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भारत सदाशिव धोत्रे, महाराष्ट्र, शोलापुर के दक्षिण-पूर्वी ज़िले में सूखे गन्ने के खेतों के बीच में खड़ा एक किसान

महाराष्ट्र कई वर्षों से सूखे की मार झेल रहा है। राज्य के दक्षिण-मध्य के मराठवाड़ा क्षेत्र में एक सप्ताह के भीतर 32 आत्महत्या होना, पिछले 43 वर्षों में सबसे भयकंर स्थिति होने की संकेत देता है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक महाराष्ट्र में मराठवाड़ा एवं दक्षिण पूर्वी क्षेत्रों में सामान्य से करीब आधी कम वर्षा हुई है। राज्य के उत्तरी इलाकों में सूखे से त्रस्त लोग अन्य शहरों जैसे मुंबई, पुणे एवं औरंगाबाद की ओर पलायन कर रहे हैं।

यदि किसी इलाके में सामान्य से 50 फीसदी कम बारिश होती है तो इलाके में सूखा घोषित कर दिया जाता है। अगले सप्ताह तक उत्तर एवं पश्चिम महाराष्ट्र से करीब 1,4000 गांव एवं मराठवाड़ा के आठ जिलों ( औरंगाबाद , नांदेड़ , लातूर, जालना, बीड , परभणी , उस्मानाबाद , और हिंगोली ) में सूखा घोषित करने की संभावना है।

मराठवाड़ा के इलाके एक समय में हैदराबाद का हिस्सा थे एवं निज़ाम द्वारा शासित किया जाता था। महाराष्ट्र के पांचवें सबसे बड़े क्षेत्र मराठवाड़ा में करीब 19 मिलियन लोग बसे हैं, जिसमें से 80 फीसदी लोग ग्रामीण इलाकों में रहते हैं। गौरतलब है कि मराठवाड़ा का क्षेत्रफल पंजाब, केरल एवं उतरांचल से भी बड़ा है।

मराठवाड़ा के उस्मानाबाद , लातूर और बीड ज़िले एवं अहमदनगर के कुछ हिस्सों, शोलापुर एवं केंद्रीय महाराष्ट्र के सांगली हिस्से में पीने के पानी की भी गंभीर समस्या है।

Marathwada In The Monsoons
June 1 to Sep 1, 2010June 1 to Aug 31, 2011June 1 to Sep 5, 2012June 1 to Sep 4, 2013June 1 to Sep 3, 2014June 1 to Sep 2, 2015
Actual rainfall (in mm)745543391594345259
Departure from normal rainfall in %375-298-37-52

Source: India Meteorological Department; Note: Excess rainfall: +20% or more, normal rainfall: between +19% and -19%, Deficient rainfall: between -20% and -59%.

बारिश की कमी इतनी गंभीर है कि पश्चिम महाराष्ट्र एवं मराठवाड़ा के प्रमुख ज़िलों में खारिफ फसलों की बुआई भी नहीं हो सकी है।

आम तौर पर मराठवाड़ा ज़िले में बरिश की कमी वर्ष 2012 से ही देखी जा रही है, सिवाए वर्ष 2013 के जब ज़िले में वर्षा सामान्य हुई थी।

पूरे मराठवाड़ा में सूखे पड़े हैं खेत

किसानों के मुताबिक अगस्त महीने में सूखा होने के कारण बोए हुए फसल मुरझा गए हैं।

बारिश का प्रभाव लंबे समय तक रहने कारण इलाके के किसानों को गन्ना, सोयाबीन , कपास और दालों सहित रबी ( सर्दी ) फसलों से भी कोई उम्मीद नहीं है।

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यह बंजर ज़मीन साबित करती है कि पश्चिमि महाराष्ट्र एवं मराठवाड़ा के प्रमुख ज़िलों में खरीफ फसलों की बुआई नहीं हुई है।

वर्तमान में शोलापुर के पंढरपुर तालुका ( एक उपखंड ) के दक्षिण-पूर्वी ज़िलों में गन्ने के खेत मुरझा कर सूख रहे हैं और यह एक सिंचित क्षेत्र है। महाराष्ट्र के 18 फीसदी से अधिक खेत सिंचित नहीं हैं। वर्ष 2012-12 के महाराष्ट्र राज्य के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार मराठवाड़ा (औरंगाबाद प्रभाग) के करीब 1.1 मिलियन हेक्टर ज़मिन को सिंचाई क्षमता के योग्य बताया गया था जिसमें से केवल 14 फीसदी का उपयोग किया गया है।

भारत सदाशिव धोत्रे , पंढरपुर के कोरटी गांव के एक गन्ना किसान ने बताया कि गांव के कुएं, नलकूप या आस-पास के नहर में पानी नहीं है। उसके गन्ने के खेत सूख गए हैं। उन्होंने बताया कि वह न तो खेतों में बीज बो सकते हैं, न ही पशुओं को खिला सकते हैं एवं पीने के पानी की भी गंभीर समस्या है।

धोत्रे के अनुसार “सरकार ने गांव में पीने के पानी के लिए टैंकरों की आपूर्ति शुरू कर दी है लेकिन प्रति परिवार केवल एक बैरल (लगभग 200 लीटर) ही दी जाती है। राज्य सरकार ने तुरंत हमारे पशुओं के लिए पशु शिविरों या चारा डिपो शुरू कर देना चाहिए।”

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शोलापुर के दक्षिण पूर्वी ज़िले के एक किसान , लक्ष्मण रुद्रप्पा पवार के सूखे गन्ने के खेत

धोत्रे प्याज़ की खेती भी करते हैं। प्याज़ की बढ़ती कीमतों से आए पैसे से धोत्रे ने 8 अगस्त 2015 को एक बोरवेल लगवाया है जो ज़मीन के 600 फीट नीचे से पानी निकालने के लिए सक्षम है। नलकूप 20 मिनट के भीतर ही सूख गया।

शोलापुर के धावलास गांव के संदीपन सुदाम गुहाने ने पूछा “हम मेहनत करने वाले लोग है। इस सूखे से निपटने के लिए हमें क्या करना चाहिए? यदि सितंबर में यह हालत है तो अगले गर्मियों में पीने के पानी की और अधिक समस्या होगी। ”

दक्षिण-पूर्वी इलाके के नांदेड़ जिले के सोयाबीन और कपास किसान भानुदास कदम ने पिछले हफ्ते इंडियास्पेंड को बताया कि यदि अगले चार दिनों के भीतर बारिश नहीं हुई तो उनकी सोयबीन एवं कपास की फसल बर्बाद हो जाएगी।

उच्च तापमान एवं सूखी मिट्टी के कारण अनार के फसल भी खराब हो रहे हैं।

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शोलापुर के दक्षिण-पूर्वी इलाके के एक गांव में सूखे हुए अनार के खेत

अनार शोलापुर का मुख्य फसल है। अनावली गांव में, प्रवीण पाई, एक कृषि विज्ञान स्नातक ने बताया कि दो एकड़ अनार के खेत एवं एक एकड़ अंगूर के खेत को बचाने के लिए उसके पास पानी ही नहीं है।

पाई के मुताबिक “मैने बैंक से 1,60,000 रुपए का फसल ऋण लिया है। लेकिन अब मुझे चिंता हो रही है कि मैं यह पैसे वापस कैसे करुंगा।” अगले साल तक पाई एक तालाब निर्माण करना चाहते हैं जो लोगों को ऐसे सूखे से मदद कर सके।

2019 तक बन पाएगा महाराष्ट्र सूखा मुक्त राज्य? 70,000 करोड़ रुपए नहीं हैं पर्याप्त

राज्य को सूखा मुक्त बनाने के उदेश्य से महाराष्ट्र सरकार ने जलयुक्त शिवार अभियान आरंभ किया है। अभियान का उदेश्य वर्ष 2015-16 के पहले चरण तक 5,000 गांवों को पानी उपलब्ध कराना है।

अभियान के तहत कई रोधक बांध के निर्माण के साथ कई बांध एवं भंडार बांधों की मरम्मत कराने की भी योजना की गई है। सरकार को उम्मीद है कि वर्ष 2019 तक महाराष्ट्र को सूखा मुक्त राज्य बनाया जा सकेगा।

लेकिन क्या ऐसा होना मुमकिन है? हाल ही में अंग्रेज़ी दैनिक बिज़नेस स्टैंडर्ड ने आर्थिक सर्वेक्षण का हवाला देते हुए बताया कि महाराष्ट्र के सिंचाई अनुभव आशाजनक नहीं हैं। राज्य की सिंचाई क्षमता के साथ (सैद्धांतिक रूप से, या संभवतः रुप से नई सुविधा, के साथ सिंचित किया जा सकने वाला क्षेत्र ) 70,000 करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद, 0.1 फीसदी से अधिक नहीं है।

सरकार मराठवाड़ा और पश्चिम महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित जिलों में पशु शिविरों और चारा डिपो आरंभ करने का विचार कर रही है। राज्य की कृषि विभाग जलकृषि के माध्यम से पशु चारा उत्पादन के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है।

कई विशेषज्ञों का मानना है कि समस्या के दीर्घकालिन समाधान के लिए राज्य के फसल पद्धति में बदलाव करनी चाहिए।

डॉ. सदानंद थांबे, राहुरी, अहमदनगर जिले के महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ के पंढरपुर कृषि अनुसंधान केंद्र ( महात्मा फुले कृषि विश्वविद्यालय ) से कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि “कृषि के फसल पद्धति में बदलाव लाना चाहिए जिनके लिए पानी के श्रोत एवं सिंचाई सुविधाओं सुनिश्चित नहीं है। ”

“चूंकी गन्नेकी खेती में अधिक पानी की आवश्यकता होती है इसलिए किसानों को गन्ने की खेती नहीं करती चाहिए। हमें मरुद्भिद् फसलों, जिसमें पानी की कम आवश्यकता होती है उनकी ओर अधिक ध्यान देना चाहिए जैसे कि बेर, अनार, आंवला, शरीफा, ग्वार एवं अरंडी।”

( यादव टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान, मुंबई के साथ एक डॉक्टरेट स्कॉलर है। )

अतिरिक्त रिसर्च – सौम्या तिवारी, तिवारी इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक हैं।

फोटोग्राफी – यशवंतराव यादव

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 11 सितंबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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