#SelfieWithDaughter: बचा पाएगा भारत की 23 मिलियन लड़कियां ?
भारत का शिशु ( छह वर्ष तक की आयु ) लिंग अनुपात लगातार गिर रहा है। पिछले 70 सालों में शायदयह सबसे बुरी स्थिति है। 2011 के आकंड़ो के मुताबिक शिशु लिंग अनुपात 918 ( 1000 लड़कों में प्रति लड़कियां ) है। जबकि साल 2001 में यह आकंड़े 927 दर्ज किए गए थे।
- यदि स्थिति में सुधार न किए गए तो अनुमान है कि साल 2040 तक 20 से 49 वर्ष के बीच की महिलओं की संख्या में भारी कमी हो जाएगी। विशेषज्ञोंके अनुसार यह संख्या 23 मिलियन तक जा सकती है।
शिशु लिंगपात बिगड़ने का एक मुख्य कारण शहरीकरण भी है : शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़े 905 है जबकि ग्रामीण इलाकों में आकंड़े 923 हैं।
- भारत के उन टॉप पांच राज्यों में से तीन राज्यों में शिशु लिंग अनुपात सबसे कम है जिनकी औसतन प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय स्तर से बेहतर है। ज़ाहिर है समृद्धि से लिंग अनुपात का कोई संबंध नहीं।
हाल ही में हरियाणा के सरपंच से प्रेरणा लेते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने रेडियो शो ‘मन की बात’ के ज़रिए‘सेल्फी विद डॉटर’(#SelfieWithDaughter)कैंपेन शुरु किया है। इस कैंपेन का मकसद भारत में गिरते हुए लिंग अनुपात की ओर ध्यान आकर्षित करना है। यह कैंपेन 28 जून को शुरु किया गया है।
Amazed by the fantastic response to #SelfieWithDaughter. Its remarkable how people across the world have chipped in. http://t.co/eROV6qlM83
— Narendra Modi (@narendramodi) June 29, 2015
एक नज़र डालते हैं आंकड़ो पर:
2011 के आंकड़ो के मुताबिक भारत का कुल लिंग अनुपात 933 ( 2001 ) से बढ़कर 943 हो गया है। 67.7 साल तक की महिलाओं के बीच जीवन प्रत्याशा में सुधार हुआ है।
जनसांख्यिकी विशेषज्ञ लिंग अनुपात में सुधार का श्रेय महिलाओं की बढ़ती जीवन प्रत्याशा को देते हैं। जीवनशैली में बदलाव के कारण अब भारत में भी महिलाएं पुरुषों के बराबर ही जीती हैं।
भारत में प्राकृतिक संतुलन बिगड़ा
लिंग अनुपात में लगातार गिरावट भविष्य के लिए एक गंभीर विषय है। गिरता लिंग अनुपात एक साफ संकेत है कि लड़कियों को या तो कोख के भीतर की मार डाला जाता है या जन्म होते ही मार दिया जाता है या फिर किसी और वजह से उनकी मृत्यु हो रही है।
1921 में भारत का कुल लिंग अनुपात 1000 पुरुषों प्रति 955 महिलाओं था। 1951 में यह आकंड़े गिरकर 946 हो गए और वर्तमान में यह आकंडा 943 है। साल 1951 में शिशु लिंग अनुपात 1,000 लड़कों के प्रति 983 लड़कियां था। 2011 में यह घटकर 918 रह गया है। यह आकंड़ा शायद अब तक का सबसे न्यूनतम है।
शिशु लिंग अनुपात में गिरावट उस दौरान और देखी गई जब कुल लिंग अनुपात में सुधार होना शुरु हुआ।यह एक संकेत है कि 1980 के दशक में सेक्स -निर्धारण परीक्षण , गर्भपात और कन्या भ्रूण हत्या सबसे अधिक हुए हैं।
चीन और पाकिस्तान की स्थिति और बद्तर
ब्रिक ( BRIC ) एवं पड़ोसी देशों से तुलना
चीन, पाकिस्तान और भुटान के अलावा भारत में कुल लिंग अनुपात ब्रिक ( BRICS ) देशों और दक्षिण एशिया के पड़ोसी देशों से काफी कम है। वर्तमान आंकड़ो के अनुसार पाकिस्तान में कुल लिंग अनुपात 942 है जबकि चीन में यह आकंड़े 927 और भुटान में यह आकंड़े सबसे कम 897 दर्ज किए गए हैं।
रूस मे कुल लिंग अनुपात सबसे अधिक, 1000 पुरुषों के प्रति 1,165 महिलाएं दर्ज किया गया है।
साल 2011 में शहरी लिंग अनुपात 905 दर्ज किया गया है जबकि ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़े 923 दर्ज हुए हैं।
इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी खास रिपोर्ट में बताया है कि शहरों में गिरते लिंग अनुपात का मुख्य कारण शहरीकरण ही है। तकनीकी सुविधाओं के कारण लिंग निर्धारण और अन्य प्रक्रियाओं के लिए सोनोग्राफी केन्द्रों तक पहुँचना आसान हो गया है।
भारत में हरियाणा की स्थिति सबसे बुरी है। हरियाणा में 1000 लड़कों के प्रति 834 लड़कियों का अनुपात दर्ज किया गया है। हालांकि कि पिछले दशक में पांच राज्य, जिनमे सबसे खराब शिशु अनुपात दर्ज किया गया, उनमें कुछ सुधार देखने को मिले हैं। लेकिन फिर भी इन राज्यों की गिनती देश के सबसे कम शिशु लिंग अनुपात वाले राज्यों में ही है।
राजस्थान और जम्मू कश्मीर, केवल दो ऐसे राज्य हैं जहां लगातार शिशु लिंग अनुपात में गिरावट देखने को मिल रही है।
गिरते लिंग अनुपात का कारण हमेशा समृद्धि ही नहीं होती
गिरते लिंग अनुपात एवं प्रति व्यक्ति आय के बीच बहुत ही हलका संबंध है। भारत के सर्वश्रेष्ठ पांच राज्यों, जहां प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से अधिक है, उनमें से तीन राज्य ऐसे हैं जहां शिशु लिंग अनुपात सबसे कम है।
केवल जम्मू और राजस्थान में प्रति व्यक्ति आय कम है। इन दोनों राज्यों में शिशु लिंग अनुपात भी सबसे कम दर्ज किया गया है।
2040 तक 23 मिलियन लड़कियों का संख्या हो सकती है कम
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष द्वारा एक अध्ययन के अनुसार यदि स्थिति में सुदार नहीं किया गया तो साल 2040 तक 20 से 49 वर्ष की लड़कियों की संख्या 23 मिलियन तक कम हो सकती है। यदि ऐसी स्थिति होती है तो विवाह के लिए लड़कियों की भारी कमी देखने को मिलेगी।
ऐसी स्थिति से पुरुषों की युवा पीढ़ी पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा। लड़कियों के अभाव में उनकी शादी परेशानी का विषय बनेगा।
संयुक्त राष्ट्र के अध्ययन के अनुसार“ विवाह के लिए दवाब, लिंग आधारित हिंसा का खतरा, सेक्स के काम के लिए बढ़ती मांग से महिलाओं की संख्या में लगातार कमी हो रही है जिससे समाजिक तौर पर उनकी स्थिति में सुधार नहीं लाया जा सकता”।
( सालवे इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक है। )
यह लेख मूलत : अंग्रेजी में 01 जुलाई 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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