पटना: पटना में रहने वाले संतोष (बदला हुआ नाम) के पिता 3 मई को अचानक घर में बेहोश हो गये। उनकी धड़कने बंद हो गयी थीं। घर वालों को लगा कि उनकी मृत्यु हो गयी है। स्वास्थ्य संबंधी मामलों में जागरूक संतोष ने तत्काल अपने पिता को सीपीआर दी, जिससे वे होश में आये, फिर उन्होंने सांस लेने में काफी परेशानी का जिक्र किया। संतोष को लगा कि उनके पिता काफी गंभीर रूप से कोविड संक्रमित हो गये हैं। उन्होंने तत्काल उनके टेस्ट के लिए भाग-दौड़ शुरू की। कई प्राइवेट लैब वालों से संपर्क किया कि वे आरटीपीसीआर टेस्ट के लिए उनके घर आकर सैंपल ले लें। मगर कोई तैयार नहीं हुआ। फिर एक प्रभावशाली व्यक्ति की सिफारिश के बाद उनका संपर्क फुलवारी शरीफ मोहल्ले के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से हो पाया।

चूँकि यह जाँच केंद्र उनके घर के नज़दीक और कम भीड़ वाला था इसलिए संतोष ने अपने पिता को बीमार हालत में ही वहां ले जाकर सैंपल दिलाया।

बिहार में संतोष जैसे कई लोग हैं जिन्हे कोरोना की जांच के लिए कई दिनों तक इंतज़ार करना पड़ता है या फिर सिफारिशें लगानी पड़ती है। इसका मुख्य कारण राज्य सरकार द्वारा लगातार कम की जा रही टेस्टिंग है जिसकी वजह से एक ओर प्राइवेट टेस्टिंग लैब मनमाने दाम वसूल रही हैं वहीं दूसरी ओर सरकार की तरफ से होने वाली निशुल्क जांच के लिए केंद्रों पर लम्बी कतारें लग रही हैं।

राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 28 अप्रैल से 4 मई के बीच एक हफ्ते के दौरान किसी भी रोज बिहार में कोरोना जांच की संख्या एक लाख की तय सीमा के पार नहीं गयी है। 2 मई को तो यह संख्या 72 हजार के आसपास पहुंच गई थी। जबकि इससे पहले 12 अप्रैल से 27 अप्रैल के बीच रोज लगभग एक लाख से अधिक जांच के सैंपल लिये गये थे। सिर्फ दो ही दिन (अप्रैल 13, अप्रैल 19) यह आंकड़ा एक लाख से नीचे गया था।




इन आंकड़ों पर नजर डालने पर यह संकेत भी मिलता है कि जिस दिन (27 अप्रैल) से राज्य में सक्रिय मरीजों की संख्या एक लाख के पार गयी है उसी दिन से राज्य में टेस्टों की संख्या लगातार कम हुई है।

बिहार सरकार ने पिछले साल के कोरोना काल में ही तय किया था कि वे रोज एक लाख सैंपल की जांच करेंगे। उस वक्त काफी मशक्कत के बाद यह शुरू भी हुआ था, मगर फरवरी-मार्च, 2021 आते-आते यह आंकड़ा 20 हजार रोजाना तक पहुंच गया। होली के बाद जब राज्य में कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप शुरू हुआ तो 6 अप्रैल, 2021 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने फिर से टेस्ट का आंकड़ा रोजाना एक लाख तक ले जाने के निर्देश जारी किये।

12 अप्रैल से यह शुरू भी हो गया और इसका क्रेडिट लेते हुए राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कोरोना संकट को लेकर 16 अप्रैल को आयोजित सर्वदलीय बैठक में इस बात का उल्लेख भी किया कि राज्य में रोजाना एक लाख से अधिक सैंपल की जांच हो रही है।

मगर आंकड़े गवाह हैं कि जैसे ही राज्य में सक्रिय मरीजों की संख्या एक लाख के पार गयी, रोजाना एक लाख सैंपल जांचने का सरकारी दावा धराशायी हो गया।

लैब संख्या बढ़ी लेकिन टेस्ट हुए कम

पटना हाईकोर्ट में बिहार में कोरोना की स्थिति को लेकर 15 अप्रैल से ही सुनवाई चल रही है। 22 अप्रैल से यह सुनवाई हर वर्किंग डे में हो रही है। 27 अप्रैल को ऐसी ही एक सुनवाई के दौरान जब राज्य में कम टेस्टिंग का मामला उठा तो विभाग की तरफ से जवाब दिया गया कि राज्य में इस वक्त सिर्फ 19 आरटीपीसीआर लैब सक्रिय हैं। उन्होंने एक लैब मोतिहारी में और एक मुंगेर में जल्द शुरू होने की सूचना दी। साथ ही यह भी कहा कि राज्य सरकार ने आईसीएमआर से 18 अन्य आरटीपीसीआर मशीनों की मांग की है।

मगर दिलचस्प है कि बिहार सरकार पिछले साल सिर्फ 12 आरटीपीसीआर मशीनों के दम पर ही रोजाना एक लाख सैंपल की जांच कर रही थी। 21 सितंबर, 2020 को तो बिहार सरकार ने 1,94,088 सैंपल की रिकार्ड जांच की थी। हालांकि इनमें से आरटीपीसीआर टेस्ट की संख्या सिर्फ 11,732 थी। अगर सभी लैब को जोड़ दिया तो राज्य में पिछले साल 55 लैब थी, जो इस साल बढ़कर 65 हो गयी है। मगर फिर भी राज्य में टेस्ट की संख्या बढ़ने के बदले घट रही है।

बिहार में फ़िलहाल 65 टेस्टिंग लैब में कोरोना के नमूनों की जांच की जाती है जिनमे से 49 सरकारी और 16 प्राइवेट लैब हैं। आरटीपीसीआर जांच की बात करें तो राज्य के विभिन्न इलाकों में 11 सरकारी और 13 प्राइवेट लैब हैं।

सैंपल देने में मुश्किलें और रिपोर्ट में देरी

वैशाली जिले के मयंक प्रियदर्शी कहते हैं, "हाजीपुर में तो आरटीपीसीआर टेस्ट बिल्कुल नहीं हो रहा है। मैंने अपनी माँ के लिए कुछ दिन पहले कोशिश की थी। हाजीपुर के सभी लैब में पूछा, लाल पैथ लैब, एसआरएल, थायरोकेयर से लेकर साधारण लैब तक। सबका एक ही जवाब था कि आरटीपीसीआर टेस्ट अभी नहीं हो रहा है। दिग्घी में कोरोना जांच की एक सरकारी व्यवस्था है लेकिन वहां रैपिड एंटीजन किट से टेस्ट होता है। सदर अस्पताल में संभवतः होता हो, मगर ऐसे समय में वहां अत्यधिक भीड़ होती है, इसलिए मैंने जाना उचित समझा।"

पटना के सत्यदीप सिंह को आरटीपीसीआर सैंपल देने में एक हफ्ते तक प्रयास करना पड़ा। फिर एक निजी लैब वाला रुपये 3600 में दो सैंपल लेकर गया। जबकि बिहार में आऱटीपीसीआर टेस्ट हेतु निजी लैब के लिए रुपये 800 का रेट तय है। पटना की ही रिचा भी एक सप्ताह की मेहनत के बाद किसी तरह सैंपल दे पायी हैं, उन्हें एक हफ्ते बाद रिपोर्ट दिये जाने की बात कही गयी है।

कटिहार जिले के अमित बंटी कहते हैं, "2 मई को सैंपल देने कुर्सेला के पीएचसी में गया था। वहां काफी झगड़ा और हंगामा करने के बाद सैंपल दे पाया। पहले हॉस्पिटल मैनेजर ने कहा था, 'जाओ, जाकर डीएम को शिकायत कर दो। हम तो आज नहीं करेंगे'। फिर कुछ भीड़ जुटाकर गया तो उसे लगा अब पिटाई हो जायेगी। लाचार होकर उसने सैंपल लिया।"

बिहार में कोरोना जांच के लिए लोगों को कई तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है ऐसे में जांच न हो पाने की वजह से प्रदेश के रिकवरी रेट में तो सुधार दिखाई दे रहा है लेकिन यहां का पॉजिटिविटी रेट अभी भी चिंताजनक बना हुआ है। जानकारों का ये भी मानना है कि बढ़ते रिकवरी रेट के पीछे कम की जा रही जांचें प्रमुख कारण है

बढ़ती पॉजिटिविटी दर और घटती रिकवरी

इंडियास्पेंड ने बिहार के पिछले एक महीने के कोरोना के रिपोर्ट किये गए आंकड़ों का अवलोकन किया और पाया कि 4 अप्रैल को बिहार में कोरोना के रिपोर्ट किये गए 935 नए मामले दर्ज किए गए। वहीं, एक महीने बाद 4 मई को हर दिन आने वाले नए मामलों की संख्‍या 14,836 रिपोर्ट की गई। यानी कोरोना के रिपोर्ट किये गए नए मामले करीब 1586% बढ़ गए।

वहीं, बात करें सक्रिय मामलों की तो 4 अप्रैल को 4,143 रिपोर्ट किये गए मामले थे, जो कि 4 मई को 1,13,479 हो गए। यानी एक महीने में रिपोर्ट किये गए सक्रिय मामलों की संख्‍या में करीब 2740% की बढ़त हुई। यह आंकड़े बताते हैं कि बिहार में कोरोना कितनी तेजी फैल रहा है। 4 अप्रैल को बिहार सरकार द्वारा दी गयी जानकारी के मुताबिक, प्रदेश में रिपोर्ट की गयी पॉजिटिविटी दर 1.3%, रिकवरी दर 97.87% और मृत्यु दर 0.6% है। लेकिन 4 मई तक प्रदेश में रिपोर्ट की गयी पॉजिटिविटी दर बढ़ कर 15.6% हो गयी जबकि रिकवरी दर घटकर 78.38% हो गयी। प्रदेश की मृत्यु दर 0.6% पर ही रही लेकिन इस दर के स्थिर रहने के पीछे तेज़ी से बढ़ी पॉजिटिविटी दर है। प्रदेश में इस एक महीने में रिपोर्ट की गयी मौतों की संख्या 1,401 थी जो कि कोरोना की पहली लहर से लेकर 4 अप्रैल तक हुई 1,586 मौतों के काफी करीब है।

बिहार में जहां 14,836 मामले रिपोर्ट किए गए तो वहीं देश में 4 मई को कोरोना के रिपोर्ट किए गए नए मामलों की संख्या 3,82,315 थी, जिसमें महाराष्ट्र में 51,880, उत्तर प्रदेश में 44,631 और केरल में 37,190 मामले शामिल थे। आंकड़ों से साफ है कि देश में रिपोर्ट किए गए मामलों में से करीब 3.9% नए मामले बिहार में रिपोर्ट किए गए। भारत में 4 मई को रिपोर्ट की गई कुल रिकवरी दर 82.03% थी जो कि बिहार की रिपोर्ट की गई रिकवरी दर से 3.7% ज़्यादा थी।

जानकारों का मानना है कि बिहार की पॉजिटिविटी दर और भी अधिक हो सकती है, क्योंकि टेस्टिंग में हो रही परेशानियों की वजह से लोग जांच नहीं करवा रहे हैं और लक्षणों के आधार पर घर में ही कोविड प्रोटोकॉल के हिसाब से खुद का इलाज करने लगे हैं। कई मरीज इस तरह ठीक भी हो जा रहे हैं। संकट तब उत्पन्न होता है जब मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है और उसे ऑक्सीजन की जरूरत महसूस होने लगती है।

टेस्ट की संख्या लगातार कम होने के मसले पर अपनी राय जाहिर करते हुए बिहार वालेंटरी हेल्थ सोसाइटी के अध्यक्ष स्वपन मजूमदार कहते हैं, "इस वक्त बिहार में जितने मरीज बताये जा रहे हैं, उनसे 80% अधिक ऐसे मरीज हैं, जिनका टेस्ट नहीं हुआ। वे खुद को मौसमी बुखार या टाइफाइड का मरीज मान कर इलाज चला रहे हैं और यहां-वहां घूमकर कोरोना फैला रहे हैं। ऐसे में टेस्ट की संख्या बढ़ाना बहुत जरूरी है। मेरी तो सलाह है कि राज्य में अब मोबाइल टेस्टिंग फैसिलिटी का अभियान शुरू करना चाहिए। क्योंकि स्वास्थ्य सर्वोपरि है। अगर सभी संदिग्ध लोगों का टेस्ट नहीं हुआ तो कोरोना को रोकना मुश्किल होगा।"

इस मसले पर थोड़ा सख्त रुख अपनाते हुए मुजफ्फरपुर में लोक स्वास्थ्य के सवालों में रुचि रखने वाले डॉक्टर निशिंद्र किंजल्क कहते हैं, "मुझे अपने व्यक्तिगत सूत्रों से जानकारी मिली है कि ऊपर से टेस्ट कम करने के निर्देश हैं, हालांकि मेरे पास इसके कोई सबूत नहीं हैं। मुमकिन है, ऐसा किट की कमी की वजह से हो रहा हो। मगर इसका बहुत गंभीर असर पड़ने वाला है। दूसरी लहर में जिस तरह संक्रमण फैला है, बिहार जैसे सघन आबादी वाले राज्य के लिए एक लाख रोजाना टेस्ट भी बहुत कम है। इसकी संख्या में वृद्धि की जानी चाहिए। खास तौर पर जब हम जान गये हैं कि अभी तीसरी लहर भी आने वाली है। संकट बड़ा है।

वे सरकार को बाहर से आने वाले लोगों के अनिवार्य टेस्टिंग की राय देते हैं और कहते हैं कि अब जरूरत है हर प्रखंड में स्थायी कोरेंटाइन सेंटर खोलने की। क्योंकि यह बीमारी बार-बार आयेगी।

पटना के कंकड़बाग मोहल्ले के ऐसे ही एक मरीज की जब हालत बिगड़ने लगी तो उनके घरवाले उन्हें एनएमसीएच ले गये, वहां उनका रैपिड टेस्ट किया गया तो वह कोविड निगेटिव पाया गया। ऑक्सीजन लेवल कम होने के बावजूद अस्पताल वालों ने उसे एडमिट करने से इनकार कर दिया।

टेस्ट की संख्या कम होने के साथ-साथ एक दूसरा संकट आरटीपीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट का देर से मिलना भी है। राज्य के एक सीनियर अधिकारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि उनके खुद के परिजनों की रिपोर्ट उन्हें 16 दिन बाद मिली, जबकि वे लगातार व्यक्तिगत स्तर पर कोशिश करते रहे।

अमूमन राज्य में आरटीपीसीआर की रिपोर्ट एक हफ्ते से पहले नहीं मिलती। बिहार सरकार ने पटना हाईकोर्ट के सामने 27 अप्रैल को खुद स्वीकार किया है कि आरटीपीसीआर के मामले में रिपोर्ट जारी करते-करते 5 से 6 दिन लग जाते हैं। रिपोर्ट मिलने में देर की वजह से कई दफा मरीज खुद ठीक हो जाता है, तो कई दफा उसकी स्थिति गंभीर हो जाती है। और टेस्ट रिपोर्ट नहीं होने के कारण उसे इलाज मिलने में दिक्कत होती है।

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