तहत आते हैं लेकिन उसके बावजूद सुनवाई में होने वाली देरी पर प्रकाश डाला गया है।

रिसर्च पेपर की मानें तो पॉक्सो के मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट्स होते हैं जिससे मामले पर त्वरित कार्रवाई हो लेकिन 31 जनवरी 2023 तक देश में 2,43,237 मामले लंबित थे और साल 2022 में पॉक्सो के सिर्फ तीन फीसदी मामलों में ही सजा सुनाई गई। एक अनुमान के मुताबिक आने वाले समय में अगर कोई नए मामले रजिस्टर्ड नहीं होते हैं तब भी पुराने मामलों को निपटाने में ही कोर्ट को 9 साल लग जाएंगे।

इन कोर्ट का गठन 2019 में महिला व बाल अपराध से जुड़े मामले पर त्वरित कार्रवाई के लिए किया गया था जिससे पीड़ितों को न्याय के लिए लंबे समय तक इतंजार न करना पड़े। भारत सरकार ने हाल ही में केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में इसे 2026 तक जारी रखने के लिए 1900 करोड़ रुपये की बजटीय राशि के आवंटन को मंजूरी दी है।

राज्यवार क्या कहते हैं आंकड़ें

लगातार बढ़ते बाल अपराध के मामलों और लंबित मामलों का असर राज्यवार देखने को मिलता है।
रिपोर्ट
के अनुसार जनवरी 2023 तक की अगर बात करें तो देश की राजधानी दिल्ली को अपने पेंडिंग मामले निपटाने में 27, बिहार को 26 साल, पं बंगाल को 25 और उत्तर प्रदेश को अभी 22 साल लगेंगे। आखिर गठन के सालों बाद भी ये विशेष अदालतें क्यों अपने लक्ष्य से इतना पीछे रह गई हैं। इसके पीछे का कारण बताते हुए जया सिंह बताती हैं , फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन इसलिए किया गया था, जिससे यौन अपराध के मामलों में तुरंत कार्रवाई शुरू हो सके लेकिन प्रक्रिया को फॉलो करने में समय लगता है और यही कारण है कि कई बार केस बीच में ही रुक जाता है और वो भी पेंडिंग में ही दिखता है।

सख्त कानून के बाद भी आखिर क्यों हैं लाखों मामले लंबित?

कानून और नियमों के सख्त होने के बाद भी आखिर देरी क्यों और कहां हो रही है। ये समझने के लिए इंडियास्पेंड ने बाल अधिकारों पर काम कर रही गैर सरकारी संस्था चाइल्ड लाइन की संगीता शर्मा से बात की। उन्होंने बताया कि पॉक्सो एक्ट और उससे जुड़े कानून बहुत अच्छे हैं। लेकिन उस हिसाब से काम करने के लिए हमें प्रशिक्षित महिला पुलिसकर्मी और कर्मियों की जरुरत होती है। लेकिन हम अगर बात करें उत्तर प्रदेश की है तो यहां प्रशिक्षित महिला पुलिसकर्मी कम हैं जो हम ऐसे केसेज में मदद करें। पॉक्सो एक्ट कहता है कि एफआईआर तुरंत लिखी जाए लेकिन कई बार उसे लिखने में ही देरी हो जाती है, बाल कल्याण समितियों में भी कमी है। पॉस्को के तहत केसेज में दो तरह के फॉर्म ए व बी ठीक तरीके से भरा जाना चाहिए लेकिन पहले स्तर पर वहीं से गड़बड़ी हो जाती है।

शर्मा ने बताया कि परिवार को पता ही नहीं होता है कि अब उन्हें आगे कैसे कहां क्या काम करना होता है क्योंकि मार्गदर्शक की कमी होती है। पॉस्को के केसेज में हमें बच्चों के साथ डील करना होता है यानी भावनात्मक तरीके से केस को देखना और समझना है लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। थाने के स्तर पर फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी और आयोग तक पहुंचते पहुंचते हर स्तर पर देरी हो जाती है। कई बार जरूरी साक्ष्य इस दौरान मिट जाते हैं। ऐसे में केस सालो साल लटके रहते हैं।

जया सिंह बताती हैं, “कई बार चिकित्सीय और फॉरेंसिक रिपोर्ट मिलने में देरी और जांच के स्तर पर अक्सर पीड़ित की प्रामाणिक आयु का पता न चल पाना और समय पर चिकित्सा सहायता न मिलने से केस कमजोर हो जाता है।’’

राज्यसभा में एक प्रश्न के दौरान मंत्री किरण रिजिजू ने बताया कि उत्तर प्रदेश में पॉक्सो के तहत दिसंबर 2020 में 28,199, दिसंबर 2022 में 67,615 और जनवरी 2023 में 67,153 मामले लंबित थे। वहीं पूरे देश में ये दिसंबर 2020 में 170271, दिसंबर 2022 में 247766 और जनवरी 2023 में 243237 मामले लंबित थे। रिपोर्ट की मानें तो पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामलों में 43.44% दोषी अलग-अलग कारणों से बरी कर दिए जाते हैं केवल 14.03 फीसदी मामलों में ही दोष साबित हो पाता है।


जजों की कमी और तारीख पर तारीख

कानून की बात करें तो फास्ट ट्रैक कोर्ट को एक साल के अंदर ही केस को खत्म कर देना है लेकिन अदालतों में जज की कमी भी इस पर बड़ा असर डालती है। दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के अनुसार देश के उच्च न्यायालयों में 30 प्रतिशत और सुप्रीम कोर्ट में 21 प्रतिशत जजों की कमी है। देश के उच्च न्यायालयों में कुल 1,108 जजों के पद स्वीकृत हैं, जबकि कुल 773 पदों पर ही जज कार्यरत हैं और 30 प्रतिशत यानी 335 पद रिक्त हैं।

संगीता शर्मा बताती हैं, जजों की कमी की कई बार केसेज में सुनवाई टलती जाती है। मेरे अनुभव की बात करें तो पीड़ित परिवार जो दूर दराज गांव से आते हैं। उन्हें अगर चार दिन भागना पड़ता है तो उनकी दिहाड़ी खत्म हो जाती है और फिर वो किस्मत में यही लिखा था, ये सोचकर बीच में ही केस छोड़ देते हैं। विपक्षी दल अगर मजबूत है तो पैसे देकर तारीख आगे बढ़वाता रहता है।

लखनऊ के कचहरी के बाहर इंसाफ दो कि तख्ती लेकर बैठे दो बुर्जुगों से बात चीत करने पर पता चला कि उनकी बारह साल की बेटी का रेप एक दंबग परिवार के लड़के ने किया था। लड़की के पिता कहते हैं, मेरी बेटी नाबालिग थी और पैसे रुपए का जोर दिखाकर लड़के के घरवाले ने उसे भी नाबालिग साबित करा दिया। तब से सिर्फ थाना, कचहरी करते हुए न जाने कितनी चप्पलें टूट गईं लेकिन इंसाफ न मिला। अब हिम्मत भी जवाब दे रही है, हम गरीब लोग हैं, कोई सुनने वाला नहीं है, न पुलिस, न कचहरी। लेकिन बेटी का चेहरा देखकर दोबारा हिम्मत बांधता हूं और कोशिश जारी रखता हूं।

इंडियास्पेंड ने जब पीड़िता से बात की तो उसने बताया, “मैं एक सरकारी स्कूल में पढ़ती थी, रोज घर के छोटे मोटे काम निपटाकर बड़े शौक से पढ़ने स्कूल जाया करती थी, मेरे साथ गांव की कई और लड़कियां भी जाती थीं। एक दिन दूसरे गांव के एक लड़के जिसे मैं भइया भइया कहती थी वो छुट्टी के बाद रास्ते में मिले और कहने लगे तुम्हारी मम्मी छत से गिर गईं हैं, अस्पताल लेकर जा रहे हैं, जल्दी से मेरी मोटरसाइकिल पर बैठो। मैं इतना घबरा गई कि बिना सोचे तुरंत उनके साथ चली गई। भइया मुझे गांव से दूर एक मुर्गी फार्म पर ले गए जो खेतों के बीच में बना था, वहां शराब की बहुत सी पुरानी टूटी बोतलें पड़ी थीं, पहले मुझे कुछ भी समझ नहीं आया फिर उन्होंने मुझे कोल्ड्रिंक पीने को दी और कहा एक दोस्त दूसरी बाइक लेकर आ रहा है, उससे चलेगें, मेरी वाली कुछ खराब है। कोल्ड्रिंक पीने के थोड़ी देर बाद मुझे चक्कर आने लगा और मुझे ये तो पता चल रहा था कि क्या हो रहा है लेकिन न मेरे मुंह से आवाज निकल रही थी और न ही हाथ, पैर में कोई जोर था। जब होश आया तो मैं खेत में पड़ी थी, दर्द इतना था कि खुद से घर तक नहीं जा पाई किसी तरह पास की एक दुकान पर पहुंच कर घर से पापा को बुलवाने भेजा।”

“ये सब हुए चार साल हो गए, हम पुलिस गए, उसके बाद हमें बहुत डराया धमकाया गया, पैसे लेकर चुपचाप घर बैठने को कहा गया क्योंकि बदनामी मेरी होगी। लेकिन मेरे पापा और चाचा मेरे साथ थे उन्होंने केस आगे बढ़ाया। मैं दोबारा पढ़ना चाहती हूं, सोचती हूं कि सब भूल जाऊं लेकिन बार-बार सब याद आ जाता है।” पीड़िता ने आगे बताया।

क्या है पॉक्सो एक्ट और सजा के प्रावधान—

इस अधिनियम (कानून) को महिला और बाल विकास मंत्रालय ने साल 2012 पॉक्सो एक्ट-2012 के नाम से बनाया था जिसमें 18 साल से कम बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न, शोषण, पोर्नोग्राफी जैसे यौन अपराधों में कार्रवाई का प्रावधान रखा गया है। इस कानून के अंतर्गत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा निर्धारित की गई है। 2018 में केंद्र सरकार की कैबिनेट की बैठक में पॉक्सो एक्ट में कुछ अहम बदलाव किए हैं, जिसके तहत 12 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ रेप का दोषी पाए जाने पर उसे मौत की सजा दी जा सकती है। इससे पहले ये सजा दस साल या विशेष मामलों में उम्रकैद तक थी।

पॉस्को के तहत मामले दर्ज होने की पूरी प्रक्रिया–

लखनऊ के हाईकोर्ट में कार्यरत क्रिमिनल एडवोकेट राहुल द्विवेदी बताते हैं कि पॉक्सो अधिनियम के तहत हुए अपराध को स्थानीय पुलिस या स्पेशल जुवेनाइल पुलिस यूनिट( Special Juvenile Police Unit) की मदद से रजिस्टर किया जा सकता है। अगर Special Juvenile Police Unit या स्थानीय पुलिस संतुष्ट है कि जिस बच्चे के खिलाफ अपराध किया गया है, उसे देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता है तो वह लिखित रूप में कारणों को दर्ज करने के बाद उसकी देखभाल और संरक्षण देने की तत्काल व्यवस्था करेगी ।इसके अलावा वह बिना देरी के चौबीस घंटे के अंदर, मामले की रिपोर्ट बाल कल्याण समिति और विशेष न्यायालय को सौंप देगी ।

वो आगे बताते हैं कि पॉस्को की धारा 24 में जिस बच्चे के साथ अपराध हुआ है, उसका बयान दर्ज करने के भी निर्देश हैं। जिसमें बच्चे का बयान बच्चे के घर पर दर्ज होगा जहां तक संभव हो, एक महिला पुलिस अधिकारी बच्चे के बयान को दर्ज करें और वो उस समय पुलिस अधिकारी की वर्दी में न रहे। किसी भी बच्चे को किसी भी कारण से रात के समय थाने में नहीं रखा जाएगा। बच्चे की पहचान को मीडिया से सुरक्षित रखा जाए।

बाल कल्याण समिति के चेयरपर्सन रवीन्द्र जडायू से इस बारे में बात करने के लिए इंडिया स्पेंड ने संपर्क करने की कोशिश की लेकिन अभी उनकी तरफ से जवाब नहीं आया है। प्रतिक्रिया मिलते ही स्टोरी में इसे अपडेट किया जाएगा।