कोरोना का बच्चों की शिक्षा पर गहरा असर, सिखाया हुआ भूले, नया सीखने में परेशानी
इंडियास्पेंड ने उत्तर प्रदेश के चार जिलों के बच्चों और शिक्षकों में इस सिलसिले में बात की और पाया कि उत्तर प्रदेश के शिक्षकों का मानना है कि लॉकडाउन के दौरान स्कूल बंद होने से बच्चों ने पिछली कक्षाओं में जो सीखा था वो उसे भूलने लगे हैं।
लखनऊ: कोरोना की वजह बंद हुए स्कूल अब खुलने लगे हैं। करीब 11 महीने तक स्कूल से दूर रहने के बाद अब बच्चे फिर से स्कूल लौट रहे हैं। हालांकि, इन 11 महीनों में उनकी शिक्षा पर काफी असर हुआ है और इसकी छाप गांव, कस्बों में दिख रही है।
लॉकडाउन की वजह से बच्चों की शिक्षा से जुड़े नुकसान का आंकलन करने के लिए अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा की गयी एक फील्ड स्टडी में पाया गया कि कोरोना के बीच स्कूल बंद होने से बच्चों ने पिछली कक्षाओं में जो सीखा था वो उसे भूलने लगे हैं। इसकी वजह से वर्तमान सत्र की कक्षाओं में उन्हें सीखने में दिक्कत आ रही है। इसका सबसे ज्यादा असर दूसरी और तीसरी कक्षा के विद्यार्थियों में देखने को मिल रहा है।
लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन क्लास का ठीक से न चल पाना, इंटरनेट और मोबाइल जैसी सुविधाओं का न होना और पढ़ाई के प्रति अरूचि ने बच्चों को शिक्षा के लिहाज से पीछे धकेल दिया है। हाल यह है कि उन्हें भाषा और गणित में सबसे ज्यादा दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। जानकारों का कहना है कि भाषा और गणित का बुनियादी कौशल ही दूसरे विषयों को पढ़ने का आधार बनता है।
"स्कूल खुलने के साथ ही बच्चे आने लगे हैं। एक अहम बात जो इनमें देखने को मिल रही है कि किताबों को पढ़कर अर्थ समझने में बच्चों को दिक्कत आ रही है। पढ़ाई में गैप आने की वजह से उनमें अभी वह तेजी देखने को नहीं मिल रही। इसलिए बचे हुए सत्र में छात्र और शिक्षक दोनों को कम समय में दोगुनी मेहनत करनी होगी," अयोध्या के पुराबली गांव के प्राथमिक विद्यालय के सहायक शिक्षक शिवेंद्र सिंह कहते हैं।
पिछली कक्षाओं के विषय भूले बच्चे
अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय ने इस फील्ड स्टडी के लिए पांच राज्यों (छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड) को चुना। इन राज्यों के 44 जिलों के 1,137 सरकारी स्कूलों के कक्षा 2 से कक्षा 6 तक के 16,067 छात्रों को सर्वे में शामिल किया गया। सर्वे के मुताबिक, कोरोना के बीच स्कूल बंद होने से बच्चों ने पिछली कक्षाओं में जो सीखा था उसे भूलने लगे हैं।
इस सर्वे में पाया गया कि:
54% छात्रों की मौखिक अभिव्यक्ति प्रभावित हुई है।
42% छात्रों की पढ़ने की क्षमता प्रभावित हुई है।
40% छात्रों की भाषा लेखन क्षमता प्रभावित हुई है।
82% छात्र पिछली कक्षाओं में सीखे गए गणित के सबक को भूल गए हैं।
इंडियास्पेंड ने उत्तर प्रदेश के चार जिलों (लखनऊ, बाराबंकी, अयोध्या, देवरिया) के बच्चों और शिक्षकों में इस सिलसिले में बात की और पाया कि उत्तर प्रदेश के शिक्षक भी इस फील्ड स्टडी से काफी हद तक सहमत हैं।
"हमें बच्चों पर बहुत मेहनत करनी है, क्योंकि अधिकतर बच्चे पिछला पढ़ाया भूल चुके हैं। जो बच्चे एक्टिव थे, ट्युशन ले रहे थे या हमारे संपर्क में थे, वो ठीक हैं, लेकिन जिन बच्चों के पढ़ाई में गैप हो गया है उन पर मेहनत करनी होगी," लखनऊ के गुलाम हुसैनपुरवां में स्थित प्राथमिक विद्यालय की सहायक शिक्षक रचना राय कहती हैं।
प्रभावी नहीं ऑनलाइन क्लास
लॉकडाउन के बीच ऑनलाइन क्लास चलने के बाद भी बच्चों की पढ़ाई में गैप कैसे आ गया?
इंडियास्पेंड ने जब ये सवाल उत्तर प्रदेश के शिक्षकों और बच्चों से पूछा तो सरकारी स्कूल से जुड़े ज्यादातर शिक्षकों का जवाब था कि ऑनलाइन क्लास फोन के माध्यम से हो पाती थी। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे गरीब तबके से आते हैं। ऐसे में परिवार में एक फोन होता था। अभिभावक काम पर जाते तो फोन लेकर चले जाते, इससे बच्चे की पढ़ाई नहीं हो पाती थी।
दूसरा कारण यह है कि टीवी चैनल के माध्यम से पढ़ाई से संबंधित कार्यक्रम आने का वक्त भी निर्धारित होता था, उस वक्त पर अगर बिजली नहीं रहती तो बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पाती थी। इस तरह धीमे-धीमे बच्चे पढ़ाई से दूर जाते रहे थे। शिक्षकों का कहना है कि वो अभिभावक से लगातार संपर्क करते, उनसे बच्चे की पढ़ाई से संबंधित बात करते, लेकिन बच्चों से सीधा संवाद नहीं हो पाता था।
लॉकडाउन के बीच पढ़ाई न हो पाने की बात बच्चे भी कहते हैं। बाराबंकी जिले के महमूदपुर गांव का रहने वाला सचिन कुमार (14) अभी आठवीं का छात्र है। जब लॉकडाउन लगा तो सचिन सातवीं कक्षा में था। सचिन ने बताया, "लॉकडाउन के बाद से स्कूल बंद हो गए। जब स्कूल बंद थे तो सर जी ने कहा कि जिसके पास बड़ा मोबाइल हो अपना नंबर दे दो, लेकिन मेरे पास बड़ा मोबाइल नहीं था। इसलिए पढ़ाई नहीं हो पाई।"जैसे- करीब 27% छात्रों ने स्मार्टफोन और लैपटॉप न होने की बात कही । इसी तरह पढ़ने और पढ़ाने के बीच की रुकावटें, बिजली का न होना जैसी असुविधा के बारे में 28% लोगों ने जिक्र किया। इसके अलावा खराब इंटरनेट, फोन या लैपटॉप के इस्तेमाल करने में दिक्कत के साथ ही अध्यापक और छात्रों के बीच होने वाले संवाद की कमी ने भी परेशानी खड़ी की।
ऑनलाइन शिक्षा कितनी कारगर है इसे लेकर पिछले साल नवंबर में अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय का सर्वे भी सामने आया था। 'ऑनलाइन शिक्षा के भ्रम' नाम के इस सर्वे में बताया गया कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 60% बच्चों के पास ऑनलाइन शिक्षा के लिए साधन (मोबाइल-लैपटॉप) मौजूद नहीं थे। यह सर्वे 5 राज्यों (छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड और कर्नाटक) में किया गया। सर्वे में 26 जिलों के 1522 सरकारी स्कूल शामिल थे, जिनमें 80 हजार से ज्यादा बच्चे पढ़ते थे।
बच्चों को दी जा रही उपचारात्मक शिक्षा
लॉकडाउन की वजह से बच्चों की पढ़ाई पर हुए असर को कम के लिए अलग-अलग राज्य अपनी तरह से काम कर रहे हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग ने भी योजना तैयार की है। उत्तर प्रदेश में करीब 1.14 लाख प्राथमिक और करीब 54 हजार उच्च प्राथमिक विद्यालय हैं।
मार्च 2021 से इन स्कूलों की शुरुआत हुई और 50% क्षमता के साथ इन्हें चलाया जाने लगा। यानी एक कक्षा के बच्चों को हफ्ते में दो दिन ही स्कूल बुलाया जा रहा था, लेकिन मार्च के आखिर तक कोरोना के मामले प्रदेश में बढ़ने लगे, ऐसे में पहले होली की छूट्टी के नाम पर और बाद में कोरोना की वजह से एक से आठ तक के स्कूल 11 अप्रैल तक बंद कर दिए गए।
बच्चों की पढ़ाई पर हुए नाकारात्मक असर को देखते हुए उत्तर प्रदेश का शिक्षा विभाग क्या कदम उठा रहा है, इस बारे में देवरिया जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी संतोष राय ने इंडियास्पेंड से बात की।
"शासन की ओर से जो निर्देश मिला है उसके मुताबिक सुबह का पहला घंटा ऑनलाइन क्लास के माध्यम से पढ़ाई गई सामग्री को दोहराने के लिए उपयोग किया जा रहा है। इसे उपचारात्मक शिक्षा (रिमेडियल टीचिंग) का नाम दिया गया है। आठ सप्ताह का शेड्युल बनाकर इसे पूरा किया जाएगा, जिससे कि बच्चों के भाषा और गणित के स्तर पर जो भी मानक हैं उन्हें प्राप्त किए जा सके," संतोष राय कहते हैं।
संतोष राय यह भी बताते हैं कि लॉकडाउन की वजह से बच्चों की पढ़ाई में जो गैप हुआ है उसकी भरपाई का पूरा प्रयास किया जा रहा है। यह चुनौतीपूर्ण है, लेकिन शिक्षकों को प्रोत्साहित करते हुए काम हो रहा है। फिलहाल बच्चों का आंकलन करते हुए हर क्लास में तीन ग्रुप बनाए जाएंगे, यह ग्रुप ऐसे बनाए जाएंगे कि बच्चों को पता न चले। साथ ही हर सप्ताह आंकलन होगा तो एक ग्रुप का बच्चा दूसरे ग्रुप में भी जा सकता है, यह सब उसकी दक्षता पर निर्भर करेगा।
बच्चों की पढ़ाई छूटने का खतरा बढ़ा
हालांकि उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग का यह प्लान उन बच्चों के लिए है जो स्कूल जाएंगे, जबकि जानकारों का मानना है कि लॉकडाउन की वजह बहुत से ऐसे बच्चे होंगे जो अब स्कूल नहीं लौटेंगे। "लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर ग्रामीण इलाकों के बच्चों पर पड़ा है, उसमें भी सबसे ज्यादा असर बच्चियों पर पड़ा है। बहुत सी बच्चियां ऐसी होंगी जो अब स्कूल नहीं लौट पाएंगी। सरकार को इस दिशा में काम करना होगा। केवल शत प्रतिशत नामांकन का नोटिफिकेशन निकालने से काम नहीं चलेगा। अभिभावकों और बच्चों को इसके लिए मोटिवेट करना होगा", ऐसा 'आरटीई फोरम' के मीडिया समन्वयक मित्ररंजन कहते हैं।
आरटीई फोरम अभी बुंदेलखंड के सात जिलों में 'बैक टू स्कूल अभियान' चला रहा है। इस अभियान के तहत लॉकडाउन के बाद लड़कियों के स्कूल वापस न जाने के खतरों को कम करने का प्रयास हो रहा है। फिलहाल 10 बालिका लर्निंग सेंटर बनाकर करीब 500 लड़कियों को पढ़ाया जा रहा है ताकि उनकी शिक्षा नियमित बनी रहे।
शिक्षा के क्षेत्र में कुछ इसी तरह का काम प्रयागराज जिले की संस्था 'शुरुआत, एक ज्योति शिक्षा की' ओर से किया जा रहा है। इस संस्था की ओर से गरीब तबके और खास तौर से झुग्गियों में पलने वाले बच्चों को पढ़ाने का प्रयास किया जाता है। इसके संस्थापक अभिषेक शुक्ला का भी मानना है कि लॉकडाउन की वजह से गरीब तबके से जुड़े बहुत से बच्चे वापस स्कूल नहीं लौट पाएंगे।
"हम 2016 से ही गरीब तबसे से जड़े बच्चों को पढ़ाने का काम कर रहे हैं। जिन बच्चों को हम पढ़ाते हैं उनमें से कई भीख मांगने का काम करते आए हैं। हमने बहुत प्रयास करके उन्हें इस काम से निकाला था, लेकिन लॉकडाउन के बाद उनमें से बहुत से बच्चे वापस उसी काम में लौट गए। वजह यह थी कि पढ़ाई से ज्यादा जरूरी भूख हो गई। हम अभी भी प्रयास कर रहे हैं कि बच्चे वापस पढ़ने आ जाएं," अभिषेक शुक्ला ने कहा।
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